वर्तमान समय में क्षेत्रीय दलों की भूमिका पर निबन्ध | Essay on Role of Regional Parties at the Present Time in Hindi

प्रस्तावना:

भारत एक प्रजातान्त्रिक देश है । प्रजातान्त्रिक व्यवस्था में जनता द्वारा जनता के कल्याण के लिए एवं जनता द्वारा शासन किया जाता है । प्रजातान्त्रिक शासन प्रणाली में सभी नागरिकों को यह अधिकार होता है किए उनकी आवाज को सुना जाए चाहे वे किसी भी धर्म, जाति, लिंग या क्षेत्र के हों ।

भारत में संधीय शासन प्रणाली अपनाई गई है । संघीय शासन प्रणाली में नीतियाँ एवं कार्यक्रम राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखकर बनाए जाते हैं जिसके कारण क्षेत्रीय समस्याएं या तो उपेक्षित हो जाती हैं या उन पर कम ध्यान दिया जाता है । ऐसी परिस्थिति में उन क्षेत्रीय समस्याओं या मुद्दों को आवाज देने और उन पर राष्ट्र का ध्यान आकर्षित करने के लिए क्षेत्रीय दलों का उदय होता है ।

प्रजातान्त्रिक शासन प्रणाली में क्षेत्रीय दलों की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है क्योंकि ये न केवल क्षेत्रीय समस्याएँ या मुद्दे जो उपेक्षित हैं कि तरफ देश का ध्यान आकर्षित करती हैं बल्कि उसके निवारण के लिए प्रयास भी करती हैं ।

क्षेत्रीय दलों का विकास:

भारत में क्षेत्रीय दलों का इतिहास काफी पुराना है । हमारे देश में अनेक क्षेत्रीय दली का उदय विशेष परिस्थितियों के परिणामस्वरूप हुआ है । पंजाब में 1920 से ही अकालियों की राजनीति चलती आ रही है । कश्मीर में पहले मुस्लिम कांफ्रेंस बनी जिसे बाद में नेशनल कान्फ्रेंस के नाम से जाना गया । तमिलनाडु में जस्टिस पार्टी का गठन हुआ ।

1949 व में द्रमुक पार्टी का गठन हुआ । इसके अतिरिक्त बंगला कांग्रेस, केरल कांग्रेस, उत्कल कांग्रेस जैसे कांग्रेस क्षेत्रीय दलों तथा विशाल हरियाणा पार्टी, गणतंत्र परिषद आदि का भी उदय हुआ है । ये सभी दल अलग-अलग राज्यों में प्रभावशाली है न कि किसी विशेष क्षेत्र में ।

क्षेत्रीय दलों के उदय के कारण:

भारत एक बहुभाषी, बहुजातीय, बहुक्षेत्रीय और विभिन्न धर्मों का देश है । भारत जैसे विशाल एवं विभिन्नताओं से भरे देश में क्षेत्रीय दलों के उदय के अनेक कारण हैं । पहला प्रमुख कारण जातीय, सांस्कृतिक एव भाषायी विभिन्नताएँ हैं ।

विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की अपनी समस्याएँ होती हैं जिन पर राष्ट्रीय दलों या केन्द्रीय नेताओं का ध्यान नहीं जाता परिणामस्वरूप क्षेत्रीय दलों का उदय होता है । दूसरा केन्द्र अपनी शक्तियों का प्रयोग मनमाने ढंग से करता रहा है । केन्द्र की शक्तियों कें केन्द्रीयकरण की इसी प्रवृत्ति के कारण अनेक क्षेत्रीय दलों का जन्म हुआ है ।

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तीसरा, उत्तरी भारत की प्रधानता को लेकर आशंकाएँ भी क्षेत्रीय दलों के उदय का कारण रहा है । क्षेत्रीय दलों के उदय का चौथा प्रमुख कारण कांग्रेस दल की संगठनात्मक दोष भी है । केन्द्र में कांग्रेस की स्थिति तो मजबूत थी परन्तु राज्यों में कांग्रेस संगठन विखरता जा रहा था ।

परिणामस्वरूप कांग्रेस में संगठन संबंधी फूट और कमजोरियाँ आ गई और राज्य स्तर के अनेक नेताओं ने क्षेत्रीय दलों के गठन में प्रमुख भूमिका निभाई । पाँचवा, क्षेत्रीय दलों उदय का कारण जातीय असंतोष भी रहा है । अनुसूचित जातियों, जनजातियों एवं अन्य पिछड़े वर्गो के लिए सामाजिक न्याय की माँग हेतु भी क्षेत्रीय दलों का उदय हुआ है ।

क्षेत्रीय दलों का स्वरूप:

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हमारे देश में मुख्य रूप से तीन प्रकार के क्षेत्रीय दल पाए जोते हैं । पहला वे दल जो जाति, धर्म, क्षेत्र अथवा सामुदायिक हितों का प्रतिनिधित्व करते हैं एवं उन पर आधारित हैं । ऐसे दलों में अकाली दल, द्रमुक, शिवसेना, नेशनल कांफ्रेस, क्षारखण्ड पार्टी, नागालैण्ड नेशनल डेमोक्रेटिक पार्टी आदि प्रमुख हैं । दूसरे वे दल जो किसी समस्या विशेष को लेकर राष्ट्रीय दलों विशेष रूप से कांग्रेस से पृथक होकर बने हैं ।

ऐसे दलों में बंगला कांग्रेस, केरल कांग्रेस, उत्कल कांग्रेस, विशाल हरियाणा आदि है । तीसरे प्रकार के दल वे दल हैं जो लक्ष्यों और विचारधारा के आधार पर तो राष्ट्रीय दल हैं किन्तु उनका समर्थन केवल कुछ लक्ष्यों तथा कुछ मुद्दों में केवल कुछ क्षेत्रों तक ही सीमित है । ऐसे दलों में फारवर्ड ब्लॉक मुस्लिम लीग, क्रान्तिकारी सोशलिस्ट पार्टी आदि प्रमुख हैं ।

अकाली दल एक राज्य स्तरीय दल है जिसका स्वरूप धार्मिक राजनीतिक रहा है । जब भाषा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन का प्रश्न उठा तो अकाली दल ने पंजाबी भाषा राज्य की माँग की जिसके परिणामस्वरूप 1966 में पंजाबी भाषा राज्य का गठन हुआ ।

द्रविड़ मुन्नेत्र कडगम और अन्ना द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम का गठन छुआ छुत एवं जात-पात के बन्धनों को मिटाने के लिए हुआ था । इन दोनों क्षेत्रीय दलों का उद्धेश्य है कि समाज के पिछड़े बर्गो को समान अवसर दिएजाए तथा छुआ छूत को पूरी तार समाप्त किया जाए, तमिल भाषा का एवे सस्कृति का प्रचार एवं हिन्दी के जबरनलादे जाने का विरोध किया जाए आदि बहुजन समाज पार्टी का लक्ष्य भी ब्राह्मणवाद का विरोध है, इनकी मॉग थी कि ऐसी व्यवस्था की जाये जिसमे किसी भी वर्ग या जाति के लिए आरक्षण की आवश्यकता नहीं रहे ।

मुस्लीम लीग का मुख्य उद्देश्य भारतीय मुसलमानों के हितों की रक्षा करनी है । कांग्रेस दल के कमजोर होने के कारण क्षेत्रीय एच राज्यस्तरीय दलों का महत्त्व निरन्तर बढ़ता जा रहा है ।

वर्तमान राजनीति में क्षेत्रीय दलों की भूमिका:

वर्तमान राजनीति में क्षेत्रीय दलों की भूमिका बेहद महत्त्वपूर्ण हो गई है । भारतीय राजनीति में राज्य दलों का वर्चस्व 1967 के चतुर्थ आम चुनावों के बाद से बढने लगा है और इनका प्रमुख उद्देश्य सत्ता प्राप्ति ही होता है कियोंकि ये सभी एक दूसरे को फुसलाने में व्यस्त है चाहे उनका गठन किसी भी परिस्थितियो में हुआ हो, भारतीय राजनीतिक व्यवस्था के मांडलीकरण से उभरते नए नियम जाति और सम्प्रदाय के नाम पर ध्रुवीकरण ने व्यवस्था का ढाँचा एवं विकल्पों में ही क्रान्तिकारी परिवर्तन कर दिया है ।

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आज राजनीतिक महाकुण्ड में क्षेत्रीय दलों को जो महत्त्व दिया जा रहा है उसका देश के एकात्मक संधीय ढाँचे पर गम्भीर बहुमुखी प्रभाव पड़ेगा । जब तक इनका प्रभाव क्षेत्र सम्बन्धित क्षेत्रों तक सीमित था तब तक तो ठीक था परन्तु राष्ट्रीय विचारों से रहित इन पार्टियों का राष्ट्रीय स्तर पर प्रक्षेपण भारतीय राजनीतिक व्यवस्था के लिए कोई ठोस स्वागत योग्य कदम नहीं है ।

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इसके लिए राष्ट्रीय दल ही पूरी तरह जिम्मेदार है । राजनीतिक व्यवस्था का मंडलीकरण । 1993 और 1994 के विधानसभा चुनावों में स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ा जिसमें क्षेत्रीय दलों ने सिद्ध कर दिया कि वे कांग्रेस अथवा भाजपा के पिछलगू नहीं हैं ।

क्षेत्रीय दलों को यह अच्छा मौका हाथ लगा कि वे अब इन दलों विशेषकर केन्द्र के सत्तारूढ़ दल को ब्लैकमेल करके उनसे अपनी माँगो को पूरा करा सकते हैं । क्योंकि यदि वे उनकी माँगों को पूरा नहीं करते तो वे अपना समर्थन किसी भी समय वापस ले सकते हैं ।

पूरी तरह यह जानते हुए कि राष्ट्रीय दलों का शासन उनके समर्थन पर टिका है क्षेत्रीय दलों ने न केवल हठीला रूप अपनाया बल्कि राष्ट्रीय स्थिरता की भी परदाह नहीं की, देश की राजानीति में ये क्षेत्रीय दल एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी के रूप में सामने आए हैं ।

उपसंहार:

वर्तमान राजनीतिक व्यवरथा को क्षेत्रीय दल विभिन्न प्रकार से प्रभावित कर रहे है एवं उनका महत्त्व बढ़ता जा रहा है । उनके बढ़ते हुए महत्त्व एवं भूमिका को नकारा नहीं जा सकता है । इन दलों की सफलता एवं असफलता से इनकी प्रासंगिकता मे कमी नहीं आई है । सरकार बनाने में इनकी भूमिका महत्त्वपूर्ण हो गई है तथा इनका सत्ता में शामिल होना लोकतान्त्रिक व्यवस्था के लिए उचित है ।