श्रीमती प्रतिभा पाटिल पर निबंध / Essay on Shrimati Prativa Patil in Hindi!
श्रीमती प्रतिभा देविसिंह पाटिल भारत की तेरहवीं तथा प्रथम महिला राष्ट्रपति हैं ।
उन्होंने 25 जुलाई 2007 ई. को अपना पदभार ग्रहण किया था । ऐसा पहली बार हुआ कि भारत के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर एक महिला आसीन हुईं । इससे भारतीय महिला समुदाय गौरवान्वित हुई थी । भारत ने इस धारणा को पुन: सिद्ध कर दिखाया है कि महिलाएँ किसी भी मायने में पुरुषों से गौण नहीं हैं, उन्हें भी अपनी योग्यता एवं स्त्रियोचित गुणों के आधार पर किसी भी पद पर प्रतिष्ठित होने का उतना ही अधिकार है जितना कि पुरुषों को है । आजादी की साठवीं सालगिरह पर एक महिला राष्ट्रपति का चयन सचमुच एक स्तुत्य घटना थी ।
श्रीमती प्रतिभा पाटिल का जन्म 19 दिसंबर, 1934 ई. के दिन महाराष्ट्र के जलगाँव जिले में हुआ था । इनके पिता का नाम नारायण राव था । प्रतिभा जी बाल्यकाल से ही पढ़ाई में कुशाग्र थीं तथा खेलों में भी बढ़-चढ़कर भागीदारी करती थीं । उनकी शिक्षा-दीक्षा जलगाँव के आर. आर. स्कूल से आरंभ हुई । उन्होंने जलगाँव के मूलजी जैठा कॉलेज से एम.ए. की उपाधि ग्रहण की । तत्पचात् मुंबई के लॉ कॉलेज से उन्होंने कानून की डिग्री हासिल की । शिक्षा पूर्ण कर उन्होंने जलगाँव में वकालत शुरू की । इस दौरान वे सामाजिक कार्यों में सक्रिय भागीदारी करती रहीं । उनका विवाह देवीसिंह रणसिंह शेखावत से हुआ । उनकी एक पुत्री तथा एक पुत्र है ।
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वकालत के पेशे के दौरान उन्होंने राजनीतिक कार्यों में रुचि लेनी आरंभ कर दी । 1962 ई. में 27 वर्ष की आयु में उन्होंने इंडियन नेशनल कांग्रेस के टिकट पर महाराष्ट्र विधानसभा का चुनाव लड़ा और विजय प्राप्त की । 1962 से लेकर 1985 तक वे महाराष्ट्र विधानसभा की सदस्य रहीं । वे लगातार चार बार विधानसभा की सदस्य चुनी गईं । इस दौरान उन्हें महाराष्ट्र सरकार में राज्यमंत्री और केबिनेट मंत्री बनाया गया । विभिन्न विभागों में मंत्री रहते हुए उन्होंने बहुत ईमानदारी से अपने कर्तव्यों का निर्वाह किया । तत्पश्चात वे कांग्रेस के टिकट पर राज्यसभा की सदस्या चुनी गईं । दो वर्षों तक उन्होंने राज्यसभा का उपसभापतित्व सँभाला । कुछ वर्षों तक वे महाराष्ट्र में कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष रहीं । सन् 2004 में वे राजस्थान की पहली
महिला राज्यपाल बनीं । राष्ट्रपति पद के लिए नामांकन के समय उन्होंने राज्यपाल के पद से त्यागपत्र दे दिया ।
श्रीमती प्रतिभा देवीसिंह पाटिल अपने जीवनकाल में खेलों और सामुदायिक कार्यों में बढ़-चढ़कर भाग लेती रही हैं । दिल्ली में महिलाओं के लिए हॉस्टल बनवाए नौजवानों के लिए अपने प्रयासों से इंजीनियरिंग कॉलेज की स्थापना करवाई । राष्ट्रपति के पद पर रहते हुए भी वे अपने सामाजिक सरोकारों से पीछे नहीं हटी हैं । वे बच्चों की शिक्षा की तरफ पूरी तरह से सचेष्ट हैं । ब-र्गे से मिलकर उनकी समस्याओं से अवगत होती हैं तथा सरकार को उनके कल्याण का उपाय करने का निर्देश देती हैं ।
श्रीमती पाटिल के राष्ट्रपति पद पर चयन से महिलाओं को उनसे बड़ी उम्मीदें थीं । इन उम्मीदों पर वे काफी हद तक खुरी उतरी हैं । सरकार ने पिछले वर्षों में महिलाओं और बच्चों के लिए कई उल्लेखनीय कार्य किए है । राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कार्यक्रम के जरिए ग्रामीण कामकाजी महिलाओं को रोजगार के सुनहरे अवसर प्रदान किए गए हैं । महिलाओं की शिक्षा स्वास्थ्य एवं मातृत्व के समय उन्हें सहायता उपलब्ध कराने के लिए अनेक कदम उठाए गए हैं । श्रीमती पाटिल के नेतृत्व में देश का चहुँमुखी विकास हो रहा है । भारत इस समय सबसे तेजी से विकास करने वाले देशों में से एक है । देश की आर्थिक प्रगति के लिए शीर्ष नेतृत्व द्वारा दिए गए दिशा-निर्देश बहुत मूल्यवान सिद्ध हो रहे हैं ।
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राष्ट्रपति महोदया देश को आतंकवाद, उग्रवाद जैसी समस्याओं से निबटने के लिए उपयोगी सुझाव देती रहती हैं । सन् 2008 के अंतिम दिनों में मुंबई में हुए आतंकवादी हमलों के समय उन्होंने राष्ट्र को संबल प्रदान किया । वे पीड़ित परिवार से मिलीं और घायलों को सांत्वना दी । वे राष्ट्रपति के रूप में पूरी तरह सफल रही हैं । आने वाले समय में भी देशवासियों को उनसे बहुत आशाएँ हैं । उनके काल में महिलाओं एवं बच्चों के कल्याण संबंधी कार्यक्रमों को तीव्र गति से लागू करने की आशा की जा सकती है । संसद में लंबित पड़े महिला आरक्षण बिल पर भी सबकी निगाहें टिकी हुई हैं । कितना सुखद हो कि श्रीमती पाटील के राष्ट्रपति पद पर रहते हुए ही यह बिल साकार रूप ले ले । पंद्रहवीं लोकसभा के गठन के बाद राष्ट्रपति महोदय ने अपने अभिभाषण में इसका संकेत भी दिया है । जो भी हो श्रीमती पाटिल के नेतृत्व में देश को एक नई राजनीतिक एवं सामाजिक दिशा मिलती दिखाई दे रही है । हमें अपनी प्रथम महिला राष्ट्रपति पर गर्व है ।