दहेज प्रथा पर निबंध |Dowry System in Hindi!
प्राचीन अन्यों के अध्ययन से ज्ञात होता है कि दहेज की जड़ें बहुत विस्तृत और गहरी हैं । उच्च कुलों में दहेज प्रथा का प्रचलन था । मध्यम वर्गीय परिवारों में जब युवक गुरुकुल से अध्ययन करके लौटता था तब गृहस्थ जीवन को प्रारम्भ करने के लिए कन्या का पिता कुछ सामान उपहार स्वरूप देता था ।
लेकिन आज यह दहेज मध्यम वर्गीय परिवारों में घुसकर उन्हें दु:खी कर रहा है । विवाह-प्रेम का बन्धन न होकर व्यापार बन गया है । दहेज का अर्थ है- वह धन राशि, सामान आदि जो कन्या पक्ष विवाह से पूर्व वर पक्ष को देता हैं । प्राचीन समय में यह एक सात्तिवक प्रथा थी, क्योंकि कन्या को पराया धन माना जाता था । पतिगृह में जाते ही उसका पितृगृह से अधिकार समाप्त हो जाता था ।
अत: पिता अपनी सम्पत्ति का कुछ अंश अपनी पुत्री को दहेज के रुप में विवाह के अवसर पर देता था । एक पक्ष और भी है कि कन्या को लक्ष्मी का रूप माना जाता है, इसलिए पिता उसे अपने घर से खाली हाथ विदा करना अपशकुन मानता है । इसलिए उसे बर्तन, वस्त्र, आभूषण आदि देकर अपने घर से विदा करता है ।
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वर्तमान समय में दहेज अभिशाप बन गया है । कम दहेज लाने पर या दहेज के न मिलने पर कन्या को जली कटी सुनाना, मिथ्या दोषारोपण करना, कलह का वातावरण बनाए रखना, छोटी-छोटी बातें को लेकर कन्या पक्ष को नीचा दिखाना, भूखा रखना, आत्महत्या करने पर विवश कर देना, पितागृह में छोड़ आना, पति से बात न करने देना, अंग-भंग करना, मानसिक यातना देना इत्यादि आम बात हो गई है ।
दहेज के कारण कन्याओं को मार डालने के समाचार प्रतिदिन पढ़ने को मिलते हैं । इसे पढ़कर ऐसा लगता है कि मानव कितना निर्दयी और क्रूर है । दहेज ही बाल-विवाह, बेमेल विवाह, तलाक जैसी कुरीतियों को जन्म देता है । समय-समय पर अनेक समाज सुधारकों और महापुरुषों ने इसे दूर करने का प्रयत्न किया । लेकिन यह कुप्रथा कम होने की जगह और फैल गई ।
आज तो खुले आम वर की बोली दी जाती है । दहेज से प्राप्त राशि से कन्या का स्तर नापा जाता है । यह दोष न होकर सामाजिक प्रतिष्ठा का सूचक बन गया है । दहेज प्रथा को कैसे रोका जाए, तो इसका उत्तर होगा-कानून से । लेकिन लगता है कि आज कानून भी इसे रोक पाने में असमर्थ है । इसके लिए नवयुवकों को अन्तर्जातीय विवाह के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए ।
कन्या को शिक्षित और आर्थिक दृष्टि से स्वतन्त्र बनाना चाहिए जिससे वह पुरुषों के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर चल सके । कन्या के आर्थिक रूप से सम्पन्न होने पर अनमेल विवाह कम होंगे । घर की चारदीवारी से बाहर रहकर वह सास और ननदों के तानों से बची रहेगी । अच्छी आय हाथ से निकल जाने के भय से दूसरे लोग अनाप-शनाप नहीं कह सकेंगें ।
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यह समस्या सही अर्थों में तभी समाप्त होगी जब युवक यह कहें कि हम बिना दहेज के ही विवाह करेंगे और कन्या यह सोचे कि वह दहेज लेने वालों से शादी नहीं करेगी । अन्यथा यह समाज में कोढ़ की तरह फैलती जाएगी । जीवन ही नहीं परिवार भी बर्बाद होंगे । दहेज के लालची लोगों को कठोर से कठोर दण्ड देना चाहिए ।