भारत में बेरोजगारी की समस्या | The Problem of Unemployment in India in Hindi!
बेरोजगारी आधुनिक समाज की मुख्य समस्या बन गई है । हमारे देश में भी यह बुरी तरह से फैल गई है । यह एक गंभीर समस्या है, जिसे दूर करने के लिए सक्षम नेतृत्व की आवश्यकता है ।
यदि हम समाज के ढाँचे में परिवर्तन से बचना चाहते हैं, तो इसके लिए इस समस्या के उचित और शीघ्र समाधान की आवश्यकता है । वैज्ञानिक उपलब्धियों के कारण जहाँ एक ओर पृथ्वी का आकार छोटा हो गया है, वहीं दूसरी ओर विशाल जनसंख्या के कारण इसका आकार बढ़ गया है ।
जनसंख्या वृद्धि के फलस्वरूप बेरोजगारी की समस्या भी दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है । रोजगार की सुविधाएं तो उतनी ही है, लेकिन जनसंख्या बढ़ती जा रही है । बेरोजगारी कई प्रकार की होती है । शिक्षित लोगों की बेरोजगारी की समस्या सबसे अधिक कष्टप्रद है ।
प्रत्येक वर्ष विद्यालयों, विश्वविद्यालयों से विद्यार्थियों की एक बड़ी भीड़ रोजगार के क्षेत्र में कदम रखती हैं । लेकिन उन सभी को जीविका उपलब्ध कराना एक बड़ी समस्या है । उनमें से कुछ प्रतिशत लोग ही जीविका प्राप्ति में सफल हो पाते है ।
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बेरोजगारी के मुख्य कारण तीन हैं । सबसे प्रमुख कारण जनसंख्या वृद्धि है । वर्ष 1981-91 के दौरान भारत की जनसंख्या लगभग 16 करोड़ बढ़ी थी और यह निरंतर बढ़ रही है । दूसरा कारण हमारी शिक्षा प्रणाली है । इसका रूप अव्यवहारिक और सैद्धान्तिक है, जो विद्यार्थियों को किसी प्रकार की जीविका के लिए तैयार करने में सक्षम नहीं हैं ।
तीसरा कारण यह है कि हमारे देश की जनसंख्या में तो वृद्धि हो रही है, लेकिन उसी गति से औद्योगिक उन्नति और राष्ट्रीय आय में वृद्धि नही हो रही है । बेरोजगारी के प्रति समाज और राज्य के दृष्टिकोण में अंतर भी बेरोजगारी की समस्या को बढाते है ।
बेरोजगारी की समस्या के अंदर ही इसका समाधान निहित है । इसके लिए जनसंख्या की वृद्धि को रोकने के उपाय, शिक्षा-प्रणाली में सुधार और समाज का पुन: निर्माण शामिल है । इस समस्या से जूझने का एक कारगर उपाय बड़े पैमाने पर औद्योगीकरण को प्रोत्साहन देना है । औद्योगिक विकास से ही रोजगार के अवसर बढ़ सकते है ।
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पिछले दशक से बेरोजगारी की समस्या के समाधान के लिए पर्याप्त कदम उठाए जा रहे हैं । नौंवीं पंचवर्षीय योजना मे प्रति वर्ष पाँच करोड़ नई नौकरियों का लक्ष्य सामने रखा गया है । इसमें जनसंख्या के प्रभावपूर्ण नियंत्रण सम्बन्धी उपाय अपनाने पर भी बल दिया गया है ।
इसके लिए प्रोत्साहन व निरूत्साह की नीति अपनाई जा सकती है । अत: हम सरकार से एक ऐसी नीति का निर्माण करने के आशा कर सकते है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति अपनी योग्यता, क्षमता व प्रतिभा का उपयोग करके सामाजिक दायित्व का निर्वाह कुशलतापूर्वक कर सकेगा ।