जोसेफ स्टालिन पर निबंध | Essay on Joseph Stalin in Hindi
1. प्रस्तावना:
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स्टालिन को रूस का ”लौह पुरुष” भी कहा जाता है । संयुक्त सोवियत समाजवादी गणतन्त्र रूस जब 1917 की क्रान्ति के बाद महाशक्ति बना, तो लेनिन की मृत्यु के बाद टाटस्की तथा स्टालिन में देश के नेतृत्व को संभालने के लिए संघर्ष हुआ, जिसमें स्टालिन को सफलता प्राप्त हुई । स्टालिन ने देश की अर्थव्यवस्था को सुधारने, अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर उसे मजबूत बनाने तथा सैनिक दृष्टि से सशक्त बनाने हेतु महत्वपूर्ण कार्य किया और संसार में उसको प्रतिष्ठित किया ।
2. जीवन वृत्त एवं उपलब्धियां:
स्टालिन का वास्तविक नाम जोसेफ विसारियोनोविच था । उसका जन्म 1879 में जार्जिया में हुआ था । उसकी आर्थिक स्थिति बचपन से खराब थी । उसके पिता उसे पादरी बनाना चाहते थे, किन्तु स्टालिन मार्क्सवादी विचारधारा से इतना प्रभावित था कि वह ”सोशल डेमोक्रेटिक” पार्टी का सदस्य बना । लेनिन की तरह ही वह अपने क्रान्तिकारी विचारों के कारण जार शासन की आंखों की किरकिरी बना हुआ था ।
इस दौरान उसे कई प्रकार की जेल-यातनाएं सहनी पड़ी । बोल्शोविक क्रान्ति में भाग लेने के कारण उसे साइबेरिया के ठण्डे प्रदेशों में कैद रखा गया । क्रान्ति के बाद उसे मुक्त कर उसकी योग्यतानुसार कम्युनिस्ट पार्टी के मन्त्री पद पर नियुक्त किया गया । लेनिन की मृत्यु के बाद स्टालिन को ही सर्वाधिक योग्य समझकर उसे नेतृत्व का भार सौंपा गया ।
टाटस्की युद्ध मन्त्री था और लेनिन का घोर समर्थक । अत: उसके प्रभाव को कम करने के लिए उस पर पार्टी विरोधी आरोप लगाकर देश से निर्वासित कर दिया गया । टाटस्की निर्वासन के बाद टर्की गया और वहां से वह अमेरिका चला गया, जहा 1940 में स्टालिन के अनुयायियों ने छुरा मारकर उसका वध कर दिया ।
स्टालिन ने शासन का भार अपने हाथ में लेते ही सर्वप्रथम पूंजीपतियों का नाश करके नयी आर्थिक नीति की घोषणा की, जिसमें देश के सभी कारखानों पर सरकार का अधिकार हो गया । मजदूरों को नकद वेतन की जगह एक प्रकार के कार्ड दिये गये, जिन्हें दिखाकर उन्हें उपयोग की वस्तुएं प्रदान की जाती थीं ।
रूस की जमीन पर राज्य का अधिकार हो गया । जमींदारों से जमीने छीन ली गयी । किसानों के पास उसके तथा उसके परिवार के पोषण जितना ही अनाज शेष रखा गया । बाकी पर सरकार का अधिकार हो गया । कृषि पर राज्य का अधिकार हो गया । कृषि कार्य राज्य का कार्य बन गया, पशु सम्पत्ति भी राज्य की हो गयी ।
इससे हुए विद्रोह को उसने थोड़े ही समय में दबा दिया । रूस में 3 प्रकार के फॉर्म बनवाये गये, जो सभी सरकार के संचालन व नियन्त्रण में थे । व्यवसायों के संचालन के लिए प्रत्येक कारखानों का वर्गीकरण उत्पादन के आधार पर किया गया, जिसे सिडिंकेट नामक संस्था के अधीन कर दिया गया । मुनाफे का निश्चित भाग राज्य सरकार को दिया जाता था । एक भाग मजदूरों की चिकित्सा व सुविधाओं पर व्यय किया जाता था ।
एक लाभ वाले उद्योग को दूसरे उद्योगों में सहयोग देने हेतु अनिवार्य किया गया । प्रत्येक कारखानों के लिए ट्रेड यूनियनें होती थीं । देश के सभी उद्योगों पर अधिकार करने के बाद स्टालिन ने कुटीर उद्योगों पर प्रतिबन्ध नहीं लगाया, ताकि साधारण मजदूर वर्ग अपनी आजीविका चला सके ।
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1928 में अन्य सुधारों के साथ-साथ स्टालिन ने देश की आर्थिक दशा सुधारने के लिए पंचवर्षीय योजनाओं की शुरुआत की, जिसमें प्रथम पंचवर्षीय योजना द्वारा कृषि द्वारा उत्पादन में वृद्धि, बांधों का निर्माण कर विद्युत् उत्पादन करना तथा उद्योग-धन्धों में इसका उपयोग करना ।
विशाल कारखानों, तेल कुओं का निर्माण, कृषि का राष्ट्रीकरण किया, सामूहिक फॉर्मों में सिनेमा और क्लबों का निर्माण नवीन सभ्यता से किसानों को परिचित कराने हेतु किया । 1933 में द्वितीय पंचवर्षीय योजना के अन्तर्गत यातायात साधनों में रेलों और सड़कों का निर्माण, व्यावसायिक केन्द्रों, व्यावसायिक नगरों तथा उद्योगों का विकास किया गया ।
यूरोपीय देशों की तुलना में आर्थिक दृष्टि और सभ्यता से पिछड़े हुए देश की दशा को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति दिलाने के लिए स्टालिन ने राष्ट्रों के प्रतिनिधियों को विदेशों में भेजा । इटली, फ्रांस और जापान से सन्धि की । शिष्टमण्डलों का विदेशों में आदान-प्रदान कर विदेशों से मैत्री सम्बन्ध स्थापित किया ।
शैक्षिक प्रगति हेतु जनता की शिक्षा के साथ-साथ रूसी भाषा की उन्नति पर विशेष ध्यान दिया गया । विद्यार्थियों के लिए छात्रवृत्ति तथा विशेष कॉलेज खोले गये । जार तथा पोप समर्थित धार्मिक सम्प्रदायों को नष्ट करके धर्मनिरपेक्ष व्यवस्था कायम की । उसकी मृत्यु 1953 में हुई ।
3. उरासंहार:
इस तरह स्टालिन ने लेनिन के बाद रूस का नवनिर्माण किया । उसको अन्तर्राष्ट्रीय जगत् में ख्याति दिलायी । रूस को एक सुदृढ़ देश बनाया । आज भी रूस अपनी नवीन साम्यवादी व्यवस्था के लिए स्टालिन का हमेशा ऋणी रहेगा । यद्यपि स्टालिन ने देश की सम्पन्नता और गौरव में वृद्धि के लिए अपनी नीतियों का कठोरतापूर्वक पालन करवाया, तथापि उसने नीतियों का निर्दयतापूर्वक दमन करवाया, जो राष्ट्रहित के लिए ही था ।