मुहम्मद बिन तुगलक पर निबंध | Essay on Muhammad bin Tughluq in Hindi
1. प्रस्तावना:
दिल्ली में खिलजी वंश के पतन के बाद तुगलक वंश का प्रारम्भ हुआ । तुगलक सुलतानों ने अपनी दृढ़ स्थायी कल्याणकारी प्रशासनिक, राज्य व्यवस्था के कारण भारतीय इतिहास में अपनी महत्त्वपूर्ण उपलब्दियां प्राप्त कीं ।
इस वंश का संस्थापर्क गयासुद्दीन तुगलक था । गयासुद्दीन योग्य, बुद्धिमान शासक होने के साथ-साथ सदगुण सम्पन्न, कुशल सेनापति था । उसका पुत्र मुहम्मद बिन तुगलक अपने पिता की मृत्यु के बाद तुगलक वंश की गद्दी पर आसीन हुआ ।
वह एक बुद्धिमान, महत्त्वाकांक्षी, दूरदर्शी, दर्शन, नीति, गणित, विज्ञान, ज्योतिष, तर्कशास्त्र, अरबी, फारसी का ज्ञाता, सहृदय, दानशील, धर्मनिरपेक्ष, न्याय परायण, राजहितैषी, परिश्रमी सुशासक था, किन्तु उसके यह गुण आवश्यकता से अधिक आदर्शवादी, हठी, सनकी, उतावलेपन, प्रमाद, धैर्य व सन्तुलन की कमी तथा अग्रगामी सोच के कारण दब से गये थे । यहां तक कि वह अपने पिता की हत्या के आरोप से बच नहीं सका । उसका व्यक्तित्व विरोधी गुणों का सम्मिश्रण था ।
2. जीवन वृत्त एवं उपलब्धियां:
मुहम्मद बिन तुगलक अपने पिता की मृत्यु के पश्चात् 1325 को राजसिंहासन पर बैठा । तुगलक ने अपने पिता के राज्यकाल में ही वारंगल तथा तिरहुत के हिन्दू शासकों का दमन करके अपनी योग्यता का परिचय दिया । खिलजी काल में भी उसने अपनी योग्यता की धाक कायम की थी ।
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सिंहासनारोहण के बाद उसने अमीरों, अधिकारियों और जनता में अपार धन मुक्त हस्त से वितरित किया । सड़कों और गलियों में सोने-चांदी के सिक्के न्योछावर किये, जिससे कि उसे पितृहंता न माना जाये । प्रान्तीय शासकों को ऊंचे पद, जागीरें दीं तथा गरीबों को उपहार दान में दिये ।
सुलतान ने शासन के प्रारम्भिक काल में राजस्थान पर विजय, खुरासान, हिमाचल प्रदेश के राज्यों, नगरकोट के राज्यों तथा कुमायूं गढ़वाल के पर्वतीय क्षेत्रों, कराचिल पर विजय प्राप्त कर अपार धन तथा अस्त्र-शस्त्र प्राप्त किये । इन युद्धों में उसे काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा ।
यह भी मान्यता है कि उसने चीन पर विजय की योजना बनाई थी । उसने दक्षिण भारत के प्रदेशों पर भी विजय प्राप्त की थी, किन्तु उसकी ये सभी विजय केवल अल्पकालीन रहीं । 1325 से 1351 के इन 26 वर्षीय शासन में उसके राज्य में खूब विद्रोह हुए, जिसे दबाने में उसका काफी समय बर्बाद हुआ ।
कठोर दण्ड योजना, दीर्घकालीन प्राकृतिक प्रकोप, करो में वृद्धि, विशाल साम्राज्य का होना, सैनिकों में असन्तोष, अमीरों की स्वार्थपरता तथा तुगलक का उग्र एवं क्रोधी होना, व्यक्ति की सही परख न होना, अकालग्रस्त प्रजा पर दोआब कर लगाना और वसूली न होने पर करदाताओं का कत्लेआम करना, राजधानी परिवर्तन करना, हठी एवं उतावलेपन एवं योजनाओं का समय से आगे होना, योग्य परामर्शदाता का अभाव यह सभी विद्रोह के कारण रहे ।
मुहम्मद बिन तुगलक ने दोआब कर में वृद्धि के बाद राजधानी परिवर्तन किया । उसने देवगिरि के किलों के अभेद्य, सुरक्षित होने तथा सामरिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण होने के कारण राजधानी बनाना चाहा । देवगिरि को दौलताबाद का नाम देकर इसे अपनी नयी राजधानी बनाया ।
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इस दौरान दिल्ली के निवासियों को सपरिवार देवगिरि जाने के लिए बाध्य किया और राजधानी परिवर्तन की योजना को क्रियान्वित करने के लिए उसने यद्यपि लोगों को राजकोष से धन दिया, सैकड़ों कि०मी० मार्ग में पक्की सड़कें बनवायीं, छायादार वृक्ष लगवाये, थोड़ी-थोड़ी दूरी पर विश्रामशालाएं बनवाकर निःशुल्क भोजन की व्यवस्था भी की, तथापि उसने इस स्थानान्तरण के दौरान आने वाली कठिनाइयों पर ध्यान नहीं दिया; क्योंकि दिल्ली के लोग अपनी मातृभूमि को छोड्कर दौलताबाद नहीं जाना चाहते थे ।
वहां की जलवायु भी उनके लिए सुखप्रद नहीं थी । खाद्य सामग्री का अभाव उन्हें सताने लगा । सुलतान ने तो दिल्ली के प्रत्येक घरों की तलाशी लेकर शेष बचे लूले, लंगड़े, अंधों को भी दौलताबाद ले जाने हेतु जबरिया गाड़ी से बांध दिया । यहां तक कि एक लंगड़े की टांग ही दौलताबाद पहुंची थी । दिल्ली इतनी निर्जन हो गयी थी कि वहां पर कुत्ते, बिल्लयां मात्र शेष रह गये थे । इस यात्रा में अपार धन-जन की हानि हुई । राजधानी परिवर्तन की यह योजना उसकी सबसे बड़ी भूल साबित हुई ।
मुहम्मद बिन तुगलक की मौलिक उपलब्धि मुद्रा नीति और उसमें किये गये सुधार एवं परिवर्तन के लिए प्रसिद्ध है । उसने विभिन्न प्रकार के नवीन सिक्कों का प्रचलन किया, जिसका निर्माण, मूल्य और अंकन विशिष्ट था । उसने दोकानी सिक्का, दीनार और अदली सिक्के तथा सोने-चांदी की छोटी मुद्राएं टंक ढलवाकर उसका प्रचलन किया । उसकी सभी मुद्राएं कलात्मक आकृति व डिजाइन के लिए प्रसिद्ध रहीं ।
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तुगलक ने सोने-चांदी के स्थान पर पीतल, तांबे, गिलट, निकल आदि से बनी हुई सांकेतिक मुद्रा का चलन प्रारम्भ किया । हल्की धातु की इन मुद्राओं का कम मूल्य होने के कारण ढाला नहीं जाता था । इन मुद्राओं का प्रचलन करके सुलतान व्यापार को व्यवस्थित करना चाहता था ।
जनता से धन प्राप्त कर राज्यकोष में वृद्धि करना चाहता था । यद्यपि मुद्रा प्रचलन का यह ढंग वैज्ञानिक था, तथापि जनता के पिछड़ेपन, अज्ञानता तथा टकसाल पर राज्य के एकाधिकार के अभाव के कारण यह योजना असफल रही, जिसके कारण राजकोष की रिक्तता तथा अन्य आर्थिक कठिनाइयां उत्पन्न हो गयीं ।
3. उपसंहार:
मुहम्मद बिन तुगलक वह प्रथम सुलतान था, जिसने उत्तर और दक्षिण भारत के दूरस्थ क्षेत्रों में राजनीतिक एकता कायम कर प्रत्यक्ष शासन किया । प्रशासन में नवीन योजनओं का सूत्रपात किया । वह धर्मनिरपेक्ष विचारधाराओं का पोषक भी रहा । उत्कृष्ट जनभावनाओं को ध्यान में रखकर वह कार्य करना चाहता था । विद्वान् और विद्यानुरागी होने के कारण वह विद्वानों का संरक्षक था । दानी और न्यायप्रिय था ।
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उसकी योजनाओं की नवीन व्याख्याओं और खोजों को ध्यान में रखकर यदि उसके कार्यों का मूल्यांकन किया जाये, तो वह एक बहुमुखी प्रतिभासम्पन्न सम्राट था, किन्तु दुर्भाग्यवश जनता की अशिक्षा, अयोग्य कर्मचारी, प्रतिकूल स्थितियों, आकस्मिक दैवीय प्रकोपों के कारण उसकी योजनाएं विफल रहीं । अपने युग से कहीं आगे की सोच रखने वाला वह एकमात्र बादशाह था । कुछ इतिहासकार उसे सनकी, मूर्ख, झक्की, पागल बादशाह कहते हैं । यह सर्वथा गलत है ।