हमारे विद्यालय का चपरासी | Our School Peon in Hindi!

चपरासी चतुर्थ श्रेणी का कर्मचारी होता है । उस का कार्य संस्था या कार्यालय के अधिकारियों के आदेशों को कर्मचारियों तक पहुंचाना होता है । अन्य विद्यालयों की भांति हमारे विद्यालय में भी नरबहादुर नामक चपरासी है । वह नेपाल का मूल निवासी है ।

उस का कद पांच फीट है, परन्तु उस का शरीर बड़ा गठीला है । वह गौर वर्ण का सुन्दर स्वस्थ नवयुवक है । उसने आठवीं कक्षा तक शिक्षा पाई है । नरबहादुर की आयु लगभग तीस वर्ष है । वह विवाहित है । उसके दै बच्चे है । उसकी पत्नी और बच्चे उसके माता-पिता के साथ नेपाल में ही रहते हैं । नरबहादुर को विद्यालय में एक छोटा सा कमरा मिला हुआ है । वह यहीं रहता है और अपना भोजन स्वयं बनाता है ।

नरबहादुर की अनेक उत्तरदायित्वों का निर्वाह करना पड़ता है । स्कूल बंद होने पर वह चौकीदार का कार्य करता है । प्रात: काल स्कूल प्रारम्भ होने से पूर्व वह प्रधानाचार्य के कार्यालय की सफाई करता है । मेज पर कपड़ा मारता है । फूलदान को धोकर रखता है । इसके पश्चात् विद्यालय के कार्यालय की सफाई करता है ।

यह सब कार्य वह विद्यालय प्रारम्भ होने से दस मिनट पूर्व पूरा कर लेता है । तत्पश्चात् अपनी वर्दी पहनकर स्कूल के मुख्यद्वार पर पहुँच जाता है । खाकी पैंट कमीज और काली टोपी में वह गोरखा पलटन का जवान-सा लगता है ।

प्रधानाचार्य के आते ही वह उनका बैग लेकर कार्यालय में रखता हें और आने वाले आगन्तुकों को बाहर व्यवस्थित ढंग से बैठाता है । प्रधानाचार्य की अनुमति मिलने पर एक-एक को क्रम से उनके कार्यालय में भेजता है । वह प्रधानाचार्य के आदेशों का अध्यापक तक पहुँचाता है । पीरियड पूरा होने पर घंटी भी वही बजाता है । प्रधानाचार्य के लिए चाय-पानी की व्यवस्था करना भी उसी का काम है ।

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नरबहादुर अत्यंत आज्ञाकारी और विनम्र है । वह प्रत्येक कर्मचारी से ‘जी साहब’ कह कर बात करता है । वह बच्चों से बड़ा प्यार करता है । एक बार जब विद्यालय में मेरी तबीयत खराब हो गई थी, तब वह ही रिका में बैठाकर मुझे घर छोड़ गया था ।

यद्यपि उस का वेतन बहुत कम है तथापि वह खुश रहता है । विद्यालय के प्रांगण में र्क्वाटरों में रहने वाले अध्यापकों का कुछ काम कर के वह सौ-पचास रुपये और कमा लेता है । वह अपने वेतन का अधिकांश भाग अपने माता-पिता तथा बच्चों के लिए घर भेज देता है ।

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नरबहादुर कर्त्तव्य परायण होने के साथ-साथ ईमानदार भी है । यदि उसे किसी विद्यार्थी या अध्यापक का खोया हुआ सामान मिल जाता है, तो वह उसे कार्यालय में जमा करा देता है । एक बार एक महिला जो अपने बच्चे को विद्यालय छोड़ने आई थी । अपना पर्स छोड़ गई ।

घर पहुँचने पर उन्हें संभवत: अपनी भूल याद आई । वे सीधी नरबहादुर के पास पहुँची । उन्हें उस पर संदेह था । परन्तु वह तो पहले ही प्रधानाचार्य के पास पर्स जमा करा चुका था । बाद में उन्हें अपनी भूल का एहसास हुआ ।

उन्होंने नरबहादुर को दस रुपये इनाम देने चाहे पर उसने ”यह तो हमारा फर्ज था” कहकर इनाम लेने से मना कर दिया । हमारे प्रधानाचार्य, अध्यापक और छात्र सभी उसे बहुत चाहते हैं । निश्चय ही वह बड़ा भला आदमी है ।

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