List of some of the most popular women of the world (written in Hindi Language).

Contents:

  1. मदर टेरेसा |
  2. लता मंगेशकर |
  3. कल्पना चावला |
  4. सानिया मिर्जा |
  5. सुनीता विलियम्स |

1. मदर टेरेसा |  Mother Teresa

1. प्रस्तावना ।

2. जन्म परिचय एवं उनके मानवसेवी कार्य ।

3. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

मदर टेरेसा का सम्पूर्ण जीवन मानवता की सेवा में व्यतीत हुआ था । निर्धन, बेसहारा, दुखी, पीड़ित, रोगी, समाज से उपेक्षित, तिरस्कृत लोगों की सेवा को अपने जीवन की सार्थकता मानने वाली मदर टेरेसा विश्वशान्ति व मानव-सेवा की सच्चे अर्थों में पुजारन थीं । ”सादा जीवन उच्च विचार” तथा ”पीड़ित मानवता की सेवा” ही उनका जीवनादर्श था । भारतभूमि को ही अपनी कर्मभूमि मानकर अपना जीवन समर्पित करने वाली इस भारतीय ममता की देवी को 1979 में विश्व के महानतम पुरस्कार ”नोवेल शान्ति पुरस्कार” से भी सम्मानित किया गया था ।

2. जन्म परिचय एवं उनके मानव सेबी कार्य:

सेवा, त्याग, प्रेम, दया, करुणा, समर्पण की प्रतिमूर्ति, ममतामयी मां ”मदर टेरेसा” का जन्म यूगोस्लाविया के अल्बानिया के स्कोपजे नगर में अल्बेनियन कृषक परिवार में 27 अगस्त सन् 1910 को हुआ था । उनके बचपन का नाम एरनेस गोजा बोजाक्षिया था । सन् 1928 में वह मात्र 18 वर्ष की अवस्था में आयरलैण्ड के लोरटो मुख्यालय में रोमन कैथोलिक नन के रूप में कार्य करने लगी थीं ।

उसी केन्द्र द्वारा संचालित कार्यक्रम में भाग लेने के सिलसिले में जब वह 1929 को कलकत्ता आयीं, तो उन्होंने यहां दीन-दुखियों की कारुणिक दशा देखी, इससे उनका करुण-हृदय द्रवित हो उठा । उन्होंने भारत भूमि में ही रहकर यहां के दुखी, अनाथ, रोगी लोगों की सेवा में अपना जीवन समर्पित करने का निश्चय कर डाला ।

सन् 1929 में ही उन्होंने रोमन कैथोलिक नन के रूप में दार्जिलिंग में प्रशिक्षण प्राप्त किया । फिर सन्त टेरेसा के नाम पर 24 अगस्त 1931 को अपना नाम टेरेसा धारण कर लिया । 1948 को उन्होंने अपने पारम्परिक वस्त्रों का त्यागकर नीली किनारी वाली सफेद साड़ी पहनने का निश्चय कर लिया । अमरीकी मिशन से सामान्य चिकित्सा सेवा का प्रशिक्षण प्राप्त कर वह सर्वप्रथम कलकत्ता की मोती झील बरती में आ बसीं ।

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यहीं पर उन्होंने झुग्गी-झोपड़ी स्कूल की शुरुआत की । शिक्षा प्रसार के साथ-साथ कुष्ठ रोगियों की देखभाल में भी कूद पड़ी । मदर टेरेसा ने यहां के फुटपाथ पर जीवन बिताने वाले कोढ़ियों की दशा देखी, तो उनकी चिकित्सा और देखभाल करते हुए उन्हें समझाया कि ‘यह रोग असाध्य नहीं है ।’ मदर ने टीटागढ़ में महात्मा गांधी कुष्ठ आश्रम की स्थापना भी की ।

कूड़े के ढेर पर सुअर और कुत्तों के बीच नाजायज नवजातों को फेंक देने वालों को जहां ”हत्यारा” कहकर धिक्कारा, वहीं ऐसे अनाथ लावारिस बच्चों के लिए सन् 1952 में ‘निर्मला शिशु भवन’ की स्थापना की । सन् 1949 में ”मिशनरीज ऑफ चेरिटीज” नामक संस्था की स्थापना की । उनके इस सेवा कार्य से प्रोत्साहित होकर 125 देशों में भी ऐसे ही केन्द्र खोले गये ।

इन केन्द्रों द्वारा प्रतिदिन ढाई लाख से कुछ अधिक लोगों को भोजन तथा इतने ही रोगियों को दवा दी जाती है । 20 हजार से अधिक बच्चों को शिक्षित करने का पुनीत कार्य भी किया जाता है । मदर के सेवा कार्यों का विस्तार क्षयरोग से पीड़ित जन की सेवा, एड्‌स पीड़ितों की सेवा तथा नशे के शिकार हुए लोगों को इससे मुक्ति दिलाने तक फैला हुआ है ।

मदर ने हमेशा यही सन्देश दिया कि ”भगवान् उन्हें ही प्यार करता है, जो दूसरों की सेवा में ही अपने जीवन का आनन्द पाता है । हृदय से इस आनन्द को महसूस करना ही भगवान् को पाना है ।” दिन के 24 घण्टों में पीड़ित मानवता की सेवा के बारे में सोचना ही नहीं, अपितु उन्हें करना भी मदर के महान् व्यक्तित्व का विशेष गुण रहा है ।

अपने सेवा कार्य को भगवान् को समर्पित करने वाली इस महिला का आडम्बरों से दूर-दूर तक नाता नहीं रहा था । आजीवन तीन धोतियों को धारण कर उन्होंने अपने सच्चे जीवनादर्श का साक्षात् उदाहरण लोगों के समक्ष रखा । अपना सम्पूर्ण जीवन पीड़ित मानवता पर न्योछावर करने वाली मदर टेरेसा का 5 सितम्बर 1997 में कलकत्ता में देहावसान हो गया ।

3. उपसंहार:

यद्यपि मदर टेरेसा का सेवा कार्य आडम्बर और विज्ञापन से दूर रहा, तथापि उन पर धर्म परिवर्तन कराने के आरोप लगते रहे । मदर इन आरोपों को एक सिरे से हमेशा खारिज करती रहीं । भारत तथा विश्व के देशों ने उनके सेवा-समर्पण, त्याग के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए उन्हें अनेक उपाधियों, पुरस्कारों से भी नवाजा, जिनमें सन् 1962 की पद्‌मश्री की उपाधि, 1973 का टैम्पलेटन पुरस्कार, 1976 का देशिकोत्तम पुरस्कार, 1990 का सोवियत लैण्ड नेहरू पुरस्कार, अन्तर्राष्ट्रीय सद्‌भावना पुरस्कार, 1992 का भारत शिरोमणि पुरस्कार, 1993 का यूनेस्को शान्ति पुरस्कार, रेमेन मेग्सेसे तथा 1980 का भारत रत्न, 1979 का नोबेल शान्ति पुरस्कार तथा अनेक पुरस्कार विशिष्ट हैं ।

मदर के मरणोपरान्त सिस्टर निर्मला को उनका उत्तराधिकारी घोषित कर, उनके अधूरे कार्यों व मिशनरी के कार्यों को पूर्ण करने का दायित्व सौंपा गया । मदर टेरेसा को सन्त भी कहा जाता है ।


2. लता मंगेशकर | Lata Mangeshkar

1. प्रस्तावना ।

2. जन्म परिचय ।

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3. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

स्वर साम्राज्ञी, सुर-साधिका, सरस्वती की वरद् पुत्री, कोकिल कण्ठी सुश्री लता मंगेशकर भारत की सर्वश्रेष्ठ फिल्मी पार्श्व गायिका हैं । शताब्दी की सर्वश्रेष्ठ गायिका लता का गायन भारत के लिए ही नहीं, वरन् विश्व के लिए भी विस्मित कर देने वाला है ।

स्वर कोकिला लता मंगेशकर का एक-एक गीत सम्पूर्ण कलाकृति होता है । स्वर, लय और शब्दार्थ का एक ऐसा त्रिवेणी नाद सौन्दर्य उनकी सुर लहरियों में समाया होता है कि कानों में पड़ते ही मधुरता एवं मादकता की अनुभूति दिल की गहराइयों में उतरने लगती है ।

भारतीय संगीत को विलक्षणता तथा लोकप्रियता की चरम सीमा तक पहुंचाने वाली ‘लताजी’ के स्वरों में कोमलता और मधुरता का अनूठा समन्वय है । गायन में निर्मलता का ऐसा झरना फूट पड़ता है, जो अपने नादमय सौन्दर्य से सबको सिक्त कर देता है । संगीत की परिपूर्णता लताजी के गानों को सुनकर मिल जाती है । वे ‘दादा साहब फाल्के’, ‘पद्‌मश्री’, ‘भारत रत्न’ ही नहीं, कई पुरस्कारों और उपाधियों से सम्मानित हैं । प्रत्येक भारतीय को उन पर गर्व है ।

2. जन्म परिचय:

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स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर का जन्म 29 सितम्बर सन् 1929 को इंदौर (म॰प्र॰) में हुआ था । इनके पिता स्व॰ दीनानाथ मंगेशकर एवं माता श्रीमती माई मंगेशकर थीं । लताजी अपने पांच भाई-बहिनों में सबसे बड़ी हैं । इनकी छोटी बहिनें आशा भोंसले, उषा मंगेशकर व मीना मंगेशकर भी श्रेष्ठ गायिकाएं हैं । इनके छोटे भाई हृदयनाथ श्रेष्ठ संगीतकार हैं । लताजी की अवस्था जब मात्र 13 वर्ष की थी, तो इनके पिता का देहावसान हो गया था ।

इनके पिता स्व॰ दीनानाथ मंगेशकर उच्चकोटि के शास्त्रीय गायक एवं संगीतकार थे । उन्होंने लताजी और उनकी छोटी बहिनों को भी बचपन से ही संगीत की शिक्षा प्रदान की । पिता की मृत्यु के बाद घर की सारी जिम्मेदारियों के साथ आर्थिक बोझ लताजी के कन्धों पर आ पड़ा था । इनके पिता ने अपनी मृत्यु से पूर्व लताजी को बसन्त जोगलेकर की फिल्म ‘किती हसाल’ (मराठी) में पहला गीत गाने का अवसर प्रदान करवाया था ।

लताजी ने मास्टर विनायक द्वारा निर्देशित पहली फिल्म ‘मंगलागौर’ में अभिनय के साथ-साथ गायन भी किया था । इसके बाद लताजी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा । इन्होंने एक के बाद एक फिल्मों में गाते हुए 30 हजार से भी अधिक गीत गाये । हिन्दी के साथ-साथ कई भाषाओं में भी वे गीत गाती रही हैं ।

लताजी जब गायन के क्षेत्र में आयी थीं, तब नूरजहां, सुरैया, शमशाद बेगम व गीता दत्त जैसी गायिकाएं उनके लिए चुनौती थीं, किन्तु लताजी ने अपनी गायकी के अन्दाज से सभी को पीछे छोड़ दिया । इन्होंने हेमन्त कुमार, तलक महमूद, रफी, मुकेश, किशोर कुमार, उदित नारायण जैसे पुरुष गायकों के साथ गायन किया है ।

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इनके प्रिय संगीतकारों में सी॰ रामचन्द्र, मदनमोहन रहे हैं । इन्होंने फिल्म के लगभग सभी संगीतकारों के निर्देशन में गीत गाये हैं । लताजी को सन् 1958, 1962, 1965 में फिल्म फेयर अवार्ड भी मिले हैं । सन् 1965 में इनको ”पद्‌मभूषण” से अलंकृत किया गया । 1997 में इन्हें ”महाराष्ट्र भूषण” सम्मान प्रदान किया गया । इसके अन्तर्गत इन्हें 5 लाख रुपये सहित मानपत्र भी प्राप्त हुआ । 1996 में ‘राजीव गांधी सदभावना’ पुरस्कार, 1997 में शान्ति एवं सद्‌भाव हेतु ”शष्ट्रपति पुरस्कार” मिला ।

1997 में ‘दिल तो पागल है’ के लिए सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायिका का पुरस्कार प्रदान किया गया । 1997 में इन्हें ”आदित्य बिड़ला पुरस्कार”, 1990 में ”दादा साहब फाल्के” पुरस्कार मिला । कोल्हापुर के शिवाजी विद्यापीठ से लताजी को डॉक्टर की मानद उपाधि मिली । इन्होंने ”फूले वेचिता” शीर्षक से एक पुस्तक भी लिखी है । वर्ष 1999 में इन्हें ”सरस्वती सम्मान” भी प्रदान किया जा चुका है । म॰ प्र॰ सरकार ने लताजी के नाम से 1 लाख रुपये का पुरस्कार संगीत साधकों के लिए रखा हुआ है ।

लताजी को 2001 में ”भारत रत्न” के सर्वश्रेष्ठ अलंकरण से भी अलंकृत किया जा चुका है । आज भी लताजी की आवाज पूरे देश को मदहोश बनाये हुए है । लताजी ने लगभग आधी सदी से ज्यादा छोटी-बड़ी नायिकाओं के लिए गीत गाये हैं । इनके गीत सभी नायिकाओं पर एकदम फिट बैठते हैं । हर आयु, वर्ग के लिए उपयुक्त हैं । महाराष्ट्र लताजी की कर्मभूमि है । इन्हें कई चैनलों द्वारा ”लाइफ टाइम एचीवमेन्ट” पुरस्कार, सहस्त्राब्दी पुरस्कार भी प्रदान किये गये हैं । लताजीजी ने कई स्थानों पर अनाथालयों की स्थापना की है । वे आज भी उतनी ही शिद्दत के साथ गाती हैं ।

3. उपसंहार:

स्वर की सुर लहरियों में डुबो देने वाली लताजी की गायकी में एक ऐसा जादू है कि सभी को गीत की अनुभूतियों में उसके पूरे भावों सहित उतार ले चलता है । लताजी ने जब ‘प्रदीप’ का वह देशभक्ति से परिपूर्ण गीत ”ऐ! मेरे वतन के लोगों” गणतन्त्र दिवस के अवसर पर स्व॰ प्रधानमन्त्री नेहरूजी के समक्ष प्रस्तुत किया था, तो वे अपनी आंखों के आंसू नहीं रोक पाये थे ।

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प्रेम, विरह, मिलन, भक्ति, देशप्रेम या फिर जीवन का कोई भी भाव हो, लताजी ने उसके साथ भरपूर न्याय किया है । महान संगीतकार इनके बारे में कहते हैं- ”कमबख्त! भूल से भी गलत नहीं गाती है ।”


3. कल्पना चावला | Kalpana Chawala

1. प्रस्तावना ।

2. महान् महिला अन्तरिक्ष यात्री-कल्पना चावला ।

3. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

भारतीय मूल की पहली महिला अन्तरिक्ष यात्री होने का गौरव प्राप्त करने वाली कल्पना चावला ने भारत का ही नहीं, अपितु मूल प्रवासी भारतीय के नाम पर अमेरिका में भी अत्यन्त सम्मानजनक स्थान प्राप्त किया है । भारत की पढ़ाई में रुचि रखने वाली हर लड़की आज कल्पना चावला बनने का स्वप्न देखती है । 8 जुलाई 1961 को हरियाणा के करनाल जिले में जन्मी कल्पना ने करनाल के टैगोर स्कूल से शिक्षा प्राप्त की थी ।

पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज से एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में डिग्री लेने के बाद कल्पना अमेरिका चली आयीं, जहां के अन्तरिक्ष कार्यक्रमों का नेतृत्व करती हुई 2 फरवरी 2003 में वह एक दुर्घटना में अन्तरिक्ष में ही विलीन हो गयीं ।

2. महान् महिला अन्तरिक्ष यात्री-कल्पना चावला:

एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में डिग्री लेने के बाद कल्पना ने 1984 में अमेरिका के टैक्सास से इंजीनियरिंग में मास्टर की डिग्री ली । बाद में उन्होंने कोलोरोडो से पी॰ एच॰ डी॰ की । पी॰ एच॰ डी॰ करने के बाद कल्पना ने अमेरिका के एम्स में फ्यूड डायनामिक पर काम शुरू किया ।

यहां सफलतापूर्वक काम करने के बाद 1963 में कल्पना ने केलिफोर्निया के ओवरसेट मैथ्सड् इन कॉरपोरेशन में अनुसन्धान वैज्ञानिक के रूप में काम शुरू किया । कल्पना ने यहां रहते हुए अन्तरिक्ष मिशन के तहत कई अनुसन्धान कार्य किये । 1994 में नासा द्वारा अन्तरिक्ष यात्री के रूप में कल्पना का चयन किया गया ।

इस प्रकार कल्पना 1995 में पन्द्रहवें अन्तरिक्ष समूह में शामिल हो गयीं । 1 वर्ष के प्रशिक्षण और मूल्यांकन के बाद कल्पना को रोबेटिक्स अन्तरिक्ष में विचरण से जुड़े तकनीकी विषयों पर काम करने की महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी गयी । कल्पना को सौंपे गये कार्य करने की शैली को देखकर उन्हें एक मिशन का विशेषज्ञ बना दिया

गया ।

इसके अलावा उन्हें प्रमुख रोबेटिक्स आर्म ऑपरेटर भी बनाया गया । 5 वर्ष के बाद कल्पना दूसरी बार अन्तरिक्ष मिशन पर गयी । 16 जनवरी के अन्तरिक्ष मिशन पर गये कोलम्बिया यान ने अन्तरिक्ष में मानव अंगों, शरीर में कैंसर कोशिकाओं के विकास तथा गुरुत्वाकर्षण विहीन अवस्था में विभिन्न कीट-कीटाणुओं की स्थिति का अध्ययन करने के लिए यान में शोध किये । यान ने अपने 16 दिनों की यात्रा में हर 60 मिनट बाद एक परिक्रमा की ।

यान में कल्पना के अलावा मिशन के प्रमुख रिक हस्बैंड, पायलट विली मैकुल, अभियान विशेषज्ञ डेब ब्राउन, एक अन्य महिला अन्तरिक्ष यात्री लोरेल क्लार्क, पैलोड कमाण्डर माइक एण्डरसन और पैलोड विशेषज्ञ इलान रैमोने सवार थे । कोलम्बिया का यह 25वां अभियान था । परिक्रमा के दौरान यान की गति 17,500 मील प्रतिघण्टा थी । इस यान का ऊपरी हिस्सा चमकीला सफेद था ।

16 दिन की यात्रा के बाद जब अन्तरिक्ष अभियान से कोलम्बिया यान 2 फरवरी की शाम लौट रहा था, तो धरती से 63 किलोमीटर की दूरी पर हुए धमाके के बाद यान शायद अन्तरिक्ष के किसी कचरे से टकराया था, जिसकी वजह से उसकी सुरक्षा पट्टी क्षतिग्रस्त हो गयी थी और यान आग की लपटों को घिर गया ।

तेजी से धरती की ओर बढ़ते हुए उस यान के भीतर की गरमी इतनी अधिक बढ़ चुकी थी कि सभी अन्तरिक्ष यात्री उस गरमी में जलते हुए घुटन की वजह से जल मरे । यान का मलबा अमेरिका के टैक्सास शहर में गिरा ।

इस भीषण हादसे के बाद नासा ने अपने बयान में यह बताया कि स्थानीय समय के अनुसार करीब 6 बजे सुबह के आसपास उत्तरी टैक्सास के लोगों ने एक बड़ा धमाका सुना । 20 हजार कि॰ मी॰ प्रति घण्टे की रफ्तार व ध्वनि की गति से कई गुना अधिक वेग से पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण केन्द्र की ओर बढ़ता हुआ यान नष्ट हो चला था । रेडियो और डाटा संचार से उसका सम्पर्क टूट गया ।

महान् खोज के लिए गये इन अन्तरिक्ष यात्रियों का दुर्भाग्यवश कोलम्बिया यान में ही प्राणान्त हो चुका था । अमेरिका के साथ-साथ सारा विश्व जैसे स्तब्ध रह गया । सारे भारत में भी शोक छा गया था । जिस स्कूल में कल्पना पढ़ी थी, वहां भी सभी की आंखें नम हो गयीं थीं ।

3. उपसंहार:

कल्पना चावला उन महान् महिलाओं में से थीं, जो कठिनाइयों और संघर्षों से कभी नहीं घबराती थीं । अपनी महत्त्वाकांक्षा की पूर्ति के साथ-साथ महान् बनने की अभिलाषा में कल्पना अपने आत्मबल, दृढ़ निश्चय और साहस को कभी छोड़ती नहीं थीं ।

2087 अन्तरिक्ष यात्रियों में उनका चुना जाना अपने आप में बहुत बड़ी बात थी । कल्पना स्वभाव से शान्त, सरल तथा सादगी पसन्द, शाकाहारी महिला थीं । कल्पना ने अमेरिका के उड़ान प्रशिक्षक ज्यो पियरे हैरिसन से 1984 में विवाह कर लिया था ।

मिशन एसटीएस-107 के सभी सातों अन्तरिक्ष यात्रियों के परिजनों और भारतीय बच्चों की भावनाओं को देखते हुए इस बड़े बलिदान को देखकर विज्ञान की प्रगति के हितार्थ नासा ने बीते 7 अगस्त को सात बड़े एस्ट्रॉएड्‌स का नामकरण इन अन्तरिक्ष यात्रियों के नाम पर किया । कल्पना के जीवन से प्रेरणा लेकर भारत के बहुत से बच्चे एयरोनॉटिक्स में प्रवेश ले रहे हैं ।


4. सानिया मिर्जा |  Shania Mirza

1. प्रस्तावना ।

2. जन्म परिचय व उपलब्धियां ।

3. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

सानिया मिर्जा को टेनिस की सनसनी कहा जाता है । वे भारत की ऐसी पहली महिला स्टार खिलाड़ी हैं, जिन्होंने 50 के भीतर की विश्व रेकिंग (वरीयता) मिली हुई है । इसके पूर्व किसी भी महिला तथा पुराष खिलाड़ी को भी यह गौरव इतनी कम अवस्था में प्राप्त नहीं हुआ है । वे भारतीय महिलाओं के लिए एक प्रेरणा हैं, एक आदर्श है । सानिया को खेल के साथ-साथ खबरों में बने रहना भी भाता है ।

आज भारतीय लडकियां इनके समान ही कपड़े तथा आभूषण पहनना चाहती हैं । वर्तमान में भारत सरकार ने सानिया की खेल सम्बन्धी उपलब्धियों के लिए इन्हें ”पदमश्री” से नवाजा है । 19 वर्ष की अवस्था में पदमश्री प्राप्त करने वाली सानिया पर हर भारतीय को गर्व है । वे टेनिस की बुलन्दियों पर पहुंचना चाहती हैं ।

2. जन्म परिचय व उपलब्धियां:

सानिया मिर्जा का जन्म 15 नवम्बर 1986 को मुम्बई में हुआ था । जब इनकी अवस्था महज 6 वर्ष की थी, तभी से इन्होंने टेनिस खेलना आरम्भ किया । सानिया अपनी मां के साथ रोज स्वीमिंग सीखने जाती थीं । रारत्ते में एक टेनिस कोर्ट पड़ता था । वहां पर आते-जाते हुए टेनिस खिलाड़ियों को सानिया बड़ी हसरत-भरी निगाहों से देखती थीं । एक दिन इनकी मां ने इनसे कहा कि ”तुम समर वेकेशन में टेनिस खेलना सीख लो ।”

इस प्रकार सानिया को एक कोच के पास भेज दिया गया । सानिया के पिता इमरान मिर्जा ने सानिया को निजाम क्लब भेज दिया । इसके बाद सानिया के प्रशिक्षक सी॰के॰ भूपति ने इन्हें प्रोफेशनल कोच की ट्रेनिंग दी । सानिया को टेनिस अकादमी सिकन्दरा व भूपति की कम्पनी लाबेल स्पोर्ट में प्रवेश कराया । सानिया ने बोरिस बेकर, बाब ब्रेड से टेनिस खेलने की प्रेरणा ली । सानिया डबल्स टी॰ए॰ जीतने वाली प्रथम भारतीय महिला टेनिस खिलाड़ी हैं । सानिया ने पहला अन्तर्राष्ट्रीय टेनिस टूर्नामेन्ट 1999 में खेला ।

इन्होंने भारत की विश्व टेनिस जूनियर स्पर्धा जकार्ता में भारत का प्रतिनिधित्व किया । सन 2002 में लिएण्डर पेस के साथ मिक्सड डबल्स के एशियन गेम्स में इन्होंने कांस्य पदक जीता । सानिया ने इसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा । सन 2005 में सानिया ने जूनियर वर्ग से महिलाओं के डबल्स में विम्बल्डन में सम्मिलित होकर ग्रैण्ड स्लैम खिताब जीता । इन्होंने रूसी तथा चेकोस्लोवाकिया की खिलाड़ियों को हराया ।

सानिया को अन्तर्राष्ट्रीय टेनिस फेडरेशन आयी॰टी॰आयी॰ टाइटल्स में विजय हासिल हुई । महिलाओं के एकल आस्ट्रेलियाई ओपन के सैकण्ड राउण्ड में इन्होंने पेट्रा मेंडुलाको को 6-2, 6-1 से हराया । सानिया ने यूक्रेन की एलनिया वोल्डरेको को डबल्यू टी॰ए॰ में अपने शहर हैदराबाद में हराया ।

सानिया ने विम्बल्डन की प्रतियोगिता में सेरेना विलियम्स से कड़ा मुकाबला किया । इनकी फोर हैण्ड सर्विस अच्छी है । सानिया लोटो स्पोर्ट इटालिया की ब्राण्ड एम्बेसडर हैं । सानिया मिर्जा का निकाह शोएब मलिक के साथ हुआ है ।

3. उपसंहार:

सानिया मिर्जा निश्चय ही भारत की पहली महिला टेनिस स्टार खिलाड़ी है, जिन्होंने टेनिस जगत में भारतीय महिलाओं का प्रवेश दर्ज कर उनकी उपस्थिति से सबका ध्यान आकर्षित किया । सानिया का स्वप्न है-अपनी रैकिंग में और सुधार लाना ।

अगस्त 2005 में इनकी रैकिंग 48वें स्थान से वे स्थान पर थी । इनकी रैकिंग में और सुधार हो, इस हेतु सानिया अथक परिश्रम कर रही है । इनके खेल में बाधा फिटनेस की समस्या को लेकर रही है, जिसके कारण कई प्रतियोगिताओं से वे वंचित रही हैं । भारत को इन पर नाज है ।


5. सुनीता विलियम्स | Sunita Williams

1. प्रस्तावना ।

2. जन्म एवं शिक्षा ।

3. उनका व्यक्तित्व एवं कार्य ।

4. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

‘अन्तरिक्ष परी’ के नाम से जानी जाने वालीं और अन्तरिक्ष में 195 दिन तर रहकर रिकार्ड बनाने वालीं सुनीता विलियम्स से कौन परिचित नहीं है । सुनीता विलियम्स भारतीय मूल की दूसरी अन्तरिक्ष यात्री हैं । सुनीता विलियम्स एक ऐसी महिला हैं, जिन पर उनके माता-पिता को गर्व है । आज भारत में बहुत-से लोग उन्हें अपना मानता हैं ।

2. जन्म एवं शिक्षा:

सुनीता विलियम्स का जन्म 19 सितम्बर 1965 में, क्लीवलैण्ड, ओहियो, यू एस ए में हुआ था । सुनीता के पिता का नाम दीपक एन. पांडया है । सुनीता ने अपनी छठी कक्षा तक की शिक्षा हिलसाइड एलीमेन्ट्री स्कूल से प्राप्त की ।

इसके बाद सातवीं से नौवीं तक की शिक्षा उन्होंने न्यूमैन जूनियर हाई स्कूल से प्राप्त की । तत्पश्चात उन्होंने दसवीं से बारहवीं कक्षा तक की शिक्षा निधाम हाई स्कूल से प्राप्त की । उनकी प्रिय अध्यापिका थीं-मिसेज एन्जीला डी नैपोली, जो उन्हें पांचवीं कक्षा में पढ़ाती थीं ।

उम्र बढ़ने के साथ-साथ सुनीता पर निधाम स्कूल का प्रभाव बढ़ता चला गया । यही वह स्कूल था, जहां से उसे बुलन्दियों को छूने की प्रेरणा मिली । सुनीता ने 1983 में निधाम हाई स्कूल पास किया । उन्होंने गणित और विज्ञान में टॉप किया ।

फिर भी, उनका मानना था कि वह पूरी तरह से नम्बर वन नहीं हैं, बस वह ठीक-ठाक हैं । वह हमेशा कक्षा में सभी विषयों में सबसे ऊंचे नम्बर प्राप्त करती थीं । इसके साथ ही उन्होंने तैराकी में सैकड़ों पदक जीते । यूनाइटेड स्टेटस नेवल एकॉडमी ने कई प्रकार से सुनीता के जीवन को नया रूप दिया ।

सुनीता इसी एकॉडमी गे माइकल विलियम्स से मिलीं, जो वहां उनके सहपाठी थे । पहले वह उनके खास दोस्त बने और अब वह 18 वर्ष से सुनीता के पति हैं । सुनीता ने एकॉडमी से बी॰एस॰ शारीरिक विज्ञान में डिग्री प्राप्त की ।

मई 1987 में, उन्होंने यूनाइटेड स्टेटस नेवल एकॉडमी से यूनाइटेड स्टेसस नेवी में आधिकारिक पहचान चिह्न प्राप्त किया । उसके बाद जल्द ही सुनीता और माइकल विवाह-सूत्र में बन्ध गये । वैवाहिक कार्यक्रम सेंट जॉसफ चर्च, वुडस हॉल, कैप कोड मे सम्पन्न हुआ । इस चर्च में सबसे पुराना मैरी पार्क है, जो मदर मैरी को समखपत है ।

3. उनका व्यक्तिव एवं कार्य:

व्यवसायिक तौर पर, सुनीता को नेवल कोस्टल सिस्टम द्वारा छह महीने का अस्थायी कार्य दिया गया, जहां उन्होंने ‘बेसिक डाइविंग ऑफिसर’ का पद ग्रहण किया और फिर पॉयलट के रूप में समुद्री जहाज चालक की ट्रेनिंग ली । जुलाई 1989 में सुनीता को समुद्री जहाज चालक का पद मिला ।

सुनीता पनामा सिटी, एफ एल गयीं और उन्होंने इतना अच्छा प्रदर्शन किया कि उन्हें समुद्री गोताखोर के लिए आमन्त्रित किया गया । अब उनके पास दो विकल्प थे, पहला, समुद्री गोताखोर और दूसरा, समुद्री जहाज चालक । एक ओर, समुद्री गोताखोर की ट्रेनिंग नासा में उन्हें अन्तरिक्ष यात्री बनने में दो प्रकार से मदद कर सकती थी ।

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पहले, गोताखोर होने पर आप जीवित रहने के लिए केवल ऑक्सीजन के साथ ही आराम से पानी के अन्दर चलना सीखते हैं । दूसरे, समुद्री गोताखोर के कार्य के अनुसार, आप पानी के अन्दर काम करना, चीजों को जोड़ना, बोल्ट को टांका लगाना या कसना आदि सीखते हैं ।

यह अनुभव अन्तरिक्ष यात्री के अनुभव से बहुत मेल खाते हैं; क्योंकि अन्तरिक्ष यात्री को भी अन्तरिक्ष की यात्रा पर जाने के लिए भारहीन होकर कार्य करने का अभ्यास कराया जाता है । तब सुनीता एच 46, सीकनाइट की प्रारम्भिक ट्रेनिंग के लिए हैलीकाप्टर कॉमबेट सपोर्ट स्काड्रन 3 गयीं ।

इस ट्रेनिंग को समाप्त करने के बाद उन्हें नॉरफाल्क, विरजिनिया, मैडिटेरेनियन, रेड सी और परशियन खाड़ी में रेगिस्तान के सुरक्षा कवच और वहां सुविधाओं को बढ़ाने के लिए हैलीकाप्टर कॉमबेट सपोर्ट स्काड्रन 8 ने नियुक्त किया । सितम्बर 1992 में, सुनीता हयूरीकैन एन्ट्रीयू रिलीफ ऑपरेशन के लिए मियामी, फ्लोरिडा भेजे गये एच 46 सेना दल की ऑफिसर इन्चार्ज थीं ।

सुनीता को युनाइटेड स्टेटस नेवल टेस्ट पायलट स्कूल के लिए चुना गया और उन्होंने जनवरी 1993 में अपना सत्र आरम्भ किया । दिसम्बर 1993 में स्नातक के बाद, उन्हें रोटरी विंग एअर क्राफ्ट टेस्ट डायरेक्टरेट के लिए एच 46 प्रोजेक्ट ऑफिसर के तौर पर और टी-2 में वी-22 चैज पायलट के तौर पर नियुत्ता किया गया ।

जब वह 1998 में यू एस एस, साइपेन बोर्ड में थीं, तब उन्हें अन्तरिक्ष यात्री प्रोग्राम के लिए चुना गया । उन्होंने तीस से भी ज्यादा विभिन्न एयर क्रापट में 2300 घण्टे तक उड़ाने भरीं । इस प्रकार वह उड़ान के पेशे में आ गयीं और फिर जब उन्हें विंगस प्राप्त हो गये, तो वह जहाजों के बेड़े में से निकलकर पैक्स रिवर, वी ए में टेस्ट पायलट स्कूल में गयीं, फिर नासा में और फिर अन्तरिक्ष यात्री के लिए ।

सुनीता ने 1998 में नासा में अपना प्रशिक्षण आरम्भ किया और इसी वर्ष स्पेस स्टेशन प्रोजेक्ट पर कार्य करने के लिए उनका चयन किया गया । 9 दिसम्बर 2006 को एसटीएस-116 के सदस्यों के साथ स्पेस शटल लांच होने के बाद सुनीता 11 दिसम्बर 2006 को अन्तर्राष्ट्रीय अन्तरिक्ष स्टेशन पहुंची ।

16 दिसम्बर 2006 को सुनीता बॉब करबीम के साथ अन्तर्राष्ट्रीय अन्तरिक्ष स्टेशन की सीमा के बाहर घूमीं । उन्होंने अन्तर्राष्ट्रीय अन्तरिक्ष स्टेशन की रिवायरिंग समाप्त की । फिर से 31 जनवरी और 4 एवं 9 फरवरी को सुनीता ने माइकल लोपेज, अलेग्रिया के साथ तीन अन्तरिक्ष के चक्कर पूरे किये, जिसमें से तीसरा चक्कर 6 घण्टे 40 मिनट में पूरा किया । तब सुनीता विलियम्स ने महिला अन्तरिक्ष यात्री कैथ्रेटन सी॰ थौर्नटान द्वारा अधिक समय तक अन्तरिक्ष में घूमने के समय के रिकार्ड को तोड़ते हुए 29 घण्टे 17 मिनट तक अन्तरिक्ष में घूमने का रिकार्ड रजिस्टर्ड करवाया ।

16 अप्रैल 2007 को रेस नम्बर 14000 लिखी हुई नेवी की टी-शर्ट पहनकर और कष्टदायक कवच पहनकर जब सुनीता को ट्रेड मिल पर रस्सियों द्वारा नीचे किया गया, तब सुनीता ने 4 घण्टे 24 मिनट में रेस पूरी की । इस प्रक्रिया में, उन्होंने वास्तव में 121600 किलोमीटर की दूरी तय की, जो विश्व के तीन चक्कर काटने के बराबर है ।

19 जून को अन्तरिक्ष यान अटलांटिस अन्तर्राष्ट्रीय अन्तरिक्ष स्टेशन से पृथ्वी के लिए रवाना हो गया । अटलांटिस में सुनीता विलियम्स समेत कुल दस अन्तरिक्ष यात्री थे । अटलांटिस के पृथ्वी की ओर रवाना होने से पहले अटलांटिस यान के अन्तरिक्ष वैज्ञानियों ने आखिरी स्पेसवॉक भी पूरी की ।

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यान के कमाण्डर रिक स्टर्कोप और पायलट ली आर्कमबाल्ट ने भारतीय समयानुसार रात आठ बजकर 12 मिनट पर अटलांटिस को उसके बर्थिंग पोर्ट से अलग किया और इसके बाद स्टेशन का चक्कर लगाया । अटलांटिस के अन्तरिक्ष वैज्ञानिकों ने स्टेशन पर दो नये सौर ऊर्जा पंख स्थापित किये, जिनके जरिये यूरोप और जापान द्वारा स्थापित की गयी प्रायोगशालाओं को विद्युत की आपूर्ति होगी ।

अटलांटिस को 21 जून 2007 को भारतीय समयानुसार रात 11 बजकर 20 मिनट पर फ्लोरिडा स्थित केनेडी स्पेस सेंटर पर उतरना था, लेकिन अमरीकी अन्तरिक्ष एजेंसी नासा ने खराब मौसम के कारण अटलांटिस की वापसी अगली रात्रि के लिए टाल दी । 22 जून रात 11.45 से लैंडिंग के अगले प्रयास आरम्भ कर दिये गये । 22 जून को आसमान में 80,000 फुट की ऊंचाई पर घने बादल छाये रहे ।

भारतीय समयानुसार 22 जून रात एक बजकर 19 मिनट पर केलीफोर्निया स्थित एडवडर्स एयर बेस पर अटलांटिस 19 डिग्री के कोण से रनवे नम्बर 22 पर सुरिक्षत उतर गया । इसके साथ ही सुनीता सितारों की दुनिया में अपना मिशन पूरा करके अपने छह सदस्यों सहित सुरक्षित धरती पर उतरीं ।

पूरे विश्व में खुशी की लहर दौड़ गयी । अटलांटिस कमाण्डर रिक स्टरको और पायलट ली आरचमबाउल्ट को मिशन कन्ट्रोल ने सबसे पहले गुरुत्वाकर्षण वायुमण्डल की परिधि कक्षा में प्रवेश की अनुमति दी । उस समय अटलांटिस की स्पीड 28000 किलोमीटर प्रति घण्टा थी । तब 16 मिनट के लिए अटलांटिस का नासा से सम्बन्ध विच्छेद हो गया, जो कि इस प्रक्रिया का एक भाग है । इसके बाद पायलट ने जब अपना पहला सन्देश नासा को भेजा, तो वैज्ञानिकों की खुशी का ठिकाना न रहा ।

4. उपसंहार:

सुनीता विलियम्स एक ऐसी ‘साधारण महिला’ हैं, जिन्होंने अपने विलक्षण परिवार की सहायता से उन बुलन्दियों को प्राप्त किया है, जिसके कारण आज पूरा विश्व उन्हें ‘अन्तरिक्ष परी’ के नाम से सम्बोधित करता है । सुनीता विलियम्स ने अपने जीवन में कई चरित्रों को निभाया है जैसे-समुद्री जहाज चालक, हैलीकाप्टर चालक, बाद में टेस्ट चालक, व्यवसायिक समुद्री जहाज चालक, तैराक, जानवरों से प्यार करने वाली, मैराथन में भाग लेने वाली और अब अन्तरिक्ष यात्री तथा विश्व रिकार्ड बनाने वाली भारतीय मूल की दूसरी अन्तरिक्ष यात्री ।


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