यात्रा-शिक्षा के अंग के रूप में | Essay on Travel-As A Part of Education in Hindi!

प्राचीन समय से ही भ्रमण अथवा यात्रा करना व्यक्ति की शिक्षा का एक अंग समझा जाता रहा है । अंग्रेज लोग विशेष रूप से अपनी स्कूल की शिक्षा को तब तक पूर्ण नही मानते जब तक वे महाद्वीप की यात्रा नहीं कर लेते ।

ADVERTISEMENTS:

भ्रमण मानव के सबसे आनन्दप्रद अनुभवों में से एक है । लोगों ने एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने और दूसरे लागों और वस्तुओं को देखने में हमेशा आनन्द का अनुभव किया है । दुर्भाग्यवश, भारत में विदेश यात्रा को कोई अधिक प्रोत्साहन नहीं दिया जाता और वास्तविकता यह है कि प्राचीन काल में समुद्र पार जाने को अत्यधिक धर्म विरोधी कार्य समझा जाता था ।

महात्मा गाँधी जैसे लोगों को भी समुद्र पार जाने से रोक दिया गया था । इसी मनोवृति के कारण ही निष्कृष्ट कोटि की बौद्धिक मानसिकता उत्पन्न हो गई जिससे देश अधोपतन के गर्त में जा गिरा । देश और विदेश का भ्रमण शिक्षा का एक सशक्त साधन है ।

इससे विविध अनुभव प्राप्त होते है और शिक्षा से विकसित मस्तिष्क और बुद्धि के विभिन्न गुणों का व्यवहारिक प्रयोग करने का अवसर मिलता है । व्यवहार कुशलता, दृढ़ता, आकृष्ट करने वाला व्यक्तित्व और सजीव वार्तालाप करने जैसे गुण व्यापक और विश्वस्त यात्रा करने से ही व्यक्ति में उत्पन्न होते है ।

व्यक्ति चाहे कितना भी शिक्षित क्यों न हों यदि वह विभिन्न प्रकृति, भाषाओं और सामाजिक रीति-रिवाजों और नैतिकता वाले लोगों के साथ नही रहा है और उनसे नही मिला है तो उसका दृष्टिकोण संकीर्ण ही बना रहेगा । अपने विचारों में वह अनुदार होगा और उसका दृष्टिकोण कट्‌टरतापूर्ण रहेगा । परन्तु जिन लोगों ने व्यापक यात्रा की हो उनका दृष्टिकोण प्राय: उदार होगा । उनकी विवेकबुद्धि परिपक्व होगी और वे लोगों और उनके मन को समझने में गलती नहीं कर सकते ।

इसमें कोई सन्देह नहीं कि यात्रा पर अधिक व्यय होता है और यह असुविधाजनक भी रहती है । परन्तु अपने मस्तिष्क का विस्तार करने, संकीर्ण और क्षेत्रीय भावना से ऊपर उठने, अन्तरराष्ट्रीय सभ्यता के विकास के लिए यात्रा करना नितान्त आवश्यक है । हम सभी ‘एक विश्व’ के ही रहने वाले हैं और जब तक इस भूमण्डल के निवासी एक दूसरे को अच्छी प्रकार समझ नहीं लेते तब तक विश्व के राष्ट्र के बीच शान्ति और मित्रता की कोई सम्भावना नही हो सकती ।

Home››Travel››