प्रेस की स्वतंत्रता पर निबन्ध | Essay on Freedom of the Press in Hindi!

आधुनिक युग में प्रेस को विभिन्न प्रकार के कार्यो को सम्पन्न करने का दायित्व सौंपा गया है । प्रेस का सबसे प्रमुख कार्य विश्व में घटित हो रही प्रत्येक प्रकार की घटनाओं से हमें अवगत कराना है ।

समाचारपत्र राजनीतिक, आर्थिक, शैक्षिक तथा धार्मिक और अन्य विभिन्न विषयों पर अपने दृष्टिकोण तथा विचारों को अभिव्यक्त करते हैं । इस प्रकार ये लोकमत की सर्जना, संरचना तथा लोकमत को निर्देशित करते है ।

जनता के अधिकारों तथा स्वतंत्रताओं के हनन के किसी भी प्रकार के प्रयत्न के विरूद्ध अपनी शक्तिशाली आवाज बुलन्द करके समाचार-पत्र सर्वसाधारण के लिए सर्वदा सजग, सचेत संरक्षक की भूमिका अदा करते हैं । ये जनता की माँगों तथा आकांक्षाओं को उजागर करते हैं । लोगों की शिकायतों, कठिनाइयों को प्रकाश में लाते हैं ।

समाचारपत्र अच्छे तथा पवित्र कारणों तथा उनके उपायों को सुझाते हैं । समाचारपत्र एक शिक्षक की भूमिका भी अदा करते हैं । अपने पाठकों को विश्व में प्रचलित विचारधाराओं तथा ज्ञान की विभिन्न शाखाओं से अवगत करा कर ज्ञान बढ़ाते हैं ।

ADVERTISEMENTS:

समाचारपत्र को विश्वस्त प्रकृति के कार्यो के कारण अधिक मात्रा में स्वतंत्रता का दिया जाना आवश्यक सा हो जाता है । लेकिन समाचारपत्रों को प्राय: मूलभूत अधिकारों से वंचित रखा जाता है । ग्रेट ब्रिटेन में गृह-युद्ध के दौरान विजयी सांसदों ने प्रेस पर प्रतिबन्ध लगाने प्रारम्भ किए ।

प्रेस पर लगाए इस सैंसर के प्रतिरोध में जॉन मिल्टन ने अपनी विश्व विख्यात पुस्तक ऐरोपेजीटिका (Aeroplagitica) में विचार प्रतिपादित किया है । मिल्टन ने एक जगह उद्धृत किया है, मुझे सब स्वतंत्रताओं से सर्वोच्च अपने अन्तर्विविक के अनुसार सोचने, समझने, चिन्तन की, विश्वास करने तथा निर्भीक रूप से बोलने की स्वतंत्रता दी जाए।

अन्य देशों में भी समय-समय पर प्रेस पर नियन्त्रण लगाए जाते रहे हैं । 1781 में हिकी (Hickey) के बंगाल गजट नामक भारत के प्रथम समाचारपत्र पर भी वारेन हेस्टिंग्स द्वारा प्रतिबंध लगाया गया । और इस प्रकार भारतीय समाचारपत्रों पर वह सरकारी सैंसरशिप (प्रतिबंध) निरीक्षण और कठोरता पूर्वक उस समय तक लगी रही जब तक 1835 में लार्ड मैटकाफ ने भारतीय प्रेस को सरकारी प्रतिबंध से मुक्त किया । तथापि प्रेस पर राज्य का हस्तक्षेप एकदम समाप्त नहीं किया जा सकता ।

बंगाल विभाजन तथा राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान ब्रिटिश सरकार ने प्रेस पर एक बार फिर सख्ती से प्रतिबंध थोप दिया । स्वतंत्रता के पश्चात् भी भारत में 1975 के दौरान सरकार ने संकटकाल की घोषणा करके समाचारपत्रों पर कड़े तथा कठोर सरकारी निर्देश और प्रतिबंध लगा दिए गए थे । प्रेस पर सरकार द्वारा सबसे कड़ा तथा तानाशाही प्रतिबंध नाजीवादी जर्मनी तथा फासीवादी इटली में पाया गया ।

ADVERTISEMENTS:

जर्मनी में डॉ. गोयेबल्स ने प्रेस की पूर्णरूपेण मुखबन्दी, जबानबन्दी कर दी थी । इटली में भी ठीक उसी प्रकार प्रेस की दुर्दशा हुई । रूस में भी प्रेस स्वतंत्र नहीं है । यद्यपि रूसी समाचारपत्र प्रावदा का विश्व भर में सबसे अधिक वितरण, प्रसार बताया जाता है । तानाशाही शासन के अन्तर्गत प्रेस सरकार की दास-मात्र है । सम्पादक, पत्रकार तथा अखबारनवीस सरकारी निर्देश के अनुरूप ही लिखते हैं । संक्षेपतया प्रेस अपने प्रमुख कार्य जो कि लोकमत का दर्पण है को प्रतिपादित नहीं कर सकती है ।

प्रेस अथवा समाचारपत्र प्रजातांत्रीय शासन के अन्तर्गत स्वतंत्रता से कार्य करते हैं । उदाहरणत: ब्रिटेन में प्रेस ने बड़े पैमाने पर स्वतंत्रता का पान किया है, इसलिए ब्रिटेनवासी उच्चश्रेणी की पत्रकारिता को प्राप्त कर सके हैं । तथापि अमेरिका प्रेस की सर्वाधिक स्वतंत्रता प्रदान करना है । अमेरिकी प्रेस को स्वतंत्रता संविधान द्वारा प्रदत्त है तथा सुरक्षित है । समाचारपत्रों की स्वतंत्रता भारतीय संविधान के अंतर्गत प्रेस अथवा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में निहित है जो कि नागरिकों को दिए गए मूलभूत अधिकारों में से एक है ।

अब प्रश्न उठता है कि “क्या प्रेस पूर्णरूप से स्वतंत्र हो सकती है”, इसके उत्तर में सबसे बड़ा प्रजातान्त्रिक व्यक्ति भी अबाधित ‘हाँ’ या ‘नहीं’ में अपनी राय व्यक्त नहीं करेगा । सोचने-विचारने, चिन्तन करने की पूर्ण रूप से स्वतंत्रता हो सकती है, लेकिन उन विचारों को अभिव्यक्ति करने की स्वतंत्रता निश्चित रूप से कुछ सीमाओं से बंधी हुई है ।

यदि प्रत्येक व्यक्ति को जो भी वह सोचता है अथवा अनुभव करता है उसे कहने, अभिव्यक्ति करने तथा छापने की स्वतंत्रता दे दी जाए तो संसार भर में स्पष्टत: अराजकता फैल जाएगी । ईश्वर, धर्म तथा धार्मिक व्याख्याएं, धार्मिक मत तथा व्यक्तिगत आत्म-सम्मान ऐसे पवित्र विषय है जो कि आलोचना के दायरे से बाहर है ।

ADVERTISEMENTS:

वाद-विवाद की स्वतंत्रता को स्पष्ट रूप से गाली-गलौच की स्वतंत्रता में परिणत होने की आज्ञा नहीं दी जा सकती । प्रत्येक देश धर्म निन्दा, धर्म विरूद्ध विचार, ईश्वर निन्दा तथा व्यक्तिगत मानहानि, अपमानजनक लेख को दंडित मानता है ।

प्रेस की स्वतंत्रता एक पवित्र विशेषाधिकार है लेकिन इसका सुचारू रूप से उपयोग करने के लिए बड़े धैर्य और व्यवहारकुशलता की आवश्यकता है । मानव सामान्य रूप से तीव्र मनोभावों तथा पक्षपातपूर्ण पूर्वाग्रहों के द्वारा प्रेरित तथा निर्देशित होता है इस कारण समाचारपत्र लोकमत की संरचना करने में इन त्रुटियों से स्वतंत्र नहीं हैं ।

सामान्यत: समाचारपत्र राजनैतिक दलों से संबंधित होते हैं अथवा विशाल व्यवसायिक संगठनों के द्वारा निर्देशित अथवा इनके स्वामित्वाधीन होते है तथा अन्य स्वार्थी हितों से संचालित होते हैं । समाचारपत्रों के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि वह समाचारों, विचारों तथा अन्य विषयों को दल की नीतियों के अनुरूप अथवा उन व्यक्तियों के हितों के अनुरूप, जिनके वे अधीन है, तोड़-मरोड़ कर प्रकाशित करें ।

ADVERTISEMENTS:

दलों तथा स्वार्थी गुटों की इस वकालत में अन्य बड़े संकट संशय निहित होते हैं । इसके कारण अस्वस्थ आलोचनाएं व संघर्षो की परंपरा विकसित हो जाती है । सत्यता को विभिन्न प्रकार से तोड़-मरोड़ कर पेश किया जाता है तथा निकृष्ट कारणों को सद्‌कारणों को परिधान में प्रस्तुत किया जाता है ।

प्रेस की स्वतंत्रता भी अन्य स्वतंत्रताओं की भांति एक औपचारिक सीमा में बंधी रहती है । अन्य सीमाएँ, सरकार की पक्षपातपूर्ण निन्दा से तथा अश्लील, असंयमित, अपमानजनक लेखों को छापने से अपने आपको अलग रखना तथा इनका बहिष्कार करना है । प्रमुख उद्देश्य यह है कि समाचारों की स्वतंत्रता की हम रक्षा करें तथा निष्पक्ष रूप से जनता तक सभी खबर पहुँचाए ।

Home››Press››