माइक्रोफाइनेंस और शहरी बैरोजगारी पर निबंध | Essay on Microfinance and Urban Unemployment in Hindi!

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भारत के विकास की कहानी विडंबना भरी है । सरकारी, निजी और सार्वजनिक क्षेत्रों में रोजगार न केवल कम हैं बल्कि वे शिक्षितों तक सीमित भी हैं । ठीक उसी समय हमारी असंगठित अर्थव्यवस्था बहुत तेजी से बढ़ रही है और उसने देश की 93 प्रतिशत कामगारों को रोजगार उपलब्ध करवा रखे है ।

पर इस अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में कार्यरत श्रमिक जो कि सकल घरेलू उत्पाद में 63 प्रतिशत का योगदान करते हैं, को उनके द्वारा जुटाई नयी संपत्ति से कोई लाभ प्राप्त नहीं होता । ऐसा इसलिए है क्योंकि ऋण सुविधा तक उनकी पहुंच नहीं है । यदि देश की गरीबी की प्रवृति और जनसंख्या संबंधी आकडो के माध्यम से अवलोकन करें तो हम पाएंगे कि यह समस्या अत्यधिक जटिल है ।

जरा इन बातों पर गौर करें, दुनिया के एक तिहाई गरीब भारत में निवास करते हैं, भारत की कुल जनसंख्या का एक तिहाई युवा (15 से 34 वर्ष तक) वर्ग का है एवं देश में आनुपातिक रूप से युवाओं में अधिकतम बेरोजगारी विद्यमान है उसमें भी खासकर शहरी पुरुषों में सर्वाधिक बेरोजगारी है । गरीबी, युवा और बेरोजगारी का यह समीकरण क्या सामाजिक व आर्थिक संकट को न्यौता नहीं दे रहा है?

भारत का इस दुनिया में सर्वाधिक रफ्तार से शहरीकरण होना इस समस्या को और बढ़ाता है । इस समस्या की गंभीरता का अंदाजा इस बात से हो जाता है कि 2004 में 60 प्रतिशत शहरी युवा बेरोजगार थे । इस मसले का हल निकालने के लिए आवश्यक है कि नीति निर्माता औपचारिक अर्थव्यवस्था से बाहर रह गये व्यक्तियों के लिए रोजगार के वैकल्पिक स्रोतों के बारे में विचार करें । यहां पर लघु वित्त (माइक्रोफाइनेंस) छोटे व्यापार के माध्यम से टिकाऊ जीविका उपलब्ध करवाकर इस कार्य में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है ।

विकास एजेंसियों के एक अंतर्राष्ट्रीय संघ, ‘कंसलटेटिव ग्रुप टू असिस्ट द पुअर’ के अनुसार जिन व्यक्तियों की बचत, ऋण, बीमा और अन्य वित्तीय सेवाओं तक पहुंच होती है वे दैनन्दिनी संकटों से बेहतर तरीके से निपट पाते हैं । भारत में मात्र 0.01 प्रतिशत शहरी गरीबों का बैंकों से संबंध है ।

भारत में जहा 95 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्र की पहुंच माइक्रोफाइनेंस तक है वहीं शहरों में यह कतई उपलब्ध ही नहीं है । शहरी इलाकों में दुकान लगाने के लिए स्थान की कमी और जीविका के लिए किसी प्रशिक्षण तक पहुंच का न होना गरीबों को और भी गरीबी में ढकेल देता है ।

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सन् 1998 की आर्थिक जनगणना के अनुसार बैंकों और वित्तीय संस्थानों ने इन उद्यमों से मात्र 2.8 प्रतिशत लोगों को ही ऋण प्रदान किया है । वहीं गरीबी दूर करने वाली योजनाओं के माध्यम से 1.9 प्रतिशत लोगों को वित्त प्राप्त हुआ है । इस प्रकार ग्रामीणों और शहरियों में से मात्र 4.7 प्रतिशत को व्यवसाय करने हेतु औपचारिक वित्त प्राप्त हो पाया है ।

महाजनों, गिरवी रखने वालों और रिश्तेदार जैसे अनौपचारिक क्षेत्र से गरीब अपनी नकदी की समस्या थोड़ी बहुत हल तो कर लेता है परतु वह स्वय को लंबी ऋण अवधि में उलझा लेता है । अतएव स्थिति की गंभीरता को देखते हुए एवं मांग व बढ़ते बाजार के मद्देनजर शहरी लघु ऋण सेवाएं उपलब्ध करवाना एक बड़ी उपलब्धि हो सकती है । हालांकि ग्रामीण क्षेत्रों के बजाय शहरी वातावरण में इस माइक्रोफाइनेंस को लेकर बहुत अलग तरह की चुनौतियां हैं ।

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गैर सरकारी संस्था ‘दि पीपुल’ द्वारा किये गये शोध के मुताबिक दिल्ली की गंदी बस्तियों एवं पुनर्वास कॉलोनियों में माइक्रोफाइनेंस की जबरदस्त मांग होते हुए भी यहां बहुत ही थोड़े माइकोफाइनेंस सस्थान कार्यरत हैं । राजधानी में कार्य कर रहे ऐसे संस्थान का अनुमान है कि दिल्ली में प्रति व्यक्ति की दैनिक आमदनी दो डॉलर (80 रुपये) से कम है ।

उपरोक्त तथ्यों के परिप्रेक्ष्य में ‘दि पीपुल’ ने माइक्रोफाइनेंस वितरण हेतु दिल्ली में एक पायलेट परियोजना प्रारंभ की है । कुछ बस्तियों और पुनर्वासाहट कॉलोनियों में शोध के पश्चात् ग्राहकों की व्यक्तिगत परिस्थितियों, आवश्यकताओं और वित्त पोषण के स्रोत का अध्ययन कर शहरी क्षेत्रों के लिए एक विशिष्ट माइक्रोफाइनेंस प्रतिमान ‘पीपुल ग्रुप मॉडल’ विकसित किया गया । यह योजना ‘समूहिक गारंटी’ के सिद्धांत पर कार्य कर रही है ।

समूह के सदस्य सामूहिक पारस्परिक गारंटी उपलब्ध कराते है । इसके अंतर्गत एक या एक से अधिक सदस्यों द्वारा ऋण का पुनर्भुगतान न कर पाने की स्थिति में समूह के अन्य सदस्य मिलजुल कर भुगतान करते हैं । यह ग्राहकों को समूह संबद्धता एवं एक-दूसरे की मदद के द्वारा वित्तीय, भौतिक व सामाजिक पूंजी के निर्माण से व्यापार संबंध निर्माण में सहायता प्रदान करती है । फलस्वरूप स्थानीय समुदायों के मध्य एक सामाजिक ढांचा भी आकार लेने लगता है ।

इन योजना के तहत गरीब युवा वर्ग को दस हजार रुपये तक का ऋण उपलब्ध होता है साथ ही साथ उन्हें व्यापारिक कुशलता प्राप्त करने का प्रशिक्षण भी प्राप्त होता है । इतना ही नहीं उन्हें जीवन बीमा भी उपलब्ध करवाया जाता है । पूर्वी दिल्ली के 100 ऋण ग्राहियों को संयुक्त रूप से दस लाख रुपये का ऋण उपलब्ध करवाया जाता है ।

आज वे सब्जी विक्रेता, रेडीमेड वस्त्र व्यापारी, छोटे ट्रांसपोर्टर, मरम्मत की दुकानों के मालिक, इंटरनेट कैफे, किराना दुकान आदि का कार्य संचालित कर रहे है । इन ग्राहकों ने यह पूरी तरह से सिद्ध कर दिया है कि ऋण का भरोसेमंद स्रोत व्यापारिक गतिविधियों की योजना और विस्तार का मूलभूत आधार है ।