List Of POpular Short Stories from Panchatantra for Children’s in Hindi!
Panchatantra Story #1. पाप और पुण्य |
”अरे मित्र-आओ हम से डरो मत…हम घर आए मेहमान की सेवा करना अपना धर्म समझते हैं । हम इस जंगल के राजा हैं…तुम यहां निर्भय होकर रहो…कोई तुम्हारी ओर आर्ख उठाकर भी नहीं देखेगा ।”
मगर सामने खड़े शेर को देखकर तो जैसे ऊटं की जान ही सूखी जा रही थी ? वह सोच रहा था कि क्या यह सल कह रहा है ? मधुपुर का यह जंगल इस क्षेत्र का सबसे बड़ा जंगल माना जाता था । अक्सर लोग इस जंगल को पार करते हुए डरते थे क्योंकि इसमें कई किस्म के खूनी जानवर रहते थे, जिनमें अधिकांश नरभक्षी थे ।
इसी जंगल में एक शेर भी रहता था, जिसके तीन स्वार्थी मित्र भी थे- एक गीदड़, एक भेड़िया और एक कौआ, इन तीनों ने शेर से इसलिए मित्रता की थी कि शेर जंगल का राजा था, उससे मित्रता करने से कोई शत्रु उनकी ओर औख उठाकर भी नहीं देख सकता था । यही कारण था कि वे तीनों शेर की हर बात मानते थे, उसकी हां में हां मिलाने के लिए तैयार रहते ।
एक बार-एक ऊंट अपने साथियों से बिछुड़कर इस जंगल में आ गया, इस घने जंगल में उसे बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं मिल रहा था, पीठ पर बोझा और साथ में यह घना जंगल । ऊंट बेचारे का तो बुरा हाल हो रहा था । वह सोच रहा था कि कहां जाए, किधर जाए, दूर-दूर तक उसे कोई अपना नजर नहीं आ रहा था ।
इत्तफाक की बात थी कि उस ऊंट पर शेर के इन तीनों मित्रों की नजर पड़ गई । गीदड़ तो चालाकी और होशियारी में अपना जवाब नहीं रखता, उसने जैसे ही इस मोटे-ताजे ऊंट को जंगल में अकेला भटकते देखा तो उसके मुंह में पानी भर आया । उसने भेड़िये और कौए से कहा, ”दोस्तों ! यदि शेर इस ऊंट को मार दे तो हम कई दिन तक आनन्द से बैठकर अपना पेट भर सकते हैं ।
कितने दिन आराम से कट जायेंगे, हमें कहीं भी शिकार की तलाश में नहीं भटकना पड़ेगा ।” भेड़िये और कौए ने मिलकर गीदड़ की हां में हां मिलाई और उसकी बुद्धि की प्रशंसा करते हुए बोले : ”वाह…वाह…दोस्त, क्या योजना बनाई है, इस परदेसी ऊंट को तो शेर दो मिनट में मार गिराएगा, वह इसका सारा मांस कहां खा पाएगा, बाकी सब माल तो अपना ही होगा ।”
गीदड़, भेडिया और कौआ खूब कुटिलता से हंसने लगे, उन तीनों के मन में कूट-कूटकर पाप भरा हुअरा था । सीधा-सादा ऊंट बेचारा, क्या जाने कि इस संसार में लोग कैसे-कैसे पाप करते हैं । तीनों षड्यंत्रकारी मिलकर अपने मित्र शेर के पास पहुंचे और बोले : ”आज हम आपके लिए एक शुभ समाचार लेकर आए हैं ।”
”क्या समाचार” है मित्रों, शीघ्र बताओ ।” ”महाराज! हमारे जंगल में एक बहुत बड़ा ऊंट आया हुआ है । शायद वह काफिले से बिछुड़ गया है, और अपने साथियों के बिना भटक्ता फिर रहा है । यदि आप उसका शिकार कर लें तो आनन्द आ जाए ।
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अहा ! क्या मांस है उसके शरीर पर, मांस से भर ! पड़ा है उसका शरीर, देखा जाए तो अपने जंगल में मांस से भरे शरीर वाले जानवर है ही कहां ? केवल हाथियों के शरीर ही मांस से भरे रहते हैं, मगर हाथी अकेले उगते ही कहा हैं, जब भी अग्रगते है, झुंड के झुंड, उन्हें मारना कोई सरल बात नहीं ।”
शेर ने उन तीनों की बात सुनी उगैर फिर अपनी मूछों को हिलाते हुए गुर्राया : ”उरे मूर्खों ! क्या तुम यह नहीं जानते कि हम इस जंगल के राजा हैं । राजा का धर्म है न्याय करना, पाप उगैर पुण्य के दोषों तथा तो का विचार करके पापी को सजा देना, पूरी प्रजा को सम्मान की दृष्टि से देखना, मैं भला अपने राज्य में आए उस ऊंट की हत्या कैसे कर सकता हूं ? घर आए किसी भी मेहमान की हत्या करना पाप है । इसलिए तुम जाकर इस मेहमान को सम्मान के साथ हमारे पास लाओ ।”
शेर की बात सुनकर उन तीनों को बहुत दु:ख हुआ, उन तीनों ने भविष्य के इतने सपने देखे थे, खाने का कई दिन का प्रबंध, ऊंट का मांस…सब कुछ इस शेर ने चौपट कर दिया था । यह कैसा मित्र था जो पाप और पुण्य के चक्कर में पड़कर मित्रता को भूल गया…वे मजबूर थे, क्योंकि उन्हें पता था कि शेर की दोस्ती छोड़ते ही उन्हें कोई नहीं पूछेगा, मरते क्या न करते वाली बात थी ।
अब तीनों मिलकर उस भटकते हुए ऊंट के पास पहुंचे और उसे अपने मित्र तथा जंगल के राजा की ओर से मित्रता का संदेश देते हुए कहा कि हमारे राजा ने आपको घर बुलाया है, आज रात आप हमारे राजा के घर ही भोजन करेंगे ।
ऊंट तो बेचारा इस जंगल में कब का भटक रहा था, थकान के कारण उसका बुरा हाल हो रहा था, जैसे ही उसने यह सुना कि शेर ने उसे अपने घर पर बुलाया है तो वह डर के मारे कांप उठा, क्योंकि उसे पता था कि शेर मांसाहारी जानवर हे और जंगल का राजा भी, उसके सामने जाकर तो कोई भी नहीं बच सकता । उसकी आखों में मौत के साये थिरकने लगे ।
मौत उसके चारों ओर नाच रही थी । शेर की बात न मानना भी मौत है, मानने में भी मौत का डर है, यदि इन दोनों से बच निकलने में वह सफल हो भी गया तो इस जंगल में ही भटकता फिरेगा और कोई भी जंगली जानवर उसे मारकर खा जाएगा ।
इसलिए उसने निर्णय कर लिया कि वह शेर के निमंत्रण को स्वीकार कर लेगा, आगे जो होगा देखा जाएगा । मन ही मन में यह सब सोचता हुआ ऊंट शेर के पास पहुंच गया, उसका मन अब भी अंदर से डरा हुआ था, वह बार-बार सोच रहा था कि कहां यह खूनी और जंगल का राजा शेर और कहां मैं ऊंट…।
शेर ने घर आए मेहमान का मित्र की भांति स्वागत किया, तो ऊंट का भी भय जाता रहा और उसने अपनी शरण में पनाह देने का उसे बहुत-बहुत धन्यवाद दिया, शेर ने हंसकर कहा, ”मित्र ! तुम बहुत दूर से आने के कारण काफी थके हुए लगते हो, इसलिए मेरी गुफा में ही अगाराम करो, मैं रगौर मेरे साथी तुम्हारे लिए भोजन का प्रबंध करने जाते हैं ।”
समय बहुत बलवान है । किस पल क्या हो जाए कुछ पता नहीं चलता, शेर शिकार के लिए निकला तो गीदड़, भेडिया और कौआ भी उस के साथ थे, वे तीनों शेर के पीछे-पीछे चल रहे थे, शेर सबसे आगे था । तभी सामने से एक बहुत ही मोटा-ताजा खूनी किस्म का मस्त हाथी आ निकला ।
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शेर को शिकार की तलाश थी । वह हाथी को देखते ही पूरी ताकत से दहाड़ा । हाथी डरा नहीं, बल्कि वह लड़ने के लिए तैयार हो गया और देखते ही देखते दोनों ही एक-दूसरे पर टूट पड़े । खूनी जानवरों का युद्ध भी देखने योग्य था, अन्त में दोनों लहूलुहान हो गए ।
हाथी तो अपनी जान बचाकर भाग निकला और शेर बुरी तरह घायल हो गया, उसके दांत भी हिलने लगे थे । जख्मी शेर अब कहां शिकार कर सकता था, उसके मित्र तो उससे केवल खाने की ही मित्रता रखते थे, उन्होंने एक दिन शेर के पास जाकर कहा, ”हें जंगल के राजा ! आप भूखे क्यों मरते हैं ।
देखो, हमारे पास यह ऊंट है, ऐसे अवसर पर इसे ही मारकर खा लें, जब तक हम इससे पेट भरेंगे, तब तक उगप भी ठीक हो जाएंगे ।” ”नहीं…नहीं…मैं घर आए मेहमान की हत्या नहीं कर सकता, घर आया मेहमान तो ईश्वर का रूप होता है, मैं भूखा मर जाऊंगा, परन्तु यह पाप नहीं करूंगा ।”
गीदड़ ने जब देखा कि शेर उनकी बात मानने वाला नहीं है और पाप और पुण्य के चक्कर में फंस गया है, तो उसने सोचा कि कोई नई चाल चलनी पड़ेगी, जिससे सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे, यही सोचकर उसने अपने दूसरे शैतान मित्र कौए के कान में अपने मन की बात कही, तो उसकी इस चाल को सुनकर वह खुशी से उछल पड़ा ।
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तब कौए ने भेडिये को भी गीदड़ की सारी चाल बता दी । फिर क्या था, तीनों मिलकर ऊंट के पास पहुंचे और गीदड़ ने बड़े प्यार से प्रणाम करते हुए उसकी कुशलता पूछी । ”मैं तो आप लोगों और अपने मित्र की कृपा से बहुत प्रसन्न हूं आप लोग अपनी कहो, कैसे हो ?”
”भाई! हमारा हाल मत पूछो, हम तो बहुत बर्ड मुसीबत में फंसे हुए हैं । हमारा जीना ही कठिन हो रहा है, शायद एक-दो दिन में ही हम और हमारा राजा शेर, हम सब मर जाएंगे ।” ”क्यों…ऐसी कौन-सी बात हो गई कि तुम सबके सब मर जाओगे ? नहीं…नहीं, मित्र ऐसा नहीं होगा, मैंने झपका नमक खाया है, मैं शेर को बचाने के लिए हार कुर्बानी देने को तैयार हूं ।”
”देखो मित्र, शेर जख्मी भी है उगैर भूखा भी, तुम तो जानते हो कि मांस के बिना उसका पेट नहीं भरेगा, वह तुम्हें इसलिए नहीं मारेगा, क्योंकि तुम उसके मेहमान हो, हां यदि तुम स्वयं शेर के पास जाकर यह कह दो कि मैं खुशी से उरपने उरापको तुम्हारे हवाले करता हूं ऐसे अवसर पर दोस्त ही दोस्त के काम आता है । तो शेर शायद मान जाए, लेकिन एक शर्त यह भी है…।” ”क्या ?”
“तुम से पहले हम शेर को यह कहेंगे कि वह हमें खाकर अपना पेट भर ले, यदि शेर इस बात को मान गया तो तुम्हें कुछ कहने की जरूरत नहीं पड़ेगी, तुम्हारी जान बच जाएगी, फिर हमारे बाद तुम शेर की सेवा करोगे, बोलो यह शर्त मंजूर है?”
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”हां दोस्तों, मुझे मंजूर है । मैं अपने मित्रों के साथ हूं उनकी हर बात मानने को तैयार हूं । तुम लोगों ने ही तो मुझे सहारा देकर मेरी जान बचाई है । अब यदि मैं इस जान को अपने मित्र पर कुर्बान कर दूं तो मुझे इसका कोई दुःख नहीं होगा ।”
ऊंट की यह बात सुनकर तीनों बहुत खुश हुए । गीदड़ ने भेड़िए को उरांख से इशारा करके धीरे से कहा : ‘फंस गया मूर्ख ।’ अब चारों इकट्ठे होकर जख्मी शेर के पास पहुंचे, शेर बेचारा गुफा के अंदर भूखा-प्यासा पड़ा था, शरीर पर इतने घाव थे कि दर्द के मारे उसका बुरा हाल हो रहा था ।
”आओ मेरे मित्रों, उगओ, पहले यह बताओ कि हमारे भोजन का कोई प्रबंध हुआ या नहीं ?” ”नहीं महाराज! हमें इस बात का बहुत दुःख है कि हम सब मिलकर भी आपके खाने का प्रबन्ध नहीं कर सके, लेकिन अब हम आपको भूखा भी नहीं मरने देंगे…।” कौए ने आगे बढ़कर कहा ।
”लेकिन यह कैसे संभव हो सकता है?” शेर ने कौए की ओर देख कर पूछा । ”महाराज! आप मुझे खाकर अपनी भूख मिटा लें, इससे अच्छी बात और क्या होगी कि मेरा यह तुच्छ शरीर आपके किसी काम…आ जाए ।” कौए की बात सुनकर गीदड़ ने भी जोश में आगे आकर कहा, ”अरे जरा से कौए! पीछे हट, तेरे को खा लेने से क्या हमारे महाराज का पेट भरेगा ? नहीं, यह संभव नहीं, मैं तुम्हें अपनी आखों के सामने मरते भी नहीं देख सकता ।
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अच्छा तो यही होगा, हमारे महाराज मुझे खाकर अपना पेट भर लें, मेरा क्या है…।” गीदड़ की बात सुनकर भेड़िया अपने लगन से उठकर आगे उगया और बोला : ”भैया गीदड़ ! तुम्हारे शरीर पर भी इतना मांस कहां है, जो हमारे महाराज का पेट भर जाए, वह चाहें तो मुझे पहले खाएं । हमारे लिए उन्होंने सदा शिकार किए हैं, आज पहली बार…।”
यह सब देखकर ऊंट ने भी सोचा कि मुझे भी अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिये । शेर नेकदिल है, वह भला घर आए मेहमान का क्या वध करेगा । और यदि उसके उपकार के बदले मैं उसके किसी काम आ पाऊं तो मुझे खुशी ही होगी ।
यह सोचकर इन सब से आगे आकर ऊंट ने कहा : ”अरे, तुम लोगों के मांस से महाराज का पेट भरने वाला नहीं, आखिएर महाराज ने मुझ षर भी तो एहसान किया है, यदि तुम अपने इस मित्र के लिए कुबानी देने को तैयार हो तो मैं भी तुम से पहले इनसे यही कहूंगा कि यह मेरे शरीर के मांस से अपना पेट भर लें…।”
”वाह…वाह…मित्र हो तो ऐसा, सच्चा मित्र उसे ही कहते हैं जो मुसीबत में मित्र के काम आए ।” गीदड़ ने कहा । शेर ने बड़ी कठिनाई से उठते हुए ऊंट की हत्या करके, पहले तो अपना पेट भरा, जो मांस बाकी बचा था उससे कई दिनों तक तीनों चालबाज मित्र अपना पेट भरते रहे ।
Panchatantra Story #2. जैसी करनी वैसी भरनी |
”सेठ जी अब मेरा हार वापस दे दो और अपने रुपये ले लो…”रामधन तुम इतने रुपये कहां से ले आए हो ? तुम तो बिकुल कंगाल हो गए थे ?” “आप जैसे सेठों की कृपा से मेंने अपने परिश्रम से फिर से धन कमा लिया है इसलिए आप मेरी पत्नी का हार दे दो…।”
”तुम्हारा हार तो चोरी हो गया ।” “सेठ जी, तुम बेईमान हो, मगर मैं अपना हार लेकर रहूंगा ।” सेठ रामधन बाजीपुर में रहने वाले उरपने कस्बे के माने हुए धनी लोगों में से एक थे । करबे के हर दीन-दुःखी की सहायता करना सेठ रामधन अपना कर्तव्य समझते थे ।
यही कारण था कि करवे का हर छोटा-बड़ा प्राणी उनका सम्मान करता था । परन्तु भाग्य विधाता ने जो लिखा है उसे कोई टाल नहीं सकता । बुरा समय जब आता है तो इन्सान की छाया भी साथ छोड़ जाती है । मानव जीवन तो धूप-छांव है, उसमें कभी प्रकाश तो कभी अंधेरा आता है । यही हाल रामधन का था ।
उसके पास एक बार राम ही राम बाकी रह गया, कारोबारी घाटे के कारण धन सारा उड़ गया । रातोंरात वह धनी से निर्धन हो गया । जिस घर में खुशियां ही खुशियां नाचती थीं, उस घर में उदासी छा गई । संकट के समय तो अपने भी दूर भागने लगते हैं, रामधन बेचारा क्या करता । धन पास था नहीं, लेने वाले घर पर आ रहे थे और देने वालों ने आख मिलाना भी बंद कर दिया था ।
इस दुःख के समय में उनके लिए उनकी धर्मपत्नी राधा का ही साथ रह गया था । उसने जब अपने पति को इस प्रकार उदास और चिंता में डूबे देखा तो वह उन्हें हौसला देती हुई बोली : ”आप दिल छोटा न करो स्वामी यह माया तो उगती-जाती रहती है, उगज यदि धन चला गया तो क्या हुआ, हिम्मत से काम लोगे तो यह धन आप फिर कमा लेंगे ।”
”राधा, नया काम शुरू करने के लिए भी तो धन की जरूरत है, जो हमारे पास है नहीं, बिना धन के कुछ नहीं हो सकता ।” ”तो क्या चिंता है ! लो, मेरे गले का हार गिरधारी लाल जौहरी के यहां गिरवी रख आउसे, जो धन मिलेगा उससे हम नया कारोबार शुरू करेंगे, लेकिन यह कारोबार यहां नहीं किसी बड़े शहर में शुरू करेंगे ।”
उपनी पत्नी की बात सुनते ही रामधन को जैसे जोश आ गया; उसने अपनी पत्नी को प्यार से देखा और कहा, ”राधा ! तुम तो साक्षात् देवी का रूप हो, आज के युग में तुम्हारे जैसी पत्नियां कहां मिलती हैं ?” ”आप मेरे भगवान हैं और मैं आपकी पुजारिन हूं ।
मैंने जो कुछ भी किया है, अपने प्रभु के लिए किया है । जाओ, देर न करो, इस हार को देकर कुछ पैसा लं आओ । हम कल सुबह होते ही बड़े शहर की ओर चल देंगे ।” रामधन उसी समय सोने का वह कीमती हार लेकर गिरधारी लाल जौहरी के पास गया तो उसने अपनी पारखी नजरों से उस हार को देखते ही समझ लिया कि यह बहुत कीमती है ।
उसने उसे आधे दामों में गिरवी रखने की शर्त रखी और साथ ही कहा कि यदि एक वर्ष के अंदर इसे नहीं छुड़वाओगे तो आपका यह हार जत्त हो जाएगा । गिरधारी लाल की बात मानने के सिवा रामधन के पास कोई चारा ही नहीं था, जो रुपया उसने दिया उसे माथे से लगाया ।
दुःखी मन से उसने दूसरी सुवह अपना घर छोड़ दिया उगैर पास ही एक बड़े शहर में जाकर रहना शुरू कर दिया । किराये का छोटा-सा मकान । इतनी बड़ी हवेली को छोड़ने के पश्चात दोनों पति-पत्नी उसमें रहने लगे थे, नए शहर में धंधा जमाना इतना सरल काम तो नहीं था मगर रामधन बहुत परिश्रमी आदमी था ।
उसने गांव से माल लेकर शहर उगने वाले किसानों से अपनी मित्रता बढ़ानी शुरू कर दी । उसका प्रेम व्यवहार देखकर सब किसान बहुत प्रसन्न थे । अब तो शहर से बाहर ही रामधन ने अपनी एक छोटी सी दुकान खोल ली । वहीं पर खान-पान का प्रबंध करके वह किसानों को अपने पास बैठा लेता ।
पहले तो उन लोगों के खान-पान का धंधा शुरू किया फिर धीरे-धीरे उनसे उनकी फसलों का सौदा करना शुरू किया, उनसे माल खरीद लेता और मंडी में जाकर बेच देता, वह किसानों को कभी लूटता नहीं था, उन्हें बाजार भाव देता और अपनी बुद्धि से ऊपर का धन कमा लेता ।
किसान लोग उसी की दुकान पर बैठकर खाना खाते, इससे रामधन को दोहरा लाभ होता था । खाने-पीने में लाभ, फसल में लाभ…कुछ ही समय में उनके जीवन का मानचित्र बदल गया । अब उनके पास काफी धन जमा हो गया तो उसने अपनी पत्नी से कहा : ”चलो प्रिय ! दयग्ब हम एक बार अपने घर हो आएं । वहां जो तुम्हारा हार गिरवी रखा हुआ है उसे भी छुड़वा लाएंगे ।”
दोनों पति-पत्नी फिर वापस अपने पुराने कस्बे में पहुंचे तो गांव के लोग उनके स्वागत के लिए उमड़ पड़े । रामधन गिरधारी लाल जौहरी के पास गया और उससे दुआ-सलाम करके बोला : ‘भैया गिरधारी लाल ! मेरा वह हार दे दो और अपने रुपये सूद समेत ले लो ।’
गिरधारी लाल जानता था कि वह हार तो बहुत कीमती है, उसे यह उम्मीद भी नहीं थी कि रामधन इतना धन इतनी जल्दी कमा लेगा, उसके मन में तो पाप आ चुका था, वह हार देना नहीं चाहता था, इसलिए उसने रामधन से कहा, ”भैया रामधन ! तुम आ गए यही खुशी की बात है, लेकिन अब मैं तुम्हें क्या बताऊं कि वह हार तो मेरी दुकान से चोरी हो गया है, यह नुकसान तो दोनों भाइयों का है, तुम्हारा हार गया, मेरी रकम गई ।”
रामधन ने गिरधारी लाल की बात तो सुन ली, मगर उसे उसकी बात का विश्वास नहीं था…अब वह कर भी क्या सकता था । अपने मन में उस पापी को उसके पाप की सजा देने की योजना बनाता हुआ वह वहां से बाहर निकला तो उसने सेठ के बच्चे को बाहर खेलते हुए देखा ।
छोटे बच्चे को बड़े प्यार से उसने अपनी गोद में उठा लिया और घर लाकर अपनी हवेली के तहखाने में बंद कर दिया । गिरधारी लाल ने जब शाम होने पर उरपने बेटे को घर में न देखा तो बहुत चिंतित हुआ । उसने अपने नौकरों से पूछताछ शुरू की तो एक नौकर ने उसे बताया कि आपके बेटे को रामधन उठाए लिए जा रहा था ।
घबराया ह्मा गिरधारी लाल रामधन के पास पहुंचा और उससे जाकर पूछा : ”मेरा बेटा कहां है ?” रामधन ने हंसकर उत्तर दिया : ”भैया, मुझे क्या पता । हां, मैंने एक बाज को उसे उठाकर ले जाते देखा था ।” ”तुम झूठ बोल रहे हो रामधन, मेरे बच्चे को तुम ही उठाकर लाए हो । मेरे नौकरों ने तुम्हें अपनी आखों से देखा है ।”
”देखा होगा…मैं तो कुछ कह नहीं सकता, जो मैंने देखा है, बता दिया है ।” ”मैं कल राजा के पास जाऊंगा ।” ”जरूर जाउगे, मैं तो उगपको रोक नहीं सकता ।” दूसरे दिन सुबह ही गिरधारी लाल जौहरी राजा के दरबार में पहुंच गया, उसने राजा को बताया कि रामधन उसके बेटे को उठाकर ले गया है और अब वापस करने को तैयार नहीं ।
तभी राजा ने अपने सैनिकों को आदेश दिया कि इसी समय जाकर रामधन को पकड़ कर लाओ । उसी समय रामधन को पकडू कर लाया गया तो राजा ने रामधन से कहा : ”देखो रामधन, तुमने गिरधारी लाल के बेटे को कल उठाया था, और इनसे यह कह दिया कि तुम्हारे बेटे को बाज उठा कर ले गया, बोलो क्या यह झूठ है ?”
”नहीं महाराज, यह सब सच है ।” ”तो फिर तुमने ऐसा क्यों किया ।” ”महाराज, डगरा मुझे यह बताएं कि गांव के बहुत से बच्चों को छोड्कर बाज ने गिरधारी लाल के बच्चे को ही क्यों उठाया ?” ”क्यों उठाया यह तो हुम ही बताओगे, मैं तो केवल इतना जानता हूं कि रामधन इसके दोषी तुम हो ।”
”महाराज! मैं सेठ गिरधारी लाल से कुछ पूछ सकता हूं ?” ”जरूर पूछो ।” ”हां तो सेठजी, आप मुझे यह बताएंगे कि आपकी दुकान में कितने जेवर रखे ”बहुत हैं ?” ”उन जेवरों में ही आपने मेरी पत्नी का हार भी रखा था ।” ”हां रखा था ।”
”फिर यह बताओ कि वह चोर आपके सारे जेवरों को छोड्कर मोरी पत्नी का हार क्यों ले गया ?” ”जी…जी…जी…।” गिरधारी लाल हकलाने लगा । ”महाराज, अब तो यह न्याय आप ही करेंगे कि गिरधारी लाल दोषी है या मैं । यदि सैकड़ों जेवरों में से मेरा हार-चोर ले गया तो, गांव के सब बच्चों को छोड़कर बाज इनके बच्चे को भी उठाकर ले जा सकता है ।”
गिरधारी लाल समझ गया कि मैंने जो किया था उसी का फल मुझे मिला है । उसने महाराज के सामने हाथ जोड़ते हुए कहा, ”महाराज ! मुझे भूल के लिए क्षमा कर दें, मैं रामधन की पत्नी का हार वापस दे देता हूं ।” ”ठीक है, मैं आज ही आपका बच्चा भी वापस लाकर दे दूंगा ।” जैसा कोई करेगा, वैसा ही भरेगा । रामधन को अपना हार वापस मिल गया उसने गिरधारी लाल का बच्चा वापस दिया ।
Panchatantra Story #3. नकली बादसाह |
“हां…हां…आज से हम तुम्हारे बादशाह हैं । आन से इस जंगल में हम तल करेंगे । तुम सब हमें प्रमाम करो मैं जगंल का राजा हूं…।” यह कैसा राज था, कैसा बादशाह जो, शेर को आते देखकर भाग खड़ा हुआ । एक बार भूख से दुःखी एक गीदड़ जंगल से निकलकर गांव की ओर आ गया । उसने सोचा गांव में तो कुछ न कुछ खाने को मिल ही जाएगा ।
जंगल में रहकर तो भूखे मरने वाली बात है । पापी पेट तो ऐसी ही चीज है, इन्सान हो या जानवर, सब भूख से व्याकुल होकर पागल हो जाते हैं । यही हाल बेचारे उस गीदड़ का था । भूख से बेहाल होकर वह गांव की ओर चला उगया । गांव से बाहर चौराहे पर थोड़ा बहुत तो खाने को मिल गया ।
लेकिन उसकी भूख इतनी प्रबल थी कि उससे पेट नहीं भर सका, अब वह फिर गांव की ओर चल पड़ा । वहां पर बैठे कुत्तों ने जब एक गीदड़ को गांव की ओर आते देखा तो सबके सब उस पर टूट पड़े । शायद किसी ने ठीक ही कहा है कि जब गीदड़ की मौत आती है, तो वह गांव की ओर भागता है ।
कुत्तों का पूरा दल गीदड़ पर टूट पड़ा । इतने सारे कुत्तों को अपने पर आक्रमण करते देखकर गीदड़ बेचारा एकदम घबरा गया और सोचने लगा कि जाए तो जाए कहां ? चारों ओर मौत नाच रही थी, पेट की भूख की बात तो वह भूल गया…अब तो मौत से बचने की बात उसके सामने थी ।
कुत्ते उसके पीछे भागे आ रहे थे । वह मौत से बचने के लिए अंधाधुध भाग रहा था और छिपकर जान बचाने को कोई स्थान तलाश कर रहा था । आगे एक रंगसाज का घर था, उसने कपड़े रंगने के लिए बहुत बड़े टब में नीला रंग तैयार कर रखा था ताकि सुबह उठकर कपड़े रंग सके ।
मौत से डरता गीदड़ इतना तेज भागा कि वह सीधा जाकर उस नीले रंग से भरे टब में जा गिरा । अब कुत्तों ने समझा कि गीदड़ भट्ठी में गिरकर मर गया है । इसलिए वे सबके सब पीछे मुड़ गए, कुत्तों को वापस जाते देखकर गीदड़ के मन को शांति मिल गई कि वह मौत के मुंह से तो बच गया है ।
उनके जाते ही वह टब में से निकला और रंगसाज के घर में खाने की तलाश करने लगा । उस समय जो भी उसे मिला, उसने खा लिया, पेट भरने के पश्चात् वह फिर वापस जंगल की ओर चल पड़ा । नीले रंग के पानी में डूब कर वह पूरा नीला हो चुका था ।
इस हालत में उसे देखकर कोई कह नहीं सकता था कि यह कोई गीदड़ है । जैसे ही वह जंगल में वापस आया तो जंगली जानवरों ने उसका गहरा नीला रंग देखकर बड़े आश्चर्य से उसकी ओर देखा, उनकी समझ में यह बात नहीं आई कि यह नीले रंग का विचित्र जानवर कोई गीदड़ भी हो सकता है ।
पूरे जंगल में इस विचित्र जानवर को देखकर हलचल सी मच गई थी । सब जानवर उससे डरने लगे और डर के मारे इधर-उधर भागने लगे । गीदड़ समझ गया कि यह सब के सब उससे डर रहे हैं, अब तो उसमें एक नया जोश आ गया ।
उसे ऐसा लगा कि वह काफी शक्तिमान हो गया है, तभी उसने भागते हुए जानवरों को आवाज दी : ”भाइयों, हमसे डरो मत, हमें तो ब्रह्मा जी ने आप सबकी रक्षा के लिए भेजा है । उगज से हम इस जंगल के राजा बनकर उगप सब की रक्षा करेंगे, तुम हमारी प्रजा हो । आज से हम इस जंगल का राज चलाएंगे ।”
गीदड़ के कहने पर सब जानवर वापस आ गए । उन सबने मिलकर अपने नए राजा का सम्मान करते हुए उसे ऊंचे मंच पर बैठाया, वहीं पर उस गीदड़ ने अपने मंत्रिमंडल की घोषणा की । शेर को सेनापति तथा महामंत्री बनाया गया, भेड़िये को रक्षामंत्री, हाथी को गृहमंत्री बनाकर इस नए रूपधारी गीदड़ ने अपने आप को जंगल का राजा घोषित कर दिया ।
जो गीदड़ कल तक भूखा मरता था, आज उसकी सेवा में सारे जानवर तैयार खड़े थे, शेर और चीते उसके लिए हर रोज नए-नए शिकार लाते थे । जिसे वह बड़े मजे से खाता, छोटे-मोटे जानवर उसकी सेवा के लिए तैयार रहते । कुछ ही दिनों में उस गीदड़ का सारा जीवन ही बदल गया । खूब मोटा-ताजा हो गया ।
अब तो उसके जीवन में आनन्द ही आनन्द था । खूब खुला खाना, आराम की नींद सोना, उसके भाई-बांधवों ने कभी सोचा भी नहीं था कि वे शेरों पर राज करेंगे । एक बार साथ के जंगल से गीदड़ों का एक बहुत बड़ा दल शोर मचाता हुआ उस जंगल में आ गया । सब के सब मस्त होकर नाच रहे थे, गा रहे थे ।
नकली राजा गीदड़, जिसने ब्रह्मा जी का नाम लेकर इन सबको धोखा दिया था, वह अपने गीदड़ भाइयों को नाचता-गाता देखकर अपने तख्त से छलांग लगाकर नीचे उतर आया और अपने भाइयों में मिलकर उनकी भाषा में ही नाचने-गाने लगा ।
दरबार में बैठे शेर, चीते, बाघ, भेड़िये और हाथी आदि को समझते देर नहीं लगी कि यह जानवर तो असल में गीदड़ ही है, जो हम सबको ब्रह्मा जी का नाम लेकर धोखा देता हुआ हम पर राज करता रहा है । हम लोग आज तक इस गीदड़ के ही गुलाम बने रहे और यह दुष्ट धोखेबाज गीदड़ हम पर राज करता रहा ।
कितनी शर्म की बात है हमारे लिए…उसी समय, क्रोध से भरा शेर ऊंची दहाड़ मारकर उठा और उस धोखेबाज गीदड़ पर टूट पड़ा, गीदड़ ने अपनी जान बचाने की पूरी कोशिश की…मगर शेर के आगे उसकी एक न चलीं । दूसरों को धोखा देने वाला पल भर में ही अपनी जान गंवा बैठा, ढोल की पोल खुल गई ।
Panchatantra Story #4. न कोई छोटा न बड़ा |
सेठ मुरारीलाल खे अपने श्र का इतना अभिमान हो गया कइ वह किसी इन्तान क्ते भी इन्सान नहीं समझता था ? जब उसने पुराने नौकर क्टे मारपीट कर धर से निकला तो उसने जाते-जाते यह प्रतिज्ञा की कि मैं एक दिन इस अपमान का बदला लेकर रहूंगा ।
बदला…बदला…यह कहता हुआ वह तेजी से बाहर निकल गया । ”अब तो मैं सबसे बड़ा हूं । मुझसे बड़ा तो इस राज्य में कोई नहीं ।” मुरारीलाल ने अपना हाथ ऊंचा उठाकर सब नौकरों-चाकरों और सगे सम्बन्धियों से कहा ।
सब लोग सेठ मुरारीलाल के मुंह र्क। ओर देख रहे थे, जो वास्तव में ही बहुत बड़ा धनवान बन गया था । उसके मुकाबले का धनवान इस शहर में कोई और नहीं था । उसकी हवेली राजा के महल से कोई कम नहीं थी, उसके अस्तबल में हर नस्त के घोड़े बंधे रहते थे ।
शायद राजा के पास भी ऐसी नस्त के घोड़े नहीं होंगे । मुरारीलाल के पास जब इतना अधिक धन आ गया तो उसने सोचा कि अब मुझे नई शादी भी कर लेनी चाहिए, जब घर का सब कुछ ही बदल गया है तो पत्नी को भी बदल देना चाहिए ।
नई शादी करूंगा तो शहर के सब बड़े-बड़े लोगों तथा राजा तक को उस शादी में बुलाया जाएगा ताकि राजा भी आकर देख ले कि मैं भी किसी राजा से कम नहीं हूं । मुरारीलाल ने दूसरी शादी करने का पक्का निर्णय कर लिया तो उसमें शहर के बड़े-बड़े लोगों के साथ-साथ राजा को भी बुलाया गया ।
राजा मान सिंह को पूरी शान के साथ उस बड़ी हवेली मैं बैठाया गया, जिसमें शहर के बड़े-बड़े लोग बैठे थे । वहां पर किसी भी आम उसदमी या छोटे वर्ग के लोगों को जाने की इजाजत नहीं थी । गलती से सेठ मुरारीलाल का एक नौकर उस केमरे में आकर बैठ गया । जैसे ही सेठजी ने उसे देखा, तो क्रोध के मारे जैसे वह पागल हो गए ।
उन्होंने झट से जाकर उसे गले से पकड़ा और सब के सामने उसे मारना शुरू कर दिया फिर उसे गालियां देते हुए कहने लगे : ”निकल जा हरामखोर, कमीने-कुत्ते, बदमाश कहीं के…निकल जा मेरे घर से…।” नौकर बेचारे का जो अपमान सबके सामने हुआ था, उसे मन ही मन में बहुत क्रोध आया ।
वह खून के उगंसू पीकर रह गया, उसने वहां से जाते समय अपने मन ही मन में यह निर्णय कर लिया : ”सेठजी, तुमने मुझे छोटा इंसान समझकर मारा है, सब के सामने मेरा अपमान किया है, मैं एक दिन इसका बदला जरूर लूंगा…बदला… बदला…।” यह प्रण कर नौकर न२अ वहां से चला गया ।
किसी न किसी तरह से नन्दू ने राजा के महलों में नौकरी प्राप्त कर ली । बदले की आग अब भी उसके मन में सुलग रही थी । बस वह हर समय मौके की तलाश में रहता था कि कब ऐसा मौका मिले जब वह सेठ से अपने अपमान का बदला ले सके ।
किसी ने ठीक ही कहा है कि समय बहुत बलवान है, समय बदलते देर नहीं लगती । एक दिन राजा शिकार खेलने गया हुआ था । शाही महलों में बहुत कम लोग दिखाई दे रहे थे । नन्दू ने इधर-उधर देखा, मैदान खाली पाकर वह राजा के कमरे में पुस गया ।
सेठ मुरारीलाल से बदला लेने का समय आ गया था, क्योंकि उसे यह बात तो अच्छी तरह पता थी कि सेठ मुरारीलाल, खुलेआम महलों में उगता-जाता है । उसके आने पर कोई रोक-टोक नहीं । नन्दू का तेज दिमाग बहुत दूर तक काम कर चुका था, वह सीधा जाकर राजा के पलंग पर लेट गया, देखने में ऐसा लग रहा था जैसे वह बड़ी गहरी नींद सो रहा हो ।
राजा जैसे ही अंदर आया तो नन्दू नींद में ही बड़बड़ा कर बोलने लगा । ‘अरे कोई धन कमा लेने से तो राजा नहीं बन जाता है…मुरारीलाल की यह मजाल कि अब रानी के साथ भी छेड़छाड़ करे ! छी…छी ? छी…पापी कहीं का…धन अधिक आते ही बुद्धि भ्रष्ट हो गई है…इस आदमी की…राजा की बराबरी करता है, पापी कहीं का…।’
राजा मान सिंह ने नौकर के मुंह से जैसे ही यह शब्द सुने तो उसे बहुत क्रोध आया, उसने झट से नन्दू को गले से पकडू कर खड़ा किया और पूछा : ”नन्दू ! जो कुछ तूने नींद में कहा है, क्या वह सत्य है ?” नन्दू कोई कम चालाक नहीं था । बदले की उसग उसके अंग-अंग में सुलग रही थी ।
उसने राजा के सामने हाथ जोड़ते हुए कहा, ”क्षमा कीजिए अन्नदाता ! मैं बहुत ही अधिक थक गया था । बस जैसे ही आपके कमरे में आया तो मुझे जोरदार नींद उग गई उगैर मैं उगपके पलंग पर ही गिर पड़ा, नींद में ही न जाने मैं क्या-क्या कहता रहा हूं यह मुझे नहीं पता महाराज…जो हो गया…सो हो गया, मुझे क्षमा करें ।” यह कहते हुए नन्दू बाहर निकल गया ।
राजा सोच में पड़ गया । संदेह के कारण उसका मन बहुत ही उदास हो रहा था । सेठ मुरारीलाल उसकी पत्नी के साथ छेड़छाड़ करता है…जिसे उसने अपना मित्र समझकर महलों में खुलेआम आने की अनुमति दे रखी थी, उसने ही उसके साथ विश्वासघात किया…धोखेबाज…पापी, मैं अब तुम्हें तुम्हारे किए की सजा देकर ही रहूंगा…। उसी समय राजा ने अपने सिपाहियों को आइघ दी कि वे सेठ मुरारीलाल को पकड़कर हमारे सामने लाएं ।
राजा की आज्ञा का पालन हुआ । सेठ मुरारीलाल को राजा के सामने हाजिर किया गया…राजा ने मुरारीलाल को देखते ही क्रोध भरे स्वर में कहा, ”देखो मुरारीलाल आज के पश्चात तुम मेरे महलों में कदम नहीं रखोगे, आज से तुम्हारी-हमारी मित्रता समाप्त है…धोखेबाज इन्सानों से कैसी मित्रता । हां, मेरे साथ तुमने जो विश्वासघात किया है, उसकी सजा तुम्हें जरूर मिलेगी ।”
सेठ मुरारीलाल राजा के क्रोध को देखकर समझ गया कि अब तो राजा उसे ”क्षमा करना महाराज, असल में नींद में मुझे कुछ उलटा-सीधा बोलने की आदत है, हो सकता है मैं कमापके सामने भी कोई ऐसी भूल कर बैठा हूं…इसके लिए मैं आपसे माफी मांगता हूं ।”
राजा समझ गया कि इस नौकर ने नींद में यह सब झूठ बक दिया है, उस दिन उसकी रानी उगैर सेठ मुरारीलाल वाली बात भी इस मूर्ख ने नींद में ही उड़ा रू डाली होगी । राजा अपनी भूल पर पश्चाताप करते हुए सेठ मुरारीलाल के पास गयुा और नौकर की सारी कहानी सुनाई और अपनी इस भूल की माफी भी मांगी ।
सेठ मुरारीलाल दिल ही दिल में अपनी इस चाल की सफलता पर खुश हो उठे थे…मन में प्रभु का धन्यवाद करते हुए कहने लगे संसार में कोई छोटा-बड़ा नहीं, किसी को छोटा समझकर उससे पूणा नहीं करनी चाहिए ।
Panchatantra Story #5. बुद्धि ही महान है |
”भला एक छोटा सा खरगोश इतने बड़े शेर को मार सकता है ?” ”क्या यह सव है ?” “हां, यदि आपके पास बुद्धि है तो आप बड़े से बड़े शट्ट को भी हरा सकते हैं ।” काशीपुर का जंगल अपने आप में इसलिए प्रसिद्ध हो गया था क्योंकि वहां पर एक बहुत ही खूनी शेर रहता था, वह आते-जाते मुसाफिरों को मारकर खा जाता, जैसे-जैसे लोगों को पता चलता गया कि इस जंगल में नरभक्षी शेर रहता है तो उन्होंने वहां से आना-जाना बंद कर दिया ।
अब शेर को मानव जाति का मांस तो खाने के लिए मिलता नहीं था, तो उसने अपने ही जंगल के जानवरों को खाना शुरू कर दिया । जंगली जानवर बेचारे अपने जीवन के बारे में कुछ नहीं जानते थे कि यह जीवन कब समाप्त हो जाएगा, कब वह खूनी शेर आकर उनके जीवन को मृत्यु में बदल देगा ।
खूनी शेर के इन अत्याचारों से तंग आकर जंगली जानवरों ने मिलकर अपनी एक सभा बुलाई जिसमें हाथी से लेकर खरगोश तक छोटे-बड़े सब जानवरों ने भाग लिया । इस सभा का प्रधान भी एक हाथी को ही बनाया गया । देखने में तो यह हाथी अकेला ही चार शेरों के बराबर था, मगर शेर के सामने जाते हुए उसे भी डर लगता था, ऐसा क्यों था ?
यह बात किसी की समझ में नहीं आ रही थी । सब छोटे-मोटे जानवर बैठे उस देवकाय हाथी की ओर देखकर हैरान हो रहे थे, जो शेर के सामने खड़ा काला देव नजर आता था । यह सब दिल की बात थी, शेर का दिल शेर का ही होता है । पास बैठे खरगोश ने अपनी दुम हिलाते हुए सोचा ।
तभी मंच पर बैठे हाथी ने अपने भाइयों को सम्बोधित करते हुए कहना शुरू किया : ”देखो भाइयों ! इस समय हम सब जीवन और मृत्यु के बीच लटक रहे हैं, न जाने कौन से पल वह खूनी शेर आकर हमारे जीवन को मौत में बदल डाले । हमारी जिंदगी अब हमारे बस में नहीं रही, न ही इसका कोई भरोसा रहा है ।
ऐसे समय में हम सबको सोचना होगा कि हम इस जीवन का क्या करें ? हमें यह विश्वास कैसे हो कि हम कब तक जीवित रहेंगे ।” सारे जानवर बेचारे चुपचाप बैठे सोच रहे थे कि हम उस खूनी शेर के पंजे से कैसे बच सकते हैं । किसी की कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था, सब के सब शेर के नाम से ही कांपते थे । किसकी मजाल थी जो उस शेर के सामने जाकर बोल सकता ।
इसी बीच एक मोर उड़कर मंच पर पहुंचा और अपने पंख हिलाकर सिर को झुकाकर, सभापति हाथी को नमस्कार करके अपनी सुरीली आवाज में बोला : ”मेरे भाई-बन्धुओं तथा सभापति महोदय, मैं समझता हूं कि हम इस समय बहुत बड़े संकट में फंसे हुए हैं, इस संकट से हम एकदम से तो नहीं निकल सकते ।
परन्तु फिर भी हम अपनी आयु के बारे में तो जान ही सकते हैं ।” ”वह कैसे ?” ”देखो, यह बात तो सत्य है कि शेर ने एक दिन तो हमें खाना ही है, अब कितने दिन हमारा जीवन शेष हए, उसे जानने की एक तरकीब मेरे पास है ।”
”वह कौन सी?” सारे जानवरों की आखों में आशा की झलक चमकने लगी ”देखो भाई, हममें से पांच लोग इकट्ठे होकर जंगल के राजा के पास जाएंगे ।” ”शेर हमें खा नहीं लेगा ।” रीछ ने जल्दी से कहा । ”नहीं भैया, शेर इतना मूर्ख नहीं, वह जंगल का राजा है ।
वह अपनी प्रजा की बात जरूर सुनेगा, फिर उसने हमें वैसे भी तो खा ही लेना है’ । बुजदिलों की जिंदगी जीने से तो बहादुरी की मौत मरना अच्छा है । इसलिए मैं केवल अपने साथ चार ही साथियों को लेकर शेर के पास जाऊंगा…चार बहादुर साथी कोई भी मेरे साथ चल सकते हैं ।”
”मगर हम शेर के पास जाकर क्या करेंगे?” गीदड़ ने पूछा । ”हम शेंर से यही प्रार्थना करेंगे कि आप अपनी गुफा में ही आराम से बैठे रहा करें, आपके भोजन के लिए हममें से एक जानवर हर रोज आपके पास आ जाया करेगा, इस प्रकार आप को भोजन मिलता रहेगा और हमें भी अपनी मौत का दिन याद रहेगा, इससे दोनों पक्ष चैन से रहेंगे ।”
सब जानवर इस बात को मानने के लिए तैयार हो गए थे, उसी समय पांच सदस्यों का दल मोर और हाथी की रहनमाई में शेर के पास भेजा गया, शेर ने इस शर्त को खुशी से स्वीकार कर लिया । दूसरे दिन से ही जानवरों की पंचायत ने मिलकर अपने साथियों की मौत के नम्बर बांट दिए थे ।
अब तो हर रोज ही सुबह के समय बेचारा एक जानवर शेर की गुफा की ओर चल पड़ता, जो बाकी बचे थे वे अपनी मृत्यु के इन्तजार में बैठे हाथी, भेडिया, लोमड़ी, गीदड़, चीता, रीछ, मोर…खरगोश तथा अन्य जानवर अपनी बारी से शेर के पास जाते और शेर उनको खाकर अपना पेट भर कर आराम से सो जाता या घूमने निकल जाता ।
एक दिन एक गरीब खरगोश का नम्बर भी आ गया, लोगों को यह देखकर बड़ा आश्चर्य हो रहा था कि यह खरगोश जरा भी चिंतित नहीं । न ही उसके चेहरे पर उदासी नजर आ रही थी । वह तो हंसता हुआ खुशी-खुशी जा रहा था ।
जैसे किसी विवाह-शादी में जा रहा हो जबकि इसके पूर्व जितने भी जानवर शेर का भोजन बनने जाते, वे सब के सब रोते हुए जाते थे । मौत के नाम से भला किसे डर नहीं लगता…लेकिन न जाने यह खरगोश कैसा था, जिसे मौत को सामने देखकर बड़ी खुशी हो रही थी ।
उस खरगोश की पत्नी और दो बच्चे भले ही उसे जाते देखकर रो रहे थे, मगर वह खरगोश तो जरा भी नहीं डर रहा था । वह चल दिया और सब जानवर आश्चर्य से उसे देखते रहे । सत्य बात तो यह थी कि वह खरगोश भी मरना नहीं चाहता था, न जाने क्यों उसकी अंतरात्मा उसे बार-बार कह रही थी कि तुम मरोगे भी नहीं, क्योंकि तुम एक बुद्धिमान जीव हो, तुम छोटी आयु से साधु-संतों तथा ज्ञानियों के पास बैठते रहे हो, वहां से तुम्हें इतना ज्ञान मिल चुका है कि तुम मौत से भी लड़ सकते हो ।
उसी ज्ञान की शक्ति उसे यह प्रेरणा दे रही थी कि तुम मरोगे नहीं, यदि तुम अपनी बुद्धि से काम लोगे तो मौत से बच जाओगे । चलते-चलते खरगोश मौत से बचने की कोई युक्ति सोचता जा रहा था । तभी रास्ते में उसने एक पुराना कुआ देखा, उसने उस कुएं के अंदर झांककर देखा कि इसमें पानी भी है कि नहीं ।
जैसे ही उसने नीचे झांककर देखा तो उसे उसमें पानी तो नजर आया, मगर पानी के अंदर उसे एक और खरगोश भी नजर आया, जो उसकी अपनी ही छाया थी । खरगोश उसे देखकर हंस दिया, फिर थोड़ी देर तक सोचता रहा । शेर के पास पहुंचते-पहुंचते उसे काफी देर हो गई ।
शेर जो पहले रो भूखा बैठा था, खरगोश को देखते ही क्रोध से भड़क उठा उगैर दहाड़ते हुए बोला : “अरे ओ खरगोश के बच्चे ! एक तो तू पहले ही पिहा-सा है, तेरे को खाने से मेरा पेट भी नहीं भरेगा, दूसरे तू इतनी देर से उगया है कि मैं भूख से मरा जा रहा हूं वोल देर से क्यों आया ?”
”महाराज, अब आपसे क्या वताऊं कि मुझे रास्ते में एक दूसरे शेर ने घेर लिया था ।” ”क्या वक रहे हो तुम । इस जंगल में हमारे सिवा उगैर कोई शेर है ही नहीं ।” ”नहीं महाराज, मैं सच कह रहा हूं कि एक शेर और है, उसने मुझे घेर लिया तो मैंने उससे माफी मांगते हुए कहा कि हे जंगल के राजा ! मुझे माफ कर दो, क्योंकि जो हमारा राजा है उसने मुझे बुला रखा है ।”
”नहीं नहीं इस जंगल में हमारे अलावा और कोई शेर नहीं रह सकता, हम उसे मार डालेंगे । उसे क्या अधिकार है कि हमारे जंगल की सीमा में प्रवेश करे । हम उसका खून कर देंगे । हम उसे मार डालेंगे…चलो हमें बताउगे कि वह शेर कहां है, आज हम तुम्हें न खाकर उसी के मांस से अपनी भूख मिटाएंगे ।”
”ठीक है महाराज! चलिए, परन्तु यदि आपको कुछ हो गया तो मुझे दोष मत देना ।” “नहीं…नहीं…हमें कुछ नहीं होने वाला, फिर हम शेर हैं, डरना हमारा काम नहीं, लड़ना हमारा काम है ।” ”ठीक है महाराज, जैसी आपकी इच्छा, अब मैं उगपको उसी शेर के पास ले चलता हूं ।”
”हां…हां…चलो…चलो…देर मत करो, ऐसा न हो कि कहीं वह हमारे जाने तक भाग जाए ।” जब खरगोश शेर को लेकर उस कुएं के पास आया तो शेर ने चारों हमोर नजरें पुमाकर देखा, वहां दूर-दूर तक किसी शेर का नाम-ओ-निशा भी नहीं था ।
”अरे पिद्दे! कहां है तेरा शेर ? क्या तुम हमें पागल बना रहे हो ?” ”नहीं…नहीं…महाराज…ऐसी बात नहीं, मैं झूठ नहीं बोल रहा, मैंने खुद उसे अपनी आखों से देखा था ।” ”फिर कहां है वह ?” ”शायद आपसे डरकर इस कुएं में छुप गया है ।”
”हम उसे कुएं में भी नहीं छोड़ेंगे, वह क्या समझता है कि वह छुपकर अपनी जान बचा लेगा, चलो दिखाओ हमें ।” खरगोश उस शेर को कुएं की मुंडेर के पास ले गया और बोला : ”देखो महाराज, वह रहा, इस कुएं में बड़े मजे से छुपा बैठा है ताकि उगाग्को पीछे से मार सके ।”
शेर ने जैसे ही झांककर नीचे देखा तो कुएं के पानी में उसे शेर नजर आया जो असल में उसकी अपनी र्हो छाया थी । उस पागल को क्या पता था कि खरगोश अपनी ही चाल चल रहा है । क्रोध से भरे शेर ने अपनी ही छाया को शेर समझकर कुएं में छलांग लगा दी और वह अपनी मौत आप ही मर गया ।
खरगोश खुशी से नाच उठा । ”बुद्धि सबसे बड़ा हथियार है ।” यह कहता हुआ खरगोश वापस अपने साथियों के पास पहुंचा तो वे सब उसे जीवित देखकर हैरान रह गए । उन्होंने खरगोश से पूछा : ”अरे भाई ! तुम कैसे जीवित वापस आ गए ?”
”मैं ही जीवित वापस नहीं आया अब तुम सब जीवित रहोगे, अब कोई बेमौत नहीं मरेगा क्योंकि मैं शेर को मार आया हूं ।” जब खरगोश ने शेर को मारने की पूरी कहानी सुनाई तो सब जानवर खुशी से नाच उठे ।
Panchatantra Story #6. शराफत का दूसरा नाम है मौत |
बगुले ने चालाकी दिखाते हुए कहा : ”देखो ? तुम लोग मेरा परिवार हरे मैं अपनी आखों के सामने मरते नहीं देख सकता । अब मैं एक-एक करके यहां से ले जाऊंगा और पास ही के बड़े तालाब में छोड़ दूंगा ।” सीधे-सादे केकड़े उस बगुले की कल में फंस गए… किन्तु बगुले की यह धोखे से लिपटी अधिक समय तक अपना रयं नहीं जमा सकी केकड़े ने उसकी वालाकी पकड़ ली और …?
बुढ़ापा बहुत बुरी चीज है, जवानी बीत जाती है तो बुढापे का दुःख कुछ अधिक ही महसूस होने लगता है, जवानी में जो लोग उगपके उगगे-पीछे फिरते हैं, हाथ जोड़ते हें, बुढ़ापे में वही दूर भागते नजर आते हैं । यही हाल था उस बगुले का जो सारा जीवन तालाबों में से कीड़े-मकोड़े निकालकर खाता रहा, मगर जब आ हो गया और शिकार करने योग्य न रहा तो तालाब के एक कोने में पड़ा अपने भाग्य पर रोता रहता ।
एक दिन एक केकड़े ने उस बूढ़े बगुले को रोते देखा तो उसके मन को बहुत दुःख हुआ, उसने उसके पास जाकर पूछा, ”मामाजी, क्या बात है, आप अकेले पड़े-पड़े क्यों रो रहे है ?” ”अरे भांजे, मेरे दुःख को किसी ने समझा ही नहीं, बस एक तुम हो कि समझ रहे हो, अब मैं तुम्हें कैसे बताऊं कि मैं इस तालाब के अंदर रहने वाले साथियों का दुःख नहीं देख सकता ।”
”कैसा दुःख ?” केकड़े ने हैरान होकर पूछा । ”मेरे प्यारे भांजे, तुम यह तो जानते ही हो कि मैं एक टांग पर खड़े होकर भगवान की पूजा करता रहता हूं ।” ”हां, जानता हूं मामा, बाउत्कइ रोज अगपको देखता भी हूं ।” ”बस भांजे, कल ही भगवान ने मुझे बताया कि कुछ दिनों में इस तालाब का पानी सूखने वाला है…तुम तो जानते ही हो कि हम पानी के जीव-जन्तु हैं, पानी के बिना तो हम एक पल भी जीवित नहीं रह सकते ।
अब तुम ही सोचो कि इस बुढ़ापे में जब मैं अपने साथियों को मरते देखूंगा तो मेरा क्या हाल होगा ?” यह कहते हुए बगुला और भी जोर-जोर से रोने लगा । केकड़े ने जैसे ही बगुले के मुंह से यह बात सुनी तो उसके चेहरे का रंग र्भो उड़ गया ।
वह उसी समय पानी के अंदर अपने साथियों के पास गया और बोला : ”भाइयों, दोस्तों, कान खोलकर सुन लो, इस तालाब के किनारे बैठे बूढ़े बगुले को भगवान ने दर्शन देकर कहा है कि कुछ ही दिनों में इस तालाब का पानी सूखने वाला है, यदि हम मौके पर न संभले तो हम सब के सब बेमौत मर जाएंगे ।”
मौत का नाम सुनते ही सब जीव-जन्तु कांपने लगे, सबने मिलकर उस बूढ़े बगुले के पास जाने का फैसला कर लिया ताकि मौत से बचने का कोई रास्ता निकाला जा सके, उन बेचारे सीधे-सादे प्राणियों को क्या पता था कि बगुला तो बड़ा चालाक कछुए, केकड़े तथा मछलियां सब इकट्ठे होकर बगुले के पास आए और बूढ़े बगुले के आगे हाथ जोड़कर कहा, ”मामाजी, हमें बचने का कोई रास्ता बताओ ।”
“देखो मित्रों, तुम सब लोग मेरा परिवार हो, मैं उरपने परिवार को बचाने के अपनी जान तक कुर्वान कर दूंगा, बूढ़ा हो गया हूं तो क्या दुबअग, फिर भी इन लड़ियों में इतनी ताकत है कि तुम लोगों को बचाने का काम तो कर ही सकती है ।”
”मामाजी हम बचेंगे कैसे ?” ”एक मुक्ति है मैं तुम सबको बारी-बारी से अपनी पीठ पर बैठा कर साथ वाले तालाब में इस प्रकार तुम सब आखिरी घड़ी में पुण्य कमा लूंगा ।” ”वाह मामा…वाह…मामा हो तो उगप जैसा लोकसेवक ।”
सब जीव-जन्तु उस बगुले की प्रशंसा करने लगे, उन्हें क्या पता था इस वृड़े बगुले ने अपने जीने का साधन ढूंढ लिया है । वह इतना सीधा भी नहीं था जो बुढ़ापे में उन्हें अपनी कमर पर लादे फिरता । दूसरे दिन से बगुले ने अपना काम शुरू कर दिया ।
सबसे पहले उसने मछलियों को अपनी पीठ पर लादा उरौर उन्हें वहां से पास के जंगल में एक पहाड़ी पर ले जाकर खा लिया । तीन-चार दिन तक वह मछलियां खाकर आनन्द से अपना पेट भरता रहा । मछलियां खा-खाकर जब बगुले का मन भर गया तो उसने केकड़ों का नम्बर लगाया और सबसे पहले एक मोटे से केकड़े को लेकर चल पड़ा ।
उड़ता हुआ वह उस पहाड़ी पर जा पहुंचा, यहां पहले से मछलियों की हड्डियों का ढेर लगा पड़ा था । केकड़े ने जैसे ही मछलियों की हड़ियों के ढेर को देखा तो उसने बगुले से पूछा : ”मामाजी, अभी वह तालाब कितनी दूर है ?” बगुले ने सोचा उग्ब यह मन्दबुद्धि सीधा-सादा केकड़ा मेरा क्या बिगाड़ लेगा, अब तो मैं इसे तालाब से बाहर निकाल ही लाया हूं अब इसमें वह शक्ति कहां है ।
अत: वह अकड़कर बोला, ”अरे ओ केकड़े, तू क्या समझता है कि मैं तेरे बाप का नौकर हूं जो तुम सबको अपनी पीठ पर लादकर एक से दूसरे तालाब तक पहुंचाता रहूं मैंने तो यह सब नाटक पेट भरने के लिए किया था, क्योंकि इस उम्र में मैं किसी जीव का शिकार तो कर नहीं सकता, इसलिए मैंने तुम सब लोगों को पागल बनाकर अपना उन्तु सीधा किया है और करता रहूंगा ।
आजकल चालाकी औँर हेराफेरी से ही काम चलता है मेरे भाई ।” केकड़ा समझ गया था कि यह बगुला हत्यारा है, इससे जान बचाना सरल नहीं है, परन्तु फिर भी उसने साहस से काम लेते हुए अपनी जान की बाजी लगाने का फैसला कर लिया ।
उसने सोचा कि यदि मैं मरूंगा तो इस बगुले को भी साथ लेकर मरूंगा । इससे मेरे बाकी के भाई-बांधव तो बच जाएंगे । यह सोचकर उसने बगुले का गर्दन पर जोर से काट लिया उगैर साथ ही उसकी सांस की नली को भी पंजों से लहूलुहान कर दिया, दर्द के मारे बगुले के गले से एक चीख निकली और चीखता हुआ वह बोला : ”अरे अरे यह क्या कर रहे हो, छोड़ो ।”
”वही कर रहा हूं जो तेरे जैसे धोखेबाज और पाखंर्डो के साथ करना चाहिए । यदि अपनी जान बचाना चाहते हो तो मुझे इसी समय मेरे तालाब पर वापस ले चलो, नहीं तो जान से मारकर ही दम लूंगा ।” अब बगुले के सामने और कोई चारा भी नहीं रहा । वह केकड़े को वापस उसी तालाब पर ले आया ।
वहां पर उसने अपने साथियों को इस बगुले की काली करतूत के बारे में बताया, तो सारे के सारे जीव-जन्तु मिलकर उस बगुले पर टूट पड़े । उस धोकेबाज़ और पापी की हत्या करके सबने शांति की सांस ली ।
Panchatantra Story #7. तन के खोटे मन के चोर |
”नहीं दोस्त नहीं अब मेरे जीने का कोई लाभ नहीं ? एक-एक करके मेरे अपने ही मेरा साथ श्रेद्र गएर अब इस जीवन की आवश्यकता ही क्या है मेरे जीवन और मौत के बीच में कोई अतंर नहीं रहा ।” ”नागदेव आप ऐसी बातें मत करो ? हम सब आपके साथ हैं ।
आपके साथी हैं हम आपकी सेवा करेंगे ।” काला लम्बा सांप अपने बिल से बाहर निकला और धीरे-धीरे रेंगने लगा, कोई समय था जब वह इसी धरती पर हवा की भांति तेज दौड़ा करता था, परन्तु दयाब उसमें पहले वाली शक्ति नहीं रही ।
उम्र के साथ-साथ जैसे उसका पूरा शरीर ढल चुका था, छोटे-मोटे कीड़े-मकोड़े मेंढक, कछुए जिन्हें मारकर वह अपना पेट भर लिया करता था, अब तो उनको पकड़ पाना भी उसके बस की बात नहीं रही थी । जो जीव उसकी शक्ल देखकर डर जाते थे, अब तो उनसे मित्रता करके ही समय काटा जा सकता था, उसके बड़े-बूढ़ों ने यही पाठ पढ़ाया था कि समय के साथ बदल जाना ही बुद्धिमता है ।
यही कारण थी कि इस काले नाग ने अपने आप को पूरी तरह से बदल लिया था, आज जब वह अपने बिल से बाहर निकला तो सामने बैठे कुछ मेंढकों और कछुओं को पहले से ही प्रणाम कर दिया । ”अरे नागराज, आप तो हमारे पूज्य हैं, बड़े हैं, हमारा ही फर्ज है कि आपके चरण छुए ।”
”बेटे । जब बच्चे जवान हो जाते हैं, तो उन्हें बराबरी का दर्जा दिया जाता है । अब तुम लोग बड़े हो, इसलिए हमारा-तुम्हारा रिश्ता मित्रों वाला है । हम में कोई छोटा-बड़ा नहीं ।” ”नागराज, यह तो आपकी महानता है कि आप हमें बराबरी का दर्जा दे रहे ।”
“बच्चों, यह मत भूलो कि संतान ही बुढ़ापे का सहारा होती है । अब तो हम बूढ़े अपने खाने के लिए चिंतित हैं, सोचते हैं कि तुम्हारे जैसे कुउछ जवान बेटे मिल जाए तो कुछ चिंता कम हो ।” ”नागराज, हम आपकी सेवा के लिए हर पल हाजिर हैं, बोलो हम आपके किस काम आ संकते हैं ?”
”बेटे! यदि तुमने मेरा दुःख पूछा ही है तो सुनो, पिछले जन्म में मैंने एक ब्राह्मण के बेटे को काटा था । वह अपने पिता के सामने तड़प-तड़प कर मर गया, तो ब्राह्मण ने मूउझे यह श्राप दिया कि : ‘हे पापी ! तूने मेरे बेटे को काटकर मार डाला, जा अपने इस पाप के बदले में तू अगले जन्म में बूढ़ा होकर मेंढकों और कछुओं को अपनी पीठ पर बैठाकर पुमाया करेगा तभी तुझे बुढ़ापे में भोजन नसीब होगा ।’
बेटा ! अब तुम स्वयं ही सोचो कि मैं क्या करूं ? अब मैं तो बिल्कुल बूढ़ा हो गया । मेरे पेट भरने का सासन तो तभी बन पाएगा जब आप लोग मेरे इस श्राप का प्रायश्चित करवाओगे ।’ ”नागराज! तुम चिंता मत करो, हम तुम्हारी सहायता करेंगे । हम जीव-जन्तु ही तो एक-दूसरे के काम उग सकते हैं, दूसरे लोग तो हमारे शत्रु हैं ।
फिर तुम तो नागराज हो, शिवाजी के प्रिय भक्त, हम तो तुम्हारे पुजारी हैं ।” सांप अपने मन में बहुत खुश था कि उसकी यह चाल सफल हो गई, उग्ब वह भूखा नहीं मरेगा । दूसरी ओर मेंढकों और कछुओं ने अपने साथियों को यह खुशी की खबर सुनाई कि उगज से हमारी बिरादरी सांप के ऊपर बैठकर घूमा करेगी, काला नाग बारी-बारी से हमें अपनी पीठ पर बैठाकर जंगल की सैर कराएगा ।
वाह…वाह….वाह…क्या आनन्द आएगा जब हम सांप की पीठ पर बैठकर सैर किया करेंगे, जो हमारा शत्रु था, हम उसी पर राज करेंगे । सांप अपनी चाल को सफल होते देखकर खुश था तो सीधे-सादे साफ दिल के मेंढक और कछुए सौप पर सवारी करने की आशा में खुशी मना रहे थे, उन बेचारों को क्या पता कि यह नाग तन का खोटा और मन का चोर है ।
यह आ जरूर है परन्तु चतुराई में अभी भी जवान है । दोनों पक्ष रात भर खुशियां मनाते रहे । सुबह हुई तो कछुए उगैर मेंढकों के सरदार अपने-अपने साथियों को लेकर नागराज के पास आ गए, उन्होंने सांप के बिल के बाहर खड़े होकर आवाज लगाई : ”नागराज ! हम आ गए हैं । आप भी आओ, ताकि आप के, पाप का प्रायश्चित हो सके ।”
नागराज अपने बिल से बाहर निकला । उसने आते ही कहा, ”आओ मित्रों, तुम्हें नमस्कार करता हूं ।” ”नागराज! हम सब भी आपको नमस्कार करते हैं । आशा करते हैं कि आपका कल वाला वचन आपको भी याद होगा ।” ”भैया मैं नाग हूं नाग अपने वचन कभी नहीं भूलते, आओ उगज पहले दिन तुम दोनों सरदार मेरी पीट पर बैठ जाओ ।
आज मैं तुम दोनों सरदारों को ही घुमाऊंगा, कल से आपकी जनता का नम्बर लगेगा ।” ”ठीक है नागराज, जो भी तुम्हें अच्छा लगे, जो तुम्हारी खुशी है, वही करो, हम तो तुम्हारी खुशी के साथ ही खुश हैं ।” ”क्या वास्तत में ही तुम लोग मेरी खुशी का ख्याल रखोगे ?”
”हां नागराज, समय आने पर हमारी परीक्षा लेकर भी देख लेना । हम आप जैसे मित्र पर तो जान तक कुर्बान कर देंगे…।” “बस…बस…मित्रों अब मुझे विश्वास हो गया कि तुम समय आने पर मेरा पूरा साथ दोगे, अब तुम जल्दी से मेरी पीठ पर बैठ जाओ, घूमने का आनन्द तो सुबह-एका ही आता है ।”
मेंढकों और कछुओं के सरदार, बूढ़े नाग की पीठ पर बैठ गए । नागराज अपनी चाल को सफल होते देखकर मन ही मन बहुत खुश हो रहा था । सारा दिन सांप उन दोनों को पुमाता रहा और शाम को उसी स्थान पर आकर उतार दिया । मेंढक और कछुओं के सरदारों ने साप से कहा : ”अच्छा मित्र ! हम चलते हैं, कल सुबह मिलेंगे ।”
”ठीक है मित्रों, जैसी उगप लोगों की खुशी, मगर एक बात तो मेरी समझ में नहीं आई ।” ”क्या ?” ”यही कि आप दिन भर मेरी पीठ पर बैठे घूमते रहे हैं । परन्तु आपने यह तो पूछा ही नहीं कि मैंने खाना भी खाया है कि नहीं ।” ‘ओह ! क्षमा करना नागराज…हमसे बड़ी भूल हुई ? हम वास्तव में आपके सामने लज्जित हैं ।’
”ऐसी कोई बात नहीं मित्रों, मैंने तो वैसे ही कह दिया था । आप जैसे मित्रों के लिए तो मैं भूखा रहकर भी गुजर कर सकता हूं ।” ”नहीं…नागराज ! हम तुम्हें भूखा रखकर पापी नहीं बनना चाहते, हम दोनों तुम्हारे लिए भोजन का प्रबन्ध करेंगे, कल से हम अपने आप छोटे-मोटे मेंढक-कछुए हर रोज तुम्हारे भोजन के लिए भेज दिया करेंगे ।”
नाग मन ही मन में हंसते हुए सोचने लगा…’वाह क्या तीर निशाने पर बैठा है, अब तो सारी चिंता ही दूर हो जाएगी, इन सीधे-सादे जन्तुओं को जरा सा मान दो तो यह जान तक देने को तैयार हो जाते हैं ।’ दूसरे दिन सुबह ही सांप के लिए भोजन आ गया ।
सांप ने इस प्रकार आनन्द से कभी भी घर बैठकर भोजन नहीं खाया था, जितने आनन्द से आ होने पर आज मिला था । पर पर भोजन मिले इससे अच्छी बात और क्या होगी । भोजन करने के पश्चात् सांप ने फिर से कुछ मेंढक तथा कछुओं को उनके सरदारों के साथ पीठ पर बैठाया और दूर तक पुमाने ले गया ।
रास्ते में उसका पुराना मित्र एक दूसरा सांप मिला, तो उसकी पीठ पर बैठे मेंढकों तथा कछुओं को देखकर हंसकर पूछा : ”क्यों भैया, यह क्या नाटक है । सांप की पीठ पर मेंढक और कछुए ।” ”हां दोस्त, समय-समय की बात है, इन्सानों में एक कहावत बड़ी मशहूर है कि-समय आने पर लोग गधे को भी बाप बना लेते हैं ।”
”हां…हां…बहुत खूब…लगता है कोई लम्बा खेल-खेल रहे हो ।” ”हां, पापी पेट का सवाल है भाई, बुढ़ापे में जब सब साथ छोड़कर भाग जाते हैं, तो अपनी बुद्धि तथा अपने अनुभव ही काम आते हैं ।” दोनों सांप एक-दूसरे से बातें करते रहे…काला बूढ़ा नाग बड़े मजे से चलता रहा ।
सुबह से शाम हो गई, काला नाग वापस अपने बिल के पास उगया तो कछुआ सरदार तथा मेंढक सरदार बहुत हंसी-खुशी नाग की पीठ से उतरे । उसी समय उन्होंने तालाब में से कुछ छोटे-मोटे मेंढक नागराज के भोजन के लिए भेजे, उसने बड़े आनन्द से भोजन किया, फिर अपने दोनों मित्रों से इधर-उधर की बातें करता रहा ।
कछुआ उगैर मेंढक सरदार सांप से दोस्ती करके बहुत खुश थे । नागराज से दोस्ती करके उन्हें अपनी पूरी बिरादरी में और अधिक सम्मान प्राप्त हो गया था । फिर नाग की सवारी का आनन्द ही अलग था । जो कोई भी जीव-जन्तु उन्हें नाग की पीठ पर बैठे देखता था, तो हैरान होता, उसके मुंह से यही शब्द निकलते : ”अरे, तुम कितने भाग्यशाली हो जो सांप पर सवारी करते हो, जो सदा से हमारी बिरादरी का शत्रु रहा है । हमारा शिकार करता रहा है ।”
”अपने-अपने नसीब हैं भैया । हमने पिछले जन्म में कुछ अच्छे कर्म किए थे जो इस जन्म में आनन्द ले रहे हैं ।” समय बीत रहा था । नागराज अपना बुढ़ापा बड़े मजे से काट रहा था, अब उसे किसी प्रकार की चिंता ही नहीं रही थी ।
धीरे-धीरे उस सांप ने पास के तालाब के सारे ही कछुए, सारे ही मेंढक खा डाले । अब दोनों दलों के सरदार ही बाकी बचे थे । फिर क्या था जैसे ही सुबह दोनों सरदार उसके पास घूमने जाने के लिए आए तो काले नाग ने सबसे पहले उनसे यही पूछा, ”मेरा भोजन कहां है ?”
”नागराज हमें बहुत दुःख से आज यह शब्द कहने पड़ रहे हैं कि हमारी सारी प्रजा समाप्त हो गई है ।” ”प्रजा ही समाप्त हुई है न, आप तो अभी जीवित हैं न ।” यह कहते हुए उस काले नाग ने कछुए और मेंढक सरदारों को भी खा लिया था ।
Panchatantra Story #8. अच्छे बुरे को पहचानो |
”देखो साथियों ? मौत हमारे सिरों पर मंडरा रही है ये दोनों शिकारी अपने जाल लिए हमें पकडूने के लिए ही आए हैं । मैं अच्छे-बुरे इन्सान को अच्छी तरह पहचानता हूं । इसलिए हमारा भला इसी में है कि हम यहां से भाग निकलें नहीं तोर…?”
”नहीं…नहीं…मंत्रीजी…हम अपने के इस तालाब को छोड्कर कहीं नहीं जाएंगे ।” ”मगर महाराज…?” हठी राजा ने मंत्री की एक न सुनी और…? दो शिकारी जब सारा दिन जंगल में घूमते-फिरते थक गए तो एक पुराने तालाब के किनारे उगकर उगराम करने के लिए बैठ गए ।
एक साथी उस तालाब से गिने का पानी भरने लगा तो उसने तालाब में तैर रही मछलियों को देखा । उसके मुंह में पानी भर उगया । वह पानी लेकर अपने साथी चन्द्र के पास पहुंचा । उसे खुश देखकर चन्दव ने पूछा, ”बिहारीलाल ! इतने खुश कैसे नजर आ रहे हो, एक तो सारा दिन गुजर गया उगैर एक भी शिकार नहीं मिला, उगैर तुम हो कि बड़े खुश हो रहे हो ।”
”भैया वर ! हम दोनों जब मिलकर चलते हैं तो दोहरी चाल चलते हैं ।” ”यानी !” ”यानी कि पशु-पक्षियों का शिकार न मिला तो जीव-जन्तुओं को ही पकड़ो, अपना काम चलना चाहिए ।” ”तुम कहना क्या चाहते हो ?” ”कहना यह है कि जिस तालाब के किनारे हम बैठे हैं, उसमें मछलियां ही मछलियां हे, जाल डालो उगैर मछलियां पकडू कर शहर ले जाकर बेचो, इस तरह अपना धंधा कुछ तो चलेगा ।”
”बात तो तुम्हारी ठीक है बिहारीलाल, मुझे खुशी है कि इस प्रकार हमें अपनी दिन भर की मेहनत का फल भी मिल जाएगा, परन्तु अब तो रात हो गई है कल सुबह से ही मछलियां पकड़ेंगे । आज की रात तो इन बेचारियों को भी सो लेने दो, इनके जीवन की आखिरी रात तो शांतिए से गुजर जाने दो ।”
”ठीक है भाई, चलो हम भी आराम से सोएं ।” यह कहकर बिहारी भी चन्दू के पास ही लेट गया । तालाब के किनारे लेटे हुए दोनों शिकारी थोड़ी देर में ही सो गए । दिन भर की थकावट उगैर ऊपर से ठंडी हवा के झोंके, बड़े आनन्द को नींद आ रही थी दोनों को ।
तालाब में तैर रही मछलियों ने इन दोनों शिकारियों की बातें सुन ली थी । जीवन किसे प्यारा नहीं, और मौत से कौन नहीं डरता । इन मछलियों को जब यह पता चला कि यह दोनों शिकारी उनकी जान के दुश्मन बन गए हैं, तो वह अपने राजा मगरमच्छ के पास गईं और उससे कहा : ”हे राजन ! मौत हम लोगों के सिर पर मंडरा रही है इसलिए हमें रातों-रात इस तालाब से निकलकर किसी दूसरे स्थान पर जाने का प्रबंध करना होगा ।”
मगरमच्छ इन मछलियों की बात सुनकर जोर-जोर से हंसने लगा और बोला, ”लगता है तुम पागल हो गई हो । सदियों से हमारे पूर्वज इस तालाब में रहते आए हैं । अब हम इसे रातों-रात चोरों की तरह छोड्कर कैसे भाग सकते हैं ।”
उसी समय मगरमच्छ के मंत्री ने उठकर कहा : ”महाराज ! यह समय इन बातों के सोचने का नहीं है, हमारे पूर्वजों के समय ऐसे लोग ही कहां थे जो हमें पकड़कर ले जाते उगैर हमारा व्यापार करके पेट भरते । आज मौत हमारे सामने है यदि हम ने अपना बचाव न किया तो यह शिकारी कुछ दिनों में सारा तालाब खाली कर देंगे ।”
“मंत्री जी ! हम बुजदिल उगैर कायरता र्क। कोई बात सुनना नहीं चाहते, हम इस तालाब को छोड़कर नहीं जा सकते ।” राजा ने क्रोध भरे स्वर में मंत्री से कहा । मंत्री ने फिर बड़े धैर्य से अपने राजा को समझाते हुए कहा, ”देखो महाराज ! यह समय जिद करने का नहीं है, मौत को अपने सामने देखकर उससे बचाव न करना पागलपन ही कहा जाता है । हम लोग कछुओं की सहायता से दूसरे तालाब में जाकर फिर से नया संसार बसा लेंगे ।”
”मंत्रीजी, ऐसा नहीं होगा, हम अपने तालाब या पूर्वजों के साथ गद्दारी नहीं कर सकते, यदि हमें जीना है तो इसी तालाब में ही जिएंगे । मौत भी यदि आनी है तो अपने ही देश की धरती पर अच्छी लगती है । मैं आप में से किसी को जाने से नहीं रोकता परन्तु मैं नहीं जाना चाहता, न ही जाऊंगा ।”
राजा का अंतिम फैसला सुनकर सब मछलियों को बहुत निराशा हुई । वे सब की सब अब मंत्री की ओर देख रही थीं । उन्हें पता था कि मंत्री बहुत बुद्धिमान है । वह बचने का कोई न कोई रास्ता जरूर निकालेगा । उसी समय मंत्री ने कहा : ”हे मेरी प्रिय प्रजा, हम लोग इस समय घोर संकट में फंस गए हैं ।
मौत हमारे सिरों पर मंडरा रही है, यदि हमने अपने बचाव के लिए शीघ्र ही कोई प्रयत्न न किया तो यह सारा हंसता-खेलता संसार मौत की वादी में बदल जाएगा, बाहर लेटे दोनों शिकारी कल तक हम में से किसी को भी जीवित नहीं छोड़ेंगे ।
अब आप सब मिलकर फैसला कर लें कि आपको जीवन की जरूरत है या मृत्यु की । आप में से जो लोग जीना चाहते हैं । वह मेरे साथ दूसरे तालाब में चलें, मैं उन्हें सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दूंगा ।” मंत्री का भाषण सुनकर सारी मछलियां दो भागों में बंट गईं । जिनमें से एक भाग तो राजा का साथ देने के पक्ष में था, दूसरा भाग मंत्री के साथ जाने को तैयार हो गया ।
मंत्री ने उसी समय कुछ बड़े-बड़े कछुओं को बुलाया और उनसे प्रार्थना की कि इस संकट के समय हमारी सहायता करो नहीं तो शिकारी हमें मार डालेंगे । कछुओं ने रातों-रात मछलियों को अपनी पीठों पर लाद-लाद कर साथ वाले तालाब में पहुंचाना शुरू किया तो राजा मगरमच्छ ने मंत्री से आखिरी बार फिर कहा : ”हे मंत्री महोदय ! मैं अंतिम बार तुम्हें फिर यही कहूंगा कि अपने देश और अपनी प्रजा को छोड़कर जाना देश से गद्दारी करना है, पाप है । तुम ऐसी भूल मत करो कि बाद में पश्चाताप करना पड़े ।”
”महाराज, अपनी प्रजा को अपनी आखों के सामने मरवाना तो सबसे बड़ा पाप है, इसलिए मैं उस पाप का भागी नहीं बनना चाहता । अब मैं जा रहा हूं मेरा अंतिम प्रणाम स्वीकार करें ।” राजा ने उरपने मंत्री उगैर अपनी प्रजा को जाते देखा तो उसके मन को बहुत दुःख हुआ, असल में मौत का डर तो उसे भी सता रहा था, मगर वह अपने पुश्तैनी तालाब को छोड्कर नहीं जाना चाहता था ।
सुबह उठकर उन दोनों शिकारियों ने तालाब में उरपने जाल फेंककर मछलियों को पकड़ना शुरू कर दिया, एक-एक करके मछलियां जाल में फंसती रहीं । अपने शिकार को देखकर दोनों शिकारी बहुत खुश हो रहे थे । उन्हें इनके इतने रुपये मिल जाएंगे कि कई दिन तक काम करने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी । एक राजा की हठ के कारण सारे तालाब की बची मछलियां अपनी जान से हाथ धो बैठी थी ।
Panchatantra Story #9. अनाड़ी की दोस्ती जी का जंजाल |
”घर आए मेहमान के साथ कभी भी कोई नहीं करते । उसका स्वागत करते हैं, विद्वानों ने अतिथि सेवा को प्रमु भक्ति की संज्ञा दी है । फिर तुम क्यों भगाना कहती हो मेरी बहन ?” “इसलिए कि मुझे राजा के क्रोध से डर लगता है, मैं अकेली ही उसका खून चूसती हूं, जब हम दोनों राजा का मून लगेंगे तो क्या होगा ?”
एक राजा के सोने के कमरे में एक सफेद जूं रहती थी, शाही पलंगों में रहने वाली इस जूं का पूरा राज इस बिस्तर में चलता था । यदि राजा देश का राजा था तो वह जूं इन पलंगों की रानी थी, जो राजा का स्वादिष्ट खून पी-पीकर खूब उगनन्द ले रही थी ।
किसी ने ठीक ही कहा है, सुखी प्राणी को देखकर लोग दूर से भागे हुए उगते हैं, ऐसे में तो रिश्तेदसि भी जोड़ने में पल नहीं लगता, सुख के तो सभी साथी हैं, दुःख में तो कोई पास उगकर भी खड़ा नहीं होता । यही हाल इस जूं का हुआ, एक खटमल उरचानक ही वहां आया और जू से बोला, ”मौसी प्रणाम ।”
”तुम…।” जूं ने आश्चर्य से उसकी ओर देखा । ”हां मौसी, मैं हूं खटमल, तुम मेरी मौसी लगती हो न ।” ”लेकिन, मैं तो तुम्हें नहीं जानती ।” ”मौसी! तुम मुझे नहीं जानती हो तो क्या हुआ, मैं तो तुम्हें जानता हूं ।” ”मगर तुम मेरे पास आए कैस ?”
”भूखा मरता आ गया, मैंने सोचा अपनी मौसी के पास चलते हैं, हमारी मौसी राजा जी का खून पी-पीकर खूब फल-फूल रही है । हम भी जरा मौसी के पास जाकर आनन्द ले लें ।” ”खटमल ।” ”जी मौसी ।” ”तुमने तो यहां आकर बहुत बुरा किया ।” ”क्यों मौसी ?”
”इसलिए कि राजा लोगों का क्रोध बहुत बुरा होता है, यदि मैं राजा के खून का आनन्द लेती हूं तो बहुत ही होशियारी से । अब जब हम दो हो जाएंगे तो राजा हमें छोड़ेगा नहीं, इसलिए हम दोनों की भलाई इसी में है कि तुम यहां से चलते-फिरते नजर आओ ।”
”मौसी, कोई घर आए मेहमानों से भी भला ऐसा व्यवहार करता है । घर आए मेहमान के लिए तो विद्वानों ने कहा है कि जब कोई मेहमान घर पर आए तो सबसे पहले उसका स्वागत करते हुए कहते हैं, ‘आओ बैठो, जलपान ग्रहण करो कहो घर में तो कुशल मंगल है! मौसी ! अतिथि सेवा को भगवान सेवा के समान ही माना गया है ।”
”वह अतिथि सेवा भी किस काम की जिसमें अपनी ही जान को खतरा हो ।” ”कैसा खतरा…देखो मौसी, पहले तो तुम दिल भरकर राजा का खून पी लेना, जब तुम्हारा पेट भर जाया करेगा तो मैं पी लिया करूंगा, बस बारी-बारी से दोनों अपना काम चलाते रहेंगे, न तुम्हें कोई कष्ट होगा, न ही राजा को ।”
”देखो खटमल, मैं तो राजा का खून बहुत ही प्रेम से चूसती हूं मेरे इस तरह खून पीने से राजा को न तो कोई कष्ट होता है, न ही उसे पता चलता है । तुम तो उस ढंग से कभी खून नहीं पी सकते ।” ”मौसी, तुम इस बात की चिंता मत करो, मैं तो तुमसे भी कहीं अधिक आराम से खून पीऊंगा राजा को तो पता भी नहीं लगने दूंगा ।”
अभी वे दोनों बातें कर ही रहे थे कि राजा भी अपने सोने के कमरे में आ गया, दोनों ने अपनी-अपनी जुबान बंद कर ली और चुपचाप बैठे राजा की ओर देखते रहे । जैसे ही राजा बिस्तर पर लेटा तो पहले जूं ने उसका खून पीना शुरू किया । जब जूं का पेट भर गया तो वह बड़े आराम से एक ओर बैठ गई ।
खटमल समझ गया कि अब उसका नम्बर है । वह तो पहले से ही राजा के स्वादिष्ट खून को पीने के लिए व्याकुउल हो रहा था, जूं के एक ओर होते ही वह खुन पीने के लिए राजा के शरीर पर जा बैठा । थोड़ी देर तक तो वह बड़े मजे से खून पीता रहा । उसने राजा को पता भी नहीं चलने दिया, परन्तु किसी ने ठीक ही कहा है कि चोर चोरी से तो जा सकता है, लेकिन हेराफेरी से नहीं ।
खटमल को जैसे ही राजा के स्वादिष्ट खून का आनन्द उगने लगा तो वह जूं से की गई सब बातों को भूल गया, लालच और लोभ में अंधा होकर वह जल्दी-जल्दी खून पीने लगा, जिससे उसका लम्बा डंक राजा के शरीर में चुभ गया ।
इस प्रकार राजा को काटने से राजा के मुंह से निकला, “ऊई” इसके साथ ही वह क्रोध से भर उठ बैठा । राजा के मुंह से निकली इस हल्की सी आवाज को सुनते ही पहरेदार भागे-भागे अंदर आए तो राजा ने कहा : ”इस पलंग में कोई जूं या खटमल है, जिसने हमें काटा है ।”
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राजा की बात सुनकर पहरेदार उस पलंग पर बिछे कपड़ों को एक-एक करके देखने लगे, मगर खटमल तो बड़ा होशियार और चालाक था, पहरेदारों को देखकर वह पलंग की पतली सी दरार के अंदर जा छुपा । जूं बेचारी कपड़े में चिपकी बैठी थी, जिस पर पहरेदारों की नजर पड़ गई… फिर क्या था जूं पकड़ी गई जिसे पहरेदारों ने मसलकर मार डाला और खटमल बच गया ।
Panchatantra Story #10. एकता में ही शकित है |
”अरे मित्र ? रोने से क्या लाभ है बुद्धिमान लोग कभी भी बीते हुए समय को याद नहीं करते…बुद्धिमान और में यही तो अतंर होता है । कभी अपनी हार न मानो दिल छोटा न करो । साहस, बुद्धि और एकता से बड़ी कोई शक्ति नहीं ?”
गौरैया और उसकी पत्नी उस घने जंगल में पीपल के पेड़ पर रहते थे । इस पेड़ पर इतने अधिक पत्ते थे किए वे गर्मी, सर्दी तथा वर्षा से भी बचे रहते थे । दोनों पति-पत्नी दिन भर तो अपने भोजन की तलाश में निकल जाते, शाम होते ही वापस उगकर अपने घोंसले में विश्राम करने लगते ।
क्रुछ दिनों के पश्चात् गौरैया की पत्नी ने अंडे दिए तो दोनों पति-पत्नी बहुत खुश हुए । अपनी पहली संतान की प्रतीक्षा में दोनों ही हर समय खुश नजर आते थे, परन्तु भाग्य को तो शायद कुछ और ही मंजूर था । प्राणी जो कुछ भी सोचता है वह सब का सब पूरा तो नहीं होता ।
यही हुआ, गौरैया और उसकी पत्नी के साथ, अभी उन अंडों से बच्चे भी नहीं निकल पाए थे दिन एक हाथी उस पेड़ के नीचे छाया का आनन्द लेने के लिए आ खड़ा हुआ । कुछ देर बाद उसे भूख ने आ सताया तो उसने पीपल की उसी टहनी को सूंड में लपेट कर नीचे गिरा लिया जिसमें उस गौरैया का घोंसला था, जैसे ही वह टहनी टूटकर नीचे गिरी तो उनका घोंसला भी टूट गया, जिसमें रखे उनके अंडे भी टूट गए ।
शाम को आकर जैसे ही उन्होंने अपने टूटे हुए घोंसले और अंडों को देखा तो दोनों ही जोर-जोर से रोने लेंगे । मगर हाथी को इनके आसुओं की क्या चिंता थी, उसने तो मजे से अपना पेट भर लिया था । वे दोनों अपने बच्चों के लिए रो रहे थे ।
उन्हें रोते देखकर उस पीपल पर रहने वाला एक कौआ आया । उसने उन दोनों को रोते हुए देखकर कहा, ”भैया गौरेया ! रोने से कुछ नहीं होगा, इस समय जरूरत है साहस की ।” ”दोस्त ! आप हमें कोई ऐसा रास्ता बताओ जिससे हम इस हाथी से अपने बच्चों की हत्या का बदला चुका सकें ।”
”हां, अब हमें सबसे पहले इस हाथी के बच्चे को सबक सिखाना है कि किसी के बच्चों की हत्या की क्या सजा मिलती है । मुझे यह भी पता है कि यह हाथी बहुत शक्तिशाली है, हम इसे सीधे तो सजा दे नहीं सकते, परन्तु हमें तो बुद्धि के सहारे ही इस हाथी से बदला चुकाना होगा ।
देखो दोस्त ! अब रोना-धोना छोड़ो, मेरी एक पुरानी मित्र है-मपुमक्खी, ऐसे अवसर पर मित्र ही मित्र के काम आ सकते हैं । सच्चा मित्र वही है जो दुःख के समय काम आए, अब मैं अपने उस मित्र के पास चलता हूं मधुमक्खी की बुद्धि बहुत तेज होती है, वही हमें इस हाथी से बदला लेने का कोई रास्ता सुझायेगी । बेहतर होगा कि तुम भी मेरे साथ चलो ।”
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”हां…हां…अब हम अकेले यहां बैठकर क्या करेंगे ।” वे तीनों मिलकर मपुमक्खी के पास पहुंचे, कौए ने उसे गौरेया की सारी दर्द भरी कहानी सुना दी । गौरैया और उसकी पत्नी अब भी रो रहे थे । मधुमक्खी ने सारी बात सुनकर कहा : ”तुम लोग रोना-धोना छोड़ो, अब मैं उस हाथी के बच्चे को ऐसा पाठ पढ़ाऊंगी कि वह सारी उम्र याद करेगा ।”
”मगर उस हाथी से तुम कैसे टकराओगी बहन ?” गौरेया ने पूछा । ”देखो, मैं हाथी के कान में जाकर अपनी सुरीली आवाज की वीणा बजाऊंगी, जिससे हाथी मस्त होकर झूमने लगेगा । झूमते हुए मस्त हाथी की दोनों औखें कौआ अपनी चोंच से फोड़ देगा, जिससे हाथी अंधा हो जाएगा, और जब मैं उसके पास जाकर सहानुभूति दिखाकर उसे सुझाऊंगी कि भइया!
यहां से कुछ दूर ऐसा वृक्ष है जिसके पत्तों का रस आखों से छुआ देने से तुम्हारी आखें अच्छी हो जाएंगी, ऐसा कहने पर वह मुझे अपना हितैषी समझेगा और मेरे साथ चलने को राजी हो जाएगा, तब मैं उसे किसी गहरे गड्ढे की तरफ ले जाऊंगी इस प्रकार हाथी उसमें गिर जाएगा और उस गहरे गड्ढे से अंधे हाथी का निकलना तो संभव नहीं होगा, बस फिर वह हाथी वहां से सीधा नर्क में ही पहुंचेगा ।”
गौरैया और उसकी पत्नी, मपुमक्यी की यह योजना सुनकर बहुत खुश हुए । कोई छोटा जानवर किसी विशालकाय जानवर को मार दे, इस बात की कोई कल्पना भी नहीं कर सकता । मपुमक्यी ने जो कहा था उसको करके भी दिखा दिया, हाथी से बदला लेने के लिए उसने उसे मृत्यु के आगोश में पहुंचा दिया । गौरैया और उसकी पत्नी बहुत खुश थे ।
मधुमक्खी ने उनसे कहा कि यदि तुम्हें इस बार अंडे देने हैं तो उसी वृक्ष पर उगकर देना, जिस वृक्ष पर हमने अपना छत्ता लगा रखा है । कुछ मास के पश्चात गौरैया की पत्नी ने फिर अंडे दिए तो मधुमक्खियां उनकी रक्षा करती रही । कुछ दिन बाद अंडों से बच्चे निकले तो दोनों पति-पत्नी पुराने दुःख को भूल गए, उन्होंने अपने मित्र कौए को भी बहुत धन्यवाद दिया ।