सुरेन्द्रनाथ बैनर्जी पर निबन्ध | Essay on Surendranath Banerjee in Hindi

1. प्रस्तावना:

सर सुरेन्द्रनाथ बैनर्जी भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के अग्रणी तथा उदारवादी नेता थे । बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न सर सुरेन्द्रनाथ एक देशभक्त, एक प्राध्यापक, पत्रकार, लेखक, ओजस्वी वक्ता रहे हैं । प्राचीन भारतीय गौरव की रक्षा तथा देश की रक्षा के लिए बंगाल के नवयुवकों में उन्होंने जो क्रान्तिमय विचार भरे, उसके कारण वे हमारे देश के महान् व्यक्तित्वों में प्रमुख स्थान रखते हैं ।

2. उनका जन्म परिचय:

उनका जन्म सन् 1848 में कलकत्ता के उच्च बंगाली परिवार में हुआ था । उनके पिता दुर्गाचरण बैनर्जी पेशे से एक चिकित्सक थे । उन्होंने अपनी महाविद्यालयीन शिक्षा डांवटन अंग्रेजी कॉलेज से पूर्ण की । 1863 में मैट्रिक और इसके बाद इंटरमीडिएट की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की और छात्रवृत्ति प्राप्त की । अस्वस्थतावश बी०ए० की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण न करने का दुःख उन्हें था ।

उनकी प्रतिभा और लगन से प्रभावित होकर प्रधानाध्यापक ने उन्हें आई०सी०एस० की परीक्षा में सम्मिलत होने इंग्लैण्ड भेजा । सफल होने के बाद भी उन्हें आयु अधिक हो जाने के कारण कमीशन ने नौकरी पर रखने से इनकार कर दिया । कमीशन के खिलाफ की गयी लड़ाई के बाद उन्हें 1871 में सिलहट में सहायक मजिस्ट्रेट के पद पर नियुक्त किया गया ।

कमीशन ने अपनी पराजय का बदला निकालने हेतु उन पर कई झूठे आरोप लगाये, जिसकी सफाई न देने पर उन्हें 1873 में पद से पदच्युत कर दिया गया । इंग्लैण्ड में की गयी उनकी अपील पर किसी प्रकार की सुनवाई नहीं हुई । निराश होकर उन्होंने वकालत करने का निश्चय किया, किन्तु ब्रिटिश सरकार ने उन्हें वकालत के अयोग्य ठहरा दिया । सरकार की इस उपेक्षा से निराश और खिन्न होकर उन्होंने यह अनुभव किया कि उनके दुःख का कारण है-गुलामी ।

अब उन्होंने देश को स्वतन्त्र कराने का व्रत लिया । अपने अपमान का प्रतिशोध लेने के लिए उन्होंने भारतीयों को संगठित करने का निश्चय किया । सन् 1879 में ईश्वरचन्द्र विद्यासागर ने उन्हें मेट्रोपोलिटन इंस्टीट्यूट में अंग्रेजी का अध्यापक नियुक्त करा दिया, जहां पर उन्होंने विद्यार्थियों को देशभक्ति हेतु प्रेरित किया । देशहित में कार्य करते हुए इस महान् सपूत का 6 अगस्त 1925 को कलकत्ता में निधन हो गया । उनके निधन पर पूरे भारत देश में राष्ट्रीय शोक दिवस मनाया गया।

3. स्वतन्त्रता आन्दोलन में उनका योगदान:

सर बैनर्जी ने 1870 में सक्रिय राजनीति में प्रवेश लेकर शराब बन्दी आन्दोलन प्रारम्भ किया । उन्होंने इण्डियन एसोशिएशन की स्थापना कर अंग्रेज अधिकारियों की पक्षपातपूर्ण नीति का विरोध करने हेतु भारतीयों का एक संगठन बनाया, जिसका उद्देश्य जनमत निर्माण, हिन्दू-मुस्लिम एकता, सामान्य जनता की स्वतन्त्रता में भागीदारी थी । बैनर्जी भारतीय स्वतन्त्रता के कट्टर समर्थक थे । भारतीयों को स्वतन्त्रता दिलाने में यदि उन्हें कितने भी कष्ट सहने पड़े, वे सहेंगे, ऐसा उनका विचार था ।

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भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना में उनका सर्वाधिक योगदान था । वे कांग्रेस के प्रथम बम्बई के अधिवेशन में सभापति रहे । अन्य अधिवेशनों में भी सक्रिय भागीदारी निभाते हुए 1919 में उन्होंने पृथक् उदारवादी संघ की स्थापना की । सर सुरेन्द्रनाथ बैनर्जी ने ब्रिटिश सरकार द्वारा सिविल सरकार की आयु को 19 वर्ष से बढ़ाकर 2 वर्ष तक करने के लिए 24 मार्च 1877 को विराट सभा (कलकत्ता) में बुलायी । एक शिष्ट मण्डल इंग्लैण्ड भेजा ।

इस संवैधानिक आन्दोलन में बैनर्जी को यह सफलता मिली कि ब्रिटिश सरकार को इसमें संशोधन कर 21 वर्ष आयु सीमा बढ़ानी पड़ी । उन्होंने सरकार द्वारा वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट का विरोध किया । उनके विरोध से घबराकर तत्कालीन वायसराय ने एक्ट को रह करा दिया । एक पत्रकार के रूप में बंगाली समाचार-पत्र के माध्यम से ब्रिटिश सरकार के प्रति विद्रोह कर जनमानस को संगठित किया ।

4. उनके विचार:

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बैनर्जी उदारवादी राजनीतिज्ञ थे । वे मैजिनी के चारित्रिक विचारों से बहुत अधिक प्रभावित थे । राजनीति में भी उनके आदर्श वही थे । पाश्चात्य ढंग से शिक्षा प्राप्त करके भी वे भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों के प्रति आस्थावान थे । भारतीय धार्मिक ग्रन्धों के साथ-साथ उन्होंने पाश्चात्य विचारकों व चिन्तकों का अध्ययन किया और उनके नैतिक आदर्शों को अपनाने हेतु बल दिया ।

वे मानव स्वभाव को दैवीय गुणों से युक्त मानते थे । राजनीतिक दासता ही भारत की गरीबी और भूखमरी का प्रमुख कारण है, ऐसा उनका विचार था । वे बाल विवाह के विरोधी तथा विधवा विवाह, अन्तर्जातीय विवाह के समर्थक थे । विदेश यात्रा पर प्रतिबन्ध को उन्होंने अनुचित माना ।

5. उपसंहार:

श्री सुरेन्द्रनाथ बैनर्जी भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के सक्रिय कार्यकर्ता थे । ब्रिटिश सरकार की नीतियों के विरुद्ध उनके द्वारा किये गये कार्यों को सारे देशवासी सदा स्मरण रखेंगे । वे एक कुशल वक्ता, कुशल संगठनकर्ता होने के साथ-साथ राष्ट्रीय चेतना व सामाजिक चेतना के उन्नायक थे ।

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