Here is an essay on the Indian press system especially written for school and college students in Hindi language.

भारतीय व्यवस्था का एक अंग प्रेस व्यवस्था भी है जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ मूल अधिकारों से जुड़ा है । भारत देश में प्रत्येक नागरिक को अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता है अर्थात वह अपने विचार प्रकट करने के लिए स्वतन्त्र है जिसका लाभ देश के ऐसे लोग उठाते हैं जिनको वास्तव में अभिव्यक्ति का अर्थ तक मालूम नहीं है ।

प्रेस व्यवस्था  जनता और सरकार के मध्य मध्यस्थता का कार्य करती है जिस कारण ही प्रेस व्यवस्था को मीडिया कहा जाता है जो सरकार के क्रिया कलापों को जनता तक पहुंचाने का कार्य करती है साथ ही जनता के क्रिया-कलापों को जनता व सरकार तक पहुंचाने का कार्य करती है जिससे किसी भी घटना की वास्तविकता का पता चलता है लेकिन उक्त कार्य को करने में भारतीय प्रेस व्यवस्था में भी कई कमियाँ नजर आती हैं ।

भारतीय प्रेस व्यवस्था की सबसे महत्वपूर्ण कमजोरी है कि प्रेस कार्ड जारी करने वाले छोटे-छोटे समाचार पत्र, पत्रिका जो अवैतनिक पत्रकार रखते हैं, ऐसे पत्रकार पत्रकारिता के साथ कोई अन्य व्यवसाय भी करते हैं लेकिन अवैतनिक पत्रकारिता करने वाले कुछ पत्रकारों के कारण ही समस्त पत्रकारिता समुदाय कलंकित होता है जो बहुत ही निम्न स्तर की पत्रकारिता करते हैं ऐसे पत्रकार छोटे-छोटे विवादों में सिपाहियों के साथ सौ-दो सौ रूपये की डीलिंग करते नजर आ जाते हैं ।

वैसे यह कहना तो अनुचित होगा कि समस्त अवैतनिक पत्रकार ऐसा आचरण करते हैं लेकिन यह भी कहना उचित नहीं होगा कि समस्त पत्रकार चाहे वैतनिक हो या अवैतनिक स्वच्छ आचरण व शुद्ध पत्रकारिता करते हैं ।

आदमी परिस्थितियों का नौकर है और चमकने वाली वस्तु को देखकर प्रभावित होना उसका स्वभाव है तभी तो प्रेस से जुडे हुए लोग भी भ्रष्ट आचरण करते देखे जा सकते हैं लेकिन ऐसे लोगों के आचरण का यदि विश्लेषण किया जाए तो कम ही लोग पाये जाते हैं ।

ये चंद लोग ही इस पवित्र क्रान्तिकारी व्यवसाय को कलंकित करने का कार्य कर रहे हैं । शायद ही कोई मौका ये लोग चूकते हों जब देशहित व राष्ट्रहित, समाजहित व जनहित से भी श्रेष्ठ अपना हित मानकर इस देश की सेवा करते हो ।

ये ऐसे पत्रकार होते हैं जिनसे कोई लेख तो क्या किसी समाचार लिखने की भी आशा नहीं की जा सकती, ये वास्तव में छोटे-छोटे कार्यों को कराने के लिए अधिकारियों पर प्रेस रिपोर्टर होने का दवाब बनाकर अपने कार्य कराने का कार्य करते हैं ।

इनका वास्तविक पत्रकारिता से कोई लेना-देना नहीं होता है और सच्चाई तो यहां तक है कि इनकी शैक्षिक योग्यता भी मीडिल, मैट्रिक या बहुत अधिक इन्टरमीडिएट तक होती है । ये केवल अवैतनिक रूप से पत्रकारिता करते हैं और छोटे-छोटे कार्य अधिकारियों से कराकर अपना खर्चा चलाते हैं । इसके लिए जितना अधिक जिम्मेदार ऐसे पत्रकार हैं ।

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उससे कहीं अधिक जिम्मेदार ऐसे समाचार पत्र हैं जो केवल नाम मात्र के ही समाचार पत्र हैं वैसे तो समस्त भारतवर्ष में सर्वाधिक समाचार पत्र प्रकाशित करने वाला राज्य उतर प्रदेश है लेकिन बामुश्किल हजारों की संख्या में प्रसारित होने वाले समाचार पत्र कुछ ही हैं अन्यथा ऐसे समाचार पत्र मालिकों ने इस स्वच्छ और पवित्र कलम के आंदोलन को भी अपने हित के लिए इस्तेमाल कर उसकी पवित्रता नष्ट कर दी हैं ऐसे समाचार पत्र बामुश्किल चालीस पचास कॉपी छपवाकर सभी सरकारी दफ्तरों में भिजवा देते हैं और साथ ही सूचना विभाग में भी जिससे यह सिद्ध होता है ।

अमुख समाचार पत्र प्रकाशित होता है अन्यथा सैकड़ों ऐसे समाचार पत्रों का आम जनता नाम तक भी नहीं जानती है ये समाचार पत्र एक ऐसा खेल भी खेलते हैं जिससे इस बात को और अधिक बल मिलता है कि समाचार पत्र प्रकाशित हो रहा है ये समाचार पत्र छोटे-छोटे कारोबारियों से विज्ञापन के नाम पर अच्छी कमाई कर लेते हैं उनके विज्ञापन भी समाचार पत्र में प्रकाशित होते हैं और समाचार दूसरे समाचार पत्रों से चोरी कर छाप देते हैं ।

पत्रकारिता को भारतीय संविधान के चौथे स्तम्भ के रूप में माना जाता है जिसे बहुत ही सम्मानित दृष्टि से देखा जाता है । एक प्रकार से पत्रकारिता व्यवसाय से जुड़े व्यक्ति को समाज के बुद्धिजीवी वर्ग में माना जाता है ।

तभी तो इस व्यवसाय को चौथे स्तम्भ के रूप में दर्जा प्राप्त है जो सच्चाई को सामने लाने का कार्य करता है यह सिद्ध हो चुका है कि यदि मीडिया अपना कर्त्तव्य ईमानदारी से करती है तो कुछ हद तक अवैधानिक कार्यो पर नियंत्रण करना सम्भव ही नहीं है बल्कि पूर्णत समाप्त हो जायेंगे सैकड़ों उदाहरण भारतीय मीडिया के मौजूद है जब उसकी भूमिका से अपराधी सलाखों के पीछे गये हैं ।

जब जमाखोरों का राशन बरामद हुआ है और जब मिलावट खोरों की मिलावटी खाद्य सामग्री बरामद कराने में मीडिया की ही भूमिका रही है । किसी अधिकारी के तानाशाही व्यवहार को मीडिया द्वारा प्रसारित करने के उपरान्त ऐसे अधिकारी को भी अपने व्यवहार में परिवर्तन करने पर मजबूर होना पड़ा है ।

किसी भी पुलिस कर्मचारी या अधिकारी द्वारा जनता का उत्पीड़न करने पर मीडिया की भागीदारी करने पर तुरन्त ऐसे कर्मचारी या अधिकारी को दण्डित करने पर सरकार को भी मजबूर होना पड़ा है लेकिन ये वास्तव में सच्चाई का पक्ष रखने वाले न्यायप्रिय और ईमानदार पत्रकारिता करने वाले पत्रकारों के ही कार्य हैं ।

जो पत्रकारिता को अपना व्यवसाय नहीं अपनी भक्ति मानते हैं और देशहित को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हैं । उनके लिए तुच्छ हित तुच्छ श्रेणी में ही होते हैं । वे केवल अपना कर्त्तव्य देशहित को सर्वोपरि मानकर करते हैं और कुछ ऐसे भी पत्रकार भारतीय मीडिया में मौजूद हैं जो पत्रकारिता कम करते है अधिकारियों की चापलूसी अधिक और उस चापलूसी के बल पर ही वह अपना मूल कर्त्तव्य भी भूल जाते हैं ।

मीडियाकर्मी का मूल कर्त्तव्य पूर्ण ईमानदारी से सच्चाई को जनता के सम्मुख लाना है । लेकिन ऐसे मीडियाकर्मी जो अपने मूल कर्त्तव्य से भटक कर कार्य करते हैं वे ईमानदारी से कोशों दूर और सच्चाई से मीलों दूर होकर केवल अनैतिक आचरण कर धन कमाने का कार्य करते हैं ।

जिसके लिए ऐसे मीडियाकर्मी अलग-अलग प्रकार के हथकंडे भी अपनाते हैं जो किसी भी स्तर से एक मीडियाकर्मी के कर्त्तव्य नहीं हो सकते हैं । ऐसे मीडियाकर्मी केवल चटकारेदार, गर्मागर्म समाचारों की खोज करते हैं और उन गर्मागर्म खबरों के बल पर ही अपने समाचार पत्रों की प्रसार संख्या तथा चैनल आदि की टी॰आर॰पी॰ बढ़ाने का कार्य करते हैं ।

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अधिकतर देखा जाता है कि समाचार पत्रों में या टी॰वी॰ चैनल पर ऐसी घटनाओं का प्रसारण अधिकता मे किया जाता है जिनका पत्रकारिता से दूर-दराज तक भी कोई सम्बन्ध नहीं होता है । लेकिन ऐसे समाचार प्रकाशित करने के पीछे उनका एक मात्र उद्देश्य दर्शक संख्या या पाठक संख्या बढ़ाना मात्र रहता है जैसे-जैसे भारतीय मीडिया में प्रतियोगिता बढी है वैसे-वैसे ही भारतीय मीडिया के समाचारों की गुणवत्ता भी कम होती गई है ।

देखा गया है कि प्रतियोगिता बढ़ने का सर्वाधिक प्रभाव गुणवत्ता पर पडा है और वो भी निजी समाचार चैनल या निजी समाचार पत्रों पर आमतौर पर निजी समाचार चैनल पर समाचार वाचक और रिपोर्टर कम अनुभवी होते हैं ।

जिसका प्रभाव उनकी गुणवत्ता पर भी पड़ता है यदि सरकारी समाचार चैनल के रिपोर्टर और समाचार वाचकों का प्रस्तुतीकरण किसी भी निजी समाचार चैनल के रिपोर्टर और समाचार वाचकों के प्रस्तुतीकरण की आपस में तुलना की जाये तो निश्चित रूप से गुणवत्ता का अन्तर दिखाई पड़ता है ।

जिससे पता चलता है कि निजी चैनलों की आपस की प्रतियोगिता का दुष्परिणाम मुख्यतया भारतीय जनमानुष को भुगतना पड़ रहा है जो गुणवत्तापरक कार्यक्रमों से महरूम हैं यदि गुणवत्ताविहीन कार्यक्रम की बात करें तो उसमें तो अधिकता की ओर ही अग्रसर हैं लेकिन आमतौर पर देखा जाता है कि भारतीय मीडिया की पहुंच भी अधिकतर शहरों तक व उच्च वर्ग तक ही सिमट कर रह गयी है ।

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देश की बाकी पिच्चेहत्तर प्रतिशत जनसंख्या जो ग्रामीण क्षेत्र में रहती है वहा तक भारतीय मीडिया का पहुंच पाना अभी भी नामुंकिन सा दिखता है । अन्यथा तो इस देश की तस्वीर ही कुछ अलग दिखायी देती । जब देश-विदेश में घटित घटना के विषय में ग्रामीण जनता भी जागरूक होती और उन घटनाओं पर प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिए ग्रामीण जनता भी मीडिया के सम्मुख होती और अपनी अभिव्यक्ति के लिए स्वतंत्र रूप से विचार प्रकट करती लेकिन भारतीय मीडिया का ग्रामीण जनता तक पहुंचना अभी ऐसे दुःस्वप्न के समान है जैसे चन्द्रमा पर आशियाना बनाना ।

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भारतीय लोकतंत्र में भ्रष्टाचार तानाशाही उत्पीड़न व अपराध के ग्राफ में कुछ हद तक कमी देखी जा सकती थी क्योंकि जहा की जनता जागरूक है वहा भ्रष्टाचार व उत्पीडन कम है और जहा भ्रष्टाचार व उत्पीड़न कम है वहा अपराध भी कम ही है ।

क्योंकि भारतीय व्यवस्था में एक सिद्धान्त कहें या नियम कहें या मजबूरी कहे जो पहले से ही प्रचलन में रहा है कि पैसे लेते यदि पकड़े जाओ तो ”पैसे देकर छुट जाओ” अर्थात उक्त नियम ही भारतीय व्यवस्था को चौपट कर रहा है ।

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तभी तो शायद ही कोई ऐसा नागरिक होगा जिसे भ्रष्ट आचरण करने का मौका मिले और वह भ्रष्ट आचरण न करे अर्थात करना सभी चाहते हैं लेकिन अवसर कुछ को ही मिलते हैं । तभी तो वे लोग जिन्हें अवसर नहीं मिलते वे सच्चाई समर्थक ईमानदार कहलाते हैं और जिन्हें अवसर मिल जाते हैं वे भ्रष्ट कहलाते है ।

वैसे अपवाद प्रत्येक स्थान पर मिलते हैं जो भ्रष्ट आचरण का अवसर मिलने पर भी उस अवसर का लाभ नहीं ले पाते या लेना नहीं चाहते । तभी तो भारतीय मीडिया भी ऐसे अपवादों से अनछुआ नहीं है । भारतीय मीडिया की विशेषता कहें या कार्य करने का ढंग कहें कि किसी भी छोटे से छोटे अपराधी को चंद मिन्टों में ही प्रदेश व देश स्तर का अपराधी बनाकर उसका खौफ जनता में व्याप्त हो जाता है यह सब भारतीय प्रेस व्यवस्था की ही देन कहीं जा सकती है कि छोटे से अपराधी को समाचार चैनल पर प्रसारित कर उसको कुख्यात अपराधी का दर्जा देकर उसका खौफ जनता में इस तरह हो जाता है कि वह पैशेवर अपराधी के रूप में कार्य करना शुरू कर देता है ।

भारतीय व्यवस्था के मुख्य तीन अंग है विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका तीनों के अपने-अपने कर्त्तव्य हैं तीनों को संविधान का स्तम्भ कहा जाता है । साथ ही एक चौथा स्तम्भ भी विद्यमान है जिसे मीडिया (प्रेस) कहा जाता है जो तीनों स्तम्भों की बात जनता तक पहुंचाने का कार्य करता है ।

वर्तमान परिदृश्य में जब भ्रष्टाचार चरम सीमा पर है । तब मीडिया की भूमिका और अधिक महत्वपूर्ण हो गई है हालांकि भारत में मीडिया को स्वतन्त्रता है कि वह निविर्रोध, निर्विघ्न, निष्पक्ष सच्चाई जनता तक पहुंचाये तभी तो कई मौके ऐसे आये जब मीडिया ने आगे आकर पीड़ितों को न्याय दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है ।

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जेसिका लाल हत्याकाण्ड हो, नितिश कटारा हत्याकाण्ड व प्रियदर्शनी मट्‌टू हत्याकाण्ड । जिसमें पीडितों को न्याय दिलाने में मीडिया ने ही महत्वपूर्ण भूमिका अदा की जिससे न्यायालय को भी अपने पूर्व निर्णय पर पुर्नविचार करना पड़ा । इस देश के नेताओं की सच्चाई जनता तक पहुंचाने में स्टिंग आपरेशन का सहारा लेना पड़ा ।

जिसमे मीडिया की भूमिका सराहनीय रही । बल्कि न्याय मिलने के समस्त रास्ते बन्द होने पर मीडिया ने अपने कर्त्तव्य का पालन करते हुए पीडितों को न्याय दिलाया । चाहे हरियाणा के पूर्व डी.जी.पी. एस.पी.एस. राठौर को भी सलाखों तक पहुंचाने में व पीड़ित परिवार को न्याय दिलाने में मीडिया की भूमिका रही ।

ये कहा जा सकता है कि न्यायिक व्यवस्था को चकमा देने वाले प्रभावशाली लोगों को उनके अंजाम तक पहुंचाने में मीडिया की ही भूमिका रहीं है अन्यथा ऐसे प्रभावशाली लोग कदापि अपने अंजाम तक नहीं पहुंच पाते और पीड़ित परिवार न्याय के लिए दर-दर भटकते रहते ।

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आज मीडिया के कदम की आम जनता तहे दिल से स्वागत करती रही है लेकिन मीडिया में कुछ ऐसे लोग भी घुसे हुए हैं जो अपने कर्त्तव्य का ईमानदारी से पालन नहीं करते हैं वे निचले स्तर पर अधिकारियों की चाटुकारिता करते देखे जा सकते हैं जो उन अधिकारियों की वास्तविक तस्वीर जनता तक नहीं पहुंचने देते बल्कि एक प्रकार से उन भ्रष्ट अधिकारियों के ऐजेन्ट का कार्य करते देखें जा सकते हैं अन्यथा निचले स्तर पर भ्रष्टाचार को रोकना कोई बडी बात नहीं है ऐसे कुछ चद पत्रकार, समस्त पत्रकार समुदाय को बदनाम करने का कार्य कर रहे हैं ।

मीडिया की दूसरी सबसे बड़ी कमी कहें या संसाधनों का अभाव कहें कि जहां देश की 75 प्रतिशत जनता निवास करती है वहां अर्थात ग्रामीण आंचल में अभी मीडिया की पहुंच नहीं बन पायी है जिससे ग्रामीण क्षेत्र की अधिकतर प्रतिभाएं जानकारी के अभाव में गांव में ही रह जाती हैं या यूँ कहिये कि ग्रामीण लोग आज भी जानकारी के अभाव में महाजनों और साहुकारों पर ही आश्रित हैं अगर भारतीय मीडिया की पहुंच देश के ग्रामीण क्षेत्र में हो जाती है जहां देश की 75 प्रतिशत जनता निवास करती है तो निश्चित ही इसका लाभ देश के विकास में मिलेगा जो ग्रामीण लोग जानकारी के अभाव में अपना कैरियर तय नहीं कर पाते ।

सरकारी योजनाओं का लाभ जानकारी के अभाव में उनको नहीं मिल पाता जिससे सरकार की महत्वपर्ण योजनाऐं भी अपने उद्देश्य तक नहीं पहुंच पाती और देश की अनपढ़ या कम पढ़ी लिखी जनता गुमराह होती रहती है । यहां भारतीय मीडिया का दायित्व बहुत ही महत्वपूर्ण हो जाता है कि अगर मीडिया की पहुंच देश के गांवों तक हो जाती है तो निश्चित ही उम्मीद ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि इस देश की तस्वीर बदल सकती है ।

जब पिछडे इलाकों में होने वाले विकास कार्यो का सरकार व ग्रामीणों की जानकारी का समन्वय मीडिया के माध्यम से स्थापित हो सकता है लेकिन क्या ऐसा होगा ? यह भी यक्ष प्रश्न है क्योंकि आज मीडिया किसी अनुदान से तो चलता नहीं उसके लिए चाहिए विज्ञापन और गांवों में विज्ञापन कहां से मिलेगा ।

शहरों में तो व्यापारी लोगों द्वारा विज्ञापन दिये जाते रहते हैं जिससे मीडिया को आय होती है । अब यह रणनीति बनाने का कार्य मीडिया प्रबन्धकों का है कि वे किस प्रकार गांवों तक पहुंच करते हैं या 25 प्रतिशत शहरी जनता के बल पर अपना कारोबार चलाना पसन्द करते हैं या इस दिशा में सरकार कोई ठोस रणनीति बनाती है ये तो भविष्य की ही बात होगी अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी ।

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