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भ्रष्टाचार पर निबंध | Corruption in Hindi!

भ्रष्टाचार का शाब्दिक अर्थ है – एक ऐसा आचरण जो अनैतिक एवं अनुचित है । भ्रष्टाचार जिस किसी क्षेत्र में व्याप्त हो वह उस क्षेत्र तथा संबंधित व्यक्ति की छवि को धूमिल करता है । इसका सीधा प्रभाव जाति, संप्रदाय अथवा देश की छवि पर भी पड़ता है ।

हमारे देश में भ्रष्टाचार की जड़ें बहुत ही गहरी हो चुकी हैं । इसे उखाड़ना भले ही असंभव न हो परंतु यह एक दुष्कर कार्य है । दुराचार, व्यभिचार, अनाचार तथा बालात्कार आदि अनेक रूपों में यह हमारे देश की राजनीति, समाज, व्यापार, उद्‌योग व प्रशासन आदि सभी क्षेत्रों में फैला हुआ है ।

गाँवों से महानगर तक सभी ओर भ्रष्टाचार की घटनाएँ देखने व सुनने को मिल जाती हैं । भ्रष्टाचार की समस्या उस समय और भी अधिक जटिल हो जाती है जब प्रशासन के शीर्षस्थ पदों पर पदासीन अधिकारी अथवा कानून के रक्षक स्वयं ही भ्रष्टाचार में लिप्त पाए जाते हैं ।

इससे भी बड़ी दुर्भाग्यपूर्ण विडंबना हमारे देश के लिए यह है कि भ्रष्टाचार के मामलों में पकड़े जाने पर भी ये लोग अपने धन अथवा प्रभाव का प्रयोग कर सभी आरोपों से मुक्त हो जाते हैं ।

अब प्रश्न यह उठता है कि ऐसे क्या कारण हैं जिनसे भ्रष्टाचार फैलता है । यदि हम इन कारणों का गहन अवलोकन करें तो हम देखते हैं कि इसका सबसे प्रमुख कारण है मनुष्य में व्याप्त स्वार्थ लोलुपता एवं असंतोष की प्रवृत्ति ।

व्यक्ति अपने परिवार अथवा स्वयं की प्रतिष्ठा व अन्य सामाजिक कारणों से सदैव अधिक से अधिक धन प्राप्त करना चाहता है । जब उसे वांछित वस्तु आदि सहजता से प्राप्त नहीं होती है तब वह अनुचित एवं अनैतिक मार्ग का अनुसरण कर लेता है ।

देश में व्याप्त जातिवाद, सांप्रदायिकता, क्षेत्रवाद एवं भाषावाद आदि भ्रष्टाचार के अनेक रूपों को जन्म देते हैं जो हमें रिश्वतखोरी, चोरबाजारी अथवा दलबदल आदि के लिए प्रेरित करते हैं । देश में फैली हुई असमानता भी भ्रष्टाचार को बढ़ावा देती है ।

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यह असामानता आर्थिक, सामाजिक अथवा प्रतिष्ठा आदि की हो सकती है । दूसरों के प्रति व्याप्त ईर्ष्या अथवा हीनता आदि का भाव व्यक्ति को भ्रष्टाचार को आत्मसात् करने के लिए बाध्य करता है । राजनीति में नीति का प्रयोग कम होता जा रहा है । राजनीतिज्ञ कुरसी के लिए नैतिक मूल्यों की परवाह नहीं करते हैं ।

दल-बदल, सांप्रदायिकता, खरीद-फरोख्त आदि सभी अनैतिक मार्गों का अनुसरण वे स्वार्थ के लिए करते हैं । देश में निरंतर बढ़ती बेरोजगारी तथा उससे व्याप्त हताशा व मानसिक कुंठा भी मनुष्य को भ्रष्टाचार की ओर ले जाती है ।

भ्रष्टाचार के कारण अनेक हो सकते हैं परंतु इसे रोकना अत्यंत आवश्यक है । यह प्रशासन देश की सरकार तथा हम सभी नागरिकों की नैतिक जिम्मेदारी है । इसके अतिरिक्त विभिन्न सामाजिक एवं धार्मिक संस्थानों को भी इसे रोकने के लिए यथासंभव प्रयास करना चाहिए ।

आज की सबसे बड़ी आवश्यकता यह है कि हमारा प्रशासन भ्रष्टाचार के प्रति और भी अधिक चुस्त एवं सख्त हो । भ्रष्टाचार में पकड़े गए अपराधियों को कड़ी सजा मिलनी चाहिए जिससे आने वाली पीढ़ियाँ इस मार्ग का अनुसरण न करें ।

भ्रष्टाचार में लिप्त व्यक्ति का सामाजिक बहिष्कार भी समाज से भ्रष्टाचार को समाप्त करने हेतु एक सार्थक कदम हो सकता है । देश से भ्रष्टाचार के दानव को बाहर निकालकर ही हम अपने राष्ट्र को उन्नत बना सकते हैं । हम सभी नागरिकों का दृढ़ निश्चय एवं उच्च मनोबल देश से भ्रष्टाचार के अंधकार को समाप्त कर इसे एक उज्ज्वल भविष्य प्रदान कर सकता है ।

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