धर्म और विज्ञान एक-दूसरे के पूरक हैं पर निबन्ध | Essay on Religion and Science are Opposite to Each Other in Hindi!

धर्म और विज्ञान मानव जीवन की एक ऐसी तराजू है, जिसके दो पलड़े, पहले को धर्म व दूसरे को अतिश्योक्ति नहीं होगी । धर्म जीवन जीने की प्रेरणा देता है, और जीवन को किस तरह जीया जाये, उसका नाम विज्ञान है ।

सुनने में थोड़ा अजीब-सा लगेगा, कि जो भी हम दिन भर करते हैं, वह हमारा धर्म है । बशर्ते कि वह सुकर्म हो, व जिसके द्वारा करते है । वह विज्ञान है धर्म व विज्ञान का परस्पर सामंजस्य भारतवर्ष के अलावा हमें विश्व में कहीं भी नहीं दिखने को मिलता है ।

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हां यह शत-प्रतिशत सत्य है कि भारत विश्व गुरु है । वर्तमान युग में विज्ञान के क्षेत्र में अधिकांश उपलब्धि भारत की ही देन है क्योंकि आज से लाखों वर्ष पूर्व जो विज्ञान भारत में था आज का विज्ञान सिर्फ उस दिशा में किया गया प्रयास भर है । यह विज्ञान हमारे यहां सतयुग, द्वापर व त्रेतायुग में अपने चरम पर था ।

फिर धीरे-धीरे कलयुग तक आते-आते यह धर्म ग्रन्थों में सीमित होकर रह गया और कुछ सदियों पर्व हमारे यहां हुए विदेशियों के आक्रमण के बाद तो ये धर्मग्रन्थ भी विदेशी लोग अपने यहां ले गये, और इसीलिए खासतौर पर यूरोपीय देशों का विज्ञान नयी ऊंचाइयों पर पहुंच गया ।

14वीं व 15वीं सदी में हमारे यहां कछ महान ऋषि-मुनि हुए, जिन्होंने अपने तपोबल के द्वारा विज्ञान की पुन: खोज की फिर उनके समक्ष यह सवाल उठा कि इस विज्ञान को आम आदमी तक कैसे पहुंचाया जाए, इसलिए फिर उन्होंने ईसे धर्म के साथ जोड़ना प्रारम्भ किया व इसके व्यावहारिक ज्ञान को बतलाया । यदि इसे धर्म के साथ नहीं जोड़ते तो लोग इसे नहीं मानते, लेकिन धर्म ही एक ऐसी सीढ़ी है, जिसके द्वारा कोई भी अपना अच्छा या बुरा स्वार्थ सिद्ध कर सकता है ।

कूछ उदाहरणों के द्वारा हम समझें कि कैसे हमारे म्‌हापुरुषों ने विज्ञान को धर्ममय बनाया । जैसे: हमारे धर्मग्रन्थों में कहा गया है, कि सुबह सोकर ब्रह्म-मूहूर्त में उठना चाहिए । ब्रह्म-मूहूर्त में उठने की वैज्ञानिक सोच यह है, कि दिन भर की कई क्रियाकलापों व प्रदूषित वातावरण के कारण हमें श्वसन सम्बन्धी रोग हो सकते हैं, इसलिए जब सुबह सूर्योदय से पहले उठकर हम अपनी दिनचर्या प्रारंभ करते हैं तो चूंकि सुबह हवा शुद्ध व प्रदूषण मुक्त होती है तथा यह आसानी से श्वसन क्रिया के माध्यम से अंदर जा सकती है । इससे श्वसन सम्बन्धी रोगों को दूर किया जा सकता है ।

सूर्योदय से पहले स्नान करना भी हमारे धर्मग्रन्थों में है, इसको भी विज्ञान स जोड़ने के पीछे वैज्ञानिक कारण हैं । रात्रि के समय जितने भी प्रदूषक होते हैं वे हमारे शरीर पर एकत्रित हो जाते हैं । इसीलिए उन्हें,जितना जल्दी हो सके हटाना अतिआवश्यक है ।

इसके पश्चात सूर्यनमस्कार, क्योंकि सूर्य की पहली किरण स्वास्थ्यवर्धक व ऊर्जामय होती है । इसलिए हमारे धर्मग्रन्थों में सूर्योदय से पहले स्नान व फिर सूर्यनमस्कार करना बताया गया है । व इसके साथ-साथ कुछ योगासन भी बताए गए हैं जो सूर्यनमस्कार में करने होते है ।

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इसी तरह, चन्दन व सिन्दूर का टीका लगाना है । इसका वैज्ञानिक कारण यह है कि हमारी दोनों आंखों के मध्य पीनीयल ग्रन्थी रहती है । व इसके थोड़ा पीछे पीटयूटरी ग्रन्थी होती है जोकि मास्टरग्रन्थी भी कहलाती है । सिन्दूर और चन्दन का टीका लगाने से यह सक्रिय हो जाती है । चूंकि चन्दन ठण्डी प्रवृत्ति के लोगों के लिए तथा सिन्दूर गर्म प्रवृत्ति के लोगों के लिए लाभदायक होते है ।

इसी प्रकार घरों में दीपक जलाना भी धर्मग्रन्थों में वर्णित है । इस विज्ञान को भी धर्म के साथ जोड़ने का तात्पर्य यह है कि जितने भी हानिकारक सूक्ष्मजीव हैं, वे सभी लौ की तरफ आकर्षित होते हैं सम्पर्क में आकर भस्म हो जाते है । ऐसे अनेक कारण हैं जिन्हें धर्म के साथ जोड़कर हमारे ऋषिमुनियों ने विज्ञान हमें सौंपा है ।

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इसी प्रकार हमारे यहां उस समय उन्नत प्रौद्द्योगिकी थी । सतयुग में (लाखों वर्ष पूर्व) हमारे यहां वायुयान बन गए थे । जो आजकल के वायुयानों से कई मायनों में उन्नत थे जोकि हमारे धर्मग्रन्थ रामायण में पुष्पक विमान के नाम से वर्णित हैं ।

रामायण काल में भगवान श्रीराम ने श्रीलंका जाने के लिए पुल का निर्माण करवाया था, जो कि आज की अभियान्त्रिकी से कई गुना विकसित थी । इस पुल के बारे में नासा द्वारा लिए गए चित्रों में स्पष्ट संकेत है, कि यह पुल 30 किलोमीटर लम्बा व 17 लाख वर्ष पुराना है जो कि रामायणकालीन बताया गया है जिसका नाम ‘एडम्सब्रिज’ रखा गया है ।

विज्ञान का क्षेत्र बहुत विस्तृत है, चाहे वह सामाजिक विज्ञान, राजनीति विज्ञान या जीवन विज्ञान ही क्यों न हो । ऐसे कई प्रकार और विज्ञान हमारे दैनिक जीवन के धर्मों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है । यदि इस विज्ञान को सुव्यवस्थित ढंग से संवारकर जीव-जगत के कल्याण के उपयोग में लाया जाये तो यह धर्म बन जाते है । कुछ व्यक्ति या संगठन धर्म के नाम पर अपने कुकृत्यों को सही ठहराते हैं जिसे किसी भी तरह सही नहीं ठहराया जा सकता ।

माना कि व्यक्ति जिस जगह रहता है, वहां के वातावरण व वहां की सांस्कृतिक रीतिरिवाज, पूजापाठ, सामाजिक बन्धनों में वह बन्धा रहता है । लेकिन, इन सब को एक अलग धर्म का नाम दे देना व इसे वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अलग करके देखना यथार्थ नहीं है । कोई सम्प्रदाय इसके लिए, इसे ही सबकुछ समझकर जिये मरे यह उचित नहीं है । वैज्ञानिक सोच में तो धर्म का अर्थ ही अलग है । धर्म को इस परिभाषा में जीव जगत के समस्त प्राणियों के कल्याण की कामना की गयी है ।

हमारे युगपुरुषों जैसे: विवेकानंद व राजा राममोहन राय आदि ने समय-समय पर हमें धर्ममय विज्ञान से साक्षात्कार करवाया है । अंत में इतना ही कि विज्ञान हमें विकास की राह पर ले जाकर विकास से हमारा साक्षात्कार कराता है । सदकर्मों के माध्यम से विकास की ओर आरुढ़ होना तथा चलना हमारा धर्म है ।

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