क्या विज्ञान मात्र प्रौद्योगिकी का दास है? (निबन्ध) | Essay on Should Science Be Only the Handmaid of Technology? in Hindi!
पिछले कई वर्षों से समाज में विज्ञान और वैज्ञानिकों तथा तकनीक और तकनीशियनों की भूमिका के संबंध में बहुत कुछ कहा गया है । पाश्चात्य वैज्ञानिकों ने दोनों ही क्षेत्रों में पर्याप्त उन्नति कर ली है, उनका विचार है कि विज्ञान प्रौद्योगिकी का सहायक मात्र नहीं है ।
यह सच है कि विज्ञान की उपयोगिता का लाभ सर्वसाधारण तक नहीं पहुँचता यदि प्रौद्योगिकी की सहायता से इसे सर्वसुलभ नहीं बनाया जाता । लेकिन इससे मानव कल्याण में सहायक विज्ञान की महत्ता किसी भी प्रकार से कम नहीं होती है । एडीसन ने जब तारलेखी का आविष्कार किया था, तब उन्होंने तकनीक की सहायता से विकसित उपकरणों और तकनीशियनों द्वारा किए उन्नत सुधारों की कल्पना भी नहीं की होगी ।
लेकिन तकनीशियनों को प्रेरणा एडीसन के आविष्कार से ही मिली थी । सभी वैज्ञानिक आविष्कारों के बारे में यह कहा जा सकता है । आज प्रत्येक वैज्ञानिक आविष्कार का रूप पहले जैसा नहीं है, उसमें सुधार आ गया है । वैज्ञानिकों में प्रकृत्ति के रहस्यों के प्रति बाल-सुलभ जिज्ञासा और आश्चर्य की भावना होती है ।
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तकनीशियनों का कार्य तकनीकों को समस्त मानव जाति को उपलब्ध कराना है । वैज्ञानिकों ने बिना किसी पूर्वज्ञान के सहज प्रतिभा के माध्यम से ज्ञान का सृजन किया और तकनीशियनों ने उस ज्ञान को व्यवहारिक रूप प्रदान किया । इन दोनों के समन्वित प्रयास से ही मानव के कठिन जीवन की राह मिली ।
अत: मानव के उपयोग के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी दोनों का समान महत्व है । प्रौद्योगिकी इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसी की सहायता से मनुष्य को विज्ञान के लाभ प्राप्त हुए । विज्ञान को सर्वसाधारण के लिए सुलभ बनाने और वैज्ञानिक अनुसंधानों में लगे खर्च की वापसी प्रौद्योगिकी से प्राप्त आर्थिक लाभ द्वारा होती है।
लेकिन ये तर्क विज्ञान प्रौद्योगिकी का दास मात्र है, को पुष्ट नहीं करते है । अथवा, दूसरे शब्दों में, वैज्ञानिक अनुसंधानों का व्यवहारिक महत्व ही अधिक है । इस प्रश्न का उत्तर वैज्ञानिक अनुसंधानों पर लगी धनराशि के प्रति हमारे दृष्टिकोण पर निर्भर करता है ।
यदि वैज्ञानिक अनुसंधानों पर लगी धनराशि को हम खर्च मानते हैं, तो हम देर से मिलने वाले लाभों या अवित्तीय वापसी पर प्रसन्न नहीं होंगे । लेकिन यह ठीक नही हैं, प्रत्येक व्यक्ति अपने श्रम का फल प्राप्त करना चाहता है, वैज्ञानिक भी अपने अनुसंधान से व्यवहारिक निष्कर्ष प्राप्त करना चाहता है, लेकिन यह उसका मुख्य उद्देश्य नहीं होता । सीमाओं में बंध कर कोई अनुसंधान सफल नहीं होगा । बंधनों के कारण सबसे बुरा प्रभाव वैज्ञानिक भावना पर पड़ेगा । दबाव में पड़कर उनकी सहजता का नाश हो हैं जाएगा ।
यह संकीर्ण दृष्टिकोण व्यवहारिक कार्य के महत्व को कम करने का अनुमोदन करता है । यह विज्ञान के ऊपर प्रौद्योगिकी के पक्ष का समर्थन करता है । विकासशील देशों के पास वैज्ञानिक अनुसंधानों पर व्यय करने के लिए पर्याप्त धनराशि की कमी होती हैं ।
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उन्हें कुछ सुविधाएं भी उपलब्ध होती हैं पर कुछ लोग उन्हें याद दिलाते रहते हैं कि उन पर (विज्ञान पर नहीं) किया जाने वाला खर्च व्यर्थ और अनुत्पादक है । इस प्रकार की प्रवृत्ति से ‘प्रतिभा पलायन’ की स्थिति उत्पन्न होती है ।
यदि वैज्ञानिक इन परिस्थितियों से तंग आकर विदेशों में जाकर अनुसंधान का निर्णय लेता है तो उसे देश-विरोधी करार कर दिया जाता है । लकिन वैज्ञानिक का कार्य उसके लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण है । जहाँ उसका कार्य बिना किसी रुकावट के होगा, वही वह अपना जीवन सार्थक समझता हैं । कई तकनीशियन जो अपने देश की बजाय विदेश में व्यवसायिक प्रशिक्षण के लिए चले जाते हैं, उनके संबंध में तो हम ऐसा नहीं कहते हैं ।
लेकिन यदि हम वैज्ञानिक अनुसंधानों को दीर्घसूत्री राष्ट्रीय निवेश के रूप में ग्रहण करते है तथा उन पर और अधिक धन लगाने के विचार का समर्थन करते हैं तो हमारा दृष्टिकोण सही है । अर्थशास्त्री और प्रशासक इसे जोखिम मान सकते है । आम आदमी के अनुसार यह एक जुआ है, जिसमें जीत और हार अनिश्चित होते हैं ।
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लेकिन उचित व्यक्ति और उद्देश्य पर लगाया गया धन एक-न-एक दिन अवश्य सार्थक होगा । इंजीनियरिंग और रासायनिक एवं चिकित्सा संबन्धी वस्तुओं के उत्पादन में संलग्न यूरोपियन और अमेरिकन उत्पादक इसके उदाहरण हैं । अपने क्षेत्रों में नवीनतम अनुसंधान ही इनका उद्देश्य होता है अत: ये अपने वैज्ञानिकों को प्रयोगशालाएं और नवीनतम सुविधाएं प्रदान करते हैं, क्योंकि वे यह जानते हैं कि उनके उद्योग की सफलता इसी पर निर्भर हैं । उनकी सफलता का रहस्य प्राथमिकता पर आधरित है । वे विज्ञान को अधिक महत्व देते हैं, जो प्रौद्योगिकी को प्रेरित करता है ।
इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि विज्ञान से अधिकतम लाभ कमाने के लिए हमें प्रौद्योगिकी से अधिक महत्व विज्ञान को देना होगा । चलिए देखें, दोनों की भूमिकाओं को उलटने का क्या प्रभाव होगा । विज्ञान को प्रौद्योगिकी का दास बना देने पर प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हानिकारक तत्वों की क्षमता बढ़ जाएगी ।
विज्ञान के क्षेत्र में तो पर्याप्त उन्नति और सृजनात्मक संतोष की उपलब्धि होगी लेकिन प्रौद्योगिकी विज्ञान को मानव के लिए सुलभ बनाने के अपने उद्देश्य से पथभ्रष्ट करने की संभावनाएं भी हो सकती हैं । विज्ञान की उसके विनाशक कार्यो जैसे परमाणु बम आदि बनाने के लिए आलोचना की जाती है, लेकिन यह विनाश प्रौद्योगिकी की देन है ।
प्रौद्योगिकी ने ही विज्ञान की उपयोगिताओं को ध्वंसकारी यंत्रों, शस्त्रों के निर्माण की ओर मोड़ दिया है । सबसे पहले जिस वैज्ञानिक ने अणु को विभाजित किया था, उसने उसके विनाशात्मक उद्देश्य की कल्पना भी नहीं की होगी । प्रौद्योगिकी की वर्चस्वता के कारण ही आज विज्ञान का दुरुपयोग हो रहा है ।
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यदि हम विज्ञान को मानव कल्याण की दिशा में उन्मुख करना चाहते हैं, तो हमें इसे प्रौद्योगिकी का दास बनाने के प्रयासों को छोड़ना होगा ।