वसंत ऋतु | Essay on Spring Season in Hindi!
ऋतुओं के राजा वसंत को ‘ऋतुराज’ भी कहा जाता है । फाल्गुन का महीना है । शिशिर ऋतु का अंत हो रहा है । वह शीत, जिसने क्या मनुष्य, ऊना पशु, क्या पक्षी, क्या पेड़-पौधे- सबको अपने तीखे प्रहारों से कंप-कंपा दिया था, अब अंतिम श्वास ले रहा है ।
हवा में गरमाहट आ गई है । वसंत का आगमन हो रहा है । उसके स्वागत के लिए वृक्ष और लताओं ने नए वस्त्र धारण किए हैं । मरसों ने वासंती साड़ी पहनी है । पक्षी स्वागत-गीत गा रहे हैं । भौरे विरुदावली गुनगुना रहे हैं ।
बौर से लदे हुए आम के पेड़ और रंग-बिरंगे पुष्पों से लदे हुए पौधे चारों ओर अपना सौरभ बिखेर रहे हैं । ऐसे प्रफुल्लित वातावरण में वसंत का आगमन होता है । वसंत सचमुच सब ऋतुओं का राजा है । वसंत ऋतु में प्रकृति अपना नव-श्रृंगार करती है । रंग-बिरंगे पुष्पों से अलंकृत उसका कोमल शरीर दर्शकों को मोह लेता है ।
दर्शकों की दृष्टि में नववधू-सी प्रतीत होती है प्रकृति । उससे प्रेरणा पाकर ही कोकिल कूजती है, भौर गुनगुनाते हैं, पक्षी कलरव कर उसका यशोगान करतै हैं और मानव राग-रंग व वसंत की मादक गंध में मस्त हो जाते हैं । मस्ती के ऐसे ही क्षणों में फाग का स्वर स्वत: ही फूट पड़ता है ।
वसंत सृष्टि-सौंदर्य का यौवन काल है । इस सौंदर्य की झाँकी वनों, उपवनों और देहातों में ही देखने को मिलती है । वहीं प्रकृति के मनोहारी रूप के दर्शन होते हैं । सुबह-शाम खेतों की ओर निकल जाइए । आपको सरसों के पीले-पीले फूल, वायु में लहराती हुई जौ-गेहूँ की बालियाँ, छीमियाँ तथा श्वेत-नीले फूलों से लदे और धरती पर फैले हुए पौधे आपका मन मोह लेंगे ।
खेतों से होते हुए जरा और आगे बढ़िए तथा पास के वनखंड की ओर निकल जाइए । वहाँ आपको पलाश वृक्ष सिर से पैर तक लाल-लाल फूलों से लदे दिखाई पड़ेंगे और अमराइयों में आम्र-मंजरियाँ अपनी सुगंध से आपको बेसुध कर देंगी । नगरों में वसंत के ऐसे मोहक दृश्य उगपको देखने को नहीं मिलेंगे । वसंत की बहार का वास्तविक आनंद तो ग्रामीण ही लेते हैं ।
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वसंत के आगमन का प्रभाव प्रकृति पर ही नहीं, मानव के स्वास्थ्य पर भी पड़ता है । वसंत ऋतु में प्रातःकाल खुली हवा में टहलना स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभदायक होता है । इससे पाचन-शक्ति बढ़ती है और शरीर नीरोग रहता है । वसंत ऋतु में वायु अत्यंत शुद्ध और सुगंधों से सराबोर रहती है । इसलिए उसमें श्वास लेने से फेफड़ों में किसी प्रकार के रोग होने की संभावना नहीं रहती ।
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चारों ओर हर्ष व उल्लास का वातावरण होने से मन उत्साह से भरा रहता है । आलस्य पास फटकने नहीं पाता । इस प्रकार वमन ऋतु का आगमन मानव के लिए एक ईश्वरीय वरदान की तरह है । वसंत ऋतु की मस्ती और उल्लास के क्षणों में वसंत पंचमी का पर्व मनाया जाता है । यह पत्र मानव-हृदय में नूतन शक्ति का संचार करता है । सरस्वती का पूजन इस पर्व की विशेषता है ।
सरस्वती कला और माहित्य की देवी हैं । भारतीय संस्कृति में उनका सर्वोच्च स्थान है । हमारे पौराणिक ग्रंथों में उन्हें नागेश्वरी, भारती, वीणावादिनी आदि नामों से अभिहित किया गया है और बड़े विस्तार से उनकी महिमा का वर्णन किया गया है । इसी आधार पर देश के विभिन्न भागों में वसंत के दिन सरस्वती-पूजन का उत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है ।
प्राचीन काल में इसी अवसर पर गुरुकुलों और आश्रमों के स्नातकों के दीक्षांत समारोह होते थे । होलिकोत्सव आरंभ भी इसी दिन से होता था । गावों में घर-घर ढोलक बजने लगती थी और फाग गाए जाते थे । इस प्रकार गाँव का वातावरण हर्ष और उल्लास से भर जाता था ।
ऋतुराज वसंत वस्तुत: धरती पर भगवान का प्रतिनिधि बनकर आता है । उसके राज्य में छोटे-बड़े, अमीर-गरीब सब प्रफुल्लिन रहते हैं । वह जन-जन में नवनिर्माण की उमंग भरता है । वह ऐसा उदार राजा है, जो हमारे कल्याण के लिए अपनी सारी संपति हम पर न्योछावर कर देता है । प्रतिवर्ष वह हमसे कुछ लेने के लिए नहीं, हमें देने के लिए ही आता है ।