कार्ल मार्क्स पर निबंध | Essay on Karl Marx in Hindi
1. प्रस्साबना:
कार्ल हेनरिक मार्क्स संसार में एक प्रसिद्ध अर्थशास्त्री, समाजशास्त्री, राजनीतिक विचारक के रूप में प्रतिष्ठित हैं । वे आधुनिक समाजवाद के जन्मदाता के रूप में भी विश्व विख्यात हैं ।
अरस्तु, प्लेटो की तरह उनकी आदर्शवादी विचारधारा मानवीय समाज के लिए कल्याणकारी थी । वे सर्वहारा, मजदूर वर्ग के प्रिय नेता, महान् पथ प्रदर्शक माने जाते हैं । उनका द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद का सिद्धान्त एक अनुपम सिद्धान्त है । उनकी ”दास केपिटल” समाजवाद की सर्वश्रेष्ठ पुस्तक है, जिसे समाजवादियों की बाइबिल भी कहा जाता है ।
2. जीवन वृत्त एवं उपलब्धियां:
कार्ल हेनरिक मार्क्स का जन्म 5 मई 1818 को ‘प्रशिया’ के राइन प्रान्त के ट्रियर नगर में एक यहूदी परिवार में हुआ था । उनके पिता एक प्रसिद्ध वकील थे । मार्क्स की शिक्षा ट्रियर के एक स्थानीय स्कूल जिमनेजियम में हुई । बाल्यावस्था से वे कुशाग्र बुद्धि के थे । स्कूली जीवन में अपने मौलिक लेख ”एक तरूण के विचार” से उन्हें ख्याति मिली ।
कानून की शिक्षा प्राप्त करने के लिए उनके पिता ने उन्हें बोन विश्वविद्यालय में दाखिला दिलवाया । पिता की इच्छा के विरुद्ध उन्होंने बर्लिन विश्वविद्यालय से दर्शन एवं इतिहास का अध्ययन किया । जहां उन्होंने हीगल के विचारों से प्रभावित होकर ”यंग हीगेलियन” नामक संस्था की सदस्यता ग्रहण की । 1841 में जेना विश्वविद्यालय से उन्होंने डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की ।
1842 में बोन विश्वविद्यालय के प्रोफेसर न बनने पर राइनिश जाइट्रुग नामक पत्रिका के सम्पादक हो गये । इस पत्रिका के माध्यम से उन्होंने सम्पूर्ण जर्मनी में धार्मिक और सामाजिक उत्पीड़न के विरुद्ध आम जनता की आवाज उठायी । अपने क्रान्तिकारी उग्र विचारों के कारण सरकार ने उन पर नियन्त्रण लगा दिया, तो वे जर्मनी छोड़ पेरिस चले आये ।
1844 में फ्रांसीसी समाजवादी फ्रेडरिक एंजिल से उनका परिचय हुआ । फ्रांस सरकार ने भी क्रान्तिकारी विचारों के कारण अपने देश से सदा के लिए उन्हें निर्वासित कर दिया; क्योंकि उन्होंने बुनकरों का समर्थन किया था । वहां से वे ब्रुसेल्स चले आये । मार्क्स ने जेनी नामक सहपाठिनी से विवाह रचा लिया ।
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वहां से ब्रुसेल्स जाकर रहने लगे । यहीं पर ”होली फैमिली” नामक पुस्तक प्रकाशित करवायी, जिसमें भौतिक दर्शन और सर्वहारा वर्ग की सैद्धान्तिक विचारधारा के तत्वों पर व्यापकता से प्रकाश डाला गया था । मार्क्स के द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद की मूल मान्यता यह है कि इस संसार का आधार भौतिक तत्व या पदार्थ है, जो अपने आन्तरिक स्वभाव द्वारा विकसित होकर विभिन्न रूप धारण कर लेता है ।
भौतिक पदार्थ एक आन्तरिक विरोध द्वारा संचालित होता है । विकास की यह प्रक्रिया एक बिन्दु पर आकर विस्फोट करती है । यही सामाजिक परिवर्तन एवं क्रान्ति है । क्रान्ति न टाली जाने वाली सामाजिक घटना है । प्रत्येक क्रान्ति के बाद एक नयी सामाजिक व्यवस्था का जन्म होता है ।
आन्तरिक विरोध और संघर्ष द्वारा ही परिवर्तन सम्मव है । वाद, प्रतिवाद और संवाद-ये तीन अवस्थाएं द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद की हैं । कार्ल मार्क्स ने अपने साम्यवादी घोषणा-पत्र में पूंजीवाद का नाश करने का संकल्प करते हुए कहा- ”विश्व के कारीगरों और मजदूरों, एक हो जाओ ।
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तुम्हें पूंजीवाद का नाश करना है; क्योंकि तुम्हारे पास खोने के लिए गरीबी और अभाव के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है । यदि शासक वर्ग साम्यवादी क्रान्ति के नाम से थर-थर कांपता है, तो उसे कांपने दो, तुम अपने पथ पर आगे बढ़ते चले जाओ ।”
उक्त घोषणा-पत्र में मार्क्स ने यह सिद्धान्त दिये कि संसार में अशान्ति व असन्तोष का कारण गरीबों और अमीरों के बीच का वर्ग-संघर्ष ही है । अत: उत्तराधिकार की प्रथा का भी अन्त होना चाहिए । उत्पादन पर पूंजीपतियों का स्वामित्व न होकर राज्य का स्वामित्व हो । समस्त शक्ति पर मजदूरों का ही अधिकार है ।
सामाजिक व्यवस्था में समानता लाने के लिए किसान और मजदूरों में एकता होनी चाहिए । वह मजदूरों के दृढ़ संगठन को बनाकर सम्पूर्ण शक्ति और सत्ता उन्हीं के हाथ सौंपना चाहता था । सामाजिक समानता एवं आर्थिक समानता हेतु शान्तिपूर्वक क्रान्ति की जानी चाहिए ।
यदि इसके द्वारा कोई परिवर्तन नहीं होता है, तो सशस्त्र रक्तरंजित क्रान्ति शीघ्र परिवर्तन के लिए की जानी चाहिए । वह वर्गविहीन समाज की स्थापना करना चाहते थे । 1848 से 1850 के बीच उन्होंने ”वर्ग संघर्ष” नामक अपनी पुस्तक में सर्वहारा वर्ग के बारे में बहुत कुछ लिखा । 1851 से 1862 तक न्यूयार्क के ”डेली ट्रिब्यून” में अपना समय लगाया ।
1867 में उनका विश्वविख्यात ग्रन्थ ”दास केपिटल” का प्रथम ग्रन्थ प्रकाशित हुआ, जिसके द्वारा सारी दुनिया में उनकी विद्वता की धाक जम गयी । दुर्भाग्यवश उनका दास केपिटल भाग 2-3 प्रकाशित नहीं हो पाया । दास केपिटल मार्क्स की ऐसी श्रेष्ठ कृति थी, जिसके बारे में लेनिन ने लिखा है- ”यह ग्रन्थ वह मुख्य व बुनियादी रचना है, जिसमें वैज्ञानिक समाजवाद की व्याख्या की गयी है ।”
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ई० स्तेपानोवा ने मार्क्स की इस महान रचना को पूंजीवादी गुलामी के विरुद्ध सर्वहारा के वर्ग-संघर्ष का शक्तिशाली सैद्धान्तिक अस्त्र बताया । इस ग्रन्ध में मार्क्स ने सर्वहारा वर्ग के समाजवाद, ऐतिहासिक कर्तव्य के सिद्धान्त, समाजवादी क्रान्ति व उसके अधिनायकत्व की दार्शनिक एवं अर्थशास्त्रीय व्याख्या की ।
मार्क्स ने अपने जीवनकाल में कुल 13 पुस्तकें लिखी थीं, जिसमें द पॉवर्टी ऑफ फिलासफी, कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो आदि प्रसिद्ध हैं । इसके अलावा पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन भी उन्होंने किया था । मार्क्स आजीवन निर्धनता से जूझते रहे । 2 दिसम्बर 1881 को जेनी के निधन के पश्चात वे टूट से गये ।
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फेफड़े की सूजन, पुरानी खांसी की चिकित्सा करने के बाद भी उन्हें आराम न मिला । 14 मार्च 1883 को वे इस संसार को छोड़कर चले गये । उनकी मृत्यु पर सर्वहारा वर्ग रो पड़ा था । लंदन के हाईगेट नामक कब्रिस्तान में 17 मार्च 1883 को मार्क्स को दफनाया गया ।
3. उपसंहार:
वैज्ञानिक समाजवाद के संस्थापक, जन्मदाता, मेहनतकश मजदूरों, किसानों और शोषितों के मसीहा कहे जाने वाले कार्ल मार्क्स का नाग इस संसार में अमर रहेगा, जिन्होंने पूंजीवादी, वर्ग-संघर्ष, द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद, ऐतिहासिक भौतिकवाद, सामाजिक परिवर्तन पर अपने महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त दिये । वे समाजशास्त्री ही नहीं, अपितु अर्थशास्त्री और राजनीतिज्ञ भी थे ।