गुरू नानक देव पर निबंध | Essay on Guru Nanak Dev in Hindi!
गुरू नानक देव जी एक महान क्रान्तिकारी, समाज सुधारक और राष्ट्रवादी गुरू थे । गुरू नानक देव जी (प्रथम नानक, सिख धर्म के संस्थापक) का जन्म कार्तिक पूर्णिमा को सम्बत 1526 (अंग्रेजी वर्ष 1469) को राय-भोए-दी तलवण्डी वर्तमान में शेखुपुरा (पाकिस्तान) ननकाना साहिब के नाम से प्रसिद्ध स्थान पर हुआ था ।
गुरू नानक साहिब जी का जन्मदिन प्रतिवर्ष 19वीं कार्तिक पूर्णिमा यानि कार्तिक माह के पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है । गुरू नानक जी के पिता मेहता कल्याण दास जी, जो कि मुख्यत: मेहता कालू के नाम से भी जाने जाते थे, राय मुलार के यहाँ एक मुख्य लेखाकार के रूप में कार्य करते थे ।
गुरू नानक जी की माता तृजा एक बहुत ही साधारण एवं धार्मिक विचारों वाली औरत थी । गुरू नानक देव जी की बड़ी बहन, नानकी जी थी, जो अपने छोटे भाई यानि गुरू नानक देव जी को बहुत प्यार करती थी । गुरू नानक देव जी एक अद्भूत एवं विलक्षण बाल थे ।
भगवान ने उन्हें एक गहन सोच वाले मस्तिष्क एवं तार्किक सोच से नवाजा था । 7 वर्ष की आयू में उन्होंने. हिन्दी एवं संस्कृत भाषा सीखी । उन्होने दैवीय चीजों के प्रति अपनी अलौकिक एवं अद्भुत ज्ञान से अपने शिक्षक को आश्चर्यचकित कर दिया था ।
13 वर्ष की आयु में उन्होंने फारसी एवं संस्कृत भाषा के ज्ञात हो गए थे । 16 वर्ष की आयु में वह पूरे क्षेत्रा में तेजस्वी विद्वान के रूप में समाज के सामने आए । उनका विवाह माता सुलखणी जी से हुआ, जिनके दो पुत्रा- श्रीचन्द एवं लखमी चन्द थे ।
पंजाब में विभिन्न स्थानों का प्रवास करने के पश्चात उन्होंने देश और विश्व के भिन्न-भिन्न धार्मिक स्थानों के प्रवास करने का निर्णय किया । ये प्रवास गुरू नानक देव जी की चार उदासी के रूप में जानी जाती है । इस दौरान गुरू नानक साहिब ने विभिन्न धार्मिक स्थलों का प्रवास किया एवं सिखी के उपदेश दिये ।
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उन्होने कुरूक्षेत्र, हरिद्वार, जोशीमठ, रीठा साहिब, गोरखमत्ता (नानक मत्ता), अयोध्या, प्रयाग, वाराणसी, गया, पटना एवं असम में गुवाहटी, ढाका, पुरी, कटक, रामेश्वरम, सीलोन, बिदर, भरूच, सोमनाथ, द्वारका, जूनागढ़, उज्जैन, अजमेर, मथूरा, पाकपट्टन, तलवण्डी, लाहौर, सुल्तानपुर, बिलासपुर, रावलसर, ज्वालाजी, स्पीटी घाटी, तिब्बत, लद्दाख, कारगिल, अमरनाथ, श्रीनगर एवं बारामुल्लाह का प्रवास भी किया ।
गुरू नानक साहिब जी ने मुस्लिम धार्मिक स्थलों के भी दर्शन किये । इस परिपेक्ष में वे मक्का, मदीना, बगदाद, मुलान, पेशावर सक्टर, हिंगलाज आदि भी गये । कई ऐतिहासिक दस्तावेज कहते हैं कि वे मक्का समुद्री रारते से गये । गुरू साहिब ने ईराक सम्पूर्ण अरब प्रायद्वीप, तुर्की और तेहरान (वर्तमान में इरान की राजधानी) का भ्रमण भी किया ।
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तेहरान से गुरू साहिब ने कारवां के रास्ते काबुल, कंधार एवं जलालाबाद का भी प्रवास किया । प्रवास का मुख्य उद्देश्य लोगों में ईश्वर की सच्चाई और एक राष्ट्र केन्द्रित विचार के प्रति जागरूकता पैदा करना था । उन्होने सिख धर्म के विभिन्न उपदेश केन्द्रों की स्थापना की ।
सिख विचार का बीजारोपण निश्चित ही भारत में हुआ । लेकिन इसका प्रभाव वैश्विक है । 1520 में बाबर ने भारत पर आक्रमण किया । भारत भू को रक्त से लाल किया गया । धार्मिक स्थल तोड़े गए । नगर के नगर उजाडे गए । मुगल सिपाहियों ने भारतीय जन पर अत्याचार किए ।
बाबर के सिपाहियों ने हजारों बेकसूर लोगों को मौत के घाट उतारा । एमनाबाद में महिलाओं पर अत्याचार हुए । विदेशी आक्रान्ता भारत की धनसम्पदा के जबर मालिक हो गए । गुरू नानक जी ने बाबर के इन कृत्यों का विरोध बड़े ही कड़े शब्दों में किया ।
गुरू साहिब ने स्वयं को एक राष्ट्रवादी के रूप में प्रस्तुत किया एवं हिन्दुस्तान के विचार बाबर के सम्मुख प्रकट किये । उन्हें गिरफ्तार किया गया । मुगलों बाबर के विरुद्ध विरोध का बिगुल फूंकने वाले गुरुनानक देव जी ने एक नए स्वतंत्रता आन्दोलन का सूत्रपात किया ।
बाबर द्वारा उनकी गिरफ्तारी सिख इतिहास की दृष्टि से स्वतंत्रता आन्दोलन का प्रारम्भ है। गुरू नानक साहब जी करतारपुर शहर (वर्तमान में पाकिस्तान का एक भाग), जो कि उनके द्वारा 1522 में बसाया गया था, में बस गये एवं अपना शेष जीवन (1522-1539) वहीं पर बिताया ।
वहां प्रतिदिन कीर्तन एवं लंगर की प्रथा का शुभारम्भ किया गया । जब गुरू साहिब ने देखा कि उनका अंत समय आ गया है तो उन्होंने भाई लहणा जी (गुरू अंगद साहिब) को द्वितीय नानक के रूप में 1539 को स्थापित किया अर्थात गुरुपद प्रदान किया एवं कुछ दिनों के पश्चात सचखंद में 22 नवम्बर 1539 को ज्योति जोत समा गये ।
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इस प्रकार मानवता के एक ईश्वर प्रदत्त गुरू का अन्त हुआ । उन्होंने बर्ण व्यवस्था का विरोध किया । गुरू नानक साहिब जी ने गृहस्थ जीवन में रहते हुए अपना आध्यात्मिक व सामाजिक जीवन को जीने की कला समझायी ।
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गुरू नानक साहिब जी द्वारा स्थापित सिख जीवन दर्शन का आधार मानवता की सेवा, कीर्तन, सत्संग एवं एक सर्वशक्तिमान ईश्वर के प्रति विश्वास है । इस प्रकार उन्होंने सिख धर्म की आधारशिला रखी । उन्होंने एक नये तरीके से सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान और सच्चे ईश्वर-अकाल पुरख के प्रवचन दिये ।
ईश्वर निरंकार है, ईश्वर आत्मा है, रचयिता है, अविस्मरणीय है, जन्म-मृत्यु से परे हैं, कालविहीन है, काल निरपेक्ष है, भयरहित है एवं करता पुरख है । ईश्वर सब जानने वाला, अन्तिम सत्य, दाता, निरवैर एवं सर्वव्यापी है । वो सतनाम है, कभी न खत्म होने वाला, सदैव सत्य है ।
एक समाज सुधारक के रूप में गुरू नानक साहिब जी ने महिलाओं की स्थिति, गरीबों एवं दलितों की दशा को सुधारने के लिए कार्य किये । उन्होंने जाति प्रथा एवं मुस्लिम शासकों की नीतियों का विरोध किया । वे जन्म से ही एक काव्यकार थे । उन्होंने 947 शबदों की रचना की ।
उनकी बाणियों में जपजी साहिब, आरस दी वार, बारामाह, सिद्धगोष्ठ, ओंकार (दखणी) आदि सम्मिलित हैं एवं गुरुनानक देव जी की बाणी श्री गुरूग्रन्थ साहिब में अंकित है । संगीत उनकी सृजनात्मक शक्ति का परिचायक बना । उन्होने भाई मरदाना जी के साथ मिलकर भारतीय शास्त्रीय रागों पर आधारित शब्द गायन प्रणाली का विकास किया । वो एक सुधारक के साथ साथ क्रान्तिकारी भी थे ।