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अध्यापक संसार में ज्ञान का प्रकाश फैलाते हैं । वे विद्‌यार्थियों का मार्गदर्शन करते हैं । सुयोग्य अध्यापकों की सर्वत्र सराहना की जाती है । श्री विवेक शुक्ला ऐसे ही एक सुयोग्य अध्यापक हैं । वे मेरे प्रिय अध्यापक हैं ।

श्री शुक्ला हमारे कक्षा- अध्यापक हैं । वे हमें विज्ञान पढ़ाते हैं । लंबा कद ,चौड़ा माथा, माथे पर तिलक, चेहरे पर आत्म-विश्वास, शालीनता और सौम्यता उनके व्यक्तित्व में चार चाँद लगा देती है । वे अपने विषय के विद्वान हैं । उन्होंने रसायन शास्त्र में एमए की उपाधि प्राप्त की है । वे विज्ञान विषय को इतनी सहजता से पढ़ाते हैं कि सभी प्रकार की जटिलताएँ समाप्त हो जाती हैं तथा विषय आसानी से समझ में आ जाता है । वे अपनी बात उदाहरण देकर मनोरंजक शैली में प्रस्तुत करते हैं । विद्‌यार्थी एकाग्रचित्त होकर उनकी बातें सुनते हैं ।

विज्ञान को एक कठिन विषय माना जाता है । बहुत से विद्‌यार्थी इस विषय का नाम सुनकर ही घबराते हैं । परंतु श्री शुक्ला ने विद्‌यार्थियों के अंदर इस विषय के भय को पूरी तरह समाप्त कर दिया है । विद्‌यार्थी विज्ञान के विषय में अब सर्वाधिक अंक प्राप्त करते हैं । यह उनके शिक्षण का कमाल है । वे जिस अध्याय को पढ़ाना शुरू करते हैं उससे संबंधित चार्ट पहले से ही टाँग कर रख देते हैं । कक्षा में उस अध्याय का सजीव चित्रण होने लगता है । फिर वे एक-एक बात का खुलासा करते हैं । कम बुद्धि के छात्रों के लिए वे पढ़ाए गए विषय को पुन : दोहराते हैं । छात्र जो भी सवाल करते हैं उनका धैर्यपूर्वक एवं मुस्कराकर जवाब देते हैं । बीच-बीच में वे विद्‌यार्थियों के ज्ञान की परीक्षा भी करते हैं । वे विद्‌यार्थियों के अंदर वैज्ञानिक तथ्यों के प्रति जिज्ञासा उत्पन्न करते हैं ।

मेरे प्रिय अध्यापक स्वभाव से मिलनसार हैं । वे बच्चों के बीच घुल-मिल जाते हैं ।

वे बाल-मनोविज्ञान के पारखी हैं । बच्चे क्या सोचते हैं, वे क्या चाहते हैं, इन सब बातों का उन्हें भली- भांति ज्ञान है । जब वे देखते हैं कि छात्र ऊब रहे हैं तो एक मजेदार चुटकुला सुना देते हैं । कक्षा का वातावरण संजीदा हो उठता है । प्रयोगशाला में उनकी उपस्थिति विद्‌यार्थियों के लिए बहुत प्रेरणादायी होती है । वे प्रयोगों के माध्यम से हमें बताते हैं कि विज्ञान की हमारे दैनिक जीवन में कितनी सार्थकता है ।

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मेरे प्रिय अध्यापक मृदुभाषी हैं । उनकी मधुर बोली से विद्यार्थी ही नहीं, उनके सहयोगी भी प्रभावित होते हैं । विद्‌यालय में उनका बहुत सम्मान किया जाता है । विद्‌यालय की ओर से जब कभी शैक्षिक भ्रमण का कार्यक्रम आयोजित होता है वे हमेशा साथ जाते हैं । उनकी उपस्थिति मात्र से ही विद्‌यार्थी सहज और अनुशासित हो जाते हैं । वे विद्‌यार्थियों को शारीरिक दंड देने में विश्वास नहीं रखते । वे हमें कहते हैं-गलतियाँ करो नई-नई गलतियाँ करो उसी से सीखोगे लेकिन एक ही गलती को बार-बार मत दोहराओ । जो एक ही गलती को बार-बार दोहराते हैं वे मूढ़ होते हैं ।

विद्‌यार्थियों के ऊपर इस तरह के प्रेरणादायी वाक्यों का जादू का सा असर होता है ।

ऐसे आदर्श अध्यापक का आशीर्वाद पाकर किसे गर्व नहीं होगा । वे विद्‌यार्थियों के साथ किसी प्रकार का भेद- भाव नहीं करते । सबको समान दृष्टि से देखते हैं । निर्धन तथा मेधावी छात्रों को वे विद्‌यालय की ओर से उचित सहूलियतें दिलवाते हैं । वे विद्‌यार्थियों को स्वास्थ्यप्रद आदतें अपनाने के लिए प्रेरित करते हैं । कक्षा और विद्‌यालय कर सफाई पर भी उनकी दृष्टि रहती है । वे हमें सकारात्मक सोच रखने तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने के लिए प्रेरित करते रहते हैं ।

उपरोक्त गुणों के कारण श्री शुक्ला मेरे प्रिय अध्यापक हैं । मैं उनका आदर करता

हूँ । उनकी बताई बातों को मैं हृदय में धारण करता हूँ । वे भी मुझसे पुत्रवत् स्नेह रखते हैं । मुझे अपने प्रिय अध्यापक पर गर्व की अनुभूति होती है ।

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