List of Popular Hindi Stories for Kids!
Story for Kids # 1 . नए साल का उत्सव:
सीमा और सनी अच्छे दोस्त थे । आज नए साल की पार्टी में उनका घर परिवार के ढ़ेर से दोस्तों और रिश्तेदारों से भरा हुआ था । पार्टी में नाच गाना था, खाना पीना था । हॉल में बड़े लोग थे और बच्चों का इंतजाम बगीचे में था ।
सीमा और सनी भी एक गीत की धुन पर नाचने लगे । तभी सनी का पैर फिसला और वह गिर पड़ा । सीमा घबरा गई, उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे । सनी रोने लगा था शायद उसे जोर की चोट लगी थी । वह मम्मी को देखने हॉल की ओर दौड़ी ।
हॉल में काफी भीड़ थी । उस भीड़ में सीमा को अपनी मम्मी तो नहीं दिखीं पर शालू आंटी दिख गई । सीमा ने शालू आंटी से पूछा आंटी सनी गिर गया है । उसके पैर में चोट लगी है । क्या आपने उसकी या मेरी मम्मी को देखा है?
शालू आंटी बोलीं, नहीं, देखा तो नहीं पर मैं उन्हें खोज कर यह बात बता देती हूँ । सीमा दौड़ कर सनी के पास वापस आई और उसने सोचा अब मुझे ही कुछ करना होगा । उसने सनी को दिलासा देते हुए कहा, रो मत सनी । अभी मम्मी आ जाएगी और फिर हम डाक्टर के पास चलेंगे ।
तुम तो मेर बहादुर दोस्त हो । बहादुर बच्चे कभी नहीं रोते । सीमा की ये बातें सुनकर सनी को बहुत अच्छा लगा । तभी मम्मी आ गईं । पार्टी में जगन अंकल भी थे । वो डाक्टर हैं । सभी अंकल की क्लीनिक पर गए । अंकल ने सनी को देखा और बताया, इसे ज्यादा चोट नहीं आई है ।
बस एक बाम और यह बैंड एड फिर सब लोग पार्टी में आ गए । लोग अभी भी नाच गा रहे थे । डाक्टर अंकल ने कहा सनी को दो तीन घंटे आराम करना चाहिए ताकि तकलीफ ना बढ़े । सीमा और सनी पास पड़ी कुर्सियों पर बैठ कर बातें करने लगे ।
Story for Kids # 2. जादू की छड़ी:
एक रात की बात है शालू अपने बिस्तर पर लेटी थी । अचानक उसके कमरे की खिडकी पर बिजली चमकी । शालू घबराकर उठ गई । उसने देखा कि खिडकी के पास एक बुढिया हवा में उड़ रही थी । बुढिया खिडकी के पास आइ और बोली शालू तुम मुझे एक अच्छी लड़की लगती हो ।
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इसलिए मैं तुम्हे कुछ देना चाहती हूँ । शालू यह सुनकर बहुत खुश हुई । बुढिया ने शालू को एक छड़ी देते हुए कहा-शालू ये जादू की छड़ी है । तुम इसे जिस भी चीज की तरफ मोड़ कर दो बार घुमाओगी वह चीज गायब हो जाएगी ।
अगले दिन सुबह शालू वह छड़ी अपने स्कूल ले गई । वहा उसने शैतानी करना शुरू किया । उसने पहले अपने समने बैठी लड़की की किताब गायव कर दी फिर कइ बच्चों की रबर और पेंसिलें भी गायब कर दीं । किसी को भी पता न चला कि यह शालू की छड़ी की करामात है ।
जब वह घर पहुँची तब भी उसकी शरारतें बंद नही हुई । शालू को इस खेल में बड़ा मजा आ रहा था । रसोई के दरवाजे के सामने एक कुरसी रखी थी । उसने सोचा, क्यों न मैं इस कुरसी को गायब कर दूँ । जैसे ही उसने छडी घुमाई वैसे ही शालू की माँ रसोइ से बाहर निकल कर कुरसी के सामने से गुजरीं और कुरसी की जगह शालू की माँ गायब हो गई ।
शालू बहुत घबरा गई और रोने लगी । इतने ही में उसके सामने वह बुढिया प्रकट हुई । शालू ने बुढिया को सारी बात बताई । बुढिया ने शालू से कहा मै तुम्हारी माँ को वापस ला सकती हूँ लेकिन उसके बाद मै तुमसे ये जादू की छडी वापस ले लुंगी ।
शालू बोली तुम्हे जो भी चाहिए ले लो लेकिन मुझे मेरी माँ वापस ला दो । तब बुढिया ने एक जादुई मंत्र पढ़ा और देखते ही देखते शालू की माँ वापस आ गई । शालू ने मुड़ कर बुढिया का शुक्रिया अदा करना चाहा लेकिन तब तक बुढिया बहुत दूर बादलों में जा चुकी थी । शालू अपनी माँ को वापस पाकर वहुत खुश हुई और दौड़कर गले से लग गई ।
Story for Kids # 3. और चाँद फूट गया:
आशीष और रोहित के घर आपस में मिले हुए थे । रविवार के दिन वे दोनों बड़े सवेरे उठते ही बगीचे में आ पहुँचे । तो आज कौन सा खेल खेलें ? रोहित ने पूछा । वे कुछ देर तक सोचते रहे फिर आशीष ने कहा, चलो गप्पें खेलते हैं । गप्पें भला यह कैसा खेल होता है ? रोहित को कुछ भी समझ में न आया ।
देखो मैं बताता हूँ आशीष ने कहा, हम एक से बढ़ कर एक मजेदार गप्प हाँकेंगे । ऐसी गप्पें जो कहीं से भी सच न हों । बड़ा मजा आता है इस खेल में । चलो मैं ही शुरू करता हूँ यह जो सामने अशोक का पेड़ है ना रात में बगीचे के तालाब की मछलियाँ इस पर लटक कर झूला झूल रही थीं ।
रंग बिरंगी मछलियों से यह पेड़ ऐसा जगमगा रहा था मानो लाल परी का राजमहल । अच्छा ! रोहित ने आश्चर्य से कहा, और मेरे बगीचे में जो यूकेलिप्टस का पेड़ है ना इस पर चाँद सो रहा था । चारों ओर ऐसी प्यारी रोशनी झर रही थी कि तुम्हारे अशोक के पेड़ पर झूला झूलती मछलियों ने गाना गाना शुरू कर दिया ।
अच्छा ! कौन सा गाना ? आशीष ने पूछा । वही चंदामामा दूर के पुए पकाएं बूर के । रोहित ने जवाब दिया । अच्छा ! फिर क्या हुआ ? फिर क्या होता, मछलियाँ इतने जोर से गा रही थीं कि चाँद की नींद टूट गयी और वह धड़ाम से मेरी छत पर गिर गया । फिर क्या था, वह तो गिरते ही फूट गया ।
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हाय, सच ! चाँद फूट गया तो फिर उसके टुकड़े कहाँ गये ? आशीष ने पूछा । वे तो सब सुबह-सुबह सूरज ने आकर जोड़े और उनपर काले रंग का मलहम लगा दिया । विश्वास न हो तो रात में देख लेना चाँद पर काले धब्बे जरूर दिखाई देंगे । अच्छा ठीक है मैं रात में देखने की कोशिश करूँगा । आशीष ने कहा । वह एक नयी गप्प सोच रहा था ।
हाँ याद आया, आशीष बोला, पिछले साल जब तुम्हारे पापा का ट्रांसफर यहाँ नहीं हुआ था तो एक दिन खूब जोरों की बारिश हुई । इतनी बारिश कि पानी बूँदों की बजाय रस्से की तरह गिर रहा था । पहले तो मैं उसमें नहाया फिर पानी का रस्सा पकड़ कर ऊपर चढ़ गया । पता है वहाँ क्या था ?
क्या था ? रोहित ने आश्चर्य से पूछा । वहाँ धूप खिली हुई थी । धूप में नन्हें नन्हें घर थे, इन्द्रधनुष के बने हुए । एक घर के बगीचे में सूरज आराम से हरी-हरी घास पर लेटा आराम कर रहा था और नन्हें-नन्हें सितारे धमाचौकड़ी मचा रहे थे ।
सितारे भी कभी धमाचौकड़ी मचा सकते हैं ? रानी दीदी ने टोंक दिया । न जाने वो कब आशीष और रोहित के पास आ खड़ी हुई थीं और उनकी बातें सुन रही थीं । अरे दीदी, हम कोई सच बात थोड़ी कह रहे हैं । रोहित ने सफाई दी । अच्छा तो तुम झूठ बोल रहे हो ? रानी ने धमकाया ।
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नहीं दीदी, हम तो गप्पें खेल रहे हैं और हम खुशी के लिये खेल रहे हैं, किसी का नुक्सान नहीं कर रहे हैं । आशीष ने कहा । भला ऐसी गप्पें हाँकने से क्या फायदा जिससे किसी का उपकार न हो । मैने एक गप्प हाँकी और दो बच्चों का उपकार भी किया । वो कैसे ? दोनों बच्चों ने एक साथ पूछा ।
अभी अभी तुम दोनों की मम्मियाँ तुम्हें नाश्ते के लिये बुला रही थीं । उन्हें लगा कि तुम लोग बगीचे में खेल रहे होगे लेकिन मैने गप्प मारी कि वे लोग तो मेरे घर में बैठे पढ़ाई कर रहे हैं । उन्होंने मुझसे तुम दोनों को भेजने के लिये कहा हैं ।
यह सुनते ही आशीष और रोहित गप्पें भूल कर अपने-अपने घर भागे । उन्हें ड़र लग रहा था कि मम्मी उनकी पिटाई कर देंगी लेकिन मम्मियों ने तो उन्हें प्यार किया और सुबह-सुबह पढ़ाई करने के लिये शाबशी भी दी । रानी दीदी की गप्प को वे सच मान बैठी थीं ।
Story for Kids # 4. दोस्ती:
शहर से दूर जंगल में एक पेड़ पर गोरैया का जोड़ा रहता था । उनके नाम थे, चीकू और चिनमिन । दोनो बहुत खुश रहते थे । सुबह सवेरे दोनो दाना चुगने के लिये निकल जाते । शाम होने पर अपने घोंसले मे लौट जाते । कुछ समय बाद चिनमिन ने अंडे दिये ।
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चीकू और चिनमिन की खुशी का ठिकाना नहीं रहा । दानों ही बड़ी बेसब्री से अपने बच्चों के अंडों से बाहर निकलने का इंतजार करने लगे । अब चिनमिन अंडों को सेती थी और चीकू अकेला ही दाना चुनने के लिये जाता था ।
एक दिन एक हाथी धूप से बचने के लिये पेड़ के नीचे आ बैठा । मदमस्त हो कर वह अपनी सूँड से उस पेड़ को हिलाने लगा । हिलाने से पेड़ की वह डाली टूट गयी, जिस पर चीकू और चिनमिन का घोंसला था । इस तरह घोंसले में रखे अंडे टूट गये ।
अपने टूटे अंडों को देख कर चिनमिन जोरों से रोने लगी । उसके रोने की आवाज सुन कर, चीकू और चिनमिन का दोस्त भोलू उसके पास आये और रोने का कारण पूछने लगे । चिनमिन से सारी बात सुनकर उन्हें बहुत दुख हुआ । फिर दोनो का धीरज बँधाते हुए भोलू बोला, अब रोने से क्या फायदा, जो होना था सो हो चुका ।
चीकू बोला, भालू भाइ, बात तो तुम ठीक कर रहे हो, परंतु इस दुष्ट हाथी ने घमंड में आ कर हमारे बच्चों की जान ले ली है । इसको तो इसका दंड मिलना ही चाहिये । यदि तुम हमारे सच्चे दोस्त हो तो उसको मारने में हमारी मदद करो ।
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यह सुनकर थोड़ी देर के लिये तो भोलू दुविधा में पड़ गया कि कहाँ हम छोटे छोटे पक्षी और कहाँ वह विशालकाय जानवर । परंतु फिर बोला, चीकू दोस्त, तुम सच कह रहे हो । इस हाथी को सबक सिखाना ही होगा । अब तुम मेरी अक्ल का कमाल देखो । मैं अपनी दोस्त वीना मक्खी को बुला कर लाता हूँ । इस काम में वह हमारी मदद करेगी । और इतना कह कर वह चला गया ।
भोलू ने अपनी दोस्त वीना के पास पहुँच कर उसे सारी बात बता दी । फिर उसने उससे हाथी को मारने का उपाय पूछा । वीना बोली, इससे पहले की हम कोई फैसला करे, अपने मित्र मेघनाद मेंढ़क की भी सलाह ले लूँ तो अच्छा रहेगा । वह बहुत अक्लमंद है । हाथी को मारने के लिये जरूर कोई आसान तरीका बता देगा ।
चीकू भोलू और वीना, तीनों मेघनाद मेंढ़क के पास गये । सारी बात सुन कर मेघनाद बोला, मेरे दिमाग में उसे मारने की एक बहुत ही आसान तरकीब आयी है । वीना बहन सबसे पहले दोपहर के समय तुम हाथी के पास जा कर मधूर स्वर में एक कान में गुंजन करना ।
उसे सुन कर वह आनंद से अपनी आँखे बंद कर लेगा । उसी समय भोलू अपनी तीखी चोंच से उसकी दोनो आँखें फोड़ देगा । इस प्रकार अंधा हो कर वह इधर-उधर भटकेगा । थोड़ी देर बाद उसको प्यास लगेगी तब मैं खाई के पास जा कर अपने परिवार सहित जोर-जोर से टर्र-टर्र की आवाज करने लगूँगा ।
हाथी समझेगा की यह आवाज तालाब से आ रही है । वह आवाज की तरफ बढ़ते बढ़ते खाई के पास आयेगा और उसमें जा गिरेगा और खाई में पड़ा पड़ा ही मर जाएगा । सबको मेघनाद की सलाह बहुत पसंद आयी । जैसा उसने कहा था, वीना और भोलू ने वैसा ही किया । इस तरह छोटे छोटे जीवों ने मिल कर अपनी अक्ल से हाथी जैसे बड़े जीव को मार गिराया और फिर से प्यार से रहने लगे ।
Story for Kids # 5. चालाकी का फल:
एक थी बुढ़िया, बेहद बूढ़ी पूरे नब्बे साल की । एक तो बेचारी को ठीक से दिखाई नहीं पड़ता था ऊपर से उसकी मुर्गियाँ चराने वाली लड़की नौकरी छोड़ कर भाग गयी । बेचारी बुढ़िया ! सुबह मुर्गियों को चराने के लिये खोलती तो वे पंख फड़फड़ाती हुई सारी की सारी बुढ़िया के घर की चारदीवारी फाँद कर अड़ोस पड़ोस के घरों में भाग जातीं और सारे मोहल्ले में हल्ला मचाती हुई घूमतीं ।
कभी वे पड़ोसियों की सब्जियाँ खा जातीं तो कभी पड़ोसी काट कर उन्हीं की सब्जी बना ड़ालते । दोनों ही हालतों में नुकसान बेचारी बुढ़िया का होता । जिसकी सब्जी बरबाद होती वह बुढ़िया को भला बुरा कहता और जिसके घर में मुर्गी पकती उससे बुढ़िया की हमेशा की दुश्मनी हो जाती ।
हार कर बुढ़िया ने सोचा कि बिना नौकर के मुर्गियाँ पालना उसकी जैसी कमजोर बुढ़िया के बस की बात नहीं । भला वो कहाँ तक डंडा लेकर एक एक मुर्गी हाँकती फिरे ? जरा सा काम करने में ही तो उसका दम फूल जाता था । और बुढ़िया निकल पड़ी लाठी टेकती नौकर की तलाश में ।
बुढ़िया आगे बढ़ी तो थोड़ी ही दूर पर एक सियार मिला और बोला, हुआँ हुआँ राम राम बुढ़िया नानी किसे खोज रही हो ? बुढ़िया खिसिया कर बोली, अरे खोज रहीं हूँ एक भली सी नौकरानी जो मेरी मुर्गियों की देखभाल कर सके । यह सुन कर सियार बोला मेरे साथ चलो अभी मैं तुम्हें एक लड़की से मिलवाता हूँ । मेरे पड़ोस में ही रहती है ।
सियार भाग कर गया और अपने पड़ोस में रहने वाली चालाक पूसी बिल्ली को साथ लेकर लौटा । पुसी बिल्ली बुढ़िया को देखते ही बोली, म्याऊँ, बुढ़िया नानी नमस्ते । मैं कैसी रहूँगी तुम्हारी नौकरानी के काम के लिये ? नौकरानी के लिये लड़की जगह बिल्ली को देखकर बुढिया चौंक गयी । बिगड़ कर बोली, तुम्हें तो अपना काम भी सलीके से करना नहीं आता होगा । तुम मेरा काम क्या करोगी ?
लेकिन पूसी बिल्ली बड़ी चालाक थी । आवाज को मीठी बना कर मुस्करा कर बोली, अरे बुढ़िया नानी तुम तो बेकार ही परेशान होती हो । आखिर मुर्गियों की ही देखभाल करनी है न ? वो तो मैं खूब अच्छी तरह कर लेती हूँ । एक तो पुसी बिल्ली बड़ी अच्छी तरह बात कर रही थी और दूसरे बुढ़िया काफी थक भी गयी थी इसलिये उसने ज्यादा बहस नहीं की और पूसी बिल्ली को नौकरी पर रख लिया ।
पूसी बिल्ली ने पहले दिन मुर्गियों को दड़बे में से निकाला और खूब भाग दौड़ कर पड़ोस में जाने से रोका । बुढ़िया पूसी बिल्ली की इस भाग-दौड़ से संतुष्ट होकर घर के भीतर आराम करने चली गयी । कई दिनों से दौड़ते भागते बेचारी काफी थक गयी थी तो उसे नींद भी आ गयी ।
इधर पूसी बिल्ली ने मौका देखकर पहले ही दिन छे मुर्गियों को मारा और चट कर गयी । बुढ़िया जब शाम को जागी तो उसे पुसी की इस हरकत का कुछ भी पता न लगा । एक तो उसे ठीक से दिखाई नहीं देता था और उसे सौ तक गिनती भी नहीं आती थी । फिर भला वह इतनी चालाक पूसी बिल्ली की शरारत कैसे जान पाती ?
अपनी मीठी मीठी बातों से बुढ़िया को खुश रखती और आराम से मुर्गियाँ चट करती जाती । पड़ोसियों से अब बुढ़िया की लड़ाई नहीं होती थी क्योंकि मुर्गियाँ अब उनके आहते में घुस कर शोरगुल नहीं करती थीं । बुढ़िया को पुसी बिल्ली पर इतना विश्वास हो गया कि उसने मुर्गियों के दड़बे की तरफ जाना छोड़ दिया ।
धीरे धीरे एक दिन ऐसा आया जब दड़बे में बीस पच्चीस मुर्गियाँ ही बचीं । उसी समय बुढ़िया भी टहलती हुई उधर ही आ निकली । इतनी कम मुर्गियाँ देखकर उसने पुसी बिल्ली से पूछा, क्यों री पुसी, बाकी मुर्गियों को तूने चरने के लिये कहाँ भेज दिया ? पुसी बिल्ली ने झट से बात बनाई, अरे और कहाँ भेजूँगी बुढ़िया नानी ।
सब पहाड़ के ऊपर चली गयी हैं । मैंने बहुत बुलाया लेकिन वे इतनी शरारती हैं कि वापस आती ही नहीं । ओफ ओफ ! ये शरारती मुर्गियाँ । बुढ़िया का बड़बड़ाना फिर शुरू हो गया, अभी जाकर देखती हूँ कि ये इतनी ढीठ कैसे हो गयी है ? पहाड़ के ऊपर खुले में घूम रही हैं । कहीं कोई शेर या भेड़िया आ ले गया तो बस !
ऊपर पहुँच कर बुढ़िया को मुर्गियाँ तो नहीं मिली । मिलीं सिर्फ उनकी हड्डियाँ और पंखों का ढेर ! बुढ़िया को समझते देर न लगी कि यह सारी करतूत पूसी बिल्ली की है । वो तेजी से नीचे घर की ओर लौटी । इधर पुसी बिल्ली ने सोचा कि बुढ़िया तो पहाड़ पर गयी अब वहाँ सिर पकड़ कर रोएगी जल्दी आएगी नहीं ।
तब तक क्यों न मैं बची-बचाई मुर्गियाँ भी चट कर लूँ ? यह सोच कर उसने बाकी मुर्गियों को भी मार डाला । अभी वह बैठी उन्हें खा ही रही थी कि बुढ़िया वापस लौट आई । पूसी बिल्ली को मुर्गियाँ खाते देखकर वह गुस्से से आग बबूला हो गयी और उसने पास पड़ी कोयलों की टोकरी उठा कर पूसी के सिर पर दे मारी ।
पूसी बिल्ली को चोट तो लगी ही, उसका चमकीला सफेद रंग भी काला हो गया । अपनी बदसूरती को देखकर वह रोने लेगी । आज भी लोग इस घटना को नही भूले हैं और रोती हुई काली बिल्ली को डंडा लेकर भगाते हैं । चालाकी का उपयोग बुरे कामों में करने वालों को पूसी बिल्ली जैसा फल भोगना पड़ता है ।
Story for Kids # 6. अनोखी तरकीब:
बहुत पुरानी बात है । एक अमीर व्यापारी के यहाँ चोरी हो गयी । बहुत तलाश करने के बावजूद सामान न मिला और न ही चोर का पता चला । तब अमीर व्यापारी शहर के काजी के पास पहुँचा और चोरी के बारे में बताया । सबकुछ सुनने के बाद काजी ने व्यापारी के सारे नौकरों और मित्रों को बुलाया ।
जब सब सामने पहुँच गए तो काजी ने सब को एक-एक छड़ी दी । सभी छड़ियाँ बराबर थीं । न कोई छोटी न बड़ी । सब को छड़ी देने के बाद काजी बोला, इन छड़ियों को आप सब अपने अपने घर ले जाएँ और कल सुबह वापस ले आएँ ।
इन सभी छड़ियों की खासियत यह है कि यह चोर के पास जा कर ये एक उँगली के बराबर अपने आप बढ़ जाती हैं । जो चोर नहीं होता, उस की छड़ी ऐसी की ऐसी रहती है । न बढ़ती है, न घटती है । इस तरह मैं चोर और बेगुनाह की पहचान कर लेता हूँ ।
काजी की बात सुन कर सभी अपनी अपनी छड़ी ले कर अपने अपने घर चल दिए । उन्हीं में व्यापारी के यहाँ चोरी करने वाला चोर भी था । जब वह अपने घर पहुँचा तो उस ने सोचा, अगर कल सुबह काजी के सामने मेरी छड़ी एक उँगली बड़ी निकली तो वह मुझे तुरंत पकड़ लेंगे ।
फिर न जाने वह सब के सामने कैसी सजा दें । इसलिए क्यों न इस विचित्र छड़ी को एक उँगली काट दिया जाए । ताकि काजी को कुछ भी पता नहीं चले । चोर यह सोच बहुत खुश हुआ और फिर उस ने तुरंत छड़ी को एक उँगली के बराबर काट दिया । फिर उसे घिसघिस कर ऐसा कर दिया कि पता ही न चले कि वह काटी गई है ।
अपनी इस चालाकी पर चोर बहुत खुश था और खुशीखुशी चादर तान कर सो गया । सुबह चोर अपनी छड़ी ले कर खुशी खुशी काजी के यहाँ पहुँचा । वहाँ पहले से काफी लोग जमा थे । काजी 1-1 कर छड़ी देखने लगे । जब चोर की छड़ी देखी तो वह 1 उँगली छोटी पाई गई ।
उस ने तुरंत चोर को पकड़ लिया । और फिर उस से व्यापारी का सारा माल निकलवा लिया । चोर को जेल में डाल दिया गया । सभी काजी की इस अनोखी तरकीब की प्रशंसा कर रहे थे ।
Story for Kids # 7. ईमानदारी:
विक्की अपने स्कूल में होने वाले स्वतंत्रता दिवस समारोह को ले कर बहुत उत्साहित था । विक्की जब सुबह जगा गया घर में अजीब सी शांति थी । वह दादी के कमरे में गया, लेकिन वह दिखाई नहीं पड़ी ।
माँ, दादीजी कहाँ हैं ? उसने पूछा ।
रात को वह बहुत बीमार हो गई थीं । तुम्हारे पिताजी उन्हें अस्पताल ले गए थे, वह अभी वहीं हैं उनकी हालत काफी खराब है । विक्की एकाएक उदास हो गया । उसकी माँ ने पूछा, क्या तुम मेरे साथ दादी जी को देखने चलोगे ? नौ बजे मैं अस्पताल जा रही हूँ ।
विक्की अपनी दादी को बहुत प्यार करता था । उसने तुरंत कहा, हाँ, मैं आप के साथ चलूँगा । वह स्कूल और स्वतंत्रता दिवस के समारोह के बारे में सब कुछ भूल गया । स्कूल में स्वतंत्रता दिवस समारोह बहुत अच्छी तरह संपन्न हो गया । लेकिन प्राचार्य खुश नहीं थे । उन्होंने ध्यान दिया कि बहुत से छात्र आज अनुपस्थित हैं ।
उन्होंने दूसरे दिन सभी अध्यापकों को बुलाया और कहा, मुझे उन विद्यार्थियों के नामों की सूची चाहिए जो समारोह के दिन अनुपस्थित थे । आधे घंटे के अंदर सभी कक्षाओं की सूची उन की मेज पर थी । कक्षा छे की सूची बहुत लंबी थी । अत: वह पहले उसी तरफ मुड़े ।
जैसे ही उन्होंने कक्षा छे में कदम रखे, वहाँ चुप्पी सी छा गई । उन्होंने कठोरतापूर्वक कहा, मैंने परसों क्या कहा था ? यही कि हम सब को स्वतंत्रता दिवस समारोह में उपस्थित होना चाहिए, गोलमटोल उषा ने जवाब दिया । तब बहुत सारे बच्चे अनुपस्थित क्यों थे ? उन्होंने नामों की सुची हवा में हिलाते हुए पूछा । फिर उन्होंने अनुपस्थित हुए विद्यार्थियों के नाम पुकारे, उन्हें डाँटा और अपने डंडे से उनकी हथेलियों पर मार लगाई ।
अगर तुम लोग राष्ट्रीय समारोह के प्रति इतने लापरवाह हो तो इसका मतलब यही है कि तुम लोगों को अपनी मातृभूमि से प्यार नहीं है । अगली बार अगर ऐसा हुआ तो मैं तुम सबके नाम स्कूल के रजिस्टर से काट दूँगा । इतना कह कर वह जाने के लिए मुड़े तभी विक्की आ कर उन के सामने खड़ा हो गया । क्या बात है ?
महोदय, विक्की भयभीत पर दृढ़ था, मैं भी स्वतंत्रता दिवस समारोह में अनुपस्थित था, पर आप ने मेरा नाम नहीं पुकारा । कहते हुए विक्की ने अपनी हथेलियाँ प्राचार्य महोदय के सामने फैला दी । सारी कक्षा साँस रोक कर उसे देख रही थी । प्राचार्य कई क्षणों तक उसे देखते रहे ।
उनका कठोर चेहरा नर्म हो गया और उन के स्वर में क्रोध गायब हो गया । तुम सजा के हकदार नहीं हो, क्योंकि तुम में सच्चाई कहने की हिम्मत है । मैं तुम से कारण नहीं पूछूँगा, लेकिन तुम्हें वचन देना होगा कि अगली बार राष्ट्रीय समारोह को नहीं भूलोगे । अब तुम अपनी सीट पर जाओ । विक्की ने जो कुछ किया, इसकी उसे बहुत खुशी थी ।
Story for Kids # 8. भगवान के भरोसे:
सूर्य अस्त हो चला था । आकाश में बादल छाए हुए थे । नीम के एक पेड़ पर ढेर सारे कौवे रात बिताने के लिए बैठे हुए थे । कौवे अपनी आदत के अनुसार, आपस में एक-दूसरे से काँव-काँव करते हुए झगड़ रहे थे । उसी समय एक मैना आई और रात बिताने के लिए नीम के उस पेड़ की एक डाल पर बैठ गई । मैना को देखकर सभी कौवे उसकी ओर देखने लगे ।
बेचारी मैना सहम गई । डरते हुए बोली, अँधेरा हो गया है । आसमान मे बादल छाए हुए हैं । किसी भी समय पानी बरस सकता है । मैं अपना ठिकाना भूल गई हूँ । आज रात भर मुझे भी इस पेड़ की एक डाल के एक कोने में रात बिता लेने दो ।
कौवे भला कब उसकी बात मानते । उन्होंने कहा, यह नहीं हो सकता । यह पेड़ हमारा है । तुम इस पेड़ पर नहीं बैठ सकती हो । भागो यहाँ से । कौवों की बात सुनकर बड़े ही दीन स्वर में मैना बोली, पेड़ तो सभी भगवान के हैं । यदि बरसात होने लगी और ओले पड़ने लगे, तो भगवान ही सबको बचा सकता हैं । मैं बहुत छोटी हूँ । तुम लोगों की बहन हूँ । मेरे ऊपर दया करके रात बिता लेने दो ।
मैना की बात सुनकर सभी कौवे हँसने लगे । फिर बोले, हम लोगों को तेरी जैसी बहन की कोई जरूरत नहीं है । तू भगवान का नाम बहुत ले रही है, तो भगवान के सहारे यहाँ से जाती क्यों नहीं ? यदि तू यहाँ से नहीं जाएगी, तो हम सब मिलकर तुझे मार भगाएंगे । और सभी कौवे मैना को मारने के लिए उसकी ओर दौड़ पड़े ।
कौवों को काँव-काँव करते हुए अपनी ओर आते देखकर मैना वहाँ से जान बचाकर भागी । वहाँ से थोड़ी दूर एक आम के पेड़ पर अकेले ही रात बिताने के लिए मैना एक कोने में छिपकर बैठ गई । रात में तेज हवा चली । कुछ देर बाद बादल बरसने लगे और इसके साथ ही बड़े-बड़े ओले भी पड़ने लगे । ओलों की मार से बहुत से कौवे घायल होकर जमीन पर गिरने लगे । कुछ तो मर भी गए ।
मैना आम के जिस पेड़ पर बैठी थी, उस पेड़ की एक डाल टूट गई । आम की वह डाल अन्दर से खोखली थी । डाल टूटने की वजह से डाल के अन्दर के खाली स्थान में मैना छिप गई । डाल में छिप जाने की वजह से मैना को न तो हवा लगी और न ही ओले ही उसका कुछ बिगाड़ पाए । वह रात भर आराम से बैठी रही ।
सवेरा होने पर जब सूरज निकला, तो मैना उस खोह से निकली और खुशी से गाती-नाचती हुई ईश्वर को प्रणाम किया । फिर आकाश में उड़ चली । मैना को आराम से उड़ते हुए देखकर, जमीन पर पड़े घायल कौवों ने कहा, अरी मैना बहन, तुम रात को कहाँ थीं ? तुम्हें ओलों की मार से किसने बचाया ?
मैना बोली, मैं आम की डाली पर बैठी ईश्वर से प्रार्थना कर रही थी कि हे ईश्वर ! दुखी और असहाय लोगों की रक्षा करना । उसने मेरी प्रार्थना सुन ली और उसी ने मेरी भी रक्षा की । मैना फिर बोली, हे कौवों सुनो, भगवान ने केवल मेरी रक्षा ही नहीं की । वह तो जो भी उस पर विश्वास करता है और उसकी प्रार्थना करता है, उसे याद करता है, तथा भरोसा करता है, ईश्वर उसकी रक्षा अवश्य ही करता है और कठिन समय में उसे बचाता भी है ।
Story for Kids # 9. बुरे कर्मो का बखान:
एक डाकू, गुरु नानकदेवजी के पास आया और चरणों में माथा टेकते हुए बोला- मैं डाकू हूँ अपने जीवन से तंग हूँ । मैं सुधरना चाहता हूँ मेरा मार्गदर्शन, कीजिए, मुझे अंधकार से उजाले की ओर ले चलिए । नानक देव जी ने कहा- तुम आज से चोरी करना और झूठ बोलना छोड़ दो, सब ठीक हो जाएगा ।
डाकू प्रणाम करके चला गया । कुछ दिनों बाद वह फिर आया और कहने लगा- मैंने झूठ बोलने और चोरी से मुक्त होने का भरसक प्रयत्न किया, किंतु मुझसे ऐसा न हो सका । मैं चाहकर बदल नहीं सका । आप मुझे उपाय अवश्य बताइए ।
गुरु नानक सोचने लगे कि इस डाकू को सुधरने का क्या उपाय बताया जाए । उन्होंने अंत में कहा- जो तुम्हारे मन में जो आए करो, लेकिन दिनभर झूठ बोलने, चोरी करने और डाका डालने के बाद शाम को लोगों के सामने किए हुए कामों का बखान कर दो ।
डाकू को यह उपाय सरल जाना । इस बार डाकू पलटकर नानक देव जी के पास नहीं आया क्योंकि जब वह दिनभर चोरी आदि करता और शाम को जिसके घर से चोरी की है उसकी चौखट पर यह सोचकर पहुँचता कि नानक देव जी ने जो कहा था कि तुम अपने दिनभर के कर्म का बखान करके आना लेकिन वह अपने बुरे कामों के बारे में बताने में बहुत संकोच करता और आत्मग्लानि से पानी-पानी हो जाता ।
वह बहुत हिम्मत करता कि मैं सारे काम बता दूँ लेकिन वह नहीं बता पाता । हताश-निराश मुँह लटकाए वह डाकू एक दिन अचानक नानकदेवजी के सामने आया । अब तक न आने का कारण बताते हुए उसने कहा- मैंने तो उस उपाय को बहुत सरल समझा था, लेकिन वह तो बहुत कठिन निकला ।
लोगों के सामने अपनी बुराइयाँ कहने में लज्जा आती है, अत: मैंने बुरे काम करना ही छोड़ दिये । इस प्रकार गुरु नानक देव जी ने उसे अपराधी से अच्छा आदमी बना दिया ।
Story for Kids # 10. मुश्किलों पर विजय:
दो व्यक्ति राम और श्याम शहर से कमाकर पैसे लेकर घर लौट रहे थे । अपनी मेहनत से राम ने खूब पैसे कमाए थे, जबकि श्याम कम ही कमा पाया था । श्याम के मन में खोट आ गया । वह सोचने लगा कि किसी तरह राम का पैसा हड़पने को मिल जाए, तो खूब ऐश से जिंदगी गुजरेगी ।
रास्ते में एक उथला कुआं पड़ा, तो श्याम ने राम को उसमें धक्का दे दिया । राम गढ्डे से बाहर आने का प्रयत्न करने लगा । श्याम ने सोचा कि यह ऊपर आ गया, तो मुश्किल हो जाएगी । इसलिए श्याम साथ लिए फावड़े से मिट्टी खोद-खोदकर कुएं में डालने लगा ।
लेकिन जब राम के ऊपर मिट्टी पड़ती, तो वह अपने पैरों से मिट्टी को नीचे दबा देता और उसके ऊपर चढ़ जाता । मिट्टी डालने के उपक्रम में श्याम इतना थक गया था कि उसके पसीने छूटने लगे । लेकिन तब तक वह कुएं में काफी मिट्टी डाल चुका था और राम उन मिट्टियों पर चढ़ कर ऊपर आ गया ।
अत: जीवन में कई ऐसे क्षण आते हैं, जब बहुत सारी मुश्किलें एक साथ हमारे जीवन में मिट्टी की तरह आ पड़ती हैं । जो व्यक्ति इन मुश्किलों पर विजय प्राप्त कर आगे बढ़ता जाता है उसी की जीत होती है और वही जीवन में हर बुलंदियों को छूता है ।
Story for Kids # 11. मन के हारे हार है मन के जीते जीत:
एक व्यक्ति एक प्रसिद्ध संत के पास गया और बोला गुरुदेव मुझे जीवन के सत्य का पूर्ण ज्ञान है । मेंने शास्त्रों का काफी ध्यान से अध्ययन किया है । फिर भी मेरा मन किसी काम में नही लगता । जब भी कोई काम करने के लिए बैठता हूँ तो मन भटकने लगता है तो मै उस काम को छोड़ देता हूँ । इस अस्थिरता का क्या कारण है ? कृपया मेरी इस समस्या का समाधान कीजिये ।
संत ने उसे रात तक इंतजार करने के लिए कहा रात होने पर वह उसे एक झील के पास ले गया और झील के अन्दर चाँद के प्रतिविम्ब को दिखा कर बोले एक चाँद आकाश में और एक झील में, तुम्हारा मन इस झील की तरह है तुम्हारे पास ज्ञान तो है लेकिन तुम उसको इस्तेमाल करने की बजाये सिर्फ उसे अपने मन में लाकर बैठे हो, ठीक उसी तरह जैसे झील असली चाँद का प्रतिविम्ब लेकर बैठी है ।
तुम्हारा ज्ञान तभी सार्थक हो सकता है जब तुम उसे व्यवहार में एकाग्रता और संयम के साथ अपनाने की कोशिश करो । झील का चाँद तो मात्र एक भ्रम है तुम्हे अपने कम में मन लगाने के लिए आकाश के चन्द्रमा की तरह बनाना है, झील का चाँद तो पानी में पत्थर गिराने पर हिलने लगता है जिस तरह तुम्हारा मन जरा-जरा सी बात पर डोलने लगता है ।
तुम्हे अपने ज्ञान और विवेक को जीवन में नियम पूर्वक लाना होगा और अपने जीवन को जितने और सार्थक एवं लक्ष्य हासिल करने में लगाना होगा । खुद को आकाश के चाँद के बराबर बनाओ शुरू में थोडी परेशानी आयेगी पर कुछ समय बाद ही तुम्हे इसकी आदत हो जायेगी ।
Story for Kids # 12. कंजूस राजा:
चन्द्रपुर का राजा अपने कंजूस स्वभाव के नाम से जाना जाता था । वह मजदूरों से काम करवाता, किसानों से अनाज लेता, सुनारों से आभूषण बनवाता पर पैसा देते वक्त कुछ भी मनगढ़ंत किस्सा बनाकर उन्हें खाली हाथ भिजवा देता । लोग चुप रहते । आखिर राजा से कौन बहस करता । फिर भी राजा के इस आचरण से त्रसित होकर सुनार नकली आभूषण देने लगे और व्यापारी मिलावटी माल व किसान खराब अनाज राजा के पास पहुँचाने लगे ।
खराब अनाज व मिलावटी चीजों के सेवन से राजा की तबीयत खराब रहने लगी । वह बिस्तर से लग गया । राजा ने मंत्री से कहकर देवशर्मा नामक वैध को बुलवाया । राजा की सेहत का सवाल था, इसलिये देवशर्मा ने महंगी जडी-बूटी लेकर दवा बनाई और राजा को दी । राजा की तबीयत एकदम ठीक हो गई ।
परन्तु जब वैद को पैसे देने की बात आयी तो राजा ने कहा, ‘वैद्यजी, कल सपने में मेरे पिता श्री ने बताया कि तुम्हारे पिता उनके खास वैद थे और उन्होंने खुश होकर तुम्हारे पिता को पेशगी बतौर बहुत सारा पैसा दिया था और कहा था कि वे अपने बेटे को भी वैद बनाये ताकि वह भी उनकी तरह मेरे पिताश्री के बेटे यानी मेरी चिकित्सा अच्छे से करे । सो तो तुम कर ही रहे हो और इस काम का पैसा तुम्हारे पिता मेरे पिता से पहले ही पेशगी बतौर ले चुके हैं ।’
यह सुन देवशर्मा चुप रहा और खाली हाथ घर लौट आया । कुछ दिनो बाद राजा की तबीयत फिर बिगडी और देवशर्मा को पुन: बुलवाया गया । देवशर्मा इस समय सतर्क था । उसने राजा से कहा, ‘राजन् ! कल ही मुझे सपने में मेरे पिताजी ने बताया कि वे आपके पिताश्री का बहुत सम्मान करते थे । पेशगी बतौर पैसे पाकर मेरे पिताजी ने आपके पिताश्री से कहा, ‘पता नहीं कि मेरा बेटा मेरे जैसा अच्छा वैद बन पावेगा या नहीं ।
इसलिये हे राजन्, आपने जो पैसे दिये हैं उससे मैने बहुत ही कीमती और बडिया दवा बनाई है जिसे आप ले लेंगे तो आपका बेटा कभी बीमार पडेगा ही नहीं और बीमार हुआ भी तो अपने आप ठीक हो जाऊंगा ।’ वह दवा आपके पिताश्री ने ले ली थी । अत: आप निश्चित रहें । आप की तबीयत अपने आप ठीक हो जाऊंगी । यह बात सुन राजा की आँखें खुल गयी और उसका कंजूसी रफूचक्कर हो गई ।
Story for Kids # 13. बीरबल की पैनी दृष्टि:
बीरबल बहुत नेक दिल इंसान थे । वह सैदव दान करते रहते थे और इतना ही नहीं, बादशाह से मिलने वाले इनाम को भी ज्यादातर गरीबों और दीन-दुखियों में बांट देते थे, परन्तु इसके बावजूद भी उनके पास धन की कोई कमी न थी । दान देने के साथ-साथ बीरबल इस बात से भी चौकन्ने रहते थे कि कपटी व्यक्ति उन्हें अपनी दीनता दिखाकर ठग न लें ।
ऐसे ही अकबर बादशाह ने दरबारियों के साथ मिलकर एक योजना बनाई कि देखें कि सच्चे दीन दुःखियों की पहचान बीरबल को हो पाती है या नही । बादशाह ने अपने एक सैनिक को वेश बदलवाकर दीन-हीन अवस्था में बीरबल के पास भेजा कि अगर वह आर्थिक सहायता के रूप में बीरबल से कुछ ले आएगा, तो अकबर की ओर से उसे इनाम मिलेगा ।
एक दिन जब बीरबल पूजा-पाठ करके मंदिर से आ रहे थे तो भेष बदले हुए सैनिक ने बीरबल के सामने आकर कहा, ”हुजूर दीवान ! मैं और मेरे आठ छोटे बच्चे हैं, जो आठ दिनों से भूखे हैं… .भगवान का कहना है किए भूखों को खाना खिलाना बहुत पुण्य का कार्य है, मुझे आशा है कि आप मुझे कुछ दान देकर अवश्य ही पुण्य कमाएंगे ।”
बीरबल ने उस आदमी को सिर से पांव तक देखा और एक क्षण में ही पहचान लिया कि वह ऐसा नहीं है, जैसा वह दिखावा कर रहा है । बीरबल मन ही मन मुस्कराए और बिना कुछ बोले ही उस रास्ते पर चल पड़े जहां से होकर एक नदी पार करनी पड़ती थी । वह व्यक्ति भी बीरबल के पीछे-पीछे चलता रहा । बीरबल ने नदी पार करने के लिए जूती उतारकर हाथ में ले ली । उस व्यक्ति ने भी अपने पैर की फटी पुरानी जूती हाथ में लेने का प्रयास किया ।
बीरबल नदी पार कर कंकरीले मार्ग आते ही दो-चार कदम चलने के बाद ही जूती पहन लिए । बीरबल यह बात भी गौर कर चुके थे कि नदी पार करते समय उसका पैर धूलने के कारण वह व्यक्ति और भी साफ-सुथरा, चिकना, मुलायम गोरी चमड़ी का दिखने लगा था इसलिए वह मुलायम पैरों से कंकरीले मार्ग पर नहीं चल सकता था ।
”दीवानजी! दीन ट्टहीन की पुकार आपने सुनी नहीं ?” पीछे आ रहे व्यक्ति ने कहा । बीरबल बोले, ”जो मुझे पापी बनाए मैं उसकी पुकार कैसे सुन सकता हूँ ?” ”क्या कहा? क्या आप मेरी सहायता करके पापी बन जाएगे ?”
”हाँ, वह इसलिए कि शास्त्रों में लिखा है कि बच्चे का जन्म होने से पहले ही भगवान उसके भोजन का प्रबन्ध करते हुए उसकी मां के स्तनों में दूध दे देता है, उसके लिए भोजन की व्यव्स्था भी कर देता है । यह भी कहा जाता है कि भगवान इन्सान को भूखा उठाता है पर भूखा सुलाता नहीं है ।
इन सब बातों के बाद भी तुम अपने आप को आठ दिन से भूखा कह रहे हो । इन सब स्थितियों को देखते हुए यहीं समझना चाहिये कि भगवान तुमसे रूष्ट हैं और वह तुम्हें और तुम्हारे परिवार को भूखा रखना चाहते हैं लेकिन मैं उसका सेवक हूँ अगर मैं तुम्हारा पेट भर दूं तो ईश्वर मुझ पर रूष्ट होगा ही ।
मैं ईश्वर के विरूध नहीं जा सकता, न बाबा ना ! मैं तुम्हें भोजन नहीं करा सकता, क्योंकि यह सब कोई पापी ही कर सकता है ।” बीरबल का यह जबाब सुनकर वह चला गया । उसने इस बात की बादशाह और दरबारियों को सूचना दी ।
बादशाह अब यह समझ गए कि बीरबल ने उसकी चालाकी पकड़ ली है । अगले दिन बादशाह ने बीरबल से पूछा, ”बीरबल तुम्हारे धर्म-कर्म की बड़ी चर्चा है पर तुमने कल एक भूखे को निराश ही लौटा दिया, क्यों ?” ”आलमपनाह! मैंने किसी भूखे को नहीं, बल्कि एक ढोंगी को लौटा दिया था और मैं यह बात भी जान गया हूँ कि वह ढोंगी आपके कहने पर मुझे बेवकूफ बनाने आया था ।”
अकबर ने कहा, ”बीरबल! तुमनें कैसे जाना कि यह वाकई भूखा न होकर, ढोंगी है ?” ”उसके पैरों और पैरों की चप्पल देखकर । यह सच है कि उसने अच्छा भेष बनाया था, मगर उसके पैरों की चप्पल कीमती थी ।” बीरबल ने आगे कहा, ”माना कि चप्पल उसे भीख में मिल सकती थी, पर उसके कोमल, मुलायम पैर तो भीख में नहीं मिले थे, इसलिए कंकड की गड़न सहन न कर सके ।”
इतना कहकर बीरबल ने बताया कि किस प्रकार उसने उस मनुष्य की परीक्षा लेकर जान लिया कि उसे नंगे पैर चलने की भी आदत नहीं, वह दरिद्र नहीं बल्कि किसी अच्छे कुल का खाता कमाता पुरूष है । बादशाह बोले, ”क्यों न हो, वह मेरा खास सैनिक है ।” फिर बहुत प्रसन्न होकर बोले, ”सचमुच बीरबल! माबदौलत तुमसे बहुत खुश हुए! तुम्हें धोखा देना आसान काम नहीं है ।” बादशाह के साथ साजिश में शामिल हुए सभी दरबारियों के चेहरे बुझ गए ।
Story for Kids # 14. जादुई कुएँ:
एक बार राजा कृष्णदेव राय ने अपने गृहमंत्री को राज्य में अनेक कुएँ बनाने का आदेश दिया । गर्मियाँ पास आ रही थीं, इसलिए राजा चाहते थे कि कुएँ शीघ्र तैयार हो जाएँ, ताकि लोगो को गर्मियों में थोडी राहत मिल सके । गृहमंत्री ने इस कार्य के लिए शाही कोष से बहुत-सा धन लिया ।
शीघ्र ही राजा के आदेशानुसार नगर में अनेक कुएँ तैयार हो गए । इसके बाद एक दिन राजा ने नगर भ्रमण किया और कुछ कुँओं का स्वयं निरीक्षण किया । अपने आदेश को पूरा होते देख वह संतुष्ट हो गए । गर्मियों में एक दिन नगर के बाहर से कुछ गाँव वाले तेनाली राम के पास पहुँचे, वे सभी गृहमंत्री के विरुद्ध शिकायत लेकर आए थे ।
तेनाली राम ने उनकी शिकायत सुनी और उन्हें न्याय प्राप्त करने का रास्ता बताया । तेनाली राम अगले दिन राजा से मिले और बोले, ”महाराज! मुझे विजय नगर में कुछ चोरों के होने की सूचना मिली है । वे हमारे कुएँ चुरा रहे हैं ।”
इस पर राजा बोले, ”क्या बात करते हो, तेनाली! कोई चोर कुएँ को कैसे चुरा सकता है? ” ”महाराज! यह बात आश्चर्यजनक जरुर है, परन्तु सच है, वे चोर अब तक कई कुएँ चुरा चुके हैं ।” तैनाली राम ने बहुत ही भोलेपन से कहा ।
उसकी बात को सुनकर दरबार में उपस्थित सभी दरबारी हँसने लगे । महाराज ने कहा, ”तेनाली राम, तुम्हारी तबियत तो ठीक है । आज कैसी बहकी-बहकी बातें कर रहे हो ? तुम्हारी बातों पर कोई भी व्यक्ति विश्वास नहीं कर सकता ।”
”महाराज! मैं जानता था कि आप मेरी बात पर विश्वास नही करंगे, इसलिए मैं कुछ गाँव वालों को साथ लाया हूँ । वे सभी बाहर खडे हैं । यदि आपको मुझ पर विश्वास नहीं है, तो आप उन्हें दरबार में बुलाकर पूछ लीजिए । यह आपको सारी बात विस्तारपूर्वक बता दंगे ।” राजा ने बाहर खडे गाँव वालों को दरबार में बुलवाया । एक गाँव वाला बोला, ”महाराज! गृहमंत्री द्वारा बनाए गए सभी कुएँ समाप्त हो गए हैं । आप स्वयं देख सकते हैं ।”
राजा ने उनकी बात मान ली और गृहमंत्री, तेनाली राम, कुछ दरबारियों तथा गाँव वालो के साथ कुओं का निरीक्षण करने के लिए चल दिए । पूरे नगर का निरीक्षण करने के पश्चात उन्होंने पाया कि राजधानी के आस-पास के अन्य स्थानो तथा गाँवों में कोई कुआं नहीं है । राजा को यह पता लगते देख गृहमंत्री घबरा गया । वास्तव में उसने कुछ कुओ को ही बनाने का आदेश दिया था । बचा हुआ धन उसने अपनी सुख-सुविधाओं पर व्यय कर दिया ।
अब तक राजा भी तेनाली राम की बात का अर्थ समझ चुके थे । वे गृहमंत्री पर क्रोधित होने लगे, तभी तेनाली राम बीच में बोल पडा ”महाराज! इसमें इनका कोई दोष नहीं है । वास्तव में वे जादुई कुएँ थे जो बनने के कुछ दिन बाद ही हवा में समाप्त हो गए ।”
अपनी बात स्माप्त कर तेनाली राम गृहमंत्री की ओर देखने लगा । गृहमंत्री ने अपना सिर शर्म से झुका लिया । राजा ने गृहमंत्री को बहुत डाँटा तथा उसे सौ और कुएँ बनवाने का आदेश दिया । इस कार्य की सारी जिम्मेदारी तेनाली राम को सौंपी गई ।
Story for Kids # 15. तेनालीराम और राजा का तोता:
किसी ने महाराज कृष्णदेव राय को एक तोता भेंट किया । वह तोता बड़ी भली और सुंदर-सुंदर बातें करता था । वह लोगों के प्रश्नों के उत्तर भी देता था । राजा को वह तोता बहुत पसंद था । उन्होंने उसे पालने और उसकी रक्षा का भार अपनी एक विश्वासी नौकर को सौंपते हुए कहा- ”इस तोते की सारी जिम्मेदारी अब तुम्हारी है ।
इसका पूरा ध्यान रखना । तोता मुझे बहुत प्यारा है । इसे कुछ हो गया तो याद रखो, तुम्हारे हक में वह ठीक नहीं होगा । अगर तुमने या किसी और ने कभी आकर मुझे यह समाचार दिया कि यह तोता मर गया है तो तुम्हें अपने प्राणों से हाथ धोने पड़ेंगे ।”
उस नौकर ने तोते की खूब देखभाल की । हर तरह से उसकी सुख-सुविधा का ध्यान रखा, पर तोता बेचारा एक दिन चल बसा । बेचारा नौकर थर-थर काँपने लगा । सोचने लगा कि अब मेरी जान की खैर नहीं । वह जानता था कि तोते की मौत का समाचार सुनते ही क्रोध में महाराज उसे मृत्युदंड दे देंगे ।
बहुत दिन सोचने पर उसे एक ही रास्ता सुझाई दिया । तेनालीराम के अलावा कोई उसकी रक्षा नहीं कर सकता था । वह दौड़ा-दौड़ा तेनालीराम के पास पहुंचा और उन्हें सारी बात कह सुनाई । तेनालीराम ने कहा- ”बात सचमुच बहुत ही गंभीर है ।
वह तोता महाराज को बहुत प्यारा था, पर तुम चिंता मत करो । मैं कुछ उपाय निकाल ही लूँगा । तुम शांत रहो । तोते के बारे में तुम्हें महाराज से कुछ भी कहने की आवश्यकता नहीं है । मैं स्वयं संभाल लूँगा ।” तेनालीराम महाराज के पास पहुँचा और घबराया हुआ बोला, ”महाराज आपका वह तोता….!” ”क्या हुआ तोते को? तुम इतने घबराए हुए क्यों हो तेनालीराम? बात क्या है?” महाराज ने पूछा ।
”महाराज, आपका वह तोता तो अब बोलता ही नहीं । बिल्कुल चुप हो गया है । न कुछ खाता है, न पीता है, न पंख हिलाता है । बस सूनी-सूनी आँखों से ऊपर की ओर देखता रहता है । उसकी आँखे तक झपकती नहीं ।” तेनालीराम ने कहा ।
महाराज तेनालीराम की बात सुनकर बहुत हैरान हुए । वह स्वयं तोते के पिंजरे के पास पहुँचे । उन्होंने देखा कि तोते के प्राण निकल चुके हैं । झुँझलाते हुए वे तेनालीराम से बोले- ”तुमने सीधी तरह से यह क्यों नहीं कह दिया कि तोता मर गया है । तुमने सारी महाभारत सुना दी, पर असली बात नहीं कही ।”
”महाराज, आप ही ने तो कहा था कि अगर तोते के मरने का समाचार आपको दिया गया तो तोते के रखवाले को मृत्युदंड दे दिया जाएगा । अगर मैंने आपको यह समाचार दे दिया होता, तो वह बेचारा नौकर अब तक मौत के घाट उतार दिया गया होता ।” तेनालीराम ने कहा । राजा इस बात से बहुत प्रसन्न थे कि तेनालीराम ने उन्हें एक निर्दोष व्यक्ति को मृत्युदंड देने से बचा लिया था ।
Story for Kids # 16. साडे पंजाब दीयां केडियां रीसां:
एक था मिलखासिंह । वह पंजाब का रहने वाला था । उसका एक मित्र कश्मीर की वादी में रहता था । मित्र का नाम था आफताब । एक बार मिलखासिंह को आफताब के यहां जाने का मौका मिला । दोनों मित्र लपककर एक-दूसरे के गले से लग गए । आफताब ने रसोईघर में जाकर स्वादिष्ट पकवान तैयार करने को कहा और मिलखासिंह के पास बैठ गया ।
कुछ ही देर में खाने की बुलाहट हुई । मिलखासिंह ने भरपेट भोजन किया । आफताब ने पूछा, ”यार, खाना कैसा लगा?” मिलखा बोला, ‘खाना तो अच्छा था पर साडे पंजाब दीयां केडियां रीसा (हमारे पंजाब का मुकाबला नहीं कर सकता) । आफताब को बात लग गई । रात के भोजन की तैयारी जोर-शोर से की जानी लगी । घर में खुशबू की लपटें उठ रही थीं । रात को खाने की मेज पर गुच्छी की सब्जी से लेकर मांस की कई किस्में भी परोसी गई ।
मिलखासिंह ने खा-पीकर डकार ली तो आफताब ने बेसब्री से पूछा- ‘खाना कैसा लगा, दोस्त?’ ‘साडे पंजाब दीयां केडियां रीसां । ‘मिलखासिंह ने फिर वही जवाब दिया । आफताब के लिए तो बहुत परेशानी हो गई । वह अपने मित्र के मुंह से कहलवाना चाहता था कि कश्मीरी खाना बहुत लज्जतदार होता है ।
वादी के होशियार रसोइए बुलवाए गए । घर में ऐसा हंगामा मच गया मानो किसी बड़ी दावत की तैयारी हो । अगले दिन दोपहर के भोजन में एक-से-एक महंगे और स्वादिष्ट व्यंजन परोसे गए । रोगनजोड़ा, कबाब, करम का साग, केसरिया चावल, खीर आदि पकवानों में से खुशबू की लपटें उठ रही थीं ।
कांच के सुंदर प्यालों में कई किस्म के फल रखे गए थे । मिलखासिंह ने भोजन किया और आफताब के पूछने से पहले ही बोला, ‘अरे, ऐसा लगता है, किसी धन्नासेठ की दावत है ।’ आफताब के मन को फिर भी तसल्ली न हुई । मिलखासिंह जी पंजाब लौट गए ।
कुछ समय बाद आफताब को पंजाब लाने का अवसर मिला । उसने सोचा- ‘मिलखासिंह के घर जरूर जाऊंगा । देखूं तो सही, वह क्या खाते है? ‘ मिलखासिंह ने कश्मीरी मित्र का स्वागत किया । थोड़ी ही देर में भोजन का समय हो गया । दोनों मित्र खाना खाने बैठे । मिलखा की पत्नी दो प्लेटों में सरसों का साग और मक्के की रोटी ले आई । दो गिलासों में मलाईदार लस्सी भी थी ।
आफताब अन्य व्यंजनों की प्रतीक्षा करने लगा । मिलखासिंह बोला, ‘खाओ भई, खाना ठंडा हो रहा है ।’ आफताब ने सोचा कि शायद अगले दिन पंजाब के कुछ खास व्यंजन परोसे जाएंगे । अगले दिन भी वही रोटी और साग परोसे गए । आफताब ने हैरानी से पूछा, ‘मिलखासिंह, तुम तो कहते थे कि ‘पंजाब दीयां केडियां रीरना’ । यह तो बिलकुल साधारण भोजन है ।’
मिलखासिंह ने हंसकर उत्तर दिया, ‘आफताब भाई, तुम्हारे भोजन के स्वाद में कोई कमी न थी, किंतु वह इतना महंगा था कि आम आदमी की पहुंच से बाहर था ।’ हम गांववाले सादा भोजन करते हैं, जो कि पौष्टिक भी है और सस्ता भी । यही हमारी सेहत का राज है । आफताब जान गया कि मिलखासिंह सही कह रहा था । सादा भोजन ही अच्छे स्वस्थ्य का राज है ।
Story for Kids # 17. लोभ का परिणाम:
एक लोभी सेठ था एक दिन उसने सोचा की किसी ब्राह्मण को भोजन कराकर क्यों न पुन्य कमा लिया जाए । इसके लिए उसने एक दुबले पतले ब्राह्मण की तलाश करना शुरू कर दिया । वह सेठ एक दुबले पतले ब्राह्मण के पास पहुंचा और उसे भोजन कराने की इच्छा प्रकट की और उससे पूछा – महाराज आप कितना भोजन लेते हैं ।
वह ब्राह्मण उस सेठ को अच्छी तरह से जानता था उसने सेठ से कहा – मैं तो मात्र सौ ग्राम भोजन करता हूँ । सेठ उसकी बात सुनकर बड़ा प्रसन्न हो गया और ब्राह्मण से बोला – ठीक है महाराज आप भोजन करने घर पर आ जाना और उस समय मैं घर पर नहीं रहूँगा । सेठ ने घर पहुंचकर अपनी पत्नी को कहा – मुझे जरूरी काम है मैं कल घर पर नहीं रहूँगा ।
सेठ ने घर पहुँचकर अपनी पत्नी को कहा – मुझे जरूरी कम है मैं कल घर पर नहीं रहूँगा .. एक बाह्मण देवता आएंगे तुम उसे भोजन करा देना । दूसरे दिन ब्राह्मण भोजन करने सेठ के घर पहुँचे सेठानी ने बड़ी आबभगत की और आदर के साथ पंडित जी से बोली – महाराज आप क्या लेंगे ।
मौका ताड़ कर ब्राह्मण ने कहा – बस ज्यादा नहीं दस मन आटा, चार मन चावल और दस सेर घी, एक मन शक्कर मेरे घर पर भिजवा दो और फिर उस ब्राह्मण ने सेठजी के यहाँ डट कर भोजन किया और वहां से बिदा ली ।
घर आकर वह ब्राह्मण चादर ओढ़ तानकर सो गया और सोते सोते अपनी पत्नी से बोला – सेठजी जब घर आयें तो तुम उन्हें देखते ही रोने लगना और उनसे कहना की जबसे आपके घर से आयें हैं तो तबसे एकदम से सख्त बीमार पड़ गए हैं और उनके बचने की कोई उम्मीद नहीं है । उधर सेठ अपने घर पहुँचा और सारा वृतांत अपनी पत्नी से सुना तो उसके होश उड़ गए और वह बेहोश हो गया ।
होश आने पर वह ब्राह्मण के घर पहुँचा तो उसने ब्राह्मण को बिस्तर पर पड़े देखा और ब्राह्मण की पत्नी ने रो रोकर आसमान सर पर उठा लिया और सेठ के सामने छाती ठोककर चीख पुकार करना शुरू कर दिया तो सेठजी की हालत पतली हो गई ।
सेठजी ने धीरे से ब्राह्मण की पत्नी के हाथों में बीस हजार रुपये पकड़ा दिये और बोले ब्राह्मण जी का अच्छे से उपचार कराओ पर हाँ यह बात ध्यान में रखना और किसी से न कहना की ब्राह्मण महोदय ने मेरे यहाँ भोजन किये थे । इस तरह लोभी सेठ लुट पिट कर अपने घर की और रवाना हो गया । सच है की अति लोन का परिणाम अच्छा नहीं होता है ।
Story for Kids # 18. बिना विचारे जो करे वो पाछे पछतावे:
सेठ घनश्याम दास कपड़े का बहुत बड़ा व्यापारी था । उसने ढ़ेरों दौलत जमा कर रखी थी । उसका व्यापार आस-पास के देशों में भी फैल चुका था । वह कभी-कभी उन देशों की यात्रा भी किया करता था । जब उसका बेटा जवान हो गया तो वह अपने पिता के व्यापार में हाथ बंटाने लगा ।
एक बार घनश्याम दास ने अपने बेटे रामदास से कहा – ”हमारे पास दूर देश से बहुत बड़ा आर्डर आया है, तुम्हें सामान लेकर वहां जाना होगा ।” रामदास ने अब तक किसी देश की यात्रा नहीं की थी । वह यह जानकर बहुत खुश हुआ कि उसके अब्बा उसे दूर देश भेज रहे हैं । उसने तुरंत वहां जाने की तैयारी शुरू कर दी ।
अगले दिन रामदास सामान लेकर यात्रा के लिए रवाना हो गया । वह होटल में सामान रखकर वहां के बाजार में घूमने निकला । रारते में उसने एक निराला फल बिकते देखा । उसने इतना बड़ा फल आज तक नहीं देखा था । वह फल के पास गया और फल को हाथ में उठाकर देखा तो हैरान रह गया कि ऊपर से कांटों वाला यह फल बहुत ही भारी था । रामदास ने पूछा – ”भाई, इसे क्या कहते हैं” फल वाला हँसते हुए बोला- ”साहब, इसे कटहल कहते हैं ।”
रामदास ने कटहल को सूंघकर देखा तो उसे कटहल की खुशबू अच्छी लगी । वह सोचने लगा कि यदि इस कटहल की खुशबू इतनी अच्छी है तो स्वाद कितना अच्छा होगा ? परंतु मन ही मन रामदास यह सोच रहा था कि इतना बड़ा फल बहुत महंगा होगा । उसने फल वाले से पूछा – ”भाई, कटहल कितने का है ?” फल वाले ने उत्तर दिया – ”दस आने का ।”
रामदास को अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ । उसे लगा कि शायद उसने गलत सुना है या फल वाले का ध्यान कहीं और है, इस कारण उसने गलती से कटहल का दाम कम बता दिया है । उसने तुरंत जेब से पैसे निकाले और कटहल खरीद लिया । कटहल खरीद कर वह सीधे होटल पहुंचा । छुरी निकाल कर कटहल काट लिया और उसे खाने लगा । उसे कटहल का स्वाद बहुत अच्छा लग रहा था, इस कारण आधे से अधिक कटहल उसने खा लिया ।
खाने के पश्चात वह नल पर हाथ धोने गया, परंतु उसके हाथ व मुंह बुरी तरह से चिपक रहे थे, इस कारण साफ नहीं हो सके । हाथ धोने की कोशिश में वे और भी ज्यादा चिपक गए । उसने हाथों को बार-बार साबुन से रगड़ा परंतु वे साफ नहीं हो रहे थे ।
उसने देखा कि कटहल का रस कपड़ों पर लग गया है । उसने कपड़ों को नैपकिन से साफ करने की कोशिश की, परंतु नैपकिन कपड़ा से चिपक गया । वह अकेला था इस कारण समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे । वैसे भी रामदास अपने घर से पहली बार अकेला निकला था ।
इस कारण थोड़ा घबरा रहा था । उसने सोचा कि होटल के मालिक या किसी नौकर से पूँछ लूं कि इसे कैसे साफ किया जाए । रामदास कमरे से बाहर निकल कर ज्यों ही किसी के सामने पड़ा वह व्यक्ति रामदास को देखकर हँसने लगा । रामदास की हिम्मत ही नहीं हुई कि वह किसी से कुछ पूछे ।
वह चुपचाप होटल के बाहर निकल गया । बाहर तेज हवा चल रही थी । सड़क के पत्ते उड़-उड़ कर रामदास के कपडों पर चिपकने लगे । उसकी मूछों के बाल भी चिपक कर अजीब से लग रहे थे । हवा के साथ धूल-मिट्टी, कागज, पंख आदि उसके कपड़ों व हाथों में चिपकते जा रहे थे ।
वह जिधर से निकलता, उधर से लोग उसे देखकर हँसने लगते । उसका चेहरा भी धूल से चिपकने से गंदा लगने लगा था । कुछ लोग उसे पागल समझकर उसके पीछे चलने लगे । रामदास के समझ में नहीं आया कि वह क्या करे । वह चुपचाप दुकान में घुस गया और एक कोने में छिपने का प्रयास करने लगा ।
संयोग से वह दुकान एक सर्राफ की थी । वहाँ ग्राहकों को दिखाए गए आभूषण एक मेज पर रखे थे । रामदास उस मेज से टकरा गया और कुछ आभूषण उसके कपड़ों से जा चिपके । ज्योंहि रामदास छिपने का प्रयास करने लगा दुकान के मालिक की निगाह उस पर गई ।
उसने ‘चोर-चोर’ कह-कहकर शोर मचा दिया । दुकान के नौकरों ने रामदास को पकड़ लिया । भीड़ इकट्ठी हो गई । पुलिस को खबर दी गई । रामदास ने लाख समझाया कि उसने चोरी नहीं की है परंतु उसके कपड़ों पर चिपके आभूषणों के कारण किसी को विश्वास न हुआ ।
उसे पुलिस के हवाले कर दिया गया । पुलिस ने रामदास से चोरी का कारण जानना चाहा तो उसने सविस्तार से कटहल खाने की पूरी बात उन्हें बता दी । थानेदार हँसता हुआ बोला – ”अरे मियां, जब खाना नहीं आता था तो कटहल खाया क्यों ? अच्छा, यह बताओ कि तुम किस व्यापारी के यहां आए थे ।” रामदास को उस व्यापारी के यहां ले जाया गया ।
परंतु उस व्यापारी ने रामदास के हुलिए के कारण उसे पहचानने से इन्कार कर दिया । तब रामदास ने अपना व अपने पिता का पूरा नाम बताया; साथ ही अपने साथ लाए सामान की पूरी जानकारी दी । इस पर व्यापारी ने उसे पहचानते हुए कहा – ”थानेदार जी, यह अपना ही बच्चा है । इसे छोड़ दीजिए । यह हालात के कारण मुसीबत में फंस गया है ।”
अब रामदास बोला – ”पहले मुझे इस मुसीबत से छुटकारा दिलाइए ।” व्यापारी ने रामदास को बदलने के लिए कपड़े दिए । उसका चेहरा व हाथ-पैर साफ करवाए, फिर उसकी अच्छी खातिरदारी की और कहा । ”बेटा याद रख, किसी भी नई चीज को आजमाने से पहले उसकी जानकारी अवश्य ले लेनी चाहिए ।”
Story for Kids # 19. खरगोश और कछुआ:
एक था कछुआ और एक था खरगोश ! दोनों एक जंगल में रहते थे । दोनों बहुत अच्छे दोस्त थे । खरगोश हरदम उछलता-कूदता रहता था । वह बहुत तेज और बुद्धिमान था । जंगल के सभी जानवर उससे सलाह ले कर ही सब काम करते थे ।
कछुआ बहुत सीधा-सादा था और हर समय अपनी खोल में दुबका रहता था । वह अपना हर काम खरगोश से सलाह लेकर करता था । खरगोश कछुआ को मीठे-मीठे गाजर खिलाता था । कछुआ खरगोश को अपनी पीठ पर बैठा कर नदी में घुमाता था ।
एक बार कछुए और खरगोश में बहस छिड़ गयी कि कौन तेज दौड़ता है ? उनकी बहस खतम ही नहीं हो रही थी । आस-पास के और जानवर और चिडियाँ सभी वहाँ आ गए । सबने उनकी बात सुनी । सब जानवर जानते थे कि खरगोश बहु तेज दौड़ता है पर कछुआ अपनी जिद पर अड़ा रहा ।
उसने कहा -मैं तेज दौड़ता हूँ । अंत में सबने कहा कि जंगल के अंत में बहने वाली नदी के किनारे वाले बरगद के पेड़ के पास, जो सूरज डूबने से पहले पहुँचेगा वही जीतेगा । खरगोश और कछुए कि दौड़ शुरू हो गयी । दोनों दौड़ने लगे खरगोश बहुत आगे निकल गया ।
वह बहुत खुश था कि वह ही जीतेगा । धीमे-धीमे रेंगने वाला कछुआ भला दौड़ने में उससे कैसे जीतेगा ? रास्ते में खरगोश को एक पीपल का पेड़ दिखा । खरगोश ने सोचा, कछुआ तो अभी बहुत पीछे है । चलो थोड़ा सुस्ता लेता हूँ । वह पीपल के पेड़ की छाया में लेट गया ।
ठंडी-ठंडी हवा चल रही थी । खरगोश को नींद आ गयी । कछुआ धीमे-धीमे दौड़ता ही रहा । उसे धूप लग रही थी । उसे प्यास भी लग रही थी पर वह रुका नहीं… दौड़ता ही रहा । वह तब तक दौड़ता रहा… दौड़ता ही रहा… जब तक कि बरगद का पेड़ नहीं आ गया ।
शाम होने वाली थी, तब जाकर खरगोश की नींद खुली । वह खूब तेज दौड़ा । उसने सोचा-कछुआ तो अभी बहुत दूर ही होगा…वह भला कैसे तेज दौड़ पायेगा ? सूरज डूबने वाला था । उसने बहुत तेज दौड़ लगाई… उसे जीतना जो था ! सूरज डूबने के पहले ही वह बरगद के पेड़ तक पहुँच गया ।
पर यह क्या…? कछुआ तो जंगल के पार…नदी के किनारे …बरगद के पेड़ के नीचे आराम से बैठा हँस रहा था…! खरगोश रेस हार गया…! कछुआ जीत गया…!! उसे जीतना ही था…!!!
Story for Kids # 20. काबुलीवाला:
मेरी पांच वर्ष की छोटी लड़की मिनी से पल भर भी बात किए बिना नहीं रहा जाता । दुनिया में आने के बाद भाषा सीखने में उसने सिर्फ एक ही वर्ष लगाया होगा । उसके बाद से जितनी देर तक सो नहीं पाती है, उस समय का एक पल भी वह चुप्पी में नहीं खोती ।
उसकी माता बहुधा डांट-फटकारकर उसकी चलती हुई जबान बन्द कर देती हैय किन्तु मुझसे ऐसा नहीं होता, मिनी का मौन मुझे ऐसा अस्वाभाविक-सा प्रतीत होता है, कि मुझसे वह अधिक देर तक सहा नहीं जाता और यही कारण है कि मेरे साथ उसके भावों का आदान-प्रदान कुछ अधिक उत्साह के साथ होता रहता है ।
सवेरे मैंने अपने उपन्यास के सत्रहवें अध्याय में हाथ लगाया ही था कि इतने में मिनी ने आकर कहना आरम्भ कर दिया-बाबूजी ! रामदयाल दरबान कल काका को कौआ कहता था । वह कुछ जानता ही नहीं, न बाबूजी?
विश्व की भाषाओं की विभिन्नता के विषय में मेरे कुछ बताने से पहले ही उसने दूसरा प्रसंग छेड़ दिया- बाबूजी ! भोला कहता था आकाश मुंह से पानी फेंकता है, इसी से बरसा होती है । अच्छा बाबूजी, भोला झूठ-मूठ कहता है न? खाली बक-बक किया करता है, दिन-रात बकता रहता है ।
इस विषय में मेरी राय की तनिक भी राह न देख करके, चट से धीमे स्वर में एक जटिल प्रश्न कर बैठी, बाबूजी, मां तुम्हारी कौन लगती है? मन-ही-मन में मैंने कहा साली और फिर बोला-मिनी, तू जा, भोला के साथ खेल, मुझे अभी काम है, अच्छा ।
तब उसने मेरी मेज के पार्श्व में पैरों के पास बैठकर अपने दोनों घुटने और हाथों को हिला-हिलाकर बड़ी शीघ्रता से मुंह चलाकर अटकन-बटकन दही चटाके कहना आरम्भ कर दिया । जबकि मेरे उपन्यास के अध्याय में प्रतापसिंह उस समय कंचनमाला को लेकर रात्रि के प्रगाड़ अन्धकार में बन्दीगृह के ऊंचे झरोखे से नीचे कलकल करती हुई सरिता में कूद रहे थे ।
मेरा घर सड़क के किनारे पर था, सहसा मिनी अपने अटकन-बटकन को छोड़कर कमरे की खिड़की के पास दौड़ गई, और जोर-जोर से चिल्लाने लगी, काबुल वाला, ओ काबुल वाला । मैले-कुचले ढ़ीले कपड़े पहने, सिर पर कुल्ला रखे, उस पर साफा बांधे कन्धे पर सूखे फलों की मैली झोली लटकाये, हाथ में चमन के अंगूरों की कुछ पिटारियां लिये, एक लम्बा-तगड़ा-सा काबुली मन्द चाल से सड़क पर जा रहा था ।
उसे देखकर मेरी छोटी बेटी के हृदय में कैसे भाव उदय हुए वह बताना असम्भव है । उसने जोरों से पुकारना शुरू किया । मैंने सोचा, अभी झोली कन्धे पर ड़ाले, सर पर एक मुसीबत आ खडी होगी और मेरा सत्रहवां अध्याय आज अधूरा रह जायेगा ।
किन्तु मिनी के चिल्लाने पर ज्योंही काबुली ने हँसते हुए उसकी ओर मुंह फेरा और घर की ओर बढ़ने लगा त्योंही मिनी भय खाकर भीतर भाग गई । फिर उसका पता ही नहीं लगा कि कहां छिप गई ? उसके छोटे से मन में वह अन्धविश्वास बैठ गया था कि उस मैली-कुचली झोली के अन्दर ढूंड़ने पर उस जैसी और भी जीती-जागती बच्ची निकल सकती हैं ।
इधर काबुली ने आकर मुस्कराते हुए मुझे हाथ उठाकर अभिवादन किया और खड़ा हो गया । मैंने सोचा, वास्तव में प्रतापसिंह और कंचनमाला की दशा अत्यन्त संकटापन्न है, फिर भी घर में बुलाकर इससे कुछ न खरीदना अच्छा न होगा ।
कुछ सौदा खरीदा गया । उसके बाद मैं उससे इधर-उधर की बातें करने लगा । रहमत, रूस, अंग्रेज, सीमान्त रक्षा के बारे में गप-शप होने लगी । अन्त में उठकर जाते हुए उसने अपनी मिली-जुली भाषा में पूछा- बाबूजी, आपकी बच्ची कहां गई ?
मैंने मिनी के मन से व्यर्थ का भय दूर करने के अभिप्राय से उसे भीतर से बुलवा लिया । वह मुझसे बिल्कुल लगकर काबुली के मुख और झोली की ओर सन्देहात्मक दृष्टि ड़ालती हुई खड़ी रही । काबुली ने झोली में से किसमिस और खुबानी निकालकर देनी चाहीं, पर उसने न लीं, और दुगुने सन्देह के साथ मेरे घुटनों से लिपट गई । उसका पहला परिचय इस प्रकार हुआ ।
इस घटना के कुछ दिन बाद एक दिन सवेरे मैं किसी आवश्यक कार्यवश बाहर जा रहा था । देखूं तो मेरी बिटिया दरवाजे के पास बैंच पर बैठी हुई काबुली से हँस-हँसकर बातें कर रही है और काबुली उसके पैरों के समीप बैठा-बैठा मुस्कराता हुआ, उन्हे ध्यान से सुन रहा है और बीच-बीच में अपनी राय मिली-जुली भाषा में व्यक्त करता जाता है ।
मिनी को अपने पांच वर्ष के जीवन में, बाबूजी के सिवा, ऐसा धैर्य वाला श्रोता शायद ही कभी मिला हो । देखा तो, उसका फिराक का अग्रभाग बादाम-किसमिस से भरा हुआ है । मैंने काबुली से कहा- इसे यह सब क्यों दे दिया ? अब कभी मत देना ? कहकर कुर्ते की जेब में से एक अठन्नी निकालकर उसे दी । उसने बिना किसी हिचक के अठन्नी लेकर अपनी झोली में रख ली ।
कुछ देर बाद, घर लौटकर देखता हूँ तो उस अठन्नी ने बड़ा भारी उपद्रव खड़ा कर दिया है । मिनी की मां एक सफेद चमकीला गोलाकार पदार्थ हाथ में लिये डांट-डपटकर मिनी से पूछ रही थी- तूने यह अठन्नी पाई कहाँ से, बता ? मिनी ने कहा- काबुल वाले ने दी है ।
काबुल वाले से तूने अठन्नी ली कैसे, बता ? मिनी ने रोने का उपक्रम करते हुए कहा-मैंने मांगी नहीं थी, उसने आप ही दी है । मैंने जाकर मिनी की उस अकस्मात मुसीबत से रक्षा की, और उसे बाहर ले आया । मालूम हुआ कि काबुली के साथ मिनी की यह दूसरी ही भेंट थी, सो बात नहीं ।
इस दौरान में वह रोज आता रहा है और पिस्ता-बादाम की रिश्वत दे-देकर मिनी के छोटे से हृदय पर बहुत अधिकार कर लिया है । देखा कि इस नई मित्रता में बंधी हुई बातें और हँसी ही प्रचलित है । जैसे मेरी बिटिया, रहमत को देखते ही, हँसती हुई पूछती- काबुल वाला ओ काबुल वाला, तुम्हारी झोली के भीतर क्या है ?
काबुली जिसका नाम रहमत था, एक अनावश्यक चन्द्र-बिन्दु जोड़कर मुस्कराता हुआ उत्तर देता- हाँ बिटिया उसके परिहास का रहस्य क्या है, यह तो नहीं कहा जा सकताय फिर भी इन नए मित्रों को इससे तनिक विशेष खेल-सा प्रतीत होता है और जाड़े के प्रभात में एक सयाने और एक बच्ची की सरल हँसी सुनकर मुझे भी बड़ा अच्छा लगता ।
उन दोनों मित्रों में और भी एक-आध बात प्रचलित थी । रहमत मिनी से कहता-तुम ससुराल कभी नहीं जाना, अच्छा ? हमारे देश की लड़कियां जन्म से ही ससुराल शब्द से परिचित रहती हैं । किन्तु हम लोग तनिक कुछ नई रोशनी के होने के कारण तनिक-सी बच्ची को ससुराल के विषय में विशेष ज्ञानी नहीं बना सके थे, अत: रहमत का अनुरोध वह स्पष्ट रूप से नहीं समझ पाती थी ।
इस पर भी किसी बात का उत्तर दिये बिना चुप रहना उसके स्वभाव के बिल्कुल ही विरुध्द था । उल्टे वह रहमत से ही पूछती- तुम ससुराल जाओगे ? रहमत काल्पनिक वसुर के लिए अपना जबर्दस्त घुंसा तानकर कहता-हम ससुर को मारेगा। सुनकर मिनी ससुर नामक किसी अनजाने जीव की दुरावस्था की कल्पना करके खूब हँसती ।
देखते-देखते जाड़े की सुहावनी ऋतु आ गई । पूर्व युग में इसी समय राजा लोग दिग्विजय के लिए कूच करते थे । मैं कलकत्ता छोड़कर कभी कहीं नहीं गया, शायद इसीलिए मेरा मन ब्रह्माण्ड में घूमा करता है । यानी, मैं अपने घर में ही चिर प्रवासी हूँ, बाहरी ब्रह्माण्ड के लिए मेरा मन सर्वदा आतुर रहता है ।
किसी विदेश का नाम आगे आते ही मेरा मन वहीं की उड़ान लगाने लगता है । इसी प्रकार किसी विदेशी को देखते ही तत्काल मेरा मन सरिता-पर्वत-बीह वन के बीच में एक कुटीर का दृश्य देखने लगता है और एक उल्लासपूर्ण स्वतंत्र जीवन-यात्रा की बात कल्पना में जाग उठती है ।
इधर देखा तो मैं ऐसी प्रकृति का प्राणी हूँ जिसका अपना घर छोड़कर बाहर निकलने में सिर कटता है । यही कारण है कि सवेरे के समय अपने छोटे से कमरे में मेज के सामने बैठकर उस काबुली से गप-शप लड़ाकर बहुत कुछ भ्रमण का काम निकाल लिया करता हूँ । मेरे सामने काबुल का पूरा चित्र खिंच जाता ।
दोनों ओर ऊब खाबड़ लाल-लाल ऊंचे दुर्गम पर्वत हैं और रेगिस्तानी मार्ग, उन पर लदे हुए ऊंटों की कतार जा रही है । ऊंचे-ऊंचे साफे बांधे हुए सौदागर और यात्री कुछ ऊंट की सवारी पर हैं तो कुछ पैदल ही जा रहे हैं । किन्हीं के हाथों में बरछा है, तो कोई बाबा आदम के जमाने की पुरानी बन्दूक थामे हुए है ।
बादलों की भयानक गर्जन के स्वर में काबुली लोग अपने मिली-जुली भाषा में अपने देश की बातें कर रहे हैं । मिनी की माँ बड़ी वहमी तबीयत की है । राह में किसी प्रकार का शोर-गुल हुआ नहीं कि उसने समझ लिया कि संसार भर के सारे मस्त शराबी हमारे ही घर की ओर दौडे आ रहे हैं ।
उसके विचारों में यह दुनिया इस छोर से उस छोर तक चोर-ड़कैत, मस्त, शराबी, सांप, बाघ, रोगों, मलेरिया, तिलचट्टे और अंग्रेजों से भरी पड़ी है । इतने दिन हुए इस दुनिया में रहते हुए भी उसके मन का यह रोग दूर नहीं हुआ । रहमत काबुली की ओर से भी वह पूरी तरह निश्चिंत नहीं थी ।
उस पर विशेष नजर रखने के लिए मुझसे बार-बार अनुरोध करती रहती । जब मैं उसके शक को परिहास के आवरण से ढ़कना चाहता तो मुझसे एक साथ कई प्रश्न पूछ बैठती- क्या कभी किसी का लड़का नहीं चुराया गया ? क्या काबुल में गुलाम नहीं बिकते ? क्या एक लम्बे-तगड़े काबुली के लिए एक छोटे बच्चे का उठा ले जाना असम्भव है ? इत्यादि ।
मुझे मानना पड़ता कि यह बात नितान्त असम्भव हो सो बात नहीं पर भरोसे के काबिल नहीं । भरोसा करने की शक्ति सब में समान नहीं होती, अत: मिनी की मां के मन में भय ही रह गया लेकिन केवल इसीलिए बिना किसी दोष के रहमत को अपने घर में आने से मना न कर सका ।
हर वर्ष रहमत माघ मास में लगभग अपने देश लौट जाता है । इस समय वह अपने व्यापारियों से रुपया-पैसा वसूल करने में तल्लीन रहता है । उसे घर-घर, दुकान-दुकान घूमना पड़ता है, लेकिन फिर भी मिनी से उसकी भेंट एक बार अवश्य हो जाती है ।
देखने में तो ऐसा प्रतीत होता है कि दोनों के मध्य किसी षड़यंत्र का श्रीगणेश हो रहा है । जिस दिन वह सेवेरे नहीं आ पाता, उस दिन देखूं तो वह संध्या को हाजिर है । अंधेरे में घर के कोने में उस ढ़ीले-ढ़ाले जामा-पाजामा पहने, झोली वाले लम्बे–तगड़े आदमी को देखकर सचमुच ही मन में अचानक भय-सा पैदा हो जाता है ।
लेकिन, जब देखता हूँ कि मिनी ओ काबुल वाला पुकारती हुई हँसती-हँसती दौडी आती है और दो भिन्न-भिन्न आयु के असम मित्रों में वही पुराना हास-परिहास चलने लगता है, तब मेरा सारा हृदय खुशी से नाच उठता है । एक दिन सवेरे मैं अपने छोटे कमरे में बैठा हुआ नई पुस्तक के प्रूफ देख रहा था ।
जाड़ा, विदा होने से पूर्व, आज दो-तीन दिन खूब जोरों से अपना प्रकोप दिखा रहा है । जिधर देखो, उधर उस जाड़े की ही चर्चा है । ऐसे जाड़े-पाले में खिड़की में से सवेरे की धूप मेज के नीचे मेरे पैरों पर आ पड़ी । उसकी गर्मी मुझे अच्छी प्रतीत होने लगी । लगभग आठ बजे का समय होगा । सिर से मफलर लपेटे ऊषाचरण सवेरे की सैर करके घर की ओर लौट रहे थे । ठीक इस समय राह में एक बड़े जोर का शोर सुनाई दिया ।
देखूं तो अपने उस रहमत को दो सिपाही बांधे लिये जा रहे हैं । उनके पीछे बहुत से तमाशाही बच्चों का झुंड चला आ रहा है । रहमत के ढ़ीले-ढ़ाले कुर्ते पर खून के दाग हैं और एक सिपाही के हाथ में खून से लथपथ छुरा । मैंने द्वार से बाहर निकलकर सिपाही को रोक लिया, पूछा- क्या बात है ?
कुछ सिपाही से और कुछ रहमत से सुना कि हमारे एक पड़ोसी ने रहमत से रामपुरी चादर खरीदी थी । उसके कुछ रुपये उसकी ओर बाकी थे, जिन्हें देने से उसने साफ इनार कर दिया । बस इसी पर दोनों में बात बढ़ गई और रहमत ने छुरा निकालकर घोंप दिया ।
रहमत उस झूठे बेईमान आदमी के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार के अपशब्द सुना रहा था । इतने में काबुल वाला ! ओ काबुल वाला ! पुकारती हुई मिनी घर से निकल आई । रहमत का चेहरा क्षण-भर में कौतुक हास्य से चमक उठा । उसके कन्धे पर आज झोली नहीं थी । अत: झोली के बारे में दोनों मित्रों की अभ्यस्त आलोचना न चल सकी । मिनी ने आते के साथ ही उसने पूछा – तुम ससुराल जाओगे ।
रहमत ने प्रफुल्लित मन से कहा – हाँ, वहीं तो जा रहा हूँ । रहमत जान गया कि उसका यह जवाब मिनी के चेहरे पर हँसी न ला सकेगा और तब उसने हाथ दिखाकर कहा – ससुर को मारता, पर क्या करूं, हाथ बंधे हुए हैं । छुरा चलाने के जुर्म में रहमत को कई वर्ष का कारावास मिला ।
रहमत का ध्यान धीरे-धीरे मन से बिल्कुल उतर गया । हम लोग अब अपने घर में बैठकर सदा के अभ्यस्त होने के कारण, नित्य के काम-धंधों में उलझे हुए दिन बिता रहे थे । तभी एक स्वाधीन पर्वतों पर घूमने वाला इन्सान कारागार की प्राचीरों के अन्दर कैसे वर्ष पर वर्ष काट रहा होगा, यह बात हमारे मन में कभी उठी ही नहीं ।
और चंचल मिनी का आचरण तो और भी लज्जाप्रद था । यह बात उसके पिता को भी माननी पड़ेगी । उसने सहज ही अपने पुराने मित्र को भूलकर पहले तो नबी सईस के साथ मित्रता जोड़ी, फिर क्रमश: जैसे-जैसे उसकी वयोवृथ्यि होने लगी वैसे-वैसे सखा के बदले एक के बाद एक उसकी सखियां जुटने लगीं और तो क्या, अब वह अपने बाबूजी के लिखने के कमरे में भी दिखाई नहीं देती । मेरा तो एक तरह से उसके साथ नाता ही टूट गया है ।
कितने ही वर्ष बीत गये ? वर्षों बाद आज फिर एक शरद ऋतु आई है । मिनी की सगाई की बात पक्की हो गई । पूजा की छुट्टियों में उसका विवाह हो जायेगा । कैलाशवासिनी के साथ-साथ अबकी बार हमारे घर की आनन्दमयी मिनी भी मां-बाप के घर में अंधेरा करके ससुराल चली जायेगी ।
सवेरे दिवाकर बड़ी सज-धज के साथ निकले । वर्षों के बाद शरद की यह नई धवल धूप सोने में सुहागे का काम दे रही है । कलकत्ता की संकरी गलियों से परस्पर सटे हुए पुराने ईटझर गन्दे घरों के ऊपर भी इस धूप की आभा ने एक प्रकार का अनोखा सौन्दर्य बिखेर दिया है ।
हमारे घर पर दिवाकर के आगमन से पूर्व ही शहनाई बज रही है । मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा है कि जैसे यह मेरे हृदय की धड़कनों में से रो-रोकर बज रही हो । उसकी करुण भैरवी रागिनी मानो मेरी विच्छेद पीड़ा को जाड़े की धूप के साथ सारे ब्रह्माण्ड में फैला रही है । मेरी मिनी का आज विवाह है ।
सवेरे से घर बवंड़र बना हुआ है । हर समय आने-जाने वालों का तांता बंधा हुआ है । आंगन में बांसों का मंड़प बनाया जा रहा है । हरेक कमरे और बरामदे में झाड़फानूस लटकाये जा रहे हैं, और उनकी टक-टक की आवाज मेरे कमरे में आ रही है । चलो रे, जल्दी करो, इधर आओ की तो कोई गिनती ही नहीं है ।
मैं अपने लिखने-पढ़ने के कमरे में बैठा हुआ हिसाब लिख रहा था । इतने में रहमत आया और अभिवादन करके खड़ा हो गया । पहले तो मैं उसे पहचान न सका । उसके पास न तो झोली थी और न पहले जैसे लम्बे-लम्बे बाल और न चेहरे पर पहले जैसी दिव्य ज्योति ही थी । अन्त में उसकी मुस्कान देखकर पहचान सका कि वह रहमत है ।
मैंने पूछा-क्यों रहमत, कब आये ? उसने कहा-कल शाम को जेल से छूटा हूँ । सुनते ही उसके शब्द मेरे कानों में खट से बज उठे । किसी खूनी को मैंने कभी आखों से नहीं देखा था, उसे देखकर मेरा सारा मन एकाएक सिकुड़-सा गया । मेरी यही इच्छा होने लगी कि आज के इस शुभ दिन में वह इंसान यहां से टल जाये तो अच्छा हो ।
मैंने उससे कहा- आज हमारे घर में कुछ आवश्यक काम है, सो आज मैं उसमें लगा हुआ हूँ । आज तुम जाओ, फिर आना । मेरी बात सुनकर वह उसी क्षण जाने को तैयार हो गया । पर द्वार के पास आकर कुछ इधर-उधर देखकर बोला- क्या, बच्ची को तनिक नहीं देख सकता ?
शायद उसे यही विश्वास था कि मिनी अब तक वैसी ही बच्ची बनी है । उसने सोचा हो कि मिनी अब भी पहले की तरह काबुल वाला, ओ काबुल वाला पुकारती हुई दौड़ी चली आयेगी । उन दोनों के पहले हास-परिहास में किसी प्रकार की रुकावट न होगी ।
यहां तक कि पहले की मित्रता की याद करके वह एक पेटी अंगूर और एक कागज के दोने में थोडी-सी किसमिस और बादाम, शयद अपने देश के किसी आदमी से मांग-तांगकर लेता आया था । उसकी पहले की मैली-कुचली झोली आज उसके पास न थी ।
मैंने कहा – आज घर में बहुत काम है । सो किसी से भेंट न हो सकेगी । मेरा उत्तर सुनकर वह कुछ उदास-सा हो गया । उसी मुद्रा में उसने एक बार मेरे मुख की ओर स्थिर दृष्टि से देखा । फिर अभिवादन करके दरवाजे के बाहर निकल गया ।
मेरे हृदय में जाने कैसी एक वेदना-सी उठी । मैं सोच ही रहा था कि उसे बुलाऊं, इतने में देखा तो वह स्वयं ही आ रहा है । वह पास आकर बोला – ये अंगूर और कुछ किसमिस, बादाम बच्ची के लिए लाया था, उसको दे दीजियेगा ।
मैंने उसके हाथ से सामान लेकर पैसे देने चाहे, लेकिन उसने मेरे हाथ को थामते हुए कहा – आपकी बहुत मेहरबानी है बाबू साहब, हमेशा याद रहेगी, पिसा रहने दीजिए । तनिक रुककर फिर बोला – बाबू साहब ! आपकी जैसी मेरी भी देश में एक बच्ची है । मैं उसकी याद कर-कर आपकी बच्ची के लिए थोड़ी-सी मेवा हाथ में ले आया करता हूँ ।
मैं यह सौदा बेचने नहीं आता । कहते हुए उसने ढ़ीले-ढ़ाले कुर्ते के अन्दर हाथ ड़ालकर छाती के पास से एक मैला-कुचला मुड़ा हुआ कागज का टुकड़ा निकाला, और बड़े जतन से उसकी चारों तह खोलकर दोनों हाथों से उसे फैलाकर मेरी मेज पर रख दिया ।
देखा कि कागज के उस टुकड़े पर एक नन्हे से हाथ के छोटे से पंजे की छाप है । फोटो नहीं, तेलचित्र नहीं हाथ में थोड़ी सी कालिख लगाकर कागज के ऊपर उसी का निशान ले लिया गया है । अपनी बेटी के इस स्मृति-पत्र को छाती से लगाकर, रहमत हर वर्ष कलकत्ता की गली-कूचों में सौदा बेचने के लिए आता है और तब वह कालिख चित्र मानो उसकी बच्ची के हाथ का कोमल-स्पर्श, उसके बिछड़े हुए विशाल वक्ष: स्थल में अमृत उड़ेलता रहता है ।
देखकर मेरी औखें भर आईं और फिर मैं इस बात को बिल्कुल ही भूल गया कि वह एक मामूली काबुली मेवा वाला है, मैं एक उच्चवंश का रईस हूँ । तब मुझे ऐसा लगने लगा कि जो वह है, वही मैं हूँ । वह भी एक बाप है और मैं भी । उसकी पर्वतवासिनी छोटी बच्ची की निशानी मेरी ही मिनी की याद दिलाती है ।
मैंने तत्काल ही मिनी को बाहर बुलवाया हालांकि इस पर अन्दर घर में आपत्ति की गई, पर मैंने उस पर कुछ भी ध्यान नहीं दिया । विवाह के वस्त्रों और अलंकारों में लिपटी हुई बेचारी मिनी मारे लज्जा के सिकुड़ी हुई-सी मेरे पास आकर खड़ी हो गई ।
उस अवस्था में देखकर रहमत काबुल पहले तो सकपका गया । उससे पहले जैसी बातचीत न करते बना । बाद में हँसते हुए बोला – लल्ली ! सास के घर जा रही है क्या ? मिनी अब सास का अर्थ समझने लगी थी, अत: अब उससे पहले की तरह उत्तर देते न बना । रहमत की बात सुनकर मारे लज्जा के उसके कपोल लाल-सुर्ख हो उठे । उसने मुंह को फेर लिया । मुझे उस दिन की याद आई, जबकि रहमत के साथ मिनी का प्रथम परिचय हुआ था । मन में एक पीड़ा की लहर दौड़ गई ।
मिनी के चले जाने के बाद, एक गहरी सांस लेकर रहमत फर्श पर बैठ गया । शायद उसकी समझ में यह बात एकाएक साफ हो गई कि उसकी बेटी भी इतने दिनों में बड़ी हो गई होगी, और उसके साथ भी उसे अब फिर से नई जान-पहचान करनी पड़ेगी ।
सम्भवत: वह उसे पहले जैसी नहीं पायेगा । इन आठ वर्षों में उसका क्या हुआ होगा, कौन जाने ? सवेरे के समय शरद की स्निग्ध सूर्य किरणों में शहनाई बजने लगी और रहमत कलकत्ता की एक गली के भीतर बैठा हुआ अफगानिस्तान के मेरू-पर्वत का दृश्य देखने लगा ।
मैंने एक नोट निकालकर उसके हाथ में दिया और कहा, रहमत, तुम देश चले जाओ, अपनी लड़की के पास । तुम दोनों के मिलन-सुख से मेरी मिनी सुख पायेगी । रहमत को रुपये देने के बाद विवाह के हिसाब में से मुझे उत्सव-समारोह के दो-एक अंग छांटकर काट देने पड़े ।
जैसी मन में थी, वैसी रोशनी नहीं करा सका, अंग्रेजी बाजा भी नहीं आया, घर में औरतें बड़ी बिगड़ने लगी, सब-कुछ हुआ, फिर भी मेरा विचार है, कि आज एक अपूर्व ज्योत्स्ना से हमारा शुभ समारोह उज्जल हो उठा ।
Story for Kids # 21. बेईमानी का फल:
नंदनवन में एक दम सन्नाटा और उदासी छाई हुई थी । इस वन को किसी अज्ञात बीमारी ने घेर लिया था । वन के सभी जानवर इससे परेशान हो गए थे । इस बीमारी ने लगभग सभी जानवर को अपनी चपेट में ले लिया था ।
एक दिन वन का राजा शेरसिंह ने एक बैठक बुलाई । उस बैठक में वन के सभी जानवरों ने हिस्सा लिया । राजा शेरसिंह एक बड़े से पत्थर पर बैठ गया और जंगलवासियों को संबोधित करने लगा । शेरसिंह ने सभी जंगलवासियों को सुझाव दिया कि हमें इस बीमारी से बचने के लिए एक अस्पताल खोलना चाहिए । ताकि बीमार जानवरों का इलाज किया जा सके । इतने में हाथी ने पूछा, अस्पताल के लिए पैसा कहां से लाएंगे और इसमें तो डॉक्टरों की जरूरत भी पड़ेगी ? तभी शेरसिंह ने कहा, पैसा हम सब मिलकर इकटठा करेंगे ।
शेरसिंह की बात सुन टींकू बंदर खड़ा हो गया और बोला, महाराज ! राजवन के अस्पताल में मेरे दो दोस्त डॉक्टर हैं, मैं उन्हें अपने अस्पताल में बुला लूंगा । टींकू की बात से वन की सभी सदस्य खुश हो गए । दूसरे दिन से ही चीनी बिल्ली और सोनू सियार ने अस्पताल के लिए पैसा इकटठा करना शुरू किया ।
सभी जंगलवासियों की मेहनत सफल हुई और जल्द ही वन में अस्पताल बन गया और चलने लगा । टींकू बंदर के दोनों डॉक्टर अस्पताल में आने वाले मरीजों का इलाज करते और मरीज भी ठीक होकर डॉक्टरों को दुआएं देते हुए जाते ।
कुछ महीनों तक तो सब कुछ ठीक चलता रहा । परंतु कुछ समय के बाद टीपू खरगोश के मन में लालच आ गया । टीपू ने बंटी खरगोश को बुलाया और कहा यदि हम अस्पताल की दवाइयां पास वाले जंगल में बेच देते हैं । जिससे हम दोनों खूब कमाई कर सकते हैं ।
लेकिन बंटी खरगोश ईमानदार था, उसे टीपू की बात पसंद नहीं आई । बंटी ने उसे सुझाव भी दिया, लेकिन टीपू को तो लालच का भूत सवार था । टीपू ने कुछ समय तक ईमानदारी से काम करने का नाटक किया । परंतु धीरे-धीरे उसकी बेईमानी बढ़ती जा रही थी । वह अब नंदनवन के मरीजों को कम और दूसरे वन के मरीजों का ज्यादा देखता था ।
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एक दिन टीपू की शिकायत लेकर सभी जानवर राजा शेरसिंह के पास गए । शेरसिंह ने सभी की बात ध्यान से सुनी और कहा कि जब तक मैं अपनी आँखों से नहीं देखूंगा, तब तक कोई फैसला नहीं लूंगा । शेरसिंह ने जांच का पूरा काम चालाक लोमड़ी का सौंपा ।
दूसरे दिन से ही चालाक लोमड़ी टीपू पर नजर रखने लगी । टीपू लोमड़ी को नहीं जानता था । कुछ दिनों तक लोमड़ी ने नजर रखने के बाद उसे रंगे हाथों पकड़ने की योजना बनाई । लोमड़ी ने इस बात की जानकारी शेरसिंह को दी, ताकि शेरसिंह अपनी आँखों से टीपू को पकड़ सके ।
लोमड़ी डॉक्टर टीपू के कमरे में गई और बोली, मैं पास वाले जंगल से आई हूँ । वहां के राजा की तबीयत काफी खराब है । यदि आपकी दवाई से वह ठीक हो गए तो आपको मालामाल कर देंगे । टीपू को लोमड़ी की बात सुन लालच आ गया । उसने लोमड़ी के साथ अपना सारा सामान उठाया और वन की तरफ निकल गया ।
टीपू और लोमड़ी की बात चुपके से राजा शेरसिंह सुन रहे थे । शेरसिंह टीपू से पहले पास वाले जंगल में पहुँच कर लेट गए । वहां पर जैसे ही टीपू खरगोश और लोमड़ी पहुँचे शेरसिंह को देखकर ड़र गए । टीपू ड़र के मारे कांपने लगा । क्योंकि उसकी लालच का भेद खुल चुका था । टीपू रोते हुए शेरसिंह से माफी मांगने लगा ।
राजा शेरसिंह ने गुस्से में आदेश सुनाया और कहा कि टीपू की सारी रकम अस्पताल में मिला ली जाए और उसे जंगल से मारकर निकाला जाए । शेरसिंह की बात सुन सभी जानवरों ने सोचा कि ईमानदारी में ही जीत है और बेईमानी करने वाले टीपू को अपनी लालच का फल भी मिल गया ।