विज्ञान और साहित्य पर निबन्ध | Essay on Science and Literature in Hindi!

अग्रेंज विद्वान फ्रांसिस बेकन के साहित्यिक क्षितिज पर प्रकट होने के फलस्वरूप यूरोप का बौद्धिक विवेक जागृत हुआ और उसी के प्रयत्नों ने भौतिकशास्त्र के विद्वानों के परम वास्तविक स्वरूप से हमें अवगत कराया । इंगलैंड में औद्योगिक क्रांति विज्ञान का पहला महानतम उपहार था ।

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इसके पश्चात् के आश्चर्य मानवीय सभ्यता के प्राय: सभी पहलुओं को प्रभावित करते हुए अकल्पित रूपों में तीव्रता से बढ़ते जा रहे हैं । यहाँ तक कि विज्ञान की प्रगति से साहित्य भी अछूता नहीं रहा है । साहित्य का संबंध मानवीय भाव-संवेदनाओं तथा समाज के उन्नतिपरक विकास से होता है ।

लेकिन साथ ही उसका संबंध तर्क से भी होता है जो उसे सजीवता एवं सशक्तता प्रदान करता है, इसी संदर्भ में विचारक साहित्य के विज्ञान के साथ संबंध को सिद्ध करते हैं । परन्तु ऐसा नही मान लेना चाहिए कि सिर्फ इसी मत पर साहित्य का वर्णन किया जाता है सामाजिक जीवन अभी भी इन विद्वानों के तर्क की सीमा से काफी दूर है ।

वैज्ञानिक कल्पना अपवाद के रूप में प्रचलित वैज्ञानिक सिद्धांतों पर टिकी है और आधुनिक साहित्य के बहुत छोटे हिस्से से संबंध है बाकी का सारा मुख्य साहित्य वैज्ञानिक नहीं है । ऐसा इसलिए है क्योंकि यह विश्व पूर्ण रूप से भौतिक विज्ञान का विश्व नहीं है । यह विश्व लालसाओं, मानवीय आकांक्षाओं, मानवीय मूल्यों व मानवीय कल्पनाओं से भी ओत-प्रोत है । भौतिक विज्ञानों के अपवर्जक संवर्धन से मानवीय विकास में ऐसा कोई गंभीर योगदान नहीं मिला है ।

विज्ञान के कड़े नियमों का अनुराग और निष्ठा, मित्रता, सौन्दर्य शास्त्र के अनुभवों वेदना और हर्ष की भावनाओं, बुद्धि और मनोवृत्ति, खुशी और करूणा, उदारता, प्रतिष्ठा, आत्म-सम्मान, मृदुता, सहानुभूति, शिष्टाचार की बहुलता, उत्तेजना व लगनशीलता आदि का कोई भी मूल्य नही हैं । पूर्ण रूप से विज्ञान केवल साधारण ज्ञान का सम्मिश्रण मात्र है । लेकिन साधारण चेतना स्वयं मै बहुत ही परमावश्यक तत्वों से संबंध रखती है, जो की भौतिक विज्ञानों के रिक्त तथ्यों की परिधि से बाहर है ।

साहित्य समाज का दर्पण है ऐसा बहुधा कहा जाता है । यह समय की सीमा में सभी प्रचलित और अप्रचलित विचारों और अवधारणाओं को प्रभावित करता है और इनमें सन्तुलन बनाए रखने की कोशिश करता है । इसके विपरीत विज्ञान सत्य को पाने के लिए कुछ लक्ष्य प्रस्थापित करता है । इसके तरीके बहुत ही सुव्यवस्थित रीति से एक-दूसरे से सन्तुलन बनाए रखते हैं ।

विज्ञान उन सभी मनोवृत्ति के तरीकों को जुटाता है जो कि सारभूत रूप में संवेदनाओं और मनोभावों के विपरीति है और जिन्हें हमारे जीवन को आकार रूप देने में एक लंबी दूरी को तय करना पड़ा है और जिन्हें वे साहित्य से जुटा पाए है । इसलिए साहित्य युग की मानसिक प्रवृति का वर्णन करता है । इसमें विज्ञान और मनोविज्ञान की उपलब्धियाँ और उनका स्वरूप अभी भी विचारधीन है ।

भावों, स्वप्नों और आत्मा के कार्य-कलापों के बाद हम उस समय को ले सकते हैं जब आवश्यकता को मद्देनजर रखते हुए अभिप्रायों को काल्पनिक रूप में लिया जाने लगा है और शैली बहुत ही सूक्ष्म बन गई । इस प्रकार नैतिक मान्यताएं अवरूद्ध सी हो गई हैं । इस वैज्ञानिक युग में विज्ञान का साहित्यिक प्रेरणाओं पर काफी प्रभाव पड़ा है ।

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सामान्य व्यक्ति हमेशा अपने भैतिक सुखों की प्राप्ति में लिप्त व उनसे संबंधित मात्र दिखता है । व्यक्ति की खुशियों और दु:खों पर साहित्य का भी प्रभाव पड़ता है । विज्ञान साहित्य का ऐसा मिला-जुला ढंग उस साहित्य के सृजन में सहायक होता है जो पूर्णत: भौतिकवादी होता है तथा शुद्ध कला का निर्माण नहीं करता ।

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जैसा कि सर्वविदित है कि 16वीं शताब्दी से धर्म और कला के साथ-साथ विज्ञान प्रतिस्पर्धा शक्ति के रूप में विकसित हो रहा है । 18वीं शताब्दी के मध्य में प्रत्येक शिक्षित व्यक्ति के मस्तिष्क में इसने विशेषाधिकार की इच्छा जागृत की । अनुमानत: 19वीं शताब्दी के मध्य बौद्धिक व्यक्तियौं में मौलिक स्थान प्राप्ति की दृष्टि से औसत व्यक्तियों के पूर्व व्यवसाय के रूप में यह दृष्टिगोचर हुआ ।

इसने अपनी उपस्थिति का मान भौतिक विश्व में अपने प्रयोगों द्वारा दिखाया, उस एकीय विचार से दिखाया जिसको इसने शिक्षा की विभिन्न शाखाओं के ससंख्य अन्वेषकों को प्रदान किया और भविष्य में और सुदृढ रूपों में प्रदान करने का वायदा किया । तर्कसंगत चिंतन की शक्ति और सन्तुष्टि इसी ने प्रदान की । यह सर्वोच्च शासन को इस नए युग में अधिकार में किए हुए है । उत्पादन को उन्नति में इसने सहायता प्रदान की और इस सहायता के आयामों को आगे बढ़ाया है ।

यह अप्रत्यक्ष अथवा प्रत्यक्ष रूप से प्रवृतियों की सीमाओं में रखते हुए युग साहित्य को एक नए सांचे में ढालता है । लेकिन इसका आशय यह नहीं समझ लेना चाहिए कि सिर्फ यही विचारधारा युग साहित्य का वर्णन कर सकती है । इससे बहुत दूर वर्तमान खंड परिरक्षा के सिद्धांत पर इसका बहुत विशाल प्रभाव पड़ा है और काफी शक्तिशाली रूप में ग्रहण किया गया है ।

विज्ञान का साहित्य की भाषा पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है, जिससे वह सुस्पष्ट, सीधी, आसान और संक्षिप्त हो गई है । भाषा की इस सरलता और सादगी से प्रत्येक व्यक्ति खुश है । घुमा-फिरा कर कही बातों तथा विवरणात्मक भाषा को कोई स्वीकार नहीं करता । लंबे-चौड़े विवरण लोगों के लिए असहनीय होते हैं ।

इस तरह साहित्य में वैज्ञानिकता का समावेश हुआ और साहित्य का विकास वैज्ञानिक तकनीक की प्रगति और साहित्य में इसके पदार्पण संभव हो पाया है । माधुर्य और शौकीनमिजाजी की प्रस्तावनाओं को बहुतायत से छोड़ा जा रहा है । इस प्रकार साहित्यिक गतिविधियों पर विज्ञान का महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है ।

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