राष्ट्रपति जाकिर हुसैन पर निबंध | Essay on President Zakir Husain in Hindi

1. प्रस्तावना:

भारत के तृतीय राष्ट्रपति डॉ० जाकिर हुसैन एक अच्छे राजनेता तथा मानवतावादी विचारधारा के व्यक्ति थे । देश के शैक्षणिक पुनरोत्थान में उनका बहुत बड़ा योगदान था ।

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गांधीवादी विचारधारा के साथ-साथ वे धर्मनिरपेक्षता के सिद्धान्तों में भी विश्वास रखते थे । वे एक योग्य शिक्षक, कुशल प्रशासक व महान शिक्षाशास्त्री थे । उन्हें ”खान” की उपाधि से भी विभूषित किया जाता है । इसका कारण वे अफगानी थे ।

2. जन्म परिचय:

डॉ० जाकिर हुसैन का जन्म 8 फरवरी सन् 1897 को हैदराबाद के सभ्रांत परिवार में हुआ था । उनकी माता का नाम नाजनीन बेगम था, जिनकी मृत्यु प्लेग की वजह से सन् 1911 में हो गयी । मां की मुत्यु के पश्चात् अपने 6 भाइयों की परवरिश उन्होंने कठिन परिस्थितियों में की । प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा इटावा से पूर्ण कर स्नातक तथा एम०ए० और कानून की शिक्षा प्राप्त करने अलीगढ़ चले गये ।

एक प्रतिभावान छात्र के साथ-साथ वे एक कुशल वक्ता भी थे । डॉ० जाकिर हुसैन ने बर्लिन यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र में एम०ए० किया । वहां से लौटने के बाद उन्होंने अलीगढ़ में जामिया मिलीया इस्लामिया नामक संस्था की स्थापना की । बाद में उन्होंने इसे दिल्ली स्थानान्तरित कर दिया । 1926 में ही उन्होंने पी०एच०डी० की डिग्री प्राप्त की और कई विश्वविद्यालयों से डी०लिट० की मानद उपाधि ग्रहण की ।

1926 से 1948 तक वे जामिया मिलिया के उपकुलपति रहे । उनके प्रशासन में यह यूनिवर्सिटी उपलब्धियों और प्रसिद्धियों की उत्तरोत्तर सीढ़ियां चढ़ती गयी । देश के विकास हेतु नैतिकता के उच्च आदर्शों को उन्होंने यहां के विद्यार्थियों को प्रदान किया । 1937 में हरीपुरा कांग्रेस सम्मेलन में बेसिक शिक्षा ड्राफ्ट के तहत हिन्दुस्तानी तालीम संघ बनाया । इस बेसिक शिक्षा नयी तालीम को उन्होंने भारतीय परिस्थितियों में व्यावहारिक रूप प्रदान किया ।

डॉ० हुसैन अलीगढ़ विश्वविद्यालय के कुलपति भी रहे । 1955 से 57 तक वे जिनेवा में सभापति और यूनेस्को के सदस्य के रूप में सम्मानित पद पर रहे । 1948 में जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें राज्यसभा का मनोनीत सदस्य बनाया । 1954 में पद्‌मविभूषण से सम्मानित हुए ।

1962 में उपराष्ट्रपति निर्वाचित हुए । 1967 में वे भारत के राष्ट्रपति बने । वे एक शिक्षक होते हुए राष्ट्रपति के सम्मानित पद की बुलन्दियों तक अपनी योग्यता और प्रतिभा से पहुंचे थे । ये बड़े ही गौरव की बात है । 1963 में भारत सरकार द्वारा उन्हें ”भारतरत्न” से सम्मानित किया गया ।

3. उनके कार्य:

डॉ० जाकिर हुसैन साहित्यप्रेमी, खेलप्रेमी, कलाप्रेमी भी थे । उन्होंने न केवल अध्यापक के रूप में शिक्षा जगत को महान उपलब्धियां दीं, वरन् एक राजनेता के रूप में धर्मनिरपेक्षता, उदार्राष्ट्रवादिता के सिद्धान्तों को व्यावहारिक रूप प्रदान किया । जीवन-भर सामाजिक, राजनीतिक कार्यों में व्यस्त रहकर भी उन्होंने कई पुस्तकें लिखीं ।

पाश्चात्य विचारकों की कई पुस्तकों का उन्होंने उर्दू में अनुवाद किया, जिसमें प्लेटो की ”रिपब्लिक”, केनन्स की ”राजनैतिक अर्थशास्त्र” प्रमुख हैं । उनकी मौलिक रचनाओं में केपेटिलिज्म, स्केल एण्ड मेथड्‌स ऑफ इकोनॉमिक्स, डी डायनामिक यूनिवर्सिटी प्रशंसनीय हैं । उनकी नैतिक बाल कहानियों में मुरगी जो अजमेर चली, अंधा घोड़ा, पूरी जो कड़ाही से निकल भागी, शहीद की अम्मा, उकाब भी प्रशंसनीय हैं ।

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डॉ० जाकिर हुसैन ने शिक्षा के क्षेत्र में अत्यन्त महत्वपूर्ण कार्य किये । वे विभिन्न राज्यों की शिक्षा कमेटी तथा विश्वविद्यालय, शिक्षा आयोग के महत्त्वपूर्ण पदों पर रहे । गांधीजी की बेसिक शिक्षा प्रणाली की वकालत करते हुए उन्होंने भारत जैसे निर्धन देश के लिए इसे प्रासंगिक बताया ।

स्वावलम्बन एवं आत्मनिर्भरता के साथ-साथ बच्चों को नैतिक शिक्षा देने में बेसिक शिक्षा प्रणाली को महत्त्वपूर्ण बताते हुए उसे लागू करवाया । डॉ० जाकिर हुसैन शिक्षा को आजीवन चलने वाली प्रक्रिया मानते थे । शिक्षा द्वारा शरीर, मन और आत्मा के साथ-साथ बालक में सामाजिक, सांस्कृतिक गुणों के विकास को ही महत्त्वपूर्ण उद्देश्य बताया ।

शिक्षा को वे एक ऐसा साधन मानते थे, जिसके द्वारा व्यक्ति का पूर्ण विकास हो । बालक ईमानदार, चरित्रवान बनें और उससे बनेगा एक आदर्श समाज और राष्ट्र । वे कोरी भौतिकता, पश्चिम के खुलेपन से सहमत नहीं थे । उन्होंने बालक की शिक्षण विधि में जॉन ड्‌यूवी की प्रोजेक्ट विधि को महत्त्व दिया । वे विद्यालय को मानवीय मूल्यों के विकास का केन्द्र मानते थे ।

एक आदर्श शिक्षक में वे विषय ज्ञान के साथ-साथ सद्व्यवहार, नैतिकता, आध्यात्मिकता, संस्कृतिनिष्ठता, धर्मनिरपेक्षता को महत्त्व देते थे । शिक्षक को विद्यार्थियों के सच्चे मित्र की तरह होना चाहिए और विद्यार्थी को उच्च नैतिकता के आदर्शों से युक्त । राष्ट्रीय एकता के विकास में शिक्षा की भूमिका को विशेष महत्त्वपूर्ण बताया ।

4. उपसंहार:

अपना सम्पूर्ण जीवन मानवता की सेवा को समर्पित करने वाले इस महान् चिन्तक नेता ने 3 मई 1969 को अपने नश्वर शरीर का त्याग कर दिया । महान् शिक्षाशास्त्री के रूप में उन्होंने शिक्षा के जिन मूल्यों एवं सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया, वो उनकी शिक्षा जगत् को अमूल्य देन है । डॉ० जाकिर हुसैन धर्मनिरपेक्षता की अद्‌भुत मिसाल थे ।

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