श्रीमती सोनिया गाँधी पर निबंध |Essay on Smt. Sonia Gandhi in Hindi!
पद, प्रतिष्ठा और धन के पीछे जबकि पूरा समाज दौड़ता है, खासकर वैसा पद जो भारत में केवल एक है और सारी सत्ता उसी पद के इर्द-गिर्द घूमती है, उसे भला कौन छोड़ सकता है !
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यह केवल त्याग नहीं, अपितु महात्याग है कि काँग्रेस अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गाँधी ने प्रधानमंत्री पद हेतु अपना चुनाव सर्व-सम्मति से होने पर भी सबों को स्तब्ध करते हुए इसे नकार दिया । नकार स्पष्ट और पक्के इरादों वाला था, गंभीर आत्मचिंतन के बाद लिया गया था, अत: कांग्रेसजनों के मनुहार और विनय के सभी प्रयास विफल हो गए । सोनिया अपने फैसले से टस से मस न हुई ।
इससे पता चलता है कि सोनिया गाँधी के विचारों में पर्याप्त दृढ़ता एवं संकल्प है जो एक नेता के जरूरी गुणों में से एक है । भारतीय जनता ने जब कांग्रेस को लोकसभा में सबसे अधिक सीटें दीं तो यही सोचकर कि श्रीमती सोनिया गाँधी प्रधानमंत्री पद पर विराजमान होंगी ।
पर लोगों को यह पता न था कि सोनिया जी पर भारतीय उदारवादी परम्परा और विशुद्धता का रंग इस हद तक चढ़ चुका है कि वे नेहरू-गाँधी की बलिदानी परंपरा को एक बार पुन: सिद्ध कर देंगी । 9 दिसंबर 1946 को ओरबेसानो, इटली में जन्मी श्रीमती सोनिया गाँधी अपने माता-पिता की दूसरी संतान थी । सोनिया के पिता एक महान भवन निर्माता ठेकेदार थे । सोनिया की आरंभिक शिक्षा इटली में ही संपन्न हुई ।
1965 ई॰ में सोनिया अंग्रेजी की पढ़ाई के लिए कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में दाखिल हुई । इसी दौर में राजीव गाँधी ट्रिनिटी कॉलेज में पढ़ रहे थे । कैम्ब्रिज में राजीव और सोनिया की भेंट एक रेस्टोरेंट में हुई और तभी से दोनों एक-दूसरे के आकर्षण में बँध गए ।
1967 ई॰ में दोनों के विवाह की सार्वजनिक घोषणा की गई तथा 1968 में बसंत पंचमी के दिन दिल्ली के सफदरजंग स्थित निवास पर यह विवाह पूर्ण हिंदू रीति से संपन्न हुआ । 1970 में पुत्र राहुल का और दो वर्ष पश्चात् पुत्री प्रियंका का जन्म हुआ । राहुल और प्रियंका दोनों ही वर्तमान समय में भारतीय राजनीति के उदीयमान सितारे हैं ।
सोनिया हालाँकि एक भारतीय से विवाह कर पूरी भारतीय बन गई थीं परंतु उन्होंने 1980 में विधिवत् भारतीय नागरिकता ग्रहण की । दुर्भाग्यवश इसी वर्ष राजीव गाँधी के भाई संजय गाँधी का निधन एक वायुयान दुर्घटना में इसी वर्ष हुआ तो राजीव राजनीति में आने के लिए विवश हुए । सोनिया ने उस समय इसका विरोध किया था । परंतु 1981 में जब-जब राजीव अमेठी लोकसभा क्षेत्र में खड़े हुए तो सोनिया ने प्रचार कार्य में भरपूर मदद की ।
1984 ई॰ में इंदिरा गाँधी की हत्या कर दी गई, और राजीव गाँधी प्रधानमंत्री बनाए गए तो उस समय भी सोनिया ने अपना विरोध जताया था । मई 1991 में राजीव गाँधी की निर्मम हत्या के बाद सोनिया जी टूट सी गईं पर हिम्मत से काम लिया ।
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उस समय कांग्रेस जन चाहते थे कि सोनिया गाँधी कांग्रेस की बागडोर सँभाले पर उन्होंने साफ इंकार कर दिया और अपना ध्यान बच्चों पर तथा सामाजिक कार्यों पर केंद्रित किया । इस दौरान कांग्रेसजनों को वे अप्रत्यक्ष रूप से निर्देश देती रहीं । कांग्रेस और गाँधी-नेहरू परिवार का कांग्रेस से कुछ नाता ही इस प्रकार का है कि जिसे तोड़ा नहीं जा सकता था । इसी मध्य सोनिया गाँधी ने राजीव गाँधी फाउंडेशन के माध्यम से भी देश के लोगों के हित के लिए कार्य किया ।
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आखिरकार 1997 ई॰ में उन्होंने कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की तथा 1998 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से प्रचार भी किया । इसी वर्ष वे कांग्रेस अध्यक्षा चुनी गईं । इस तरह उन्होंने अधिसंख्य कांग्रेसजनों की इच्छाओं का सम्मान किया । अक्तूबर 1999 में जब लोकसभा के पुन: चुनाव हुए तो सोनिया जी अमेठी और बरेली इन दो स्थानों से लोकसभा के लिए चुनी गई । इसके बाद से वे राजनीति में पूर्ण सक्रिय रहीं।
मई 2004 में संपन्न आम चुनाव में अप्रत्याशित रूप से एन. डी. ए. सरकार का पतन हो गया और सोनिया गाँधी के नेतृत्व में कांग्रेस 145 सीटों के साथ सबसे बड़े दल के रूप में उभरी । कांग्रेस ने वामपंथ, डी. एम. के., राष्ट्रीय जनता दल आदि के सहयोग से सरकार बनाने का स्पष्ट दावा पेश किया ।
कांग्रेस ने सोनिया गाँधी को निर्विरोध अपना नेता चुना और पूर्णरूपेण तय हो गया कि सोनिया गाँधी भारत की अगली प्रधानमंत्री होंगी । जनता ने सोनिया के विदेशी मूल के मुद्दे को पूरी तरह अस्वीकार कर दिया क्योंकि मन, वचन और कर्म से वे संपूर्ण भारतीय है ।
परंतु सोनिया ने शांत मन से और विनम्रतापूर्वक यह पद अस्वीकार कर दिया । कांग्रेस के नेताओं के गुहार उनके निश्चय को डगमगा न सके । पुत्र राहुल ने एक साक्षात्कार के दौरान कहा, ”यदि माँ की जगह मैं होता तो शायद इतना बड़ा फैसला न कर पाता ।” इससे बढ़कर उनकी देशभक्ति का और क्या प्रमाण हो सकता है ! आशा है भविष्य में भी वे कांग्रेस के माध्यम से देश की सेवा करती रहेंगी ।
कुछ लोग उनकी राजनीतिक योग्यता पर संदेश व्यक्त किया करते थे परंतु उनके नेतृत्व में कांग्रेस को विभिन्न चुनावों में मिली सफलता से यह संदेह भी अब गलत सिद्ध हुआ है । सोनिया गाँधी जिस तरह शुरू-शुरू में मीडिया के सामने आने से झिझकती थीं अब यह झिझक भी दूर हो चुकी है ।