हिंदी साहित्य में हालावाद की प्राश्रंगिकता पर निबन्ध
हिंदी साहित्य में हालावाद की प्राश्रंगिकता पर निबन्ध! हिंदी साहित्य में 'हालावाद' की शुरुआत 'छायावाद' के बाद हुई । हालावाद की कविताओं में वैयक्तिकता की प्रधानता रही । इसके कवि दुनिया को भूलकर स्वयं अपने प्रेम-संसार की प्रेमपूर्ण मस्ती में डूब गए । संसार के सारे दुःख, सारी निराशा और सारी कठिनाइयाँ इसी 'हालावाद' की मस्ती में डूब गईं । [...]