पण्डित जवाहर लाल नेहरु: शान्ति एवं एकता के प्रतीक पर निबन्ध |
प्रस्तावना:
जब भी विश्व शान्ति का प्रश्न आता है तो पंचशील सिद्धान्त, गुटनिरपेक्ष एवं धर्मनिरपेक्षता आदि सिद्धान्तों की चर्चा अति आवश्यक हो जाती है और इन सिद्धान्तों चर्चा होते पण्डित नेहरु जी का स्मरण न किया जाये ऐसा हो ही नहीं सकता ।
वस्तुत् ही ऐसे महान आदर्श पुरुष थे जिन्होंने इन सिद्धान्तों को प्रतिपादित किया । पण्डित नेहरु को महान नेता एवं विचारक के रूप में न केबल भारत देश में ही अपितु विश्व में भी सराहा जाता है ।
चिन्तनात्मक विकास:
स्वाधीन भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पण्डित जवाहरलाल नेत् भारत को स्वतन्त्र कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी । गाँधीजी के कुछ विचारों से वह पूर्णत: सहमत नहीं थे किन्तु गाँधीजी से उनके निकट एवं घनिष्ठ और मधुरतापूर्ण सम्यौ गाँधीजी के विचारों से प्रभावित होकर ही पण्डित नेहरु स्वाधीनता आन्दोलन में कूद पड़े ।
उन्हें भारत को स्वतन्त्र कराने के प्रयासों में अनेक बार जेल जाना पड़ा किन्तु वह अपने से डगमगाये नहीं, न ही उन्होंने हिम्मत हारी । पण्डित नेहरु स्वतन्त्रता सेनानी होने के साथ महान विचारक, एवं प्रख्यात लेखक भी थे । वह राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति के पत्र थे ।
विश्वस्तरीय युद्धों का उन्हीने हमेशा विरोध किया इसलिए भारत और पाकिस्तान वि के समय और चीन द्वारा भारत पर आक्रमण के समय उन्होंने घोर चिन्ता भरत की र्थ सदैव ही आदर्श राष्ट्र की कल्पना करते थे । स्वाधीनता के पश्चात् स्वतन्त्र भारत के अनेक समस्यायें थीं, जिनके समाधान हेतु उन्होंने अनेक सिद्धान्तों का प्रतिपादन किय उन्हें व्यावहारिक स्वरूप भी प्रदान किया ।
उपसंहार:
अत: कहा जा सकता है कि भारत को पण्डित नेहरु की अमूल्य एवं देन उनके द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्त हैं, जिनके चलते भारत आज यहाँ तक पहुँचा है महान आदर्श व्यक्तित्व के रूप में राष्ट्र ही नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व भी हमेशा याद रहेगा ।
स्वाधीन भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पण्डित जवाहरलाल नेहरु का जन्म 14 नवम्बर,1889 को इलाहाबाद के आनन्द भवन में हुआ । पण्डित नेहरु भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के महान थे । वे अपने पिता के इकलौते पुत्र थे । उनकी माता का नाम स्वरूप रानी था ।
पण्डित जवाहरलाल नेहरु 15 वर्ष की आयु मे अपनी प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चाद, इंग्लैण्ड के हैरो स्कूल में शिक्षा ग्रहण करने गए । तत्पश्चात् उन्होंने ट्रिनिटी कॉलेज में शिक्षा ग्रहण की और विश्वविद्यालय से वनस्पति शास्त्र, रसायन शास्त्र एवं भूगर्भ शास्त्र में स्नातक उपाधि प्रा तदान्तर उन्होने कानून की व्यावसायिक डिग्री प्राप्त की ।
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1912 में बैरिस्टर बन, भारत लौटकर इलाहाबाद में उन्होंने वकालत प्रारंभ की । वकालत में विशेष रुचि न होने के कारण उन्होंने त भारतीय राजनीति में प्रवेश किया । पटना, बीकानेर में 1912 में उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया । 1916 के लखनऊ अधिवेशन में वे सर्वप्रथम गाँधी के सम्पर्क में आये ।
इसी वर्ष इनका विवाह कमला कौल से हुआ । तत्पश्चात् उन पुत्री इन्दिरा एवं एक पुत्र का जन्म हुआ, पुत्र की शीघ्र ही मृत्यु हो गई थी । जलियांवाला बाग हत्याकाण्ड की जाँच में गाँधीजी और चितरंजन दास के साथ पण्डित नेहरू ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई । सन् 1921-22 के असहयोग आन्दोलन के दौरान गाँधीजी उनके और निकट सम्बंध बने और इसी आन्दोलन के दौरान वह प्रथम बार जेल गए ।
साइमन कमीशन के विरुद्ध नेहरु ने लखनऊ में होने वाले प्रदर्शन में भाग लिया और वे काग्रेस के महामन्त्री बने । 1929 में लाहौर अधिवेशन में कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए । सन 1936 और 1946 में नेहरु पुन कांग्रेस के अध्यक्ष बने तथा 1951 से 1954 तक वह प्रत्येक अधिवेशन कांग्रेस के अध्यक्ष चुने जाते रहे । पण्डित नेहरु ने कुल नौ बार जेल की यात्रा की और उनके जीवन के नौ साल जेल में ही बीते ।
भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के पण्डित नेहरु अग्रणी नेता रहे हैं । 1930 में सविनय आवज्ञा आन्दोलन में उन्हें छह महीने के लिए बन्दी बनाया गया । धारा 144 भंग करने के आगे फिर एक बार बन्दी बना तीस महीने के लिए जेल भेजा गया किन्तु एक वर्ष बाद ही उन्हें मुक्त कर दिया गया ।
तत्पश्चात् नेहरु जी ने चीन, स्पेन तथा चेकोस्लोवाकिया का भ्रमण किया । किन्तु भारतीय राजनीतिक गतिविधियों से उनका निकट संपर्क निरन्तर बना रहा । नेहरु जी में गाँधीजी द्वारा निर्देशित ‘व्यक्तिगत सत्याग्रह’ आन्दोलन में हिस्सा लेने के कारण चा जेल में बन्दी बना लिया गया, लेकिन एक वर्ष बाद रिहा कर दिया गया ।
अहिंसा के उनका गांधीजी के साथ मतभेद था । गाँधीजी का मत था कि मनुष्य का जीवन अहिंसा पर होना चाहिए जबकि दूसरी ओर नेहरु जी इसे केवल एक नीति के रूप में स्वीकार किन्तु फिर भी उन्होंने प्राय: गाँधीजी के ही दृष्टिकोण को अपनाया ।
1942 के के ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ में नेहरु जी ने सक्रिय रूप से भाग लिया और अन्य भारतीय नेताओं के साथ वे भी बंदी बना लिये गये, उसके बाद उन्हें 1945 में रिहा कर दिया गया । 2 सितम्बर, 1946 को अर्ल वावेल के आमन्त्रण पर जो ‘अन्तरिम सरकार’ बनी, उसके प्रधानमन्त्री बने ।
इस अन्तरिम सरकार में मुस्तिम लीग को सम्मिलित करने में उन्हें सफलता तो मिली, तथापि जिन्ना के नेतृत्व वाले लीग से कोई ठोस एवं विश्वसनीय समझौता परिणामस्वरूप काग्रेस और मुस्लिम लीग में परस्पर अन्तर्विरोध उत्पन्न हो गया ।
इसर पंजाब एवं बंगाल में हिन्दू-मुसलमानों के बीच साम्प्रदायिक दंगों के रूप में हमारे सम् लॉर्ड माउंटबेटन 1947 मे भारत के वायसराय नियुक्त हुये । नेहरु जी वायसराय के से सहमत हो गये कि भारतीय स्वाधीनता एवं आन्तरिक शान्ति तभी सम्मव हे, जब देश का भारत और पाकिस्तान के रूप में विभाजन हो जाये ।
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13 जून, 1947 को आकाशवाणी के नेहरु ने घोषणा की कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने देश के विभाजन की योजना को पं लिया है । नेहरु जी 15 अगस्त, 1947 को स्वतन्त्र भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री बने और 17 वर्ष तक भारत के प्रधानमंत्री रहे ।
स्वतन्त्र भारत की अनेक समस्यायें थीं जिन्होंने पण्डित जवाहरलाल नेहरु के समक्ष अनेक कठिनाइयाँ पैदा कीं । फ्रासीसी औपनिवेशिक बस्तियों को भारत में सम्मिलित करने की समस्या को आपसी बातचीत से सुलझा लिया गया, पर पुर्तगाली बस्तियों के भारत में विलयन हेतु 1961 में सेना का प्रयोग करना पड़ा ।
उनके मन्त्रिमण्डल द्वारा समुचित साधनों के अभाव में भी, पचवर्षीय योजनाओ के माध्यम से देश के औद्योगिक एवं सामाजिक विकास की सफल यो बनाई गयी थी । पाकिस्तान के साथ उन्होंने हमेशा ही मैत्रीपूर्ण सम्बंध बनाने की कोशिश की असफल ही रहे ।
विदेशिक मामलों में नेहरु जी की नीति सदैव तटस्थता की रही थी । वह और अमेरिका दोनों ही गुटो से अलग रहे और उन्होंने दोनों ही गुटो मे मैत्रीपूर्ण सम्बंध रखा । 1962 में चीन द्वारा तिबत पर बलपूर्वक अधिकार करना तथा भारतीय सीमा में प्रवेश लद्दाख तथा उत्तरी-पूर्वी सीमान्त प्रदेशों पर आक्रमण करना, ऐसी घटनाएँ थीं जिन्होने नेह को गहरा आघात पहुँचाया ।
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इस आक्रमण का कारण काफी लम्बे समय से चला आ रहा भारत-चीन सीमा विवाद था । दिसम्बर, 1962 में अफ्रीका एवं एलिया के कतिपय देशों ने कोल आयोजित बैठक में एक योजना तैयार की, जो ‘कोलम्बो योजना’ के नाम से जानी जार इसमे भारत व चीन के सीमा संबंधी विवादों को हल करने हेतु कुछ सुझाव थे ।
नेहरु जई इन सुझावों को स्वीकार कर लिया गया क्योंकि वह विवादो को शान्तिपूर्ण ढग से सुलझाना थे किन्तु चीन ने इन सुझावो को स्वीकार नहीं किया । फलत: आज भी इन दोनो देशों के बीच सीमा विवाद बना हुआ है ।
पण्डित जवाहरलाल नेहरु जी ऐसे पहले राष्ट्राध्यक्ष थे जिन्हों ने 1963 में रूस, इंग्लैन्ड तथा अमेरिका के बीच आशिक परमाणु परीक्षण निषेध संधि पर हस्ताक्षर किये जाने का स्वागत् था । जनवरी, 1964 के भुवनेश्वर कांग्रेस अधिवेशन में भाग लेने के दौरान वे गंभीर रूप से हो गए । स्वास्थ्य मे थोडा सुधार होने के पश्चात् 27 मई, 1964 को दिल्ली’ में उनक हो गया ।
जवाहरलाल नेहरु न केवल महान राजनीतिज्ञ एवं वक्ता थे, अपितु विश्वप्रख्यात लेखक भी थे । 1936 में प्रकाशित उनकी आत्मक्या को सम्पूर्ण विश्व में सराहा गया । डिसकवरी ऑफ उनकी अत्यन्त प्रमुख कृति है जिसे ‘भारत एक खोज’ नाम से दूरदर्शन में भी दिखाया ‘इन्दिरा के नाम पत्र’ भी उनकी महत्वपूर्ण रचना है, जिसे उन्होनें जेल में लिखा था ।
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‘इण्डिया द वर्ल्ड’, ‘यूनिटी ऑफ इण्डिया’, ‘इनडिपेण्डेंस एण्ड आफ्टर’, ‘सोवियत रशिया’ तथा ‘ग्लिम्पसेज ऑफ वर्ल्ड हिस्ट्री’ इनकी अन्य महत्वपूर्ण कृतियाँ हैं । ‘इनडिपेन्डेंस एण्ड आफ्टर’ तथा ‘यूनिटी ऑफ इण्डिया’ दोनों पुस्तकें उनके फुटकर लेखों तथा भाषणों के संग्रह हैं ।
पण्डित जवाहरलाल नेहरु जी भी गांधीजी के समान ही स्वप्न द्रष्य थे किन्तु इनके अध्यात्मवादी न होकर व्यावहारिक था, इसका तात्पर्य यह नहीं कि वह महान आदर्शो मूल्यों से अपरिचित थे । उनके मतानुसार आध्यात्मिकता मनुष्य के यथार्थ बोध को कम है । नेहरु जी रूढिवादिता के प्रबल शत्रु थे ।
पारम्परिक भारतीय संस्कृति पर आधारित कर्मकांडों एवं अन्धविश्वासों के वे कड़े विरोधी थे और धर्म तथा सम्प्रदाय से जुडी मान्यताओं; अस्वीकार किया, किन्तु इसका यह अर्थ नहीं कि वह भारतीय नहीं थे । वास्तव में वह रूढ़िवादिता तथा अंधविश्वासों को भारतीय प्रगति में बाधक तत्व मानते थे ।
वह भारत को तेजी से आधुनिकता की ओर ले जाना चाहते थे । नेहरु जी का दृष्टिकोण तार्किक एवं वैज्ञानिक था । उनके मतानुसार हम तर्क और तकनीक के माध्यम से ही आर्थिक एवं सामाजिक क्षेत्र में प्रगति कर सकते हैं । नेहरू जी के दृष्टिकोण के कारण ही स्वतन्त्र भारत आधुनिकता की ओर शीघ्रता से अग्रसर हो सका ।
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नेहरु जी के दृष्टिकोण को निम्न विचारों द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है:
गुटनिरपेक्षता का सिद्धान्त:
गुटनिरपेक्ष दो शब्दो के योग से बना है- गुट और निरपेक्ष । अर्थात् विश्व के देशो में से किसी भी गुट में सम्मिलित न होकर, अपनी भूमि अपनी मान्यताओं और मूल्यो पर करना किन्तु गुटनिरपेक्षता का तात्पर्य यह कदापि नहीं की कोई देश हमारे ऊपर आक्रमण करे और हम चुप बैठे रहे ।
ऐसे अवसर पर हमें अप आवश्यकतानुसार दूसरे देशो से सहायता लेने का भी अधिकार है । अत: गुटनिरपेश् राष्ट्रीयता का सिद्धान्त है । स्वाधीनता के पश्चाय भारत को प्रगति हेतु इसी गुटानिरपेक्ष नीति की ही आवश्यकता थी, जो नेहरु जी के ही नेतृत्व में भारत को मिली ।
नेहरु जी भारत समाजवादी राष्ट्र बनाना चाहते थे क्योंकि स्वाधीन भारत के समक्ष जो समस्यायें र्थ साम्यवाद अथवा पूजीवाद के द्वारा सम्भव नहीं था । अत: इस नीति का पालन को लोकतान्त्रिक समाजवादी राष्ट्र बनाया जा सकता था । इस नीति के चलते नेहरू जी ने 1954 में भारत-चीन समझौते के अवसर पर ‘पचशील सिद्धान्त’ की परिकल्पना की ।
ये पंचशील सिद्धान्त थे; प्रथम, एक-दूसरे के ऊपर आक्रमण न करना । द्वितीय, समानता के आधार सहायता करना । तृतीय, शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व । चतुर्थ, एक-दूसरे के आन्तरिक नहीं करना । पंचम, एक-दूसरे की स्वल्पत्रता और अखण्डता का सम्मान करना ।
ये पांचों सिद्धांत शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व की भावना पर आधारित थे । यह समझौता नेहरु जी की विशेस उपलब्धि था । पंचशील पर आधारित यह समझौत अन्तर्राष्ट्रीयवाद की ओर बढाया गया एक कदम था । नेहरु जी का सर्वदा यही प्रयास रहा कि विश्व में होने वाले युद्धों को सम्भवत: विश्व के सभी राष्ट्र एक-दूसरे की भावनाओं को समझने की कोशिश करें ताकि हो सके । उनकी इसी विचारधारा का परिणाम निर्गुट आन्दोलन के रूप में हमारे समक्ष आया ।
लोकतान्त्रिक समाजवाद:
लोकतान्त्रिक समाजवाद का सिद्धान्त, नेहरु अनुपम देन माना जाता है । इस सिद्धान्त को नेहरु जी ने भारतीय परिप्रेश् विश्वस्तरीय संदर्श में भी देखा । व्यक्ति गरिमा में नेहरु जी की निष्ठा थी, समानता के वो पक्षधर थे, वह न तो साम्यवादी समाजवाद का त्याग करना चाहते थे और न ही व्यक्तिवादी दृष्टिकोण का ।
अत: उन्होंने एक नवीन राजनीतिक व्यवस्था की प्रकल्पना की । पण्डि गाँधी दोनों से ही प्रभावित थे, इसीलिए उन्होंने दोनों के बीच का मार्ग अपना को व्यावहारिक रूप प्रदान किया । नेहरु जी ने जिस समाजवादी समाज की स्थापना की थी, उसे अपनी आर्थिक नीतियों में भी ढाला और तदानुरूप राजनीतिक व्यवस्था भी बनाई ।
धर्मनिरपेक्षता का सिद्धान्त:
नेहरु जी ने न तो किसी धर्म की निन्दा की, और न ही वह अधार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे । किन्तु फिर भी आलोचकों की आलोचना से वह बच नहीं सके । धर्म के नाम पर होने वाले आडम्बरों को वह नापंसद करते थे । विज्ञान एवं तकनीक में उनकी विशेष आस्था थी ।
अत: वह धर्म अथवा सम्प्रदाय के आधार पर किसी से समझौता करने के पक्ष में नहीं थे, इसीलिए नैतिक मूल्यों का उन्होंने सदैव आदर किया । यही कारण था की उनका धर्मनिरपेक्षता के सिद्धान्त में अटूट विश्वास था । उनके अनुसार राष्ट्रवाद की स्थापना धर्म पर नहीं हो सकती ।
फलस्वरूप उन्होंने भारत को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बनाने पर विशेष और भारतीय संविधान के अनुरूप ही धर्मनिरपेक्षता को परिभाषित किया । धर्म निरपेक्षता का तात्पर्य अधर्म की स्थापना नहीं है । अत: उनके मतानुसार देश अथवा सरकार का यह कर्तव्य है की वह सभी धर्मो का सम्मान करे, उसका अपना कोई धर्म नहीं होना चाहिए ।
कल्याणकारी राज्य:
नेहरु जी ने कल्याणकारी राज्य की स्थापना की कल्पना की थी, जिसके अन्तर्गत वे आर्थिक सिद्धान्तों का उपयोग समानता के उद्देश्य को पाने हेतु चाहते द्वारा जो भी कार्य, चाहे वह राजनीतिक हों अथवा आर्थिक, उद्देश्य जन-कल्याण ही होने राज्य का लक्ष्य जनता की उन्नति होना चाहिए न कि आर्थिक लाभ प्राप्त करना, चाहे इसके लिए उसे आर्थिक क्षेत्र में हानि क्यों न उठानी पड़े ।
शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण, एवं स्वच्छता आदि जैसे कार्यक्रमों को निरन्तर जारी रखना चाहिए, भले इनसे राज्य को सीधे आर्थिक लाभ हो क्योंकि इन सभी कार्यक्रमों की सफलता का मानदण्ड ‘लोककल्याण’ है । अत: सरकार का कर्तव्य है कि देश के समस्त नागरिकों को सभी सुविधायें मिलनी चाहिए ।
राष्ट्रीयबाद एवं अन्तर्राष्ट्रीयबाद:
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नेहरु जी विश्व समुदाय के समर्थक थे । बा साम्प्रदायिक एवं धार्मिक संकीर्णताओं से ऊपर उठकर, एक ऐसे राष्ट्र का निर्माण का थे, जिसका स्वरूप अन्तर्राष्ट्रीयवाद हो । वास्तव में उनके सभी सिद्धान्त अन्तर्राष्ट्रीयता एवं समानता की भावना से प्रेरित थे ।
वह अन्तर्राष्ट्रीय ही नहीं अपितु राष्ट्रीय स्तर पर भी भारतीय विद्यमान जातिगत संकीर्णताओं को दूर कर, सामाजिक समानता स्थापित करना चाहते जी बर्गब्यवस्था के भी प्रबल विरोधी थे । नेहरु जी ने सदैव विश्वशान्ति का स्वप्न देखा । में उनकी दो महत्वपूर्ण उपलब्धियों हें-प्रथम, गुटनिरपेक्षता की नीति ।
द्वितीय, पंचसील का सिद्धान्त । वह अन्तर्राष्ट्रीयवाद के इतने प्रबल समर्थक थे कि, उनका मत था कि भारत बिना अन्तर्राष्ट्रीयवाद के नहीं हो सकती । उनका मत था कि हम सभी को अतीत से शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए ताकि भारत भी आधुनिक युग में वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाते हुये प्रगति कर सके ।
आर्थिक दृष्टिकोण:
नेहरु जी के अनुसार समाजवाद के आर्थिक दृष्टिकोण के ही समाजवादी समाज की स्थापना की जा सकती है । भारत में अत्यधिक गरीबी एवं विद्यमान है, जब तक इन्हें भारत से दूर नहीं किया जा सकता तब तक राष्ट्रीय एक करना व्यर्थ है ।
नेहरु जी ने लोकतान्त्रिक समाजवाद की स्थापना हेतु मिश्रित अर्थव्यवस्था के प्रतिपादित किया । नेहरु जी के मतानुसार वही अर्थव्यवस्था भारत हेतु सर्वाधिक उप न तो पूर्णत: पूंजीवादी व्यवस्था पर आधारित हो न ही पूर्णत: साम्यवादी सिद्धान्तों पर ने भारत के समस्त अर्थशास्त्रियों की विचारधारा का समर्थन करते हुये दो तरह की भारत में लागू की-पहली सार्वजनिक क्षेत्र और दूसरी निजी क्षेत्र ।
नेहरु द्वारा प्रति व्यवस्था को मिश्रित अर्थव्यवस्था का नाम दिया गया । पण्डित नेहरु द्वारा भारत अर्थव्यवस्था की नीति इसलिए अपनाई गई क्योंकि देश में काफी समय से पूंजी केवल कुछ ही लोगों तक सीमित होकर रह गई थी । वस्तुत: यह वर्ग साधन सम्पन्न था, जो बड़े पैमाने में पूंजी निवेश कर सकता था ।
नेहरु जी का विचार था कि यदि इस वगे को उत्पादन म में वृद्धि की जाये तो न केवल उत्पादन ही बढेगा । अपितु राष्ट्रीय सम्पन्नता में भी अ दूसरी ओर उनका यह भी मत था कि सरकार के पास साधनों की कमी है, वह पूर्णत: अपने बल-बूते पर नहीं चला सकती ।
साथ ही यह बात भी उनके मस्तिष्क स्वाधीनता के तुरन्त पश्चात् ही सरकार लाभ मार्ग से प्रेरित नहीं हो सकती । अत: तत्कालीन भारतीय परिस्थितियों को मध्य नजर रखते हुये यह ही उचित समझा गया कि महत्वपूर्ण उर सार्वजनिक क्षेत्रों तक ही सी मित रखा जाये और शेष को निजी हाथों में सौंप दिया दोनों क्षेत्रों को समान रूप से कार्य करने दिया जाए ।
इनमें से जो बड़े उद्योग रक्षा ए से सम्बन्धित थे, उन्हें सार्वजनिक क्षेत्र के अन्तर्गत रखा गया । जहाँ तक निजी क्षेत्र है तो उसे पूंजी निवेश के क्षेत्र में पूर्ण स्वतन्त्रता प्राप्त होने के बाद भी स्वच्छंद नहीं सकता । परिणामस्वरूप सरकार द्वारा लाइसेंस की व्यवस्था, काम की निश्चित अवधि एवं न्यूनतम वेतन निर्धारण के सम्बंध में कानून बनाए गये ।
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साथ ही सरकार द्वारा यह भी ध्यान कि पूंजीपतियों में लाभ कमाने की प्रवृत्ति के कारण शोषण न होने पाये । पण्डित नेहरु भारत के बृहदस्तर पर उद्योगीकरण के पक्षधर थे क्योंकि बिना उर के भारत विश्व के समृद्ध देशों के सम्मुख खड़ा नहीं हो सकता ।
उनका मत था कि उद्द्योगों का लाभ समस्त क्षेत्रों को मिलना चाहिए और यह तभी सम्भव है जब बड़े उद्योगों की धीरे-धीरे और बढ़ाया जाये ताकि भारत की आर्थिक स्थिति उस सीमा तक पहुंच जाये, जहाँ औद्योगिक क्रान्ति के पश्चात् यूरोपीय देश पहुँचे हैं, किन्तु इसका तात्पर्य यह कदशि वह कुटीर उद्योगों के विरोधी थे ।
उनका मानना था कि भारत को कुटीर उद्योगों की है क्योंकि बिना औद्योगिक उन्नति के भारत जैसे विकासशील देश की अनेक समस्याओं व नहीं हो सकता । नेहरु जी आर्थिक आयोजन के समर्थक थे क्योंकि देश की आर्थिक उन्नति हेतु निश्चित कार्यक्रम अत्यावश्यक हैं ।
इसके लिए दो पहलुओं पर विशेष ध्यान देना चाहिए : (1) देश की आर्थिक आवश्यकताओं और (2) योजनाओं को संचालित करने हेतु धन का समुचित प्रबंध । चूंकि नेहरु जी जानते थे कि विश्व के अन्य देशों की आर्थिक प्रगति का कारण समुचि प्रक्रिया है । परिणामस्वरूप 1950 में पहली बार योजना आयोग का गठन किया गया, जिसर देश का नियोजित आर्थिक विकास करना था । इसीलिए पंचवर्षीय योजनाओं के द्वारा आज तक औद्योगिक विकास सम्भव हो पाया है ।
निष्कर्ष के रूप में हम कह सकते हैं कि पण्डित जवाहरलाल नेहरु न केवल एक भरतिय स्वाधीनता संग्राम मे अग्रणी भूमिका निष्पादन करने वाले महान नेता थे अपितु राष्ट्र थे । उन्हीं की नीतियों पर चलते हुये आज भारत की गिनती समृद्ध देशों के साथ हो विकासशील भारत विकसित देशों के समक्ष अपने पैर टिकाने लायक बन सका है । अत: व सेनानी, प्रसिद्ध लेखक, समाज सुधारक, विश्व शान्ति के अग्रदूत, महान नेता एवं कुछ थे ।