विपिनचन्द्र पाल पर निबन्ध | Essay on Bipin Chandra Pal in Hindi
1. प्रस्तावना:
राष्ट्रवाद के मसीहा, महान् क्रान्तिकारी विपिनचन्द्र पाल उग्रवादी राष्ट्रीयता के प्रबल समर्थक थे । भारत की राजनीति में सुरेन्द्रनाथ बैनर्जी के शिष्य के रूप में अपनी भूमिका निभाने वाले बंगाल के इस नवयुवक ने समय और परिस्थिति को समझते हुए राष्ट्रीय आन्दोलन को सही दिशा दी । बंगाल के सिलहट जिले में 1858 में एक ब्राह्मण परिवार में जन्मे इस सपूत ने बंगाल की युवा पीढ़ी के विचारों में स्वतन्त्रता के प्रति एक नया जोश पैदा किया ।
2. स्वतन्त्रता आन्दोलन में उनका योगदान:
श्री विपिनचन्द्र पाल ने भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में अपना सक्रिय योगदान दिया । लाल, बाल और पाल के रूप में उग्रवादी त्रिमूर्तियों में से ये एक थे । सन् 1887 में कांग्रेस के तीसरे अधिवेशन में आर्म्स एक्ट की कटु आलोचना की । अंग्रेज विरोधी लेख लिखकर प्रबल जनमत तैयार किया ।
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1905 में बंग-भंग के समय कई सभाओं को सम्बोधित किया । विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करते हुए तीव्र आन्दोलन चलाया । 1907 में वन्देमातरम् पत्र के माध्यम से अंग्रेज विरोधी जनमत तैयार करने पर उनके खिलाफ राजद्रोह का मुकदमा चलाकर जेल में ठूंस दिया गया । रिहा होते ही अपना आन्दोलन और तेज कर दिया ।
1908 में इंग्लैण्ड से स्वराज्य पत्रिका निकाली । इस पर प्रतिबन्ध लगने पर वे भारत लौट आये । यहां हिन्दू रिव्यू पत्र प्रारम्भ किया । वे ब्रिटिश सरकार के सामने गिड़गिड़ाने में विश्वास नहीं रखते थे । उनके क्रान्तिकारी विचारों से बंगाल की पीढ़ी उनके साथ हो ली थी । ऐसे क्रान्तिकारी का देहावसान 1932 में हुआ ।
3. उनके विचार:
श्री विपिनचन्द्र पाल उग्रवादी राष्ट्रीयता के प्रबल पक्षधर थे । 1907 में जब अरविन्द पर राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया और उन्हें गवाही के लिए बुलाया गया, तो उन्होंने इनकार करते हुए 6 मास का कारावास भोग लिया । निर्भीकता उनके विचारों की शक्ति थी । वे कहते थे- ”दासता मानवीय आत्मा के विरुद्ध है । ईश्वर ने सभी प्राणियों को स्वतन्त्र बनाया है ।”
वे स्वदेशी वस्तुओं के प्रयोग पर बल देते थे । प्राचीन भारतीय गौरव के समर्थक थे । ब्रह्म समाज के विचारों से प्रभावित होकर उन्होंने भी विधवा विवाह का समर्थन किया । स्वयं एक बाल विधवा से विवाह कर एक आदर्श प्रस्तुत किया । वे जाति, वर्ग, धर्म, सम्प्रदाय से विहीन समाज की कल्पना करते थे, जो समस्त नागरिकों को समान अधिकार व सुविधाएं प्रदान करे ।
4. उपसंहार:
विपिनचन्द्र पाल स्वतन्त्रता के लिए अपील, प्रार्थना की बजाय निर्भीकता के साथ अपनी नीतियों के पालन पर विश्वास रखते थे । उनके विचारों में ऐसा जोश था कि तत्कालीन युवा पीढ़ी उनसे प्रभावित होकर स्वतन्त्रता आन्दोलन में कूद पड़ी थी । भारत को एक सम्पन्न, स्वस्थ और आजाद राष्ट्र बनाने का उनका जो स्वप्न था, उस हेतु उन्होंने अपना जीवन समर्पित किया । इस हेतु राष्ट्र उनका सदैव ऋणी रहेगा ।