व्लादिमीर लेनिन पर निबंध | Essay on Vladimir Lenin in Hindi
1. प्रस्तावना:
निकोलोई लेनिन को ”आधुनिक रूस का जनक” कहा जाता है । लेनिन बहुत ही दूरदर्शी, प्रतिभासम्पन्न, निष्ठावान, कर्मठ, महान् क्रान्तिकारी, दर्शन और कला का आचार्य था । वह साम्यवादी विचारधारा का पोषक था । वह मार्क्स के सिद्धान्तों के आधार पर रूस में नवीन समाज का निर्माण करना चाहता था ।
रूस के इस महानायक ने कम्युनिस्ट विचारधारा के तहत नयी ”आर्थिक नीति” की घोषणा की । निरंकुश राजतन्त्र तथा पूंजीवादी व्यवस्था को समाप्त किया । अक्टूबर 1917 की बोल्शेविक क्रान्ति का सूत्रधार लेनिन ही था । उसने निरंकुश जारशाही को समाप्त कर जनता का शासन स्थापित करवाया । लेनिन ने रूस की आर्थिक दशा तथा राजनीतिक दशा में सुधार लाया ।
2. जीवन वृत्त एवं उपलब्धियां:
निकोलोई लेनिन का जन्म 23 अप्रैल 1870 ई० में सिर्म्बस्क नामक स्थान में हुआ था । उसका परिवार अभिजात्य वर्ग का था । 17 वर्ष की अवस्था में उसने काजान विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया । 1887 में उसके भाई अलेक्जेंडर को फांसी पर लटकवा दिया गया था ।
1891 में उसने पीट्सबर्ग विश्वविद्यालय से विधि-शास्त्र में उपाधि प्राप्त की और एक उग्रवादी दल का सदस्य बन गया । मार्क्सवादी विचारधारा के अनुरूप उसने मजदूरों के हितों के लिए क्रान्तिकारी संगठन बनाया । रूस के जार ने उसकी क्रान्तिकारी गतिविधियों को देखकर 1897 से 1900 तक उसे देश से निर्वासित कर दिया । उसे पकड़कर जेल में भी डाला गया था ।
उसे साइबेरिया भागना पड़ा । वहां से वह स्विटजरलैण्ड चला गया था । उसने अपने उग्रवादी विचारों को समाचार-पत्रों के माध्यम से जनता तक पहुंचाने का कार्य जारी रखा । लेनिन ने ”इस्क्रा” नामक समाचार-पत्र का सम्पादन किया, जिसके ओजपूर्ण विचार पढ़कर रूस की जनता का खून खौल उठता था । इस्क्रा के माध्यम से लेनिन ने क्रान्ति का बिगुल बजा दिया था ।
उस समय रूस में जार सम्राट निकोलस द्वितीय का निरंकुश शासन था । निरंकुश होने के साथ-साथ जार अयोग्य, रूढ़िवादी, कठोर, अदूरदर्शी, अत्याचारी था । उसकी पत्नी जर्मन थी । वह भी निरंकुश और रूढ़िवादी विचारधारा से प्रेरित थी । उसे रूसी जनता से किसी भी प्रकार का लगाव व सहानुभूति नहीं थी । वह उदारवादियों के दमन के लिए जार पर अनुचित दबाव डाला करती थी ।
दूसरी ओर जार के महल में रास्पुटिन नामक साधु का ऐसा प्रभाव था कि उसके कुचक्रों की कठपुतली जार बन गया था । एक प्रकार रास्पुटिन ही शासन चलाया करता था । आलोचना करने वाले व्यक्ति को फांसी पर लटकवा दिया जाता था । कई मनुष्यों को तो साइबेरिया तथा बर्फीले निर्जन क्षेत्रों में मरने के लिए छोड़ दिया था । भ्रष्टाचार और आतंक इतना अधिक बढ़ गया था कि जनता में भारी असन्तोष व्याप्त हो गया था ।
जमींदारी प्रथा के कारण रूस में बड़े-बड़े जागीरदारों और जमींदारों को विशेषाधिकार प्रदान किये गये थे । सम्राट की चाटुकारिता करने वाले इन जमींदारों को बड़े-बड़े सैनिक और असैनिक पदों से नवाजा गया था । वे पद और शक्ति पाकर मनमानी करते और जनता को लूटते थे । किसान की दशा अत्यन्त दयनीय थी । वे भूख से मर रहे थे ।
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दूसरी ओर अधिकारहीन होने के कारण वे विद्रोह भी नहीं कर सकते थे । औद्योगिक उत्पादन बहुत कम हो गया था । गरीबी, भूखमरी, बेकारी, कालाबाजारी, प्रथम विश्व युद्ध के अनाप-शनाप खर्चे, बुद्धिजीवियों पर अत्याचार, चर्च द्वारा अनिवार्य करों का बोझ जनता पर लादना, भ्रष्ट पादरियों का वर्चस्व, नौकरशाह तथा सेना का अयोग्य होना-ये सभी रूसी क्रान्ति के लिए प्रमुख रूप से उत्तरदायी कारण बनें ।
8 मार्च 1917 को पेट्रोग्राड में 1 लाख मजदूरों ने हड़ताल की, तो क्रुद्ध होकर जार ने ड्यूमा भंग कर दी और सैनिकों द्वारा कड़ी कार्रवाई करने को कहा । मार्च 1917 की क्रान्ति से पहले ही रूस की बोल्शोविक पार्टी भूमिगत होकर कार्य कर रही थी । 1917 की क्रान्ति के साथ ही लेनिन ने अपने कार्यों को गति प्रदान करते हुए सदस्य संख्या में बुद्धि की । उसने नारा लगाया ”सारी सत्ता सोवियतों की है ।”
लेनिन के क्रान्तिकारी, ओजस्वी भाषणों और कार्यों ने मजदूरों और जनता में नये प्राण फूंक दिये थे । 4 जुलाई 1917 को राजधानी की सड़कों पर मजदूरों सहित जनता उतर आयी । उनके शान्तिमय प्रदर्शनकारियों पर दमनात्मक कार्रवाई जार द्वारा जारी रही । चार सौ व्यक्ति मारे गये । अनेक गिरफ्तार कर लिये गये, तो कुछ को मृत्युदण्ड भी मिला । क्रान्तिकारियों को कुचलने के लिए फौजें निकल पड़ी ।
25 अक्टूबर 1917 को रूस की जनता ने ऐतिहासिक रूप से जार के शासन को समाप्त करने के लिए ”खूनी क्रान्ति” के लिए भी तैयार होकर अपना विद्रोह जारी रखा । क्रान्ति के उस रूप को देखकर सैनिक हथियार फेंककर भाग खड़े हुए । सरकारी कार्यालयों, रेलवे स्टेशनों तथा सैनिक मुख्यालयों पर लेनिन का कब्जा हो गया ।
लेनिन को सर्वेसर्वा मानकर उसको प्रधानमन्त्री बना दिया गया । 2 करोड़ जनता ने लेनिन के नेतृत्व में बोल्शोविक पार्टी को स्वीकारते हुए लेनिन को अपना नेता मान लिया । शासन की सत्ता संभालते ही लेनिन ने किसानों को सर्वप्रथम उनकी भूमि लौटाने, भूखों के लिए भोजन की व्यवस्था करवाने का कार्य शुरू किया ।
भूमि तथा उद्योगों का राष्ट्रीयकरण किया, नयी आर्थिक नीति के तहत किसानों से आवश्यकता से अधिक अनाज वसूली पर स्थगन लगा दिया, कर निर्धारण को सम्पत्ति की मात्रा के आधार पर लागू किया, गरीबों से अत्यन्त कम, अमीरों से अधिक की वसूली की और कर देने के बाद जो अनाज बकाया होता था उसे खुले बाजार में बेचने की आज्ञा दी ।
आर्थिक व्यापार से प्रतिबन्ध हटाकर लघु पैमाने पर उद्योगों की स्थापना, विदेशी पूंजीपतियों को कृषि तथा इंजीनियरिंग प्रोजेक्ट में लाभ व साझेदारी की रियायत प्रदान की, अनिवार्य श्रम की व्यवस्था को समाप्त किया, स्थिर मुद्रा प्रणाली का विकास किया । इस नयी आर्थिक नीति के द्वारा कृषि व उद्योग-धन्धों में आवश्यक सुधार आया ।
रूस एक औद्योगिक राष्ट्र बन गया । वह इतना अधिक शक्तिशाली हो गया कि द्वितीय विश्व युद्ध में जर्मनी के सामने खड़ा हो पाया । चर्च का प्रभुत्व समाप्त कर धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना, विज्ञान और तकनीकी पर आधारित उद्योग-धन्धे व सैन्य-शक्ति का गठन, सभी जातियों को भाषा और संस्कृति की रक्षा का अधिकार, रोजगार की गारन्टी दी ।
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3 मार्च 1918 को जर्मनी से सन्धि की, विदेशी हस्तक्षेप से देश को मुक्ति दिलायी, विशेष क्रान्तिकारी न्यायालय ”चेका” की स्थापना करके विरोधियों का दमन किया, 10 हजार विरोधियों को मृत्युदण्ड दिया गया, जार के समस्त परिवार को जुलाई 1918 में गोलियों से भून दिया गया । इस घटना को ”लाल आतंक” का नाम दिया गया ।
1918 में लेनिन की बोल्शोविक सरकार ने नया संविधान बनाया, जिसके अनुसार रूस को ”समाजवादी संघात्मक सोवियत गणराज्य” घोषित किया गया । इस संविधान द्वारा संघात्मक शासन प्रणाली के साथ-साथ अनेक प्रकार की स्वतन्त्रताएं दी गयीं । संविधान में यह अनिवार्य किया गया कि ”जो काम नहीं करेगा, वह खायेगा भी नहीं ।”
सैनिक सेवा को अनिवार्य घोषित किया गया । जाति, नस्ल, रंग, शिक्षा, लिंग, धार्मिक विश्वासों के भेद के बिना सोवियत के सदस्य चुने जाते थे । मताधिकार की आयु 18 वर्ष रखी गयी । प्रत्येक नगर व गांव में कार्यशील सभाओं का गठन किया गया । रूस की समस्त क्रान्ति के सर्वेसर्वा नायक निकोलोई लेनिन ने अनेक रचनात्मक कार्य अपने जीवन-भर किये ।
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21 जनवरी 1924 में 54 वर्ष की आयु में उसका निधन हो गया । लेनिन के शव को रूस में सुरक्षित रखा गया है । आज भी प्रतिवर्ष लाखों विदेशी और रूसी उसके दर्शन कर अपनी श्रद्धा प्रकट करते हैं ।
3. उपसंहार:
मार्क्स के सिद्धान्तों पर आधारित रूस में नवीन समाज का निर्माण करने वाले रूसी क्रान्ति के प्रणेता लेनिन को उसके जनकल्याण सम्बन्धी कार्यों के लिए रूस हमेशा कृतज्ञता के साथ स्मरण रखेगा ।