मैंने ग्रीष्मावकाश कैसे बिताया? पर अनुच्छेद | Paragraph on How I Spent the Summer Vacation in Hindi
प्रस्तावना:
मेरा स्कूल 14 मई को ग्रीष्मावकाश के लिए बन्द हो गया । मैंने पहले से घर जाने का कार्यक्रम बना रखा था । अत: स्कूल बन्द होते ही मैंने अपना सामान बाँधा और सहारनपुर के लिए पहली गाड़ी पकड़ ली ।
शाम को मैं अपने घर पहुच गया । कई महीनों के बाद मुझे देखकर मेरी माँ बड़ी प्रसन्न हुई और उसने मुझे छाती से लगा लिया । अपने भाई-बहनों से मिलकर मैं भी बहुत खुश था ।
मित्रों के साथ:
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अगले दिन मेरे मित्र मुझसे मिलने आने लगे । मै भी बड़ी गर्मजोशी से उनसे मिला । शाम को मैं अपने कुछ मित्रों के साथ घूमने निकल पड़ा । मार्ग में बहुत-से पुराने परिचित मिले । मुझे स्कूल में छुट्टियों के दौरान कुछ पढ़ाई-लिखाई का काम दिया गया था ।
सुबह मैं वह काम पूरा करता । इस तरह मित्रों से मिलते-जुलते और स्कूल का काम करने में मुझे दो सप्ताह लग गए । अब केवल पढाई दुहराने का काम बच गया था । घर आए पन्द्रह दिन गुजर गए और पता ही नहीं लगा । पन्द्रहवे दिन मेरे बड़े भाई का पत्र मिला । वे आगरा में रहते थे ।
उन्होंने मुझे आगरा आने को लिखा था । इस प्रस्ताव को पढ़कर मेरी बांछें खिल पड़ी, लेकिन थोड़ी ही देर में यह याद करके मेरा उत्साह ठंडा पड़ने लगा कि आगरा में बहुत गर्मी पड़ती है । लेकिन वही का ताजमहल तथा अन्य ऐतिहासिक स्थल देखने की लालसा ने मुझे प्रसन्नता दी ।
मैंने मन को यह कह कर समझा लिया कि गर्मी में मेरा भाई भाभी आदि रह सकते हैं, उसमें मुझे क्या विशेष कष्ट होगा । मैं उसी दिन रात की गाड़ी से आगरा के लिए रवाना हो गया और प्रातःकाल आगरा पहुँच गया ।
आगरा की सैर:
मैं आगरा में कई दिन रहा । केवल सुबह के समय हम घूमने निकलते और दोपहर तक घर लौट आते । इस तरह ताजमहल तथा अनेक दर्शनीय स्थानों को देखने में हमें कई दिन लग गए । इस महान् ऐतिहासिक नगर के भग्नावशेष देखकर मुझे बड़ा अचम्भा हुआ ।
ताजमहल की सुन्दरता ने मुझे पहली दृष्टि में ही मोह लिया । उसकी सुन्दरता शब्दों में नहीं बताई जा सकती । सफेद सगमरमर से बने उस शानदार मकबरे ने मुझे शाहजहाँ के शाश्वत प्यार की याद दिला दी, जो उसे अपनी प्रिय रानी मुमताज महल से था ।
अकबर के विशाल किले और दूसरे खंडहरों को देखकर मुझे मुगल बादशाहों के प्राचीन गौरव और शानी-शौकत का ख्याल अगया । मैं प्रात-काल अकनर यमुना के पवित्र जल में स्नान करता था । आगरा में मेरा समय बड़ी प्रसन्नता से बीता ।
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मुझे करने के लिए कोई काम नहीं था । यहा भी मैं अपने साथ कुछ किताबें ले आया था और मैंने इस बीच में पढ़ाई की अवहेलना नहीं की । मैं प्रतिदिन दो घंटे पढ़ाई करता था और शेष समय आगरा में दर्शनीय स्थानों की सैर करता था ।
ननिहाल की यात्रा:
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जून के मध्य तक मुझे अपने घर सहारनपुर लौटना पड़ा, क्योंकि मेरी माँ कुछ दिनों के लिए अपने पिता के पास मायके जाना चाहती थी । 17 जून को मेरी माँ मुझे साथ लेकर नानाजी के घर चली गई । मेरे नाना गाँव में रहते हैं, जो भोपाल के निकट मध्य प्रदेश में है । वे 70 वर्ष के वृद्ध हैं, लेकिन इतनी उम्र होने पर भी एक दम हट्टे-कट्टे हैं । हमें आते देख वे बड़े प्रसन्न हुए और लपक कर मुझे अपनी गोद में उठा लिया और खूब प्यार किया, जैसे मैं छोटा-सा बच्चा हूँ ।
उन्होंने मेरे पिता के बारे में ढेर से सवाल किए । जैसे ही मेरे ममेरे भाई-बहनों को हमारे आने का पता लगा, सभी प्रसन्न हो उठे । उन्होंने मुझे चारों तरफ से घेर लिया । हम खूब गले मिले और घर के भीतर दौड़ कर नानी को यह समाचार दे आए ।
नानी हाथों में आटा लगाये ही फौरन दौड़ आई और उन्होंने हमारा स्वागत किया । वे प्रसन्नता से फूली नहीं समा रहीं थी । उन्होंने फौरन मिठाई निकाल कर हमें खाने को दी । मैं अपने नाना के पास सोया । नानाजी ने मुझे स्कूल और घर की बाते पूछी और मुझे रामायण की कहानियाँ सुनाईं ।
बीच-बीच में मुझे बुरे लड़कों की संगत से दूर रहने की सलाह भी देते रहते थे । कभी-कभी नानाजी मुझे अपने बचपन की कहानियाँ सुनाते थे । थोड़े ही दिनों में गाँव के अन्य बच्चों से भी मेरी जानकारी हो गई । अब मैं दिन में उनके साथ आम के बगीचे में खेलता, जहाँ घने पेडों की छाया होती थी । मैं दो हफ्ते तक वहाँ रहा । अब मेरा स्कूल खुलने वाला था, इसलिए माँ को वहीं छोड कर मैं अकेला ही अपने घर लौट आया ।
उपसंहार:
अब जुलाई का महीना आ गया था । 8 जुलाई को मेरे स्कूल खुलने वाले थे । अत: अन्य सभी बाते भूलकर में अगले वर्ष के लिए तैयारी करने में जुट गया । साथ ही मैंने अपने पाठ एक बार पुन: दोहरा लिया । आखिर में ग्रीष्मावकाश समाप्त हो गया और मैं पुन: अपने रकूल में नई किताबों और कॉपियों के साथ 8 जुलाई को पुन: पहुंच गया । छुट्टियों की याद अभी भी ताजा थी ।